Causes and Effects of Regional Imbalance
क्षेत्रीय असन्तुलन के कारण तथा प्रभाव
भारत की अर्थव्यवस्था में क्षेत्रीय असन्तुलन के प्रमुख कारण एवं प्रभाव निम्नलिखित हैं—
1. भौगोलिक परिस्थितियाँ- भारत के कई क्षेत्रों के पिछड़े होने का कारण वहाँ की भौगोलिक परिस्थितियाँ भी हैं; जैसे-जम्मू व कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश तथा उत्तराखण्ड प्रदेश पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण पिछड़े रहे हैं। पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण यहाँ यातायात की परेशानी रहती है, जिससे इन प्रदेशों में आवागमन काफी कठिन होता है । जलवायु भी क्षेत्रीय असन्तुलन को जन्म देती है। गंगा-यमुना का मैदानी भाग जितना उपजाऊ है, उतना उपजाऊ अन्य कोई क्षेत्र नहीं है। इसी वजह से ये क्षेत्र पानी की कमी न होने के कारण विकसित हो गए किन्तु शेष क्षेत्र, जहाँ पानी की कमी थी, पिछड़ गए।
2. ब्रिटिश शासन — आजादी के पूर्व का इतिहास यदि उठाकर देखें तो यह विदित होता है कि क्षेत्रीय असन्तुलन के लिए ब्रिटिश शासन काफी हद तक जिम्मेदार रहा। उन्होंने भारत को एक व्यापारिक केन्द्र के रूप में ही प्रयोग किया। अंग्रेजों ने यहाँ का कच्चा माल विदेशों में भेजा तथा वहाँ से आया हुआ पक्का माल यहाँ बेचा। परिणाम यह हुआ कि यहाँ व्यापार तथा उद्योग पिछड़ गए। उन्होंने केवल उन्हीं क्षेत्रों का विकास किया जिनसे उन्हें लाभ प्राप्त होता था। उन्होंने पश्चिम बंगाल तथा महाराष्ट्र का ही विकास किया। इसी तरह जमींदारी प्रथा ने कृषि को विकसित नहीं होने दिया। आय के बड़े हिस्से पर साहूकारों तथा जमींदारों का कब्जा होता था। इस शासन के दौरान जिन स्थानों से नहरें निकाली गईं वे ही क्षेत्र विकसित हो पाए।
3. नए विनियोग – नए विनियोगों का जहाँ तक प्रश्न है; विशेषकर निजी क्षेत्र में; पहले से विकसित क्षेत्रों में ज्यादा नया विनियोग किया गया है, जिसका उद्देश्य ज्यादा लाभ कमाना भी होता है। दूसरे विकसित क्षेत्रों में पानी, बिजली, सड़क, बैंक, बीमा कम्पनियाँ, श्रमिकों का आसानी से मिलना, बाजार का नजदीक होना इत्यादि का लाभ भी प्राप्त हो जाता है। इस वजह से भी क्षेत्रीय असन्तुलन हो जाता है।