Tuesday, November 5, 2024
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International Meaning of Marketing Environment notes

International Meaning of Marketing Environment Notes

विपणन पर्यावरण का अर्थ एवं परिभाषा

विपणन पर्यावरण से आशय उन घटकों व शक्तियों से है जो फर्म की विपणन रीति-नीतियों को प्रभावित करती हैं। यद्यपि प्रत्येक विपणन फर्म का आन्तरिक एवं बाह्य वातावरण होता है जो उसे प्रभावित करता है, परन्तु वास्तविकता यह है कि बाह्य वातावरण ही विपणन वातावरण कहलाता है। अत: विपणन वातावरण में वह समस्त घटक अथवा शक्तियाँ सम्मिलित होती हैं जो किसी फर्म के विपणन प्रयासों को प्रभावित करते हैं। Meaning of Marketing Environment Notes

फिलिप कोटलर के अनुसार, “विपणन पर्यावरण में फर्म के विपणन प्रबन्धन कार्य के बाहरी घटक व शक्तियाँ सम्मिलित हैं जो लक्षित ग्राहकों के साथ सफल व्यवहारों का विकास करने और उन्हें बनाये रखने की विपणन प्रबन्ध की योग्यता को आगे बढ़ाती हैं।” इस प्रकार स्पष्ट है कि विपणन पर्यावरण में बाहरी अनियन्त्रणीय शक्तियों को सम्मिलित किया जाता है और इस पर्यावरण के उचित अध्ययन पर ही विपणन प्रबन्ध की सफलता निर्भर करती है।

विपणन वातावरण का वर्गीकरण

(Classification of Marketing Environment)

विपणन वातावरण को मुख्य रूप से दो भागों में विभक्त किया जा सकता-

1. आन्तरिक या नियन्त्रण योग्य विपणन वातावरण,

2. बाह्य या अनियन्त्रण योग्य विपणन वातावरण।

Meaning of Marketing Environment

आन्तरिक या नियन्त्रण योग्य विपणन वातावरण

(Internal or Controllable Marketing Environment)

आन्तरिक वातावरण में किसी संस्था के भीतर विद्यमान उन सभी शक्तियों को सम्मिलित किया जाता है जो उस संस्था के विपणन प्रबन्ध की सफलता को प्रभावित करती है। विपणन विभाग संस्था का एक महत्वपूर्ण विभाग है। अत: इसका आन्तरिक वातावरण इस विभाग की आन्तरिक संरचना एवं प्रबन्ध व्यवस्था से तो प्रभावित होता ही है, साथ ही सम्पूर्ण संस्था की संगठन संरचना, नीतियों, व्यूहरचनाओं आदि से भी प्रभावित होता है।

प्रत्येक संस्था के दिन-प्रतिदिन के क्रियाकलापों का संचालन इसी आन्तरिक वातावरण में किया जाता है। इसमें भी परिवर्तन होते हैं किन्तु इसमें होने वाले परिवर्तनों पर विपणन प्रबन्धक का सामान्यत: नियन्त्रण होता है। International Meaning of Marketing Environment notes

बाह्य या अनियन्त्रणीय विपणन वातावरण स्पष्ट किया

(External or Uncontrollable Marketing Environment)

बाह्य वातावरण ही विपणन का वास्तविक वातावरण होता है जिसमें रहकर विपणन प्रबन्धकों को अपना कार्य-संचालन करना होता है। इस वातावरण पर फर्म अथवा संस्था का अपना कोई नियन्त्रण नहीं होता। इनको निम्न प्रकार जा सकता है।

1. बाजार या बाजार माँग (Market or Market demand)—विपणन प्रबन्ध एवं विपणन क्रियाओं पर बाजार के स्वरूप या बाजार की माँग की स्थिति का भी प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। अत: विपणन प्रबन्धक बाजार के निम्नांकित पहलुओं का अध्ययन एवं विश्लेषण करते हैं, जैसे-उत्पादों/सेवाओं के लिए माँग की प्रकृति, माँग का आकार, माँग में हो रहे परिवर्तन, उत्पादों की आपूर्ति आदि।

2. ग्राहक/उपभोक्ता (Customers/Consumers)—उपभोक्ता माँग निरन्तर बदलती रहती है और इसका सही अनुमान लगाना सम्भव नहीं है। ग्राहक-अभिमुखी विपणन विचारधारा के अन्तर्गत विपणन क्रियाओं का केन्द्र बिन्दु ग्राहकों की आवश्यकताएँ व इच्छाएँ होती हैं। विपणन नीतियाँ व कार्यक्रम ग्राहक सन्तुष्टि के उद्देश्य को ध्यान में रखकर ही संगठित व क्रियान्वित किये जाते हैं।

3. प्रतिस्पर्द्धा (Competition)—कम्पनी की विपणन रीति-नीतियों पर भी प्रतिस्पर्धा का प्रभाव पड़ता है। लक्षित बाजार, पूर्तिकर्ता, विपणन वाहिका, उत्पाद अन्तर्लय, संवर्द्धन अन्तर्लय आदि का चुनाव करते समय प्रतिस्पर्धा की स्थिति का अध्ययन करना आवश्यक है।

