Saturday, November 30, 2024
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Meaning of Feedback pdf – Bcom Notes

Meaning of Feedback pdf – Bcom Notes

प्रतिपुष्टि का आशय 

प्रतिपुष्टि एक प्रत्यार्पित सन्देश होता है, जो सन्देश प्राप्तकर्ता सम्प्रेषक को देता है। जब सम्प्रेषक सूचनाग्राही अथवा प्राप्तकर्ता को सन्देश भेजता है तो सम्प्रेषक उस भेजे गए सन्देश की प्रतिक्रिया चाहता है । 

सन्देश प्राप्त कर लेने के बाद सन्देश प्राप्तकर्ता द्वारा उस सन्देश को उचित प्रकार से समझा जाता है, तत्पश्चात् सन्देश पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की जाती है। इस प्रतिक्रिया का स्वरूप अनुकूल भी हो सकता है अथवा प्रतिकूल भी हो सकता है। यही प्रतिक्रिया प्रतिपुष्टि कहलाती है। प्रतिपुष्टि सन्देश प्रक्रिया का अन्तिम महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। प्रतिपुष्टि के अभाव में कोई भी सम्प्रेषण प्रक्रिया पूर्ण नहीं हो सकती। प्रतिपुष्टि के आधार पर ही सम्प्रेषक द्वारा पूर्व सन्देश में परिवर्तन, सुधार अथवा संशोधन कर प्रभावी स्वरूप प्रदान किया जाता है।

प्रतिपुष्टि प्रक्रिया

(Feedback Process )

एक सन्देश प्राप्तकर्त्ता उचित प्रतिपुष्टि उसी स्थिति में कर सकता है जब वह सम्प्रेषक द्वारा भेजे गए सन्देश को ठीक से समझे अथवा सुने तथा उस सन्देश को उसी दृष्टिकोण से समझे, जिस दृष्टिकोण से सम्प्रेषक उसे समझाना चाहता है। जब सन्देश प्राप्तकर्त्ता सन्देश की कोई प्रतिक्रिया देता है, तभी सम्प्रेषण प्रक्रिया में प्रतिपुष्टि प्रक्रिया की उपस्थिति मानी जाएगी। प्रतिपुष्टि निम्नांकित चित्र द्वारा समझी जा सकती है –

Meaning of Feedback

प्रतिपुष्टि प्रतिक्रिया में जब सम्प्रेषक सन्देश प्राप्तकर्ता को सन्देश भेजता है तो वह सन्देश मौखिक, लिखित, शाब्दिक अथवा अशाब्दिक हो सकता है। सम्प्रेषण प्रक्रिया में सम्प्रेषण के लिए वह बात जाननी आवश्यक है कि जब सम्प्रेषक सन्देश प्राप्तकर्त्ता को सन्देश भेजता है तो सन्देश प्राप्तकर्ता उस सन्देश के प्रति कैसी प्रतिक्रिया व्यक्त करता है।

लीलेण्ड ब्राउन के अनुसार, “सम्प्रेषण व प्राप्तकर्ता दोनों की प्रभावशीलता की एक वांछित मात्रा अत्यन्त आवश्यक होती है । ”

प्रतिपुष्टि के प्रभाव

(Effects of Feedback)

प्रतिपुष्टि के प्रभाव निम्नलिखित हैं-

(1) एक सम्प्रेषण प्रक्रिया के अन्तर्गत जिस प्रकार सम्प्रेषक की प्रत्येक क्रिया प्राप्तकर्त्ता की प्रतिक्रियाओं को प्रभावित करती है. ठीक उसी प्रकार प्राप्तकर्ता की प्रतिक्रियाएँ भी सम्प्रेषक की क्रियाओं को प्रभावित करती हैं।

(2)एक सम्प्रेषण प्रक्रिया के अन्तर्गत प्राप्तकर्ता सम्प्रेषक को अपने द्वारा व्यक्त प्रतिक्रिया के स्वरूप के आधार पर नियन्त्रित करने का प्रयत्न करता है। 

(3) यदि सन्देश प्राप्तकर्त्ता द्वारा कोई प्रतिपुष्टि प्राप्त नहीं होती है तो पूर्व भेजे गए सन्देश को बदल देते हैं।

एक सम्प्रेषण प्रक्रिया के अन्तर्गत प्राप्तकर्ता की प्रतिक्रियाएँ ही प्रतिपुष्टि कहलाती हैं, जो सम्प्रेषक को उसके उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए कुशलता प्रदान करती हैं।

