Entreprenurial Development Programme and critical Evolution of Government in its

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Entreprenurial Development Programme and critical Evolution of Government in its

उद्यमिता विकास कार्यक्रम एवं इसमें सरकार की आलोचनात्मक भूमिका

प्रश्न 1. उद्यमिता विकास कार्यक्रम से क्या आशय है ? इसके महत्व व उद्देश्य बताइये। What is meant by Entrepreneurial Development Programme. Discuss its importance and object.

उद्यमिता विकास कार्यक्रम

(Entrepreneurial Development Programme)

उद्यमिता विकास दो शब्दों का संयुक्तीकरण है उद्यमिता एवं विकास, जिसका शाब्दिक अर्थ है उद्यमिता की वृत्ति का उत्तरोत्तर विकास। अतः उद्यमिता विकास कार्यक्रम से आशय उन सभी व्यक्तिगत एवं सामूहिक, निजी या सरकारी क्षेत्र के प्रयासों से है जो उद्यमिता के विकास हेतु आयोजित किये जाते हैं। अन्य शब्दों में उद्यमिता विकास कार्यक्रम से आशय ऐसे कार्यक्रम या प्रयास से है, जिसके द्वारा किसी व्यक्ति से उद्यमिता की वृत्ति का विकास किया जाता है। विभिन्न विद्वानों ने उद्यमिता विकास कार्यक्रम को इस प्रकार परिभाषित किया हैडॉ० अखौरी के अनुसार, “ऐसे व्यक्तियों के लिए जिनमें कि संभावित उद्यमी के गुण छिपे रहते हैं, उनकी उद्यमी प्रवृत्तियों के विकास कार्यक्रमों को ही उद्यमिता विकास कार्यक्रम कहते है

Entreprenurial Development Programme and critical Evolution of Government in its

प्रो० पारीक एवं नाडकर्णी के अनुसार, “व्यावहारिक दृष्टिकोण से उद्यमिता के विकास से आशय उद्यमियों के विकास तथा साहसिक श्रेणी में व्यक्तियों के प्रवाह को प्रोत्साहित करने सेउपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि युवा वर्ग में उद्यम के प्रति जागरुकता, बढ़ावा व प्रेरणा देने वाले कार्यक्रम रखें ताकि वह उद्यम के क्षेत्र में प्रवेश करें, उद्यमिता विकास कार्यक्रम कहलाते है. .                          

उद्यमिता विकास कार्यक्रमों का महत्व

(Importance of E.D.P.)

वर्तमान समय में उद्यमिता विकास ने देश के चहूँमुखी विकास के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। इससे बहुत से उद्यमिता अवसर अलग-अलग क्षेत्रों में उत्पन्न हुए हैं, चाहे वह क्षेत्र विद्युत (Electric) का हो या दवाइयों का या इन्जीनियरिंग या कृषि का या दूरसंचार का परमाणु ऊर्जा का या पैकेजिंग का सभी क्षेत्रों में उद्यमिता विकास ने अपनी एक महती भूमिका निभायी है। संक्षेप में, उद्यमिता विकास के महत्व निम्न प्रकार हैं-

(1) देश के विकास में उद्यमिता विकास योजनाओं ने एक महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

(2) व्यवसाय से सम्बन्धित विभिन्न क्षेत्रों में उद्यमिता विकास ने नये-नये कीर्तिमान स्थापित किये हैं

(3) उद्यमिता विकास ने असफल उद्यमियों को सफलता प्राप्त करने के लिए एक नया रास्ता दिखाया है।

(4) उद्यमिता विकास योजना अकुशल उद्यमियों को सूचनाओं को प्राप्त करना और प्राप्त सूचनाओं से फायदा उठाना सिखाती है।

उद्यमिता विकास कार्यक्रम के उद्देश्य (Object of E.D.P.)

हमारे देश में लघु व मध्यम स्तरीय उद्योगों के विकास के लिए अनेक योजनायें चलायी जा रही हैं। इन योजनाओं की सफलता सुनिश्चित करने के लिए औद्योगिक सेवा संस्थान – (Industrial Service Institute (ISI)) जो कि औद्योगिक संवर्धन विकास विभाग (DIPP) के तत्वाधान में चलाया जाता है, ने एक उद्यमिता विकास योजना आरम्भ की है। इस योजना के आरम्भ करने का उद्देश्य यह है कि देश के आर्थिक विकास एवं ग्रामीण क्षेत्र के विकास तथा स्थानीय कच्चे माल के सर्वोत्तम प्रयोग की सरकारी नीति को महत्ता दी जा सके। इसी सन्दर्भ में उद्यमिता विकास योजना को पंचवर्षीय राष्ट्रीय, आर्थिक एवं सामाजिक विकास योजना में वर्णित औद्योगिक विकास नीति के एक महत्वपूर्ण भाग के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है।

इस योजना का प्रधान उद्देश्य देश के ग्रामीण हिस्सों में आर्थिक वृद्धि को प्रोत्साहित करने के लिए उद्यमिता प्रक्रियाओं का विकास करना है। इस योजना के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

(1) लघु एवं मध्यम स्तर के उद्योगों को प्रोत्साहित करना, जिससे स्वयं रोजगार को प्रोत्साहन मिल सके।

(2) पहले से ही चल रहे लघु एवं मध्यम स्तर के उद्योगों में नये-नये उद्यमिता कार्यों को प्रोत्साहन देना।

(3) स्थानीय स्तर पर उपलब्ध कच्चे माल का सर्वोत्तम उपयोग करना जिससे स्थानीय उपयोग की आवश्यकताओं और आयात के लिए माल का निर्माण किया जा सके।

(4) नये-नये उद्यमिता अवसरों का विकास करना।

(5) उद्यमिता उत्प्रेरण करना ।

(6) लघु उद्योगों और लघुत्तर उद्योगों के लिए स्वस्थ वातावरण का निर्माण करना।

(7) एक छोटे उद्यम की स्थापना के लिए अपनायी जाने वाली प्रक्रिया को सरल बनाना।

(8) एक छोटे उद्यम की स्थापना के लिए आने वाली परेशानियों का सामना करने के लिए तकनीकी सलाह देना, मदद करना एवं आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराना !

