Tuesday, November 5, 2024
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Funds Flow Statement notes

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कोष प्रवाह विवरण

कोष प्रवाह विवरण का अर्थ समझने से पहले कोष (Fund) तथा कोष प्रवाह (Fund Flow) को समझना आवश्यक है।

कोष का अर्थ (Meaning of Fund)-कोष प्रवाह विवरण के सन्दर्भ में कोष का अर्थ ‘शुद्ध कार्यशील पूंजी (Net working Capital) से है और शुद्ध कार्यशील पूँजी का आशय चालू सम्पत्तियों एवं चालू दायित्वों के अन्तर से है ।

कोष प्रवाह का अर्थ (Meaning of Funds Flow)-प्रवाह का सामान्य अर्थ आवागमन से होता है जिसमें ‘अन्तर्वाह’ (Inflow) तथा ‘बहिर्वाह’ (Outflow) दोनों शामिल होते हैं। इस आधार पर कोष प्रवाह का अर्थ कोष में परिवर्तन (कमी, वृद्धि) अर्थात् कार्यशील पूँजी में परिवर्तन (कमी, वृद्धि) से है। अतः किसी लेन-देन से कोष प्रवाह तभी माना जायेगा जब उस लेन-देन से शुद्ध कार्यशील में वृद्धि या कमी होती है। किसी लेन-देन से कार्यशील पूंजी में वृद्धि या कमी तभी होगी जब लेन-देन का एक पक्ष कार्यशील पूँजी (चालू सम्पत्ति/चालू दायित्व) से सम्बन्धित हो एवं दूसरा पक्ष गैर-कार्यशील पूँजी (अर्थात् गैर चालू सम्पत्ति और गैर-चालू दायित्व) से सम्बन्धित है। इस प्रकार कोष का प्रवाह निम्नलिखित दशाओं में ही हो सकता है

(i) लेन-देन का प्रभाव चालू सम्पत्ति और स्थायी सम्पत्ति पर पड़े; जैसे-स्थायी सम्पत्तियों का क्रय अथवा विक्रय करना।

(ii) लेन-देन का प्रभाव चालू सम्पत्ति और स्थायी दायित्व पर पड़े; जैसे-रोकड़ के बदले ऋणपत्रों को निर्गमित करना।

(iii) लेन-देन का प्रभाव चालू सम्पत्ति और पूँजी पर पड़े; जैसे-अंश पूँजी को रोकड़

के बदले निर्गमित करना। (iv) लेन-देन का प्रभाव चालू दायित्व और स्थायी सम्पत्ति पर पड़े जैसे-मशीन का उधार क्रय करना।

(v) लेन-देन का प्रभाव चालू दायित्व और स्थायी दायित्व पर पड़े; जैसे-लेनदारों के भुगतान हेतु ऋणपत्र निर्गमित करना।

(vi) लेन-देन का प्रभाव चालू दायित्व और पूँजी पर पड़े जैसे-लेनदारों को भुगतान में अंश निर्गमित करना, पूर्वाधिकार अंशों के शोधन हेतु देय बिल स्वीकार करना।

(vii) व्यावसायिक क्रियाओं के फलस्वरूप होने वाले शुद्ध लाभ या शुद्ध हानि से भी कोष-प्रवाह होता है जिसे ‘संचालन से कोष’ (Funds from Operations) कहा जाता है।

कोष प्रवाह न होना (Where there is no Flow of Funds)-जिन लेन-देनों से शुद्ध कार्यशील पूंजी में कोई कमी या वृद्धि नहीं होती, उन लेन-देनों से कोष-प्रवाह नहीं होता है। मुख्यतः निम्नलिखित लेन-देन ऐसे हैं जिनसे कोष प्रवाह नहीं होता है1. यदि किसी लेन-देन से केवल चालू सम्पत्तियाँ ही प्रभावित हों, जैसे-देनदारों से

भुगतान प्राप्त करना, माल का उधार विक्रय, माल का नकद क्रय, नकद विक्रय,

प्राप्य बिलों का भुगतान प्राप्त करना आदि। ऐसे लेन-देनों से चालू सम्पत्तियों का कुल योग एवं शुद्ध कार्यशील पूँजी यथावत रहती है।

  1. यदि किसी लेन-देन से चालू सम्पत्तियों और चालू दायित्वों पर एक साथ समान रूप से प्रभाव पड़ता है, जैसे लेनदारों को भुगतान करना, माल का उधार क्रय, आदि। ऐसे लेन-देन से चालू सम्पत्तियों एवं चालू दायित्वों के योगों में अवश्य परिवर्तन हो जाएगा। परन्तु शुद्ध कार्यशील पूँजी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
  2. यदि किसी लेन-देन से केवल गैर-चालू मदें अर्थात् स्थायी सम्पत्तियाँ एवं स्थायी दायित्व ही प्रभावित हों जैसे-अंशों/ऋणपत्रों के निर्गमन द्वारा भवन, मशीन किसी भी स्थायी सम्पत्ति का क्रय, बोनस अंशों का निर्गमन, ऋण पत्रों का समता अंशों में परिवर्तन।

