Meaning of Private Company
निजी कम्पनी से आशय
भारतीय कम्पनी अधिनियम 2013 की धारा 2 (68) के अनुसार, एक निजी कम्पनी से आशय ऐसी कम्पनी से है जो अपने अन्तर्निमयों द्वारा –
(i)अपने अंशों के हस्तान्तरण के अधिकार पर प्रतिबन्ध लगाती है।
(ii) अपने सदस्यों की संख्या 200 तक सीमित करती है।
(iii) कम्पनी के अंशों अथवा ऋणपत्रों को जनता द्वारा क्रय करने के लिये निमन्त्रण देने पर रोक लगाती है।
निजी कम्पनी के निर्माण के लिये कम से कम दो सदस्यों काहोना अनिवार्य है और अपने नाम के अन्त में Private Limited शब्द लिखना अनिवार्य है।
निजी कम्पनी को प्राप्त विशेषाधिकार एवं छूटें (Privileges and Exemptions of Private Co.)-कम्पनी अधिनियम 2013, में एक निजी कम्पनी को विशेष दशाओं में एक सार्वजनिक कम्पनी की अपेक्षा कुछ छूटे प्राप्त हैं जिनको निजी कम्पनी के विशेषाधिकार कहा जाता है।
इन विशेषाधिकारों को हम दो भागों में बाँट सकते हैं –
(I) सभी निजी कम्पनियों को प्राप्त विशेषाधिकार या छूट।
(II) स्वतन्त्र निजी कम्पनी को प्राप्त विशेषाधिकार (जो सार्वजनिक कम्पनी की सहायक कम्पनी नहीं है) .
सभी निजी कम्पनी को प्राप्त विशेषाधिकार
(Privileges available to all private companies)
(1) सदस्य संख्या (Number of Members)— एक निजी कम्पनी की न्यूनतम सदस्य संख्या केवल 2 है।
(2) अंशों का आवंटन (Allotement of Shares)– निजी कम्पनी न्यूनतम अभिदान राशि प्राप्त होने से पहले ही शेयरों का आवंटन आरम्भ कर सकती है। अर्थात् निजी कम्पनी में अंशों के आवंटनपर कोई प्रतिबन्ध नहीं है।
(3) प्रविवरण (Prospectus)– एक निजी कम्पनी प्रविवरण अथवा स्थानापन्न प्रविवरण (statemetnt in liew of prospectus) पंजीयक के पास फाइल किये बिना शेयरों का आवंटन कर सकती है।
(4) नये शेयर जारी करना (Further issue of shares)- धारा 81 के प्रावधान जो नये शेयर जारी करने के बारे में हैं, निजी कम्पनी पर लागू नहीं होते।
(5) व्यापार शुरु करना (Commencement of business)- एक निजी कम्पनी समामेलन का प्रमाण पत्र लेने के तुरन्त बाद व्यापार शुरू कर सकती है।
(6) वित्तीय सहायता (Financial assistance)– एक निजी कम्पनी अपने या अपनी सूत्रधारी कम्पनी के शेयर खरीदने के लिए किसी को भी वित्तीय सहायता दे सकती है ।
(7) वैधानिक सभा (Statutory Meeting)– निजी कम्पनी को वैधानिक सभा बुलाने अथवा वैधानिक रिपोर्ट फाइल करने की आवश्यकता नहीं है।
(8) संचालकों की संख्या (Number of directors)-– एक निजी कम्पनी के लिए 2 से अधिक संचालक रखना आवश्यक नहीं है।
(9) चुनाव की मांग (Demand for poll) – यदि सात से कम लोग व्यक्तिगत रूप से उपस्थित है (personaly present) तो किसी भी प्रस्ताव पर कोई एक सदस्य या प्रोक्सी चुनाव की माँग कर सकता है । यदि यह गिनती 7 से ज्यादा है तो कोई दो ऐसे लोग चुनाव की मांग कर सकते हैं।
(10) संचालकों से सम्बन्धित नियम (Rules regarding directors)– संचालक के रूप में कार्य करने सम्बन्धित स्वीकृति फाइल करना, योग्यता शेयर खरीदना, उन अनुबन्धों के सम्बन्ध में मत देने की मनाही जहां उनका अपना हित हो, यह सभी रुकावटें निजी कम्पनी के संचालकों पर लागू नहीं होती। एक ही प्रस्ताव द्वारा दो या इससे अधिक निर्देशक भी नियुक्त किए जा सकते हैं। अन्तर्नियमों में दी गई सीमा से अधिक निर्देशक नियुक्त करने के लिए केन्द्रीय सरकार की आज्ञा नहीं लेना पड़ती।
