Saturday, December 21, 2024
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Legal Requirements for Establishment of a New Unit and Raising of Funds (Venture Capital)

नई इकाई की स्थापना हेतु वैधानिक आवश्यकतायें एवं कोष प्राप्ति के स्रोत (साहस पूँजी)
Legal Requirements for Establishment of a New Unit and Raising of Funds (Venture Capital)

प्रश्न 1. एक उद्यमी को किन किन स्रोतों से कोष की प्राप्ति होती है। विवेचना कीजिए। Discuss the Sources from which an entrepreneur acquires funds.

कोष प्राप्ति के स्रोत (Sources of Acquires Funds)

वित्त व्यवसाय या उद्यमिता क्रिया का जीवन रक्त है। कोई भी उद्यमिता क्रिया चाहे वह छोटी हो या बड़ी बिना पर्याप्त मात्रा में पूँजी के सफल नहीं हो सकती । उद्यम के प्रवर्तन विचार से पूर्व से लेकर उद्यम स्थापना तक तथा उद्यम की स्थापना से लेकर उसके सफल संचालन तक पूँजी की आवश्यकता पड़ती है। व्यापक रूप में एक उद्यमी को वित्त आन्तरिक एवं बाह्य दो स्रोतों से प्राप्त होती है । आन्तरिक स्रोत में स्वामित्व पूँजी जो संस्था के स्वामियों द्वारा लाभ कमाने के उद्देश्य से व्यवसाय में लगायी जाती है जबकि बाह्य स्रोतों से ऋण पूँजी को सम्मिलित करते हैं, जिसकी प्राप्ति के लिए विभिन्न स्रोत निम्नलिखित हैं-

Legal Requirements for Establishment of a New Unit and Raising of Funds (Venture Capital)



(I) अंशों एवं ऋण पत्रों का निर्गमन-संस्था के लिए स्थायी पूँजी प्राप्त करने का सबसे उत्तम साधन अंशों एवं ऋण पत्रों का निर्गमन है तथा अन्य प्रतिभूतियाँ हैं(-

(A) अंश—किसी भी व्यवसाय (उद्यम) की पूँजी का एक भाग अंश कहलाता है। अंश दो प्रकार के होते हैं-

(1) समता अंश-समता अंश उद्यम के वित्तीय ढाँचे का आधार स्तम्भ होते हैं। इन अंशों के धारकों को पूर्वाधिकार अंशों पर देय लाभांश के पश्चात् बचे लाभ में से लाभांश दिया जाता है और कम्पनी के समापन की दशा में पूर्वाधिकार अंशधारियों के पूँजी के भुगतान के पश्चात् भुगतान किया जाता है। कम्पनी के स्वामी होने के कारण इन्हें अंशधारियों की सामान्य सभा में उपस्थित होने तथा मत देने का अधिकार रहता है।
(2) पूर्वाधिकार अंश-इन अंशधारियों को पूर्व निर्धारित दर से लाभांश दिया जाता है और कम्पनी के समापन की दशा में इन्हें समता अंशधारियों से पहले पूँजी प्राप्त करने का अधिकार होता है, परन्तु ऐसे अंशधारियों को न तो अंशधारियों की सामान्य सभा में भाग लेने का अधिकार होता है और न ही मत देने का। ऐसे अंश निम्न प्रकार के होते हैं-

(i) संचयी एवं असंचयी पूर्वाधिकार अंश
(ii) परिवर्तनशील एवं अपरिवर्तनशील पूर्वाधिकार अंश
(iii) शोध्य एवं अशोध्य पूर्वाधिकार अंश
(iv) भागयुक्त एवं अभागयुक्त पूर्वाधिकार अंश

(B) ऋण पत्र-अंशों के अतिरिक्त स्थायी पूँजी प्राप्त करने का दूसरा महत्वपूर्ण साधन ऋण पत्रों का निर्गमन है । ऋण-पत्र एक प्रमाण पत्र है, जो ऋण के बदले निर्गमित किया जाता है । ऋण पत्रों पर एक निश्चित प्रतिशत से ब्याज देना होता है तथा इसके भुगतान की शर्ते निर्गमन के समय स्पष्ट कर दी जाती हैं। ऋण पत्र निम्न प्रकार के होते हैं-