(9) प्रारम्भिक प्रबन्धकीय कार्यों से सम्बन्धित कार्य करना।

(10) एक उद्यमी बनने से होने वाले गुण एवं दोषों के बारे में जानकारी प्रदान करना ।

(11) सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना का विकास करना ।

प्रश्न 2. उद्यमिता विकास कार्यक्रमों के संचालन में सरकार के योगदान को समझाइये। Explain the role of Government in organising entrepreneurship development programmes,

भारत में उद्यमिता के विकास हेतु उठाये गये सरकारी कदम

(Steps taken to Develop Enterpreneurship in India)

स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात भारत में उद्यमिता के विकास के लिये सुनियोजित कोशिश की गई। देश में प्रगतिशील एवं व्यावाहारिक औद्योगिक नीतियों का निर्माण किया गया पन्चवर्षीय योजनाओं का सूत्रपात किया गया तथा सरकार ने अपने अलग-अलग संगठनों एवं एजेन्सियों के माध्यम से उद्योगों के लिये विभिन्न सुविधाओं एवं प्रेरणाओं का उपलब्ध करवाना प्रारम्भ किया। उद्यमियों को विकसित करने के लिये विभिन्न कार्यक्रम लागू किये जा रहे हैं। केन्द्रीय एवं राज्य सरकार के संयुक्त प्रयासों से उद्यमियों को प्रशिक्षित एवं अभिप्रेरित किया जा रहा है। तकनीकी व व्यावसायिक शिक्षा का प्रसार किया जा रहा है। फलस्वरूप हमारी संस्कृति में विकास हो रहा है । संक्षेप में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत में उद्यमिता का विकास हेतु किये गये प्रयासों को निम्न श्रेणियों में रखा गया है :-

(अ) नीतिगत प्रयास (Policy Steps)

(ब) सुविधायें एवं प्रेरणायें (Facilities and Inseitive)

(स) नीतिगत प्रयास (Policy Steps)

(अ) नीतिगत प्रयास (Policy Steps)

सरकार ने उद्यमिता को प्रोत्साहित करने हेतु समय-समय पर नीति प्रस्तावों में विभिन्न घोषणायें करके इसके विकास पर जोर दिया है । नीति सम्बन्धी प्रमुख कदम निम्नलिखित हैं-

(1)  औद्योगिक नीति प्रस्ताव- स्वतन्त्र भारत की प्रथम औद्योगिक नीति 1948 में घोषित की गयी। जिसमें योजनाबद्ध विकास का दायित्व सरकार पर डाला गया किन्तु निजी उद्यमियों के लिए भी कई क्षेत्र सुरक्षित किये गये हैं। 1956 की औद्योगिक नीति में आधारभूत, खनिज, यातायात एवं सम्प्रेक्षण उद्योगो के साथ-साथ विभिन्न उपभोग उद्योगों पर बल दिया गया है। साथ ही इस नीति में निजी क्षेत्र को प्रर्याप्त सुविधायें उपलब्ध कराने, राष्ट्रीयकरण का भय समाप्त कराने, प्राविधिक एवं तकनीकी शिक्षा की सुविधायें देने, लघु तथा कुटीर उद्योगों को प्राथमिकता देने पर बल दिया गया है। वर्ष 2001 में किये गये प्रमुख औद्योगिक नीतिगत उपाय इस प्रकार हैं।

(i) केन्द्रीय मूल्य- वर्धित कर प्रारम्भ करके तथा उत्पाद शुल्क की दरो द संख्या में कमी करके उत्पाद शुल्क संरचना में सुधार किया जायेगा !

(ii) उत्पाद शुल्क की प्रक्रिया को सरल बनाया जायेगा।

(iii) सेवी को उद्यम पूंजी निधि का एकमात्र विनियामक बना दिया गया है।

(iv) विदेशी संस्थागत निवेश की शक्ति सीमा बढ़ाकर 40% प्रतिशत करने की अनुमति दे दी गई है।

(v) ग्रामीण अधारभूत ढाँचा विकास निधि VI की संचित निधि में वृद्धि की गई है

(2) पंचवर्षीय योजनायें- सरकार ने पंचवर्षीय योजनाओं में निजी उद्यमियों के लिये विभिन्न सहायतायें, सुविधाएं एवं प्रेरणायें उपलब्ध करायी हैं। साथ ही, औद्योगिक विकास पर किये जाने वाले खर्च में निरन्तर वृद्धि की गई है। इसमें व्यावसायिक उद्यमिता के समन्वित एवं सन्तुलित विकास को गति मिली है। योजनावार उद्यमिता के विकास की चर्चा इसी अध्याय में पूर्व में की गई है।

(3) प्रगतिशील व्यावसायिक नीतियाँ- उद्यमियों के विकास के लिये हमारे देश में समय-समय पर व्यावसायिक नीतियों की घोषणा भी की जाती है। केन्द्रीय सरकार ने उद्योगों को प्रोत्साहित करने हेतु विनियोग नीति, कर-नीति, मौद्रिक नीति, मूल्य नीति आयात-निर्यात नीति, वित्त नीति, लाइसेंस नीति आदि का निर्माण किया है। इन नीतियों के द्वारा उद्यमियों के लिये अनुकूल वातावरण निर्मित करने तथा उन्हें अभिप्रेरित करने का कोशिश की जाती है

(4) पूंजी बाजार नीति–पूंजी बाजार को मजबूत बनाने के लिये 2000-2001 में अनेक राजकोषीय प्रोत्साहनों की घोषणा की गई है । कुछ प्रमुख उपाय में है।–

(i) स्टॉक एक्सचेंजों की निवेशक संरक्षण निधियों की आय को 100 प्रतिशत की छूट दी गई ।

(ii) यू० एस० 64 और भारतीय यूनिट ट्रस्ट और अन्य म्युचुअल फण्डों की असीमित समय वाली अन्य इक्विटी उन्मुखी स्कीमों के तहत वितरित आय को छूट दी गई है ।

(iii) बैंकों तथा वितीय संस्थाओं द्वारा अदा की जाने वाली ब्याज कर को खत्म कर दिया गया है

(5) विदेशी प्रत्यक्ष निवेश नीति– एक छोटी नकारात्मक सूची को छोड़कर सभी उद्योगों के लिये स्वचलित रास्ते विदेशी प्रत्यक्ष निवेशों को अनुमति दी गई है। विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के प्रस्तावों पर विचार करने के लिये समय अवधि को 6 सप्ताह से घटाकर 30 दिन कर दिया गया है। ई० कामर्स व्यवसाय के लिये 100 प्रतिशत विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की अनुमति दी गई है। विद्युत क्षेत्र में निवेश पर लगी सीमा को घटाया गया। तेल शोधन के क्षेत्र में 100 प्रतिशत विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की अनुमति दी गयी।

(6) विभिन्न समितियों का गठन- केन्द्र सरकार ने निजी उद्यमियों की समस्याओं का अध्ययन करके जरूरी सुझाव देने, सम्भावित उद्यमियों की खोज करने तथा विभिन्न क्षेत्रों को औद्योगिक एवं उद्यमी सम्भावनाओं का अध्ययन करने की दृष्टि से समय-समय पर अनेक समितियों का गठन किया है। इन समितियों व दलों के सुझावों में औद्योगिक उद्यमिता को विकास को महत्वपूर्ण प्रोत्साहन मिला।

(ब) सुविधायें स्व प्रेरणायें (Facilities and Incentives)

भारत में औद्योगिक साहस एवं उद्यमिता के विकास के लिये निम्नलिखित सुविधाएं एवं प्रेरणायें प्रदान की गई हैं-