Illustration 1. एक व्यापार 1,00,000 रुपए के अंश और 1,00,000 रुपए के पत्र निर्गमित करके क्रय किया गया। क्रय किए गए व्यापार में निम्न सम्पत्तियाँ और दायित्व थे-भवन 1,00,000 रुपए, स्कन्ध 20,000 रुपए, प्राप्य विपत्र 60,000 रुपए, लेनदार एवं देय विपत्र 20,000 रुपए । इस व्यवहार से कोष प्रवाह पर प्रभाव की गणना कीजिए। : ऋण

इस व्यवहार में 80,000 रुपए की चालू सम्पत्तियाँ (स्कन्ध 20,000 रुपए तथा प्राप्य विपत्र 60,000 रुपए) प्राप्त हुई है और 20,000 रुपए के चालू दायित्व (लेनदार एवं देय विपत्र) लिए गए हैं। अत: 80,000 – 20,000 = 60,000 रुपए के कोष का अन्तर्वाह (Inflow) ।

कोष-प्रवाह विवरण का अर्थ एवं परिभाषा

किसी संस्था के दो तिथियों पर तैयार किये गये स्थिति विवरणों (आर्थिक चिट्ठों) के बीच संस्था के कोषों के परिवर्तनों के अध्ययन के लिए बनाया गया विवरण कोष-प्रवाह विवरण’ कहलाता है। दूसरे शब्दों में, इस विवरण में यह दर्शाया जाता है कि दो लेखा अवधियों के मध्य कोष का प्रवाह किस प्रकार हुआ है अर्थात् किन-किन साधनों से कोष प्राप्त हुए हैं और इनका उपयोग किन-किन मदों में किया गया है।

आर० एन० एन्थोनी के अनुसार, “कोष प्रवाह विवरण इस बात का वर्णन करता है कि अतिरिक्त कोष किन स्रोतों से प्राप्त किए गए थे और इन कोषों को किन उपयोगों में लाया गया।”

कोष प्रवाह विवरण की विशेषताएँ

  1. यह विवरण एक निश्चित लेखावधि के लिए बनाया जाता है। है।
  2. कोष प्रवाह विवरण गतिशील (Dynamic) प्रकृति का होता है ।
  3. कोष प्रवाह विवरण लाभ-हानि विवरण एवं दो लगातार चिट्ठों की सूचनाओं के आधार पर बनाया जाता है।
  4. यह विवरण संस्था की तरलता और शोधन क्षमता की जानकारी प्रदान करता है ।
  5. इस विवरण के दो प्रमुख भाग-कोष के साधन और कोष के उपयोग होते हैं।

कोष प्रवाह विवरण के उद्देश्य-1. दो तिथियों के चिट्ठों में कार्यशील पूँजी ज्ञात करना। इन दो तिथियों की कार्यशील पूँजी में अन्तर का पता लगाना । 3. कार्यशील पूँजी में अन्तर कारणों की जानकारी करना। 4. इस अवधि में कोष के अन्तर्वाह की स्रोतों के अनुसारजानकारी प्राप्त करना। 5. इस अवधि में कोष के प्रयोगों की मदवार जानकारी प्राप्त करना । 6. इस अवधि में संचालन कोषों की जानकारी प्राप्त करके कार्य संचालन की वास्तविक स्थिति प्राप्त करना।

कोष प्रवाह विवरण की सीमाएँ-1. गैर-कोष मदों की उपेक्षा, 2. भूतकालीन विश्लेषण, मौलिक सूचनाओं का अभाव,4. रोकड़ में परिवर्तन सम्बन्धी सूचना की जानकारी न मिलना, 5. कार्यशील पूंजी के विभिन्न भदों का अलग-अलग विश्लेषण करने में असमर्थ

कोष प्रवाह विवरण तैयार करने की विधि

कोष-प्रवाह विश्लेषण सामान्यतः एक वर्ष की अवधि के लिए तैयार किया जाता है, यद्यपि यह अवधि दो या अधिक वर्ष की भी हो सकती है। इस विश्लेषण के लिए आवश्यक समंक दोनों चिट्ठों (प्रारम्भिक एवं अन्तिम) से प्राप्त किये जाते हैं। कुछ अतिरिक्त सूचनाएँ अन्य खातों से प्राप्त कर लेते हैं। कोष-प्रवाह विश्लेषण के लिए निम्नलिखित दो विवरण तैयार किये जाते हैं

  1. कार्यशील पूँजी में परिवर्तनों की अनुसूची अथवा विवरण (Schedule or Statement of Changes in Working Capital),
  2. कोष-प्रवाह विवरण (Funds Flow Statement) ।

कार्यशील पूँजी में परिवर्तनों की अनुसूची (Schedule of Changes in Working Capital) -यह अनुसूची दो तिथियों के चिट्ठों के बीच कार्यशील पूँजी में हुए परिवर्तनों को प्रदर्शित करती है । इसे चालू सम्पत्तियों व चालू दायित्वों की सहायता से तैयार किया जाता है। चालू सम्पत्तियों व चालू दायित्वों का अन्तर कार्यशील पूँजी’ कहलाता है। कार्यशील पूँजी में होने वाले परिवर्तनों की गणना हेतु ध्यान रखने योग्य प्रमुख नियम निम्नलिखित हैंचालू सम्पत्तियों में वृद्धि होती है, तो