(i) वाहक ऋण पत्र
(ii) रजिस्टर्ड ऋण पत्र

(iii) शोध्य एवं अशोध्य ऋण पत्र

(iv) रक्षित एवं अरक्षित ऋण पत्र

(v) परिवर्तनशील एवं अपरिवर्तनशील ऋण पत्र

(C) अन्य प्रतिभूतियाँ-उपरोक्त के अतिरिक्त कोई भी उद्यम विभिन्न प्रकार की प्रतिभूतियों के निर्गमन द्वारा भी पूँजी प्राप्त कर सकता है-  जैसे–सी० सी० पी० बाण्ड्स आदि।

(1) विशिष्ट वित्तीय संस्थाओं से ऋण-स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् देश में उद्योगों के तीव्र विकास के लिए भारत सरकार ने विभिन्न वित्तीय संस्थानों की समय-समय पर स्थापना को जो उद्योग व उद्यमी को अल्पकालीन, मध्यकालीन व दीर्घकालीन ऋण उपलब्ध कराती है। उनमें से प्रमुख निम्नलिखित हैं-

(1) भारतीय औद्योगिक वित्त निगम (IFCI) यह भारत में उद्योगों को मध्यकालीन व दीर्घकालीन ऋण उपलब्ध करवाने वाली पहली संस्था है। इसको स्थापना 1 जुलाई, 1948 को की गयी। इस निगम का मूल उद्देश्य भारत में समामेलित अथवा पंजीकृत उन लिमिटेड कम्पनियों और सहकारी समितियों को वित्तीय सुविधायें प्रदान करना है, जो वस्तुओं के उत्पादन या प्रक्रियन, खनन, जहाजरानी, होटल, बिजली या गैस शक्ति के उत्पादन एवं वितरण में लगी हैं। इसके कार्य को अधिक लोचपूर्ण बनाने के लिए 1 जुलाई, 1993 को इसे कम्पनी के रूप में समामेलित कर लिया गया।
(2) राज्य वित्त निगम (SFC)-साझेदारी फर्मों, एकल स्वामित्व संगठनों तथा मध्य एवं लघु उद्योगों को अल्प एवं मध्यकालीन वित्त प्रदान करने के लिए राज्य वित निगमों की स्थापना के लिए 28 सितम्बर, 1951 को लोकसभा में राज्य वित्त निगम अधिनियम पारित किया गया। इस अधिनियम के अन्तर्गत सर्वप्रथम फरवरी 1953 में पंजाब वित्त निगम की स्थापना की गयी और अब तक देश भर में 18 राज्य वित्त निगमों की स्थापना की जा चुकी है।
(3) राष्ट्रीय औद्योगिक विकास निगम (NIDC)-देश में उद्योगों का सन्तुलित विकास करने और उद्योगों के प्रवर्तन तथा विकास की प्रारम्भिक अवस्था में तकनीकी एवं वित्तीय सहायता प्रदान करने की दृष्टि से 20 अक्टूबर, 1954 को इसकी स्थापना की गयी। आजकल यह निगम एक सलाहकार संस्थान के रूप में कार्य कर रहा है।
(4) भारतीय औद्योगिक साख एवं विनियोग निगम (ICICI)-इस निगम की स्थापना विश्व बैंक की एक तीन सदस्य समिति की सलाह पर 5 जनवरी, 1955 को की गयी। प्रारम्भ में इसकी स्थापना निजी स्वामित्व वाली संस्था के रूप में की गयी थी किन्तु बीमा व्यवसाय का राष्ट्रीयकरण होने के बाद जीवन बीमा निगम इसका प्रमुख अंशधारी बन गया । इस निगम का स्वामित्व तथा लेन-दन अन्तर्राष्ट्रीय प्रकृति का है।
(5) औद्योगिक विकास बैंक (IDBI)-इस बैंक की स्थापना औद्योगिक विकास की गति तीव्र करने तथा अन्य वित्तीय संस्थाओं का समन्वय करने के लिए एक शीर्ष संस्था के रूप में 1 जुलाई, 1964 को की गई। बैंक की स्थापना रिजर्व बैंक के पूर्ण स्वामित्व वाले सहायक बैंक के रूप में की गयी थी किन्तु 16 फरवरी, 1976 से यह पूर्ण रूप से केन्द्रीय सरकार के नियन्त्रण में आ गया है
(6) भारतीय इकाई प्रन्यास (UTI)-भारत में पूँजी निर्माण की गति धीमी है जिसके कारण औद्योगिक विकास में कठिनाई होती है। औद्योगिक विकास को तीव्र करने और छोटी-छोटी बचतों को निर्माण कार्यों की ओर प्रवाहित करने के लिए ऐसी वित्तीय संस्था की आवश्यकता है जो देश की छोटी-छोटी बचतों को एकत्रित कर व्यावसायिक एवं औद्योगिक संस्थाओं में धन विनियोजित करें। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए 1 फरवरी, 1964 को भारतीय इकाई प्रन्यास की स्थापना की गयी। वस्तुतः इसने अपने यूनिटों का विक्रय 1 जुलाई, 1964 से आरम्भ किया।
(7) भारतीय औद्योगिक पुननिर्माण बैंक (IRBI)–तृतीय पंचवर्षीय योजना के बाद औद्योगिक मन्दी को दशायें उत्पन्न होने लगी। जिससे विभिन्न राज्यों में औद्योगिक उपक्रम बन्द होने लगे, श्रम-अशान्ति, हड़ताल, तालाबन्दी जैसी औद्योगिक कुरीतियों ने जन्म लिया। इन सब कुरीतियों को रोकने और विकास को गति देने के लिए उपक्रम, जो मन्दी की वर्षा से बन्द के कगार पर पहुंच रहे थे उन्हें पुनः स्थापित करने के लिए अप्रैल 1971 में इस बैंक की स्थापना की गयी।
(8) जीवन बीमा निगम (L. I. C.)–इस निगम की स्थापना जीवन बीमा अधिनियम 1956 के अन्तर्गत की गयी। इसने अपना कारोबार 1 सितम्बर, 1956 से प्रारम्भ किया। इस निगम का प्रमुख उद्देश्य जीवन बीमा व्यवसाय चलाना है किन्तु इस निगम ने विशिष्ट वित्तीय संस्थानों की श्रेणी में एक प्रमुख संस्थागत विनियोक्ता की स्थिति प्राप्त कर ली है। इसका मुख्य कार्यालय मुम्बई में, 6 क्षेत्रीय कार्यालय मुम्बई, दिल्ली, मद्रास, कलकत्ता, हैदराबाद व कानपुर में हैं तथा 69 मण्डलीय कार्यालय व 1528 शाखा कार्यालय हैं।
(9) राज्य औद्योगिक विकास निगम राज्यों में लघु एवं मध्यम आकार के उद्योगों के विकास के लिए राज्य वित्त निगम स्थापित किए गए। इस निगम की स्थापना के बाद सन् 1960 में राज्य औद्योगिक विकास निगम की स्थापना की गई। अब तक 24 राज्य औद्योगिक विकास निगम स्थापित किए जा चुके हैं।
(10) अन्य वित्तीय संस्थायें-उपरोक्त संस्थाओं के अतिरिक्त उद्योगों के विकास और उन्हें वित्त उपलब्ध कराने के लिए कुछ अन्य वित्तीय संस्थायें भी हैं, जो निम्नलिखित हैं-