(1) औद्योगिक क्षेत्रों एवं बस्तियों का निर्माण- औद्योगिक साहस को प्रोत्साहित करने के लिये सरकार ने कई क्षेत्रों को औद्योगिक क्षेत्र घोषित करके वहाँ औद्योगिक बस्तियों का निर्माण करवाया है। इनमें उद्योगों की स्थापना के लिये विभिन्न आधारभूत सुविधायें जैसेपरिवहन बैंक, बीमा, भण्डार, गृह, विद्युत प्रशिक्षण, अनुसंधान आदि उपलब्ध कराये गये देश के अनेक भागो में केन्द्रीय स्व राज्य सरकारों द्वारा स्थापित संस्थायें एवं विभाग आधारभूत सुविधायें के विकास में संलग्न हैं । पिछड़े हुए क्षेत्रों में जिला उद्योग केन्द्र, छोटे उद्योग, विकास निगम एवं उद्योग निदेशालय इन क्षेत्रों में महत्वपूर्ण सुविधायें उपलब्ध करवा रहा है ।

(2) परियोजन प्रतिवेदनों का शीघ्र अनुमोदन– सरकार ने इस बात पर विशेष ध्यान दिया कि सहासियों द्वारा प्रस्तुत परियोजना का प्रतिवेदनों का शीघ अनुमोदन किया गया साहसियों को सरकारी विभागों में व्याप्त नौकरशाही एवं लालफीताशाही से आजादी दिलवाने के लिये जिला उद्योग केन्द्रों की स्थापना की गई। ऋण के लिये प्रस्तुत आवेदनों को भी शीघ्र निपटाने की व्यवस्था की गयी सरकारी संस्थाओं के द्वारा परियोजना प्रतिवेदना के निमोज में भी तकनीकी परामर्श उपलब्ध कराया जाता है ।

(3) प्रशिक्षण सुविधाओं का विकास– सरकार अपनी विभिन्न संस्थाओं,प्रबन्ध संस्थाओं एवं तकनीकी स्कूल के माध्यम से उद्यमियों में साहसी योग्यतायें विकसित करने के लिये समय-समय पर प्रशिक्षण एवं अभिप्रेरणा कार्यक्रम शुरु करती है। उद्यमियों को प्रशिक्षण देने हेतु देश में विभिन्न संगठन जैसे- लघु उद्योग संगठन (SIDO), लघु उद्योग सेवा संस्थान, राष्ट्रीय साहस एवं लघु व्यवसाय विकास संगठन (Niesbd) जिला उद्योग केन्द्र आदि काम कर रहे हैं। उन प्रशिक्षण कार्यक्रमों में उद्यमियों की परियोजना विकास, उत्पादन, उपक्रम प्रबन्ध आदि के बारे में जानकारी दी जाती है।

(4) परामर्श सहायता- उद्यमियों को विभिन्न सरकारी संगठनों, जैसे-छोटा उद्योग सेवा संस्थान, जिला उद्योग केन्द्र, उद्योग निदेशालय आदि द्वारा विभिन्न तकनीकी, वित्तीय एवं प्रबन्धीय मामलो में विशेषज्ञों की परामर्श सेवा उपलब्ध करवायी जाती है। यह परामर्श उद्यमियों को उद्योग के अनेक पहलुओं जैसे—परियोजना निर्माण, डिजाइन, उत्पादन की नवीन तकनीकें कच्चे माल व कल पुों का एकत्रीकरण श्रम आदि के बारे में दिया जाता हैं। बैंक एवं वित्त संस्थाओं भी उद्यमियों को विशेष परामर्श प्रदान करती है उदाहरण के लिये भारतीय औद्योगिक वित्त निगम उद्योग विचार से लेकर उद्योग शुरू करने तक की सभी अवस्थाओं में बहुमूल्य परामर्श प्रदान करता है यह परामर्श देश भर में फैल 18 सलाहकार संगठनों के माध्यम से उपलब्ध किया जाता है। इन संगठनों को यह निगम आर्थिक सहायता प्रदान करता है ।

(5) तकनीकी एवं व्यावसायिक शिक्षा का विकास- सरकार ने अच्छे उद्यमियों को तकनीकी एवं व्यवसायिक शिक्षा प्रदान करने के लिये तकनीकी एवं व्यावसायिक शिक्षा संस्थानों की स्थापना की है इन संस्थानो से शिक्षा ग्रहण करने वाले युवकों के ऋण एवं अन्य सुविधायें प्राप्त करने में प्राथमिकता दी जाती है। स्कूलों एवं महाविद्यालयों में भी शिक्षा को साहस अभिमुखी बनाने के कोशिश किए जा रही है।

(6) प्रबन्धी विकास- किसी भी उद्यम की सफलता के लिए प्रबन्ध एक मूल घटक है सरकार ने उद्यमियों की प्रबन्धकीय के दक्षता के विकास के लिये मदद उपलब्ध करवायी है। भारतीय औद्योगिक वित्त निगम द्वारा 15 वर्ष पूर्व प्रबन्ध विकास संस्थान की स्थापना की गई थी जो कि औद्योगिक समस्याओं के समाधान एवं प्रबन्धीय योग्यता में वृद्धि के लिये कार्यरत हैं। यह निगम उद्यमियों के लिये प्रबन्ध विकास कार्यक्रमों का आयोजन करता है।

(7) प्रशिक्षकों के लिए प्रशिक्षण व्यवस्था- सरकार ने उद्यमियों को प्रशिक्षण प्रदान करने वाले प्रशिक्षकों के लिए भी प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया है। भारतीय उद्यमिता विकास संस्थान प्रशिक्षकों के लिये प्रशिक्षण देने सही प्रशिक्षण पाठ्यक्रम तैयार करने आवश्यक सूचना सामग्री तैयार करने तथा अनुसन्धान करने का कार्य करते हैं। इस संस्थान ने प्रशिक्षक-प्रेरणों के लिए अन्तर्राष्ट्रीय कार्यक्रम भी आयोजित किये हैं।

(8) साहित्य एवं प्रचार- साहस के विकास हेतु हमारे देश में अनेक प्रकार के साहित्य क्यों न हों। वित्त के साथ-साथ किसी व्यक्ति के अन्दर दूरदर्शिता, नेतृत्व की क्षमता इत्यादि का होना भी अत्यन्त आवश्यक है।

(3) प्रबन्धकीय शिक्षा व प्रशिक्षण सुविधाओं का विस्तार-भारत में प्रबन्धकीय शिक्षा और औद्योगिक प्रशिक्षण की बहुत ही अधिक आवश्यकता है। आधुनिक युग में प्रबन्धकीय शिक्षा उद्यमिता विकास के लिए बहुत ही प्रभावी तत्व है क्योंकि उद्यमिता निर्णयों के प्रभावपूर्ण उद्यमिता क्रियान्वयन के लिए उसका प्रबन्धकीय निर्णय से साम्य होना अत्यन्त आवश्यक है यह बहुत ही हर्ष की बात है कि हमारे देश में बहुत से संस्थान प्रबन्धकीय प्रशिक्षण एवं प्रबन्धकीय शिक्षा उपलब्ध करा रहे हैं।

(4) औद्योगिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन-औद्योगिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन बार-बार किया जाना चाहिये। इस प्रकार के आयोजन औद्योगिक समस्याओं के निवारण एवं व्यावहारिक रूप से व्यवसाय करने में अत्यन्त सहायक सिद्ध होते हैं । नयी एवं पूर्णतया सुसज्जित औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थाओं की स्थापना की जानी चाहिए । आर्थिक विकास के लिए नये-नये उद्यमियों को आकर्षित करने में शिक्षा एवं प्रशिक्षण बहुत ही सफल सिद्ध होगा।