4. सरकारी नीतियाँ एवं नियम (Government Policies Rules)—सरकारी नीतियाँ एवं नियम विपणन के व्यष्टि एवं समष्टि दोनों ही वातावरणों को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं, जैसे—क्रय नीति एवं नियम, विपणन सहायता. सरकारी उपक्रम द्वारा उत्पादन एवं वितरण की नीति, विपणन के नियमन की नीति, प्रतिस्पर्धा संरक्षण नीति एवं नियम आदि।

5. जनांकिकी या जनसांख्यिकी वातावरण एवं उसके घटक (Demographic Environment and its Components)—इसके अन्तर्गत जनसंख्या का आकार, निवास स्थान, आयु, लिंग, जाति एवं धर्म, शैक्षिक स्तर, नौकरी या पेशा, आय, घरेलू इकाई आदि को सम्मिलित किया जाता है। जनसंख्या सम्बन्धी इन घटकों में निरन्तर परिवर्तन होते रहते हैं। विपणन प्रबन्धक को इन सभी का निरन्तर अध्ययन करना पड़ता है। सर्वप्रथम तो यह ग्राहकों की संतुष्टि द्वारा विपणन लक्ष्यों को प्राप्त करना चाहते हैं। अतः उनके बारे में सम्पूर्ण जानकारी होनी ही चाहिए। ऐसी जानकारी विपणन प्रबन्धकों को अपने सभी कार्यों को सफलतापूर्वक सम्पन्न करने में महत्वपूर्ण रूप से योगदान देती है।

6. सामाजिक-सांस्कृतिक वातावरण एवं इसके घटक (Socio-cultural Enviornment and its Components)-सामाजिक-सांस्कृतिक वातावरण से तात्पर्य उस वातावरण से है जो समाज के सामाजिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों, आस्थाओं, परम्पराओं, रीति-रिवाजों, जीवन शैली, जीवनस्तर, दृष्टिकोण, आपसी व्यवहार एवं सहयोग, वर्ग भेद, लिंग भेद आदि घटकों से बनता है। अत: विपणन प्रबन्धक के लिये आवश्यक है कि वह बदलती हुई माँग के अनुरूप विपणन योजनाएँ तैयार करके नवीन सामाजिक आवश्यकताओं की सन्तुष्टि करें। International Meaning of Marketing Environment notes

7. आर्थिक वातावरण एवं इसके घटक (Economic Environment and its Components)-आर्थिक वातावरण से तात्पर्य उन समस्त बाह्य शक्तियों से है, जो किसी व्यावसायिक संस्था की कार्य-प्रणाली एवं सफलता को आर्थिक रूप से प्रभावित करती हैं। इसके अन्तर्गत आर्थिक प्रणाली, विकास की दशा, अर्थ चक्र, मुद्रा प्रसार एवं मूल्य स्तर, अर्थव्यवस्था की संरचना, विकास की गति, कर ढाँचा, ऊर्जा के स्रोत, मानव संसाधन विकास एवं उपलब्धता, आर्थिक एवं श्रम नीतियाँ, आय एवं खर्च हेतु उपलब्ध राशि आदि घटकों को सम्मिलित किया जाता है। विपणन प्रबन्धकों को इन घटकों की स्थिति एवं इनमें होने वाले परिवर्तनों का अध्ययन करते रहना चाहिए।

8. प्राकृतिक वातावरण एवं इसके घटक (Natural Environment and its Components)—प्राकृतिक वातावरण से तात्पर्य उन प्राकृतिक घटकों एवं शक्तियों से है जो किसी संस्था के लिये आवश्यक प्राकृतिक संसाधनों के क्रियाकलापों/आपूर्ति को प्रभावित करती हैं। प्राकृतिक वातावरण के प्रमुख घटक निम्न प्रकार हैं

(i) प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता एवं स्थिति,

(ii) जलवायु,

(iii) प्राकृतिक परिस्थितियाँ,

(iv) प्रकृतिवाद,

(v) राजकीय नीतियाँ, कानून एवं नियम।

9. वैज्ञानिक व तकनीकी पर्यावरण घटक (Scientific and Technological Environment)-तकनीकी वातावरण से तात्पर्य उन शक्तियों एवं घटकों से है, जो किसी संस्था के लिये तकनीकी संसाधनों की उपलब्धता को प्रभावित करते हैं। तकनीकी घटकों का प्रभाव बहुत व्यापक होता है। ये संस्था की आर्थिक स्थिति पर तो प्रभाव डालते ही हैं साथ ही ग्राहकों, कर्मचारियों समाज आदि पर भी गम्भीर प्रभाव उत्पन्न करते हैं। अतः तकनीकी घटकों के प्रभावों का बड़ी सूझ-बूझ से आंकलन करना चाहिए। विपणन प्रबन्धकों को उन प्रभावों को ध्यान में रखकर ही अपनी विपणन व्यूह-रचना तैयार करनी चाहिए


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