  1. यदि गत वर्ष की तुलना में चालू वर्ष में शुद्ध कार्यशील पूँजी में भी वृद्धि होती है (If current assets increases, working capital increases)
  2. यदि गत वर्ष की तुलना में चालू वर्ष में चालू सम्पत्तियों की धनराशि में कमी होती है, तो शुद्ध कार्यशील पूंजी भी घट जाती है (If current assets decreases, working capital decreases) I
  3. यदि किसी चालू दायित्व में वृद्धि होती है तो कार्यशील पूँजी में कमी होती है (If current liabilities increases, working capital decreases) I
  4. यदि किसी चालू दायित्व में कमी होती है तो कार्यशील पूँजी में वृद्धि होती है

(If current liabilities decreases, working capital increases)।

उपर्युक्त विवेचन से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि चालू सम्पत्तियों के साथ कार्यशील पूँजी का सीधा सम्बन्ध पाया जाता है तथा चालू दायित्वों के साथ कार्यशील पूँजी का विपरीत सम्बन्ध होता है।

Illustration 2. यदि चालू वर्ष में शुद्ध कार्यशील पूँजी 25,000 रुपए है, जबकि गतवर्ष में यह (-) 40,000 रुपए थी, तो शुद्ध कार्यशील पूँजी में परिवर्तन की राशि कितनी होगी?

शुद्ध कार्यशील पूँजी में परिवर्तन की राशि = 25,000 – [(-) 40,000]

= 25,000 + 40,000 = 65,000 रुपए

स्पष्ट है कि गतवर्ष की तुलना में चालू वर्ष में कार्यशील पूँजी में 65,000 रुपए की वृद्धि हुई है।

कोष प्रवाह विवरण (Funds Flow Statement)-इस विवरण में यह दर्शाया जाता है कि दो लेखा अवधियों के मध्य कोष का प्रवाह किस प्रकार हुआ है अर्थात् किन-किन साधनों से कोष प्राप्त हुए हैं और इनका उपयोग किन-किन मदों में किया गया है। अतः इस विवरण के दो भाग होते हैं-कोषों के स्रोत (Sources of Funds) तथा कोषों के प्रयोग कार्यशील (Applications or Uses of Funds) । इन दोनों पक्षों के अन्तर की राशि शुद्ध पूंजी में परिवर्तन को प्रदर्शित करती है। जब कोषों के स्रोत पक्ष का योग कोषों के प्रयोग पक्ष से अधिक होता है, तो शुद्ध कार्यशील पूँजी में वृद्धि होती है। जब कोषों के स्रोत पक्ष का योग, कोषों के प्रयोग पक्ष की तुलना में कम होता है तो शुद्ध कार्यशील पूँजी में कमी होती है। यह सदैव ध्यान रखें कि कोष-प्रवाह विवरण के स्रोतों तथा प्रयोगों के बीच उतना ही अन्तर होता है जितना कार्यशील पूँजी में परिवर्तन आ रहा हो।

यह भी नियम ध्यान रखने योग्य है कि जो मदें कार्यशील पूँजी की अनुसूची में सम्मिलित कर ली जाती हैं (चालू सम्पत्तियाँ एवं चालू दायित्व) उन्हें कोष-प्रवाह विवरण में नहीं दिखलाया जाता है।

कोषों के स्रोत (Sources of Funds)- जिन लेन-देनों से कोषों का आगमन होता है, उन्हें कोषों के स्रोत’ कहा जाता है । इनका विस्तृत विवरण निम्नांकित है

(i) व्यवसाय संचालन से प्राप्त कोष (Funds received from business operations),

(ii) अंश पूँजी में वृद्धि (Increase in share capital),

(iii) दीर्घकालीन ऋणों की प्राप्ति या वृद्धि (Receipts

or increases of long-term loans), ),

(iv) स्थायी सम्पत्तियों का विक्रय (Sale of fixed assets), (v) गैर-व्यापारिक प्राप्तियाँ (Non-trading receipts), (vi) कार्यशील पूँजी में कमी (Decrease in working capital)|

कोषों के प्रयोग (Applications of funds)- कोष-प्रवाह विवरण बनाते समय कोषों के प्रयोग में निम्नलिखित मदों को दर्शाते हैं

(i) व्यवसाय संचालन से प्राप्त हानि (Funds lost from business operations),

(ii) स्थायी सम्पत्तियों का क्रय (Purchases of fixed assets),

(iii) पूर्वाधिकार अंशों/ऋणपत्रों/ऋणों का शोधन (Redemption preferential shares/debe- ntures/loans).

(iv) लाभांश का भुगतान (Payment of dividend),

(v) चालू वर्ष में करों के लिए भुगतान (Payment for tax in current year)। of

(vi) गैर-व्यापारिक व्ययों का भुगतान (Payment of non-trading expenses),

(vii) कार्यशील पूँजी में वृद्धि (Increase in working capital) |

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