(5) पिछड़े क्षेत्रों में उद्यम स्थापना को प्रोत्साहन-पिछड़े क्षेत्रों का विकास करना उद्यमिता विकास के लिए वर्तमान चुनौती है। ऐसे क्षेत्रों के विकास के लिए बनायी गयी योजनाओं पर प्रभावी एवं उद्देश्यपूर्ण कदम सावधानी से उठाने की आवश्यकता है। ऐसे कार्यक्रमों के क्रियान्वयन के लिए ऐसे उद्यमियों को तैयार किया जाना चाहिए, जिनके अनुभव एवं तकनीकी और प्रबन्धकीय योग्यता के द्वारा सामाजिक विकास के लिए अपेक्षित परिणाम प्राप्त किये जा सके

(6) योग्यताओं का दोहन-हमारे देश में योग्यताओं की कमी नहीं है। हमारे देश में कदम-कदम पर उद्यमी योग्यतायें बिखरी हुई हैं, आवश्यकता सिर्फ उन बिखरी हुयी योग्यताओं को एक सूत्र में पिरोने की है। इस सन्दर्भ में यह ध्यान रखना अत्यन्त आवश्यक है कि उद्यमी की योग्यता किसी विशेष जाति की बपौती नहीं है बल्कि यह किसी भी व्यक्ति में कहीं भी उत्पन्न हो सकती है।

(7) आर्थिक प्रशासन में सुधार-राज्य सरकार द्वारा आर्थिक प्रशासन में सुधार किया जाना चाहिए जिससे वह देश की अर्थव्यवस्था के लिए बनायी जाने वाली आर्थिक नीतियों के क्रियान्वयन को प्रभावी ढंग से अन्जाम दे सके । उद्यमियों के विकास के लिए आर्थिक प्रशासन अत्यन्त सहायक है।

(8) आर्थिक नीतियों में समय-समय पर सुधार-प्रत्येक राज्य के व्यावसायिक वातावरण में सुधार के लिए उपयुक्त सम्बन्धित विशेषज्ञों की सहायता से आर्थिक नीतियां तैयार की जाती है । ये नोतियां चाहे व्यवसाय से सम्बन्धित हों या उद्योगों से, या चाहे कृषि से सम्बन्धित हों, वे अप्रत्यक्ष रूप से उद्यमियों को ही लाभ पहुँचाती है। ये व्यावसायिक नीतियां समय की मांग के अनुसार एक निश्चित अन्तराल के पश्चात् विशेषज्ञों द्वारा संशोधित एवं परिमार्जित की जाती है. जिसके कारण ये बदलती हुयी व्यावसायिक वातावरण की परिस्थितियों में उद्यमियों के लिए अत्यन्त सहायक सिद्ध होती हैं। इस प्रकार उद्यमिता विकास के लिए राज्य द्वारा तैयार की गयी औद्योगिक नीतियाँ एक स्वस्थ वातावरण तैयार करती हैं।

(9) संस्थात्मक ढाँचा विकसित करना-भारत में महत्वपूर्ण आर्थिक आवश्यकताओं एवं उद्देश्यों को पूरा करने के लिए एक संस्थात्मक ढाँचा विकसित किया जाना चाहिये । यह ढाँचा अपनी वास्तविक आवश्यकता के अतिरिक्त उद्यमिता विकास एवं इसके उद्देश्यों की पूर्ति में सक्षम होनी चाहिये, जिससे उद्यमी अपनी व्यावसायिक क्रियाओं की योजना एवं वांछित लाभ इस संस्थात्मक ढाँचे की सीमाओं के अन्तर्गत प्राप्त कर सकें।

(10) विकास व अनुसंधान पर बल-भारत में विकास एवं अनुसंधान पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिये, जिससे नई-नई तकनीकों की खोज की जा सके । यह घरेलू स्तर पर उद्यमिता विकास व तकनीकी के लिए एक संवर्द्धनात्मक कदम सिद्ध होगा। एक सामान्य नियम के अनुसार उद्यमिता का भारतीयकरण विदेशी संस्थानों के साथ किये जाने वाले संविलयन से अधिक प्रभावी सिद्ध होता है।

(11) साख सुविधाओं को सुनिश्चित करना-भारत के वित्तीय संस्थानों द्वारा पर्याप्त एवं समय से साख सुविधायें एवं तकनीकी सहायता विशेषतया छोटे एवं मध्यम स्तर के लोगों को प्रदान की जानी चाहिये।

(12) सभी व्यक्तियों को उद्यमिता प्रशिक्षण उपलब्ध कराना–भारतीय आर्थिक परिवेश में वर्तमान समय में कुछ विशेषज्ञ प्रकार के उद्यमी भी आये हैं, जैसे स्त्रियाँ, सेवानिवृत्त सैनिक, शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्ति, पढ़े-लिखे नवयुवक, अनिवासी भारतीय विस्थापित आदि क्योंकि योग्यता किसी जाति, धर्म, लिंग या उम्र की मोहताज नहीं होती, अतः इन्हीं विशेष प्रकार के उद्यमियों में से बहुत से उद्यमी हल्के इन्जीनियरिंग उत्पाद, विद्युत उत्पाद, कम्प्यूटर और इसी प्रकार के अन्य उत्पाद बनाने में सक्षम होते हैं। अतः देश में उद्यमिता विकास को प्रोत्साहन देने के लिए इस प्रकार के उद्यमियों की दूरदर्शिता, नेतृत्व क्षमता, उद्यमिता आदि का पूरी तरह उपयोग किया जाना चाहिये।

प्रश्न 4. “उद्यमिता विकास में जिला उद्योग केन्द्र की अहम भूमिका है।” इस कथन को स्पष्ट कीजिए।

District Industry Centre has main role in entrepreneurship Development. Define this statement.

जिला उद्योग केन्द्र (District Industry Centre)

औद्योगिक नीति 1977 के द्वारा लघु एवं कुटीर उद्योगों के नियमन एवं विकास के लिए जिलास्तर पर एक सरकारी शीर्ष एवं समन्वयकारी संस्था ‘जिला उद्योग केन्द्र’ की स्थापना किए जाने का प्रावधान किया गया। जनपद स्तर पर लघु एवं कुटीर उद्योगों को एक स्थान पर आवश्यक सुविधाएं, सहायता एवं जानकारी उपलब्ध कराने के लिए मई 1978 से जनपद मुख्यालयों पर जिला उद्योग केन्द्रों (District Indsutries Centres) की स्थापना की गई। जिला उद्योग केन्द्र जिला स्तर की केन्द्रीय संस्था है। यह अपने जिले के सभी उद्यमियों को वित्त एवं साख, तकनीकी परामर्श, विपणन सुविधाएं एवं विभिन्न सरकारी सुविधाएं एक ही स्थान पर उपलब्ध कराती है। इसलिए इसे ‘एक खिड़की की विचारधारा’ (Single window concept) की संज्ञा दी जाती है। जिला उद्योग केन्द्र की कुछ मुख्य परिभाषाएं निम्नलिखित है।

बसन्त देसाई के अनुसार, “जिला उद्योग केन्द्र एक जिलास्तरीय संस्था है,जो उद्यमियों को सभी सेवाएं एवं सुविधाएं एक ही स्थान पर उपलब्ध कराती है, ताकि वे अपने लघु एवं कुटीर उद्योगों की स्थापना कर सकें।

डॉ० एम० एन० उपाध्याय के अनुसार, जिला उद्योग केन्द्र का आशय एक ऐसी संस्था से है जो उद्यमियों को सभी प्रकार की सहायता एवं सुविधाएं एक ही छत के नीचे उपलब्ध कराती है।”

जिला उद्योग केन्द्र की विशेषताएँ

(Characteristics of D.I.C.)

