Non-verbal Communication
गैर-क्रिया सम्प्रेषण
मानवशास्त्रियों का यह विचार है कि जब से मानव जाति ने परस्पर वार्तालाप प्रारम्भ किया होगा तब सर्वप्रथम उसने अपने शरीर के विभिन्न अंगों के माध्यम से इशारों में सन्देश दिए होंगे। धीरे-धीरे वे इशारे किसी प्रकार से एक – एक शब्द में बदल गए परिणामस्वरूप एक भाषा का निर्माण हुआ होगा। उदाहरण के लिए जब व्यक्ति, यहाँ तक कि जानवर को भी जब क्रोध आता है तब उस क्रोध की अभिव्यक्ति वह दाँत पीसकर करता है। इसके विपरीत, स्नेह प्रकट करने की स्थिति में वह दूसरे को स्पर्श करना पसन्द करता है।
सम्प्रेषण प्रक्रिया में सन्देशों का आदान-प्रदान होता है। प्रेषक तथा प्राप्तकर्त्ता सन्देश एवं विचार को समान अर्थ में समझते हैं। इस प्रक्रिया में सन्देश जब शब्दों में व्यक्त किया जाए तो उसको शाब्दिक सम्प्रेषण (Verbal Communication) कहते हैं। इसके विपरीत, जब सन्देश शब्दों के अतिरिक्त चिह्नों (Signs), लक्षणों ( Symptoms) अथवा संकेतों (Signals) तथा सूचित चिह्नों के द्वारा सम्प्रेषित हो तो उसे अशाब्दिक सम्प्रेषण (Non-verbal Communication) कहते