प्रतिपुष्टि की विधियाँ

(Methods of Feedback)

प्रतिपुष्टि की विभिन्न विधियाँ निम्नलिखित हैं-

1. लिखित सम्प्रेषण ( Written Communication) – इस विधि में पाठकों के चेहरे के भावों को समझना अथवा पढ़ना असम्भव होता है तथा शीघ्र ही कोई प्रतिक्रिया भी प्राप्त नहीं होती। लिखित सम्प्रेषण सबसे अच्छी विधि मानी जाती है क्योंकि इसमें सम्प्रेषक जो भी सन्देश भेजना चाहता है वह सरल तथा स्पष्ट होता है एवं उसमें किसी भी प्रकार का भ्रम नहीं होता।

2. आमने-सामने सम्प्रेषण (Face to Face Communication) — इस विधि में प्रतिपुष्टि शीघ्र तथा लगातार मिलती रहती है। जब सम्प्रेषक सन्देश प्राप्तकर्त्ता को कोई सन्देश देता है तो उसकी प्रतिक्रिया किस प्रकार की होती है वह तुरन्त ही समझ जाता है।

3. मौखिक सम्प्रेषण (Oral Communication ) – इस विधि में जब सम्प्रेषक सन्देश प्राप्तकर्त्ता को कोई मौखिक सन्देश देता है और उसकी कोई प्रतिक्रिया जानना चाहता है तो सन्देश प्राप्तकर्त्ता सकारात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए तालियाँ अथवा डेस्क बजा सकता है और नकारात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए उबासी ले सकता है अथवा सन्देश की तरफ कोई ध्यान नहीं देता है ।

प्रतिपुष्टि को प्रभावी बनाने हेतु दिशा-निर्देश 

(Guidelines to make Feedback Effective)

प्रतिपुष्टि को प्रभावी बनाने के लिए प्रमुख दिशा-निर्देश निम्नलिखित हैं-

  • प्रतिपुष्टि की प्रकृति वर्णनात्मक होती है। 
  • प्रतिपुष्टि सन्देश प्राप्तकर्ता के व्यवहार को जानने अथवा समझने में सहायता करती है।
  • प्रतिपुष्टि किसी आचरण विशेष से सम्बन्धित होनी चाहिए। 
  • प्रतिपुष्टि उचित समय पर होनी आवश्यक है। 
  • प्रतिपुष्टि उसी स्थिति में सम्भव है जब सन्देश प्राप्तकर्ता किसी सन्देश को सुनना अथवा समझना चाहता है।
  • प्रतिपुष्टि का सम्बन्ध प्रत्यक्ष रूप से सन्देश के लक्ष्य से होना चाहिए। 
  • प्रतिपुष्टि में विशिष्टता का गुण होना आवश्यक है। 

प्रतिपुष्टि का महत्त्व (Importance of Feedback)

प्रतिपुष्टि का महत्त्व निम्नलिखित बिन्दुओं में स्पष्ट किया जा सकता है-

  • प्रतिपुष्टि के बिना कोई भी प्रभावपूर्ण सम्प्रेषण असम्भव है। 
  • प्रतिपुष्टि किसी सम्प्रेषण की प्रभावशीलता का मापदण्ड है। 
  • प्रतिपुष्टि सन्देश प्रक्रिया का अन्तिम महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। 
  • प्रतिपुष्टि सम्प्रेषण का वास्तविक बोध है। 
  • प्रतिपुष्टि के अभाव में कोई भी सम्प्रेषण प्रक्रिया पूर्ण नहीं हो सकती। 
  • प्रतिपुष्टि एक संगठन अथवा व्यवसाय के प्रबन्धन के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण करती है। 
  • सम्प्रेषण प्रक्रिया में प्रतिपुष्टि एक उत्प्रेरक तत्त्व के रूप में कार्य करती है । 
  • उचित प्रतिपुष्टि के द्वारा सम्प्रेषण प्रक्रिया को प्रभावी बनाया जा सकता है। 
  • प्रतिपुष्टि सूचना के आदान-प्रदान और सम्प्रेषक एवं प्राप्तकर्ता के मध्य समझ की है। 
  • सम्प्रेषक प्रतिपुष्टि के माध्यम से ही यह जान सकता है कि अभिव्यक्ति उसकी जा इच्छाओं के अनुरूप है कि नहीं। 
  • प्रतिपुष्टि किसी सन्देश को प्राप्त करने तथा उसकी ठीक व्याख्या को समझने का एक स्रोत है।
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