जिला उद्योग केन्द्र को मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(1) शीर्ष संस्था (Apex Body)-जिला उद्योग केन्द्र जिला स्तर की एक शीर्ष संस्था होती है। इसका प्रशासनिक भवन जिले के मुख्यालय पर स्थापित होता है।

(2) केन्द्रीय एवं समन्वयकारी भूमिका (Central and Co-ordinational Role)-जिला उद्योग केन्द्र लघु उद्योगों की सहायता पहुँचाने वाले अन्य संस्थानों व नियमों के साथ मिलकर कार्य करते हैं। इस प्रकार इनकी स्थिति जनपद स्तर पर केन्द्रीय एवं समन्वयकारी भूमिका निर्वहन करने वाली होती है।

(3) क्रियान्वयन करने वाली संस्था (Executive Body)-जिला उद्योग केन्द्रों द्वारा उद्यमियों को सहायता पहुँचाने के साथ-साथ उद्यमियों को प्रशिक्षित करने व बेरोजगारी समाप्त करने के लिए केन्द्र एवं राज्य सरकार द्वारा चलाये जा रहे विभिन्न कार्यक्रमों का क्रियान्वयन व संचालन करने आदि का कार्य भी किया जाता है। कार्यक्रमों की सफलता मुख्यतः जिला उद्योग केन्द्रों पर ही निर्भर करती है।

(4) विकासात्मक संस्था (Development Body)-जिला उद्योग केन्द्रों द्वारा औद्योगिक दृष्टि से पिछड़े क्षेत्रों, कृषि क्षेत्रों को औद्योगिक क्षेत्रों में विकसित कराने का कार्य भी किया जाता है। ये केन्द्र भावी उद्यमियों को प्रेरित तथा उनमें उत्साह व आशा का संचार करते हैं।

जिला उद्योग केन्द्रों के उद्देश्य

(Objects of D.I.C.)

(1) केन्द्र सरकार द्वारा बनाई जा रही औद्योगिक नीतियों को जिले में लागू करना ।

(2) लघु उद्यमियों को स्वरोजगार की ओर प्रेरित व प्रोत्साहित करना।

(3) लघु, ग्रामीण एवं कुटीर उद्योगों को सभी तकनीकी, वित्तीय व अन्य आवश्यक सेवाएँ एक ही स्थान पर उपलब्ध करना।

(4) जिले में रोजगार के नतीन अवसरों का सृजन करना ।

(5) उद्यमियों को औद्योगिक प्रशिक्षण की व्यवस्था करना।

(6) भावी उद्यमियों को परियोजना प्रतिवेदन (Project report) तैयार करने में सहायता करना।

(7) ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों को औद्योगिक असमानता में कमी करना।

(8) उद्योगों का विकेन्द्रीकरण करना।

(9) जिला स्तर पर कार्य कर रहे अन्य विभागों व संस्थाओं के कार्यों में समन्वय स्थापित करना।

(10) उद्यमियों को औद्योगिक प्रशिक्षण की व्यवस्था कराना।

(11) हस्त शिल्प व कुटीर उद्योगों को विकसित करना।

(12) ग्रामीण क्षेत्रों में उद्यमिता को प्रोत्साहित करना।

(13) बीमार इकाइयों की समस्याओं का समाधान करना ।

(14) छोटे नगरों व ग्रामीण क्षेत्रों में लघु उद्योगों और कुटीर उद्योगों को प्रबन्धकीय एवं दिनीय परामर्श देना।

(15) कद्र सरकार एवं राज्य सरकार द्वारा चलाए जा रहे कार्यक्रमों का जिले में संचालन करना।

(16) जिले का अद्योगिक सम्भावनाओं का पता लगाकर उसके आधार पर विकास कार्यक्रम तैयार करना।

(17) लघु उद्योगों के उत्पादों उत्पादों की किस्म, लागत. निर्माण प्रक्रिया आदि के सम्बन्ध म अनुभधान कराकर उम्में गुणवत्ता लाना।

(18) स्वरोजगार कार्यक्रमों का क्रियान्वयन करना।

(19) औद्योगिक विकास का आधारभूत सुविधाओं : सडक, पानी, बिजली, परिवहन, संचार आदि का विकास करना ।

(20) जिला स्तर पर उद्योग-धन्धों को सम्पूर्ण प्रोत्साहन देना एवं उनको सेवा पैकेज उपलब्ध कराना

संगठन संरचना

(Organization Structure)

जिला उद्योग केन्द्र का मुख्य अधिकारी महाप्रबन्धक होता है। 1 फरवरी, 1981 के पूर्व इसके अन्तर्गत सात क्रियात्मक प्रबन्धक होते थे, किन्तु । फरवरी, पश्चात् केन्द्रीय सरकार के निर्णय पर इनकी संख्या चार कर दी गई है। ये प्रबन्धक निम्न विभागों का कार्य करते हैं- 1981 के

(1) आर्थिक सर्वेक्षण (2) साख सुविधा, (3) ग्रामीण एवं कुटीर उद्योग, (4) कच्चा माल प्रशिक्षण विपणन/ आधारभूत सुविधाएं। इसके अतिरिक्त अधिकतम तीन परियोजना आंधकार), पांच जिला उद्योग अधिकारी प्रत्यक ब्लॉक स्तर पर औद्योगिक सम्वर्द्धन अधिकारी तथा केन्द्रों की आवश्यकतानुसार सहायक कर्मचारियों की नियुक्ति की जाती है । जिला उद्योग केन्द्रों के कार्य जिले में उद्योगों के सर्वांगीण विकास एवं विस्तार करने में जिला उद्योग केन्द्र की महत्वपूर्ण भूमिका है। जिला उद्योग केन्द्रों द्वारा क्रियान्वित कार्यों को तीन वर्गों में रखा जा सकता है-

(I) विकास कार्य (Development functions)

जिला उद्योग केन्द्रों के विकासात्मक कार्य निम्नलिखित हैं-

(1) भावी उद्यमियों की खोज-जिला उद्योग केन्द्रों द्वारा उद्यमिता एवं स्वरोजगार विकास को बढ़ावा देने के उद्देश्य से बेरोजगार नवयुवकों की खोज कर उन्हें उद्यमिता की ओर प्रेरित करने का कार्य किया जाता है