(11) प्रबन्ध पारिश्रमिक (Managerial Remuneration)– एक निजी कम्पनी में प्रबन्धकीय पारिश्रमिक के प्रतिशत की अधिकतम सीमा अर्थात् 11% लागू नहीं होती।
स्वतन्त्र निजी कम्पनी के विशेषाधिकार (Special Privileges of an Independent private company)
एक निजी कम्पनी जो सार्वजनिक कम्पनी की सहायक कम्पनी नहीं है, को निम्नलिखित विशेषाधिकार प्राप्त हैं –
(1) अपने शेयर खरीदने या उन पर अभिदान के लिए निजी कम्पनी वित्तीय सहायता दे सकती है।
(2) अपनी साधारण सभा, सूचना,कोरम, चेयरमैन,प्राक्सी,मतदान तथा चुनाव के सम्बन्ध में निजी कम्पनी अपने अन्तर्नियमों में प्रावधान बना सकती है फिर उस पर कम्पनी अधिनियम के यह प्रावधान लागू नहीं होते।
(3) प्रबन्धकीय पारिश्रमिक के प्रावाधान निजी कम्पनी में लागू नहीं होते।
(4) कोई भी संस्था, फर्म या संघ ऑफिस ग्रहण कर सकता है।
(5) संचालकों एवं मैनेजर से सम्बन्धित विशेषाधिकार एवं छूटे-संचालकों के सम्बन्ध में एक निजी कम्पनी को निम्नलिखित विशेषाधिकार एवं छूटे प्राप्त हैं-
(i) एक निजी कम्पनी के संचालकों को बारी-बारी से अवकाश ग्रहण करना आवश्यक नहीं हैं।
(ii) एक निजी कम्पनी को अपने संचालकों की संख्या बढ़ाने के लिये केन्द्रीय सरकार की सहमति लेने की आवश्यकता नहीं पड़ती।
(iii) प्रत्येक संचालक की नियुक्ति के लिये निजी कम्पनी में अलग प्रस्ताव की आवश्यकता नहीं है। दो या दो से अधिक संचालक एक ही प्रस्ताव द्वारा नियुक्त किये जा सकते हैं।
(iv) संचालकों के नियुक्ति के प्रतिबन्ध एक निजी कम्पनी पर लागू नहीं होते ।
(v) एक निजी कम्पनी अपने संचालकों को ऋण आदि दे सकती है। (vi) एक निजी कम्पनी के संचालक मण्डल के अधिकारों पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है।
(vii) यदि निजी कम्पनी के साथ कोई ऐसा प्रसंविदा है. जिसमें संचालकों का हित है, तो वे संचालक इस प्रसंविदे से सम्बन्धित बातचीत में भाग ले सकते हैं तथा वोट भी दे सकते
(viii) एक निजी कम्पनी के संचालकों के पारिश्रमिक में वृद्धि करने के लिए केन्द्रीय सरकार की सहमति की आवश्यकता नहीं है ।
(ix) एक निजी कम्पनी प्रबन्ध संचालक की तरह एक ऐसे व्यक्ति की नियुक्ति कर सकती है जो पहले से ही एक से अधिक कम्पनियों का प्रबन्ध संचालक या मैनेजर हो ।
(7) अन्य कम्पनियों को ऋण देने सम्बन्धित प्रतिबन्ध इन कम्पनियों पर लागू नहीं होते।
इन विशेषाधिकारों के कारण ही निजी कम्पनी को समामेलित साझेदारी (incorporated Partnership) कहते हैं । इसको दोनों लाभ प्राप्त हैं—साझेदारी जैसी गोपनीयता एवं कम्पनी सा शाश्वत अस्तित्व । यदि निजी कम्पनी अन्तर्नियमों द्वारा लगाई शर्तों का उल्लंघन करती है तो इसके यह विशेषाधिकार छिन जाते हैं।
एक सार्वजनिक कम्पनी मानी जाने वाली निजी कम्पनी (deemed public company)-ऊपरलिखित विशेषाधिकारों पर अधिकार नहीं रखती। इसी तरह एक निजी कम्पनी, जो सार्वजनिक कम्पनी की सहयोगी कम्पनी है, को भी यह सभी विशेषाधिकार नहीं मिलते।
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