(i) राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम
(ii) उद्योग पुनर्वित्त निगम
(iii) फिल्म वित्त निगम
(iv) भारतीय साधारण बीमा निगम ।

(III) व्यापारिक बैंक-अल्पकालीन वित्त या कार्यशील पूँजी के स्रोत के रूप में व्यापारिक बैंकों का महत्वपूर्ण स्थान है। ये बैंक सुरक्षित एवं असुरक्षित दोनों प्रकार के ऋण प्रदान करती हैं। उद्यमी की वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ये बैंक ऋण, नकद साख, अधिविकर्ष की सुविधा प्रदान करके साख सुलभ कराती है।

(IV) लाभों का पुनर्विनियोजन-प्रत्येक उद्यमी अपने समस्त वार्षिक लाभ को लाभांश के रूप में वितरित न करके कुछ भाग को भविष्य की आवश्यकताओं के लिए संचित करके रखती है और जब इस संचिति का उपयोग, विकास एवं विस्तार तथा आधुनिकीकरण के लिए किया जाता है तो इसे लाभों का पुनर्विनियोग कहते हैं। चूँकि कम्पनी इस व्यवस्था के अन्तर्गत अपनी वित्त व्यवस्था स्वयं ही करती है, किसी बाहरी व्यक्ति या संस्था से ऋण नहीं लेती है । अतः इसे आन्तरिक वित्त व्यवस्था भी कहते हैं।