(2) औद्योगिक बस्तियों का निर्माण करना-केन्द्रों द्वारा जिले में उद्योगों के विकास के लिए औद्योगिक बस्तियों (Industrial Estates) का निर्माण किया जाता है तथा ये केन्द्र इन बस्तियों में आवश्यक आधारभूत संरचनाओं; जैसे जल, विद्युत, संचार, यातायात आदि की व्यवस्था भी कराते हैं।

(3) उद्यमिता विकास कार्यक्रम जनपद में उद्यमिता के प्रोत्साहन के लिए समय-समय पर जिला उद्योग केन्द्रों द्वारा उद्यमिता विकास कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिनके द्वारा नवीन उद्यमियों को उद्योग से सम्बन्धित सभी तकनीकी एवं प्रबन्धकीय ज्ञान दिया जाता है

(4) उपलब्ध संसाधनों का उचित उपयोग-जनपद में उपलब्ध संसाधनों एवं आधारभूत संरचना के अनुरूप उद्योगों को प्रोत्साहन देने तथा नवीन उद्यमियों को संसाधनों को आवश्यक जानकारी उपलब्ध कराने का कार्य जिला उद्योग केन्द्रों द्वारा किया जाता है। ।

(5) वित्तीय सहायता प्रदान करना-वित्त किसी भी उद्योग में ईधन का कार्य करता है उद्योगों को उनके संचालन के लिए आवश्यक वित्त जिला उद्योग केन्द्रों की संस्तुति पर वित्तीय संस्थाओं एवं बैंकों द्वारा उपलब्ध कराया जाता है। ।

(6) आर्थिक सर्वेक्षण करना-केन्द्र द्वारा जिले में उद्योगों से सम्बन्धित आवश्यक सूचनाएँ व समंक एकत्रित किए जाते हैं। उक्त सूचनाएँ व समंक केन्द्र के अधिकारियों द्वारा किए गए आर्थिक सर्वेक्षण द्वारा संग्रहीत किए जाते हैं एवं इनका प्रकाशन भी किया जाता है।

(7) विपणन कार्यक्रम-लघु, कुटीर एवं हस्तशिल्प उद्योगों द्वारा निर्मित उत्पाद के विपणन में आवश्यक परामर्श एवं सहयोग भी इन केन्द्रों द्वारा उद्यमियों को दिया जाता है।

(II) प्रशासनिक कार्य (Administrative Functions)

जिला उद्योग केन्द्रों द्वारा किए जा रहे प्रशासनिक कार्य निम्न प्रकार हैं-

(1) लघु उद्योगों का पंजीकरण व नवीनीकरण जिले में स्थापित लघु उद्योगों का पंजीकरण (Registration) एवं उसका नवीनीकरण कराने का कार्य जिला उद्योग केन्द्रों द्वारा किया जाता है।

(2) सरकारी कार्यक्रमों का क्रियान्वयन करना-सरकार द्वारा लघु उद्योगों के विकास के लिए निर्धारित कार्यक्रमों के सफल संचालन एवं क्रियान्वयन का दायित्व भी जिला उद्योग केन्द्रों का होता है।

(3) अनुदान एवं ऋण उपलब्ध कराना-राज्य एवं केन्द्र सरकार द्वारा लघु उद्योगों को विकसित करने के लिए समय-समय पर अनुदान प्रदान किए जाते हैं। ये अनुदान केन्द्रों के माध्यम से जिले में कार्यरत पंजीकृत लघु उद्योग इकाइयों को प्रदान किए जाते हैं। इसके साथ ही वित्त सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वित्तीय संस्थाओं को ऋण संस्तुति (Recommendation) भी दी जाती है।

(4) प्रचार एवं प्रसार-उद्योगों के विकास एवं उत्पादों के प्रचार-प्रसार के लिए जिला उद्योग केन्द्रों द्वारा समय-समय पर औद्योगिक शिविरों, गोष्ठियों, प्रदर्शनियों, मेलों एवं सम्मेलनों का आयोजन किया जाता है।

(5) परामर्श एवं सहायता-उद्योगों के विकास के लिए उनकी समस्याओं का पता लगाना व उनके अनुसार उनके निवारण के लिए आवश्यक सहायता एवं परामर्श प्रदान करना जिला उद्योग केन्द्रों के कार्यों का एक अंग है।

(6) रुग्ण इकाइयों का पुनः संचालन-जिले में स्थापित बीमा (रुग्ण) इकाइयों का पता लगाना एवं उन्हें पुनः संचालित करने के लिए आवश्यक तकनीकी, प्रबन्धकीय एवं वित्तीय सहायता प्रदान करना भी केन्द्र के प्रशासनिक कार्यों में से एक है।

(7) प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाना-जिला उद्योग केन्द्रों द्वारा उद्यमियों के कौशल विकास के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रमों का समय-समय पर आयोजन किया जाता है ।

(III) अन्य कार्य (Other Functions)

जिला उद्योग केन्द्रों द्वारा किए जा रहे विकासात्मक एवं प्रशासनिक कार्यों के अतिरिक्त कुछ अन्य कार्य भी किए जाते हैं जो निम्न प्रकार हैं-

(1) सरकारी योजनाओं की जानकारी प्रदान करना उद्योग केन्द्र द्वारा नए उद्यमियों को सरकार द्वारा घोषित योजनाओं की पूर्ण जानकारी प्रदान करने का कार्य भी किया जाता है ।

(2) हस्त शिल्पकारों को सरक्षा दान करना केन्द्र द्वारा कुटीर उद्योगों एवं हस्त शिल्पकारों की कला को संरक्षित एवं विकसित करने के उद्देश्य से आवश्यक सहायता एवं परामर्श प्रदान किया जाता है।

(3) परियोजना प्रतिवेदन तैयार करना केन्द्र द्वारा उद्यमियों को स्वरोजगार के लिए प्रेरित करने एवं उनके द्वारा चयनित रोजगार के सम्बन्ध में परियोजना प्रतिवेदन (Project report) तैयार करने में नवीन उद्यमियों का सहयोग एवं परामर्श दिया जाता है।

(4) निर्यात प्रोत्साहन में सहायता प्रदान करना-लघु उद्योगों के उत्पादों को विदेशी बाजारों में विपणन सुविधा प्रदान करने में जिला उद्योग केन्द्र एक अहम भूमिका निभा रहा है।

प्रश्न 5. खादी एवं कुटीर उद्योग बोर्ड का संगठन एवं कार्य बताइये Explain the organization and functions of Handloom and Cottage Indusiries Board.

