Lord Ripon policies (1880-1884)

लॉर्ड रिपन 1880-1884 (Lord Ripon policies (1880-1884)

भारतीय इतिहास के कुछ सर्वाधिक लोकप्रिय और उदार वायसरायों में लॉर्ड रिपन भी एक था, जिसे भारतीयों की सहानुभूति व प्रशंसा प्राप्त हुई थी। वह 1880 ई० से 1884 ई० तक भारत में ब्रिटिश साम्राज्य का वायसराय रहा। उसकी लोकप्रियता का रहस्य यह था कि उसने प्रथम बार भारतीयों को अंग्रेजों के समान अधिकार दिलाने का प्रयत्न किया। उसे भारतीयों से विशेष सहानुभूति थी और वह वास्तव में उनकी भलाई चाहता था। वह ग्लैडस्टन युग का एक सच्चा उदार व्यक्ति था और स्वशासन व स्वतन्त्र व्यापार की नीतियों में विश्वास रखता था। वह बहुत-सी बातों और नीतियों में विलियम बैंटिंक से मिलता-जुलता था। अब तक भारत में ब्रिटिश प्रशासन द्वारा ब्रिटिश हितों की सुरक्षा पर ध्यान दिया जाता था, परन्तु उसने इस नीति में परिवर्तन करके सच्चे हृदय से भारतीय हितों की ओर ध्यान देना प्रारम्भ किया। उसने प्रशासन का उदारीकरण किया तथा जनता और नौकरशाही के बीच की दूरी को कम करने का प्रयास किया।

Lord Ripon policies (1880-1884)

यूरोपियनों के समान अधिकार दिलाने का हर सम्भव प्रयत्न करने के कारण लॉर्ड रिपन ने भारतीयों के मन को इतना मोह लिया कि वे उसके चले जाने के कई वर्ष पश्चात् भी उसे ‘अच्छे रिपन’ के नाम से स्मरण करते रहे। उसके प्रत्येक कार्य में भारतीयों की भलाई निहित थी। उसने द्वितीय अफगान युद्ध समाप्त करके भारत को भारी आर्थिक भार से बचाया। उसने नगरपालिकाओं तथा जिला बोर्डों की स्थापना करके भारतीयों को अपना शासन आप चलाने की दिशा में बड़ा प्रशंसनीय कार्य किया। ‘वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट’ को निरस्त करके उसने भारतीयों के प्रति होने वाले एक अन्याय को दूर किया। उसने भारतीयों को शिक्षित करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम उठाए ताकि कोई यह न कह सके कि भारतीय असभ्य या जंगली हैं। भारतीयों को उच्च पदों पर नियुक्त किया जाए, इस दिशा में भी उसने यथासम्भव प्रयत्न किया। ‘प्रथम फैक्ट्री एक्ट’ पारित करके उसने भविष्य में होने वाले अनेक उपयोगी सामाजिक सुधारों के लिए मार्ग प्रशस्त किया। भारतीयों की गणना कराकर उसने भारतीय समस्याओं का समाधान करने के लिए एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने की भारतीयों से सहानुभूति रखने और उन्हें आवश्यकता पर बल दिया। सबसे बढ़कर ‘इल्बर्ट बिल’ पारित करने का प्रयत्न करके उसने स्पष्ट कर दिया कि भारतीयों को यूरोपियनों के समान लाने की उसके मन में कितनी तीव्र इच्छा है। इन कार्यों से चाहे उसके अपने देशवासी उससे रुष्ट हो गए, परन्तु वह भारतीयों की सहानुभूति और प्रेम प्राप्त करने में अवश्य सफल हो गया। अपने कार्यों के माध्यम से उसने भारतीयों के मन में एक स्थायी जगह बना ली।

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