Importance of Feedback
प्रतिपुष्टि का महत्त्व
प्रतिपुष्टि सूचना के आदान-प्रदान तथा सन्देश – प्रेषक व सन्देशग्राही के मध्य समझ की पुष्टि करती है। जब सन्देश प्रेषक द्वारा सन्देशग्राही को सन्देश सम्प्रेषित किया जाता है तो सन्देश-प्रेषक उस सन्देश की प्रतिपुष्टि चाहता है, भले ही वह सन्देश के अनुकूल हो या प्रतिकूल । केवल जे० कुमार के अनुसार – –
“Feedback is the receiver’s reaction to the message whether favourable or hostile.”
प्रतिपुष्टि एक ऐसा दिशा-निर्देश होती है, जिसके द्वारा सन्देश प्रेषक अपने सन्देश को अत्यन्त प्रभावशाली ढंग से सम्प्रेषित करने का प्रयास करता है। जब सन्देशग्राही गृहीत सन्देश का अनुकूल या प्रतिकूल उत्तर देता है, तब प्रतिपुष्टि की प्रक्रिया पूर्ण हो जाती है।
सम्प्रेषण-प्रक्रिया को सफल बनाने में प्रतिपुष्टि अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। सन्देश भेजने के बाद यह जानना आवश्यक हो जाता है कि संग्राहकों ने उसे ग्रहण किया या नहीं। वास्तव में प्रतिपुष्टि द्विमार्गी पद्धति है
(1) सम्प्रेषक से संग्राहक तक, ( 2 ) संग्राहक से सम्प्रेषक तक।
प्रतिपुष्टि दो प्रकार की होती है – पहली धनात्मक तथा दूसरी ऋणात्मक सम्प्रेषित सन्देश उपयोगी सिद्ध हो रहा है या नहीं, सम्प्रेषण प्रक्रिया में यदि कोई कमी रह गई है तो उसे कहाँ और कैसे सुधारा जा सकता है— इन सभी आशंकाओं का उत्तर प्रतिपुष्टि से प्राप्त होता है। सम्प्रेषण का एकमार्गी होना सम्प्रेषण की सबसे बड़ी बाधा है। प्रतिपुष्टि सन्देश को श्रोतावर्ग की आवश्यकतानुसार लयबद्ध बनाती है। सम्प्रेषण की साख के लिए प्रतिपुष्टि अपरिहार्य है।