(V) सार्वजनिक जमा या जन निक्षेप विकास के प्रारम्भिक चरण में जब बैंकिंग सुविधाओं का विकास नहीं हुआ था, उस समय सार्वजनिक जमा भारत में औद्योगिक वित्त प्रबन्धन का एक महत्वपूर्ण साधन था। किन्तु बैंकिंग विकास के साथ-साथ सार्वजनिक जमा में कमी आयी किन्तु विगत कुछ वर्षों से जन निक्षेप फिर से लोकप्रिय वित स्रोत बन गया है । सार्वजनिक जमा प्राय: एक से पाँच वर्ष की अवधि तक किए जाते हैं किन्तु निरन्तर नवीनीकरण के कारण यह जमा दीर्घकालीन वित्त के रूप में प्रयोग किए जाते हैं ।

प्रश्न 2. साहस पूँजी से क्या आशय है ? इसकी प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिए। What is meant by Venture Capital ? Discuss its main characteristics in detail.

साहस पूँजी(Venture Capital)

साहस पूँजी दो शब्दों का संयुक्तीकरण है, साहस + पूँजी । साहस शब्द से आशय ऐसे कार्यकलाप से है, जिसका परिणाम अनिश्चित होता है, लेकिन जिनमें हानि के खतरे की जोखिम समाहित रहती है । पूँजी से आशय किसी उपक्रम को प्रारम्भ करने हेतु आवश्यक संसाधन से होता है । इस प्रकार साहस पूँजी से आशय उपक्रम के उन संसाधनों (पूँजी) से है, जिनमें जोखिम तथा साहसिकता समाहित है। अन्य शब्दों में नये व्यावसायिक उपक्रम को प्रारम्भ से कोष उपलब्ध कराने की वित्तीय क्रिया को साहस पूँजी कहा जाता है। विभिन्न विद्वानों ने साहस पूँजी को इस प्रकार परिभाषित किया है

सागरी एवं मुइ डाटी के अनुसार,
“साहस पूँजी का प्रादुर्भाव उच्चस्तरीय आधुनिक तकनीकी आधारित उपक्रमों के वित्तीय संसाधनों के रूप में हुआ है”। प्रेट के अनुसार, “विकास महत्वाकांक्षी नव उपक्रमों के प्रारम्भिक स्तर के वित्त संसाधनों को साहस पूँजी कहते हैं।”

उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि साहस पूँजी को ऐसी सृजनात्मक पूँजी की संज्ञा दी जा सकती है जिसके द्वारा आर्थिक क्रियाओं के निष्पादन की आशा की जाती है, जो अन्य विनियोग वाहन से भिन्न है तथा जो विस्तार पूँजी की तरह कार्य करती है। यह नयी अवधारणाओं के समता समर्थन की क्रिया है, जिसमें उच्च जोखिम तथा उच्च वृद्धि एवं लाभ सम्भावना विद्यमान है।

साहस पूँजी के लक्षण या विशेषतायें (Features of Venture Capital)

साहस पूँजी की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(1) विनियोग प्रायः नये उपक्रमों में किया जाता है, जो नये उत्पादों के उत्पादन हेतु नवीन तकनीकी का उच्च लाभ की आशा में प्रयोग कर रहे हैं।
(2) विनियोग प्रायः लघु एवं मध्यम उपक्रमों को ही किया जाता है।
(3) एक बार उपक्रम विकास की उच्च अवस्था तक पहुँच जाता है, पूँजीपति अपने जब अंशो का अपयोजना प्रवर्तकों या बाजार में अन्य व्यक्तियों को कर सकता है। यहाँ विनियोग का आधारभूत उद्देश्य लाभ नहीं होता, बल्कि अपयोजन के समय पूँजी में वृद्धि होती है।

(4) साहस पूँजी समता सहभागिता के रूप में होती है। यह दीर्घकालीन ऋण या परिवर्तनशील ऋण का रूप भी ले सकता है।
 
(5) साहस पूँजी विनियोग समक्ष पर ऋण चुकाने की भांति, मांग पर देय नहीं होता है।

(6) साहस पूँजीपति परियोजना में उद्यमी के साथ सह प्रवर्तन के रूप में कार्य करते हैं तथा उपक्रम के लाभ एवं जोखिम को बाँटते हैं ।

(7) साहस पूँजी मुद्रा का केवल इंजेक्शन मात्र नहीं है, बल्कि फर्म की स्थापना करने, इसकी विपणन व्यूह रचना करने तथा इसके संगठन एवं प्रबन्ध का एक महत्वपूर्ण आदाय है।

(8) विनियोग केवल उच्च जोखिम वाली परियोजना में किया जाता है, जिसमें उच्च वृद्धि को भी व्यापक सम्भावना होती है।
(9) साहस पूँजी केवल नये विचारों या नवीन तकनीकी में वाणिज्यीकरण हेतु उपलब्ध होती है।

भारत में साहस पूँजी के स्रोत (Sources of Venture Capital in India)

(1) समता-भारत में समस्त साहस पूँजी कोष द्वारा समता के रूप में उपलब्ध करायी जाती है, लेकिन इनका योगदान प्रायः कुल समता पूँजी के 49% से अधिक नहीं होता है । साहस पूँजी कोष एक उपक्रम के समता अंश इस इच्छा से क्रय करते हैं कि अन्तत: इन्हें बेचकर पूँजो लाभ कमाना है
(2) शर्त युक्त ऋण-शर्त युक्त ऋण अधिकार शुल्क के रूप में पुर्नभुगतान योग्य होती है, जबकि परियोजना विक्रय का सृजन करने लगती है। ऐसे ऋण पर ब्याज का भुगतान नहीं करना होता है । साहस पूँजी कोष द्वारा प्राय: दो से पन्द्रह प्रतिशत के बीच रॉयल्टी वसूल की जाती है। कुछ कोष रॉयल्टी की तुलना में उच्च ब्याज दर के भुगतान का विकल्प भी साहसी को देते हैं जबकि परियोजना वाणिज्यिक रूप से पूर्णतः सुदृढ़ हो जाती है।
(3) आय नोट—इसमें परम्परा शर्तयुक्त ऋण दोनों की विशेषताएँ सम्मिलित हैं, जिसमें उद्यमी को ब्याज के साथ विक्रय पर रॉयल्टी भी चुकानी होती है । कोष सुरक्षित ऋण के रूप में विभिन्न विकास चरणों में 9% ब्याज पर उपलब्ध कराये जाते हैं। ऋण वर्तमान में भारत के साहस पूँजी प्रदान करने वाली संस्थाओं को निम्न चार श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है-

(A) अखिल भारतीय वित्तीय संस्थाओं द्वारा प्रवर्तित कम्पनियाँ इसमें निम्नलिखित कम्पनियाँ सम्मिलित हैं-

1. भारतीय औद्योगिक विकास बैंक का साहस पूँजी डिवीजन ।
2. साहस पूँजी एवं तकनीकी वित्त निगम लिमिटेड (भारत औद्योगिक वित्त निगम की सहायक)।

3. भारतीय तकनीकी विकास एवं सूचना कम्पनी लिमिटेड (भारतीय औद्योगिक साख एवं विनियोग निगम तथा यूनिट ट्रस्ट ऑफ इण्डिया द्वारा प्रवर्तित)।

(B) राज्य वित्त निगम द्वारा प्रवर्तित कम्पनियाँ इसमें निम्नलिखित कम्पनियाँ सम्मिलित हैं-

1. गुजरात वेंचर फाइनेंस लिमिटेड (गुजरात वित्त निगम द्वारा प्रवर्तित)।

2. आन्ध्र प्रदेश औद्योगिक विकास निगम वेंचर कैपिटल लिमिटेड

(C) बैंकों द्वारा प्रवर्तित कम्पनियाँ-इसमें निम्नलिखित को शामिल किया जाता है-

1. कैन बैंक वेंचर कैपिटल फण्ड (कैनफिना तथा कैनरा बैंक द्वारा प्रवर्तित कम्पनियाँ)

2. स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया वेंचर केपिटल फण्ड

3. भारतीय विनियोग फण्ड (ग्रिन्ड लेज बैंक द्वारा प्रवर्तित)

4. इन्फ्रास्ट्रक्चर लीजिंग एण्ड फाइनेन्सियल सर्विसेज कम्पनी लिमिटेड (सेन्ट्रल बैंक ऑफ इंडिया) द्वारा प्रवर्तित ।

(D) निजी क्षेत्र की कम्पनियाँ-इसमें निम्नलिखित सम्मिलित हैं-

1. इण्डस वेन्चर कैपिटल फाइनेन्स लिमिटेड (मफतलाल एवं हिन्दुस्तान लीवर द्वारा प्रवर्तित)।

2. 20वीं सेंचुरी वेंचर कैपिटल कारपोरेशन लिमिटेड ।

3. वेंचर कैपिटल फण्ड/वी० बी० देसाई द्वारा प्रकाशित ।

4. केन्द्रित कैपिटल वेन्चर फण्ड इण्डिया लिमिटेड

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