खादी एवम कुटीर उद्योग बोर्ड

(Handloom and Coitage Industrial Board)

खादी एवम कुटीर उद्योग बोर्ड की स्थापना भारत सरकार द्वारा 1953 में एक केन्द्रीय संस्था के रूप में किया गया था। बाद में इसका नाम बदलकर खादी एवम ग्राम उद्योग बोर्ड (Khadi and Village Industries Commission-KVIC) कर दिया गया। वर्तमान समय में इस संस्था को खादी एवम ग्रामीण उद्योग बोर्ड (KVIC) के नाम से ही पुकारा जाता है। इस संस्था की स्थापना लघु एवम कुटीर उद्योगों को विकसित करने तथा ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार के अवसरों में वृद्धि करने के उद्देश्य से की गई थी। खादी एवम कुटीर उद्योग बोर्ड के कार्य (Functions of Khadi and Village Industries Commission) इस संस्था के प्रमुख कार्य निम्न प्रकार हैं-

(1) लघु एवम कुटीर उद्योगों के विकास को प्रोत्साहित करना-खादी एवम कुटीर उद्योग बोर्ड की स्थापना का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य लघु एवम कुटीर उद्योगों के विकास को प्रोत्साहित है। । यह बोर्ड उन उद्योग धन्धे के विकास को सबसे अधिक प्राथमिकता देता है जिनमें किसी विशेष तकनीक एवमं अधिक पूँजी की आवश्यकता नहीं होती है तथा जिन्हें परिवार के सदस्यों द्वारा ही आसानी से चलाया जा सकता है ।

(2) कृषि पर आधारित उद्योगों के विकास को प्राथमिकता–भारत एक कृषि प्रधान देश है और भारत की लगभग 70% जनसंख्या कृषि पर आधारित है। कृषि से अनेक ऐसे उत्पाद प्राप्त होते हैं जिनकी सहायता से अन्य वस्तुओं का उत्पादन किया जा सकता है । यह संस्था ऐसे उद्योगों के विकास को उच्च प्राथमिकता देती है।

(3) कृषि श्रमिकों एवम महिलाओं द्वारा चलाये जाने वाले उद्योगों को प्राथमिकता यह संस्था उन उद्योगों के विकास पर अधिक ध्यान देती है जिन्हे कृषि श्रमिकों एवम महिलाओं द्वारा आसानी से चलाया जा सकता है। इससे इन लोगों को अतिरिक्त आय कमाने का साधन मिल जाता है ।

(4) ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार के अधिक अवसर विकसित करना इस संस्था के सभी प्रयास इस दिशा में किए जाते हैं कि ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार के अधिक से अधिक अवसर विकसित किए जा सकें। इससे उन लोगों को विशेष लाभ होता है जो या तो बेरोजगार हैं या उन्हें बहुत कम दिनों के लिए ही रोजगार मिल पाता है ।

(5) ग्रामीण अर्थव्यवस्था का विकास-खादी एवम कुटीर उद्योग बोर्ड का गठन ही मुख्य रूप से ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विकास के लिए किया गया है। इसके द्वारा वे सभी कार्य किए जाने हैं जिनसे गाँव में रहने वाले लागों को नये कार्य करने का अवसर प्राप्त हो सके। गाँव के शिल्पकारों एवम कारीगरों को अपनी प्रतिभा का विकास करने का मौका मिल सके। गाँव के नवयुवकों को सही दिशा में लगाया जा सके और ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसी आधारभूत सुविधाओं का विकास किया जा सके कि वे शहरी विकास की मुख्य धारा में जुड़ सकें।

(6) उद्योगों को कच्ची सामग्री तकनीकी एवम वितीय सुविधायें उपलब्ध कराना-खादी एवमं कुटीर उद्योग बोर्ड ग्रामीण क्षेत्र में न केवल उद्योगों की स्थापना को प्रोत्साहित करता हैं बल्कि उन्हें सभी आवश्यक सुविधायें भी प्रदान कराता है। यह बोर्ड उन्हें उचित मूल्य पर कच्ची सामग्री एवम मशीनें उपलब्ध कराता है तथा उनके लिए वित्तीय साधन का भी प्रबन्ध करता है।

(7) तैयार माल के बेचने में सहायता–ग्रामीण उद्योगों द्वारा जो भी माल तैयार किया जाता है। खादी एवमं कुटीर उद्योग बोर्ड उनके बेचने में पूरी सहायता करता है और उन्हें देश के विभिन्न भागों में बेचता है।

खादी एवम कुटीर उद्योग बोर्ड द्वारा समर्थित उद्योग

(Industries Supported by KVIC)

खादी एवम कुटीर उद्योग बोर्ड ग्रामीण क्षेत्र में स्थापित किए जाने वाले लघु एवम कुटीर उद्योगों के विकास पर बहुत जोर दे रहा है। इस बोर्ड द्वारा जिन उद्योगों के विकास पर सबसे अधिक ध्यान दिया जा रहा है, उनमें से कुछ प्रमुख उद्योग निम्न प्रकार हैं- (i) अनाजों एवम दालों पर आधारित उद्योग, (ii) गुड़ एवम् खाण्ड सारी उद्योग, (iii) चमड़े एवम चमड़े से बनी हुई वस्तुयें. (iv) माचिस उद्योग, (v) तेल उद्योग, (vi) साबुन उद्योग, (vii) मधुमक्खी पालन, (viii) मिट्टी के बने बर्तन, (ix) बढ़ई का कार्य, (x) सुनार का कार्य, (xi) गोबर गैस का कार्य, (xii) हस्तशिल्प, (xiii) बुनाई, सिलाई एवम् कढ़ाई, (xiv) रजाई गद्दे एवम तकिये, (xv) खादी एवं खादी से बने वस्त्र आदि ।

खादी एवं कुटीर उद्योग बोर्ड का संगठन (Organization of KVIC)

सम्पूर्ण देश में एक राष्ट्रीय खादी एवं कुटीर उद्योग बोर्ड स्थापित किया गया है। इसके आधीन 30 राज्य खादी एवं कुटीर उद्योग बोर्ड स्थापित किए गए हैं। जो अपने-अपने राज्य में इसके कार्यों का संचालन करते हैं। ये बोर्ड सोसाइटी के माध्यम से अपने कार्य कराते हैं। ये सोसाइटी देश के विभिन्न ग्रामीण क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार के उद्योग धन्धे चलाते हैं और उस क्षेत्र में रहने वाले ग्रामीणों को रोजगार एवं आय के अतिरिक्त अवसर प्रदान कराती हैं । वर्तमान समय में 2,320 रजिस्ट्रड सोसाइटी इस बोर्ड से जुड़ी हुई हैं। इनके अधीन 30,000 से भी अधिक सहकारी समितियाँ कार्य कर रही हैं ।

लघु उत्तरीय प्रश्न

(Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1. आई० एस० ओ० 9000 क्या है ? What is the I.S.O. 9000 ?

आई० एस० ओ० 9000 (I.S.0.9000)

आज के बदलते परिवेश में गुणवत्ता का महत्व दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है। विश्व के लगभग सभा विकसित एवं विकासशील देश यह महसूस करते हैं कि पूरे विश्व में गुणवत्ता का स्तर एक समान होना चाहिए। इसी के अनुरूप सारे विश्व को एक क्षेत्र मानते हुए ‘क्वालिटी मैनेजमेण्ट सिस्टम’ (QMS) विकसित करने की प्रक्रिया प्रारम्भ की गई है। तकनीकी एवं उत्पाद विनिर्दिष्टों के उद्देश्य की प्राप्ति के लिए, न्यूनतम लागत एवं प्रबन्धकीय प्रक्रियाओं के मानकीकरण के लिए वर्ष 1978 में ब्रिटेन में गठित एक कमेटी द्वारा कार्य योजना बनाई गई । इसके बाद सन् 1987 में तैयार किए गए गुणवत्ता मानक वर्तमान में आई० एसओ० 9000 सीरीज के नाम से जाने जाते हैं।

विश्व समुदाय में उत्पाद-गुणवत्ता मानकों के निर्धारण हेतु भारतीय मानक ब्यूरो (Bureau of Indian Standards-B.I.S.) भारत का प्रतिनिधित्व करता है।

आई. एस. ओ. 9000 मानक मात्रा एवं उत्पाद की गुणवत्ता पर विशेष बल नहीं देते हैं, बल्कि प्रक्रिया से सम्बन्धित मानक प्रस्तुत करते हैं, क्योंकि किसी संगठन (उद्योग, व्यवसाय, सेवाएँ एवं अन्य) की कार्य पद्धति यदि व्यवस्थित एवं सुचारु हो जाये तो उत्पाद की गुणवत्ता अपने-आप ठीक हो जाएगी।

आई० एस० ओ० 9000 के उद्देश्य

आई. एस. ओ. 9000 का मुख्य उद्देश्य अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर गुणवत्ता मानकों में सामंजस्य बनाना तथा एकरूपता प्रदान करना है, अर्थात् हम संगठन में जो भी कार्य कर रहे हैं, उस कार्य को करने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय निर्धारित मानकों के अनुरूप प्रक्रिया का निर्धारण कर लें। इस मानक प्रक्रिया को क्रमबद्ध कर एक दस्तावेज का रूप देकर प्रक्रिया के अनुरूप क्रियान्वयन करना ही आई. एस. ओ. 9000 है। आई० एस० ओ० 9000 में गुणवत्ता का तात्पर्य आई. एस. ओ० 9000 के अन्तर्गत गुणवत्ता का मानक ऐसा होना चाहिए, जो संस्था, विभाग अथवा इकाई की आवश्यकताओं के अनुरूप एवं उद्देश्यों की पूर्ति हेतु उपयुक्त हो। उपयोग हेतु उपयुक्त तथा उपभोगकर्ता की अपेक्षा के अनुसार हो।

आई० एस० ओ० के अन्तर्गत गुणवता के मानक निर्धारित करने हेतु जिन बिन्दुओं पर ध्यान रखने की आवश्यकता है, वे निम्नवत् हैं-

(1) उपभोक्ता की आवश्यकता को जानना,

(2) उस आवश्यकता की आपूर्ति हेतु कार्य-प्रणाली एवं प्रक्रिया विकसित करना,

(3) चूकरहित निर्माण, पूर्व कार्यनिष्पादन के आधार पर विभिन्न स्रोतों से प्राप्त सूचनाओं एवं अनुभवों का भविष्य में कार्यसुधार हेतु प्रयोग, प्रमाणित कार्य प्रदर्शन एवं सुधार, स्पष्ट एवं लिखित निर्देश, उपयुक्त पैकेजिंग, निश्चित समय पर आपूर्ति, आपूर्ति के उपरान्त कुशल सेवा, उचित माध्यमों का प्रयोग, उचित प्रशिक्षण, विभिन्न घटकों के बीच सामंजस्य ।

प्रश्न 2. भारत में उद्यमिता विकास कार्यक्रम के महत्वपूर्ण संस्थान कौन-कौन से हैं ?

उत्तर-सरकार द्वारा उद्यमियों को उद्योग स्थापना में सहायता एवं पंजीकरण आदि के उद्देश्य से जिला स्तर पर उद्योग केन्द्रों की स्थापना की गई। उद्यम स्थापना के प्रति आम जनता में रुचि उत्पन्न करने एवं प्रेरित करने के उद्देश्य से उद्यमिता संस्कृति के विकास पर बल दिया गया एवं विभिन्न औद्योगिक संस्थाओं की स्थापना की गई। इन विभिन्न संस्थाओं के माध्यम से सरकार प्रतिवर्ष हजारों लोगों को विभिन्न कार्यक्रम द्वारा प्रशिक्षण व वित्त निगमों द्वारा आर्थिक सहायता देती है। भारत में उद्यमिता विकास कार्यक्रम के महत्वपूर्ण संस्थान निम्नलिखित हैं-

(1) प्रबन्धकीय विकास संस्थान,

(2) लघु उद्योग विकास संगठन,

(3) लघु उद्योग सेवा संस्थाएँ,

(4) भारतीय उद्यमिता विकास संस्थान,

(5) भारतीय लघु उद्योग विस्तार प्रशिक्षण संसथान,

(6) राष्ट्रीय उद्यमिता विकास मण्डल,

(7) राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम लिमिटेड,

(8) राष्ट्रीय उद्यमिता एवं लघु व्यवसाय विकास संस्थान,

(9) भारतीय उद्यमिता विकास संस्थान, अहमदाबाद,

(10) राज्य उद्यमिता विकास संस्थान (राज्यों के मुख्यालय पर)।

प्रश्न 3. आई० एस० ओ० और बी० आई० एस० में अन्तर स्पष्ट कीजिए। Define the difference between I.S.O. and B.I.S.

आई० एस० ओ० तथा बी० आई० एस० में अन्तर (Difference between I.S.O. and B.I.S.)

आई० एस० ओ० बी० आई० एस०

1. आई. एस. ओ. इण्टरनेशनल स्टैण्डर्ड भारतीय मानक ब्यूरो राष्ट्रीय स्तर का मानक आर्गेनाइजेशन है अर्थात् आई. एस. ओ० निर्धारक संस्थान है । इसे पहले I.S.I. कहा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मानक निर्धारक है। जाता था।

2. आई. एस. ओ. 9000 क्वालिटी सिस्टम बी. आई. एस. के मानक केवल उत्पाद का स्टैण्डर्ड है । यह मानक केवल उत्पाद की की गुणवत्ता बनाए रखने तक ही सीमित हैं। गुणवत्ता तक ही सीमित नहीं है, बल्कि मशीनों की सक्षमता, मैटीरियल की क्वालिटी, उत्पादन का तरीका एवं श्रमिकों की कार्यकुशलता पर भी ध्यान देते हैं।

3. यह संस्था संगठन एवं इकाई की यह उत्पाद विशेष की गुणवत्ता का मानक ‘कार्य-प्रणाली’ का मानक है। है।

4. आई. एस. ओ. 9000 स्टैण्डर्ड की आई. एस. आई. का प्रमाणीकरण शुरूआत 1987 में की गई। ‘अधिनियम 1952’ के अन्तर्गत बने नियमों के अनुसार हुई है।

5. आई. एस. ओ. प्रमाण-पत्र प्राप्त करने के बी० आई० एस० में गुणवत्ता सुनिश्चित पश्चात् भी समय-समय पर निर्धारित एवं करने हेतु समय-समय पर उत्पाद का मान्य प्रक्रियाओं का परिपालन किया जा रहा आकस्मिक निरीक्षण किया जाता है। है अथवा नहीं, जानने के लिए अंकेक्षण किया जाता है।

6. आई. एस. ओ. 9000 प्रमाण-पत्र प्राप्त बी. आई. एस. द्वारा प्रमाणित उत्पाद होने पर हमारा उत्पाद एवं संगठन गुणवत्ता न्यूनतम राष्ट्रीय स्तर पर मान्य होता है । में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्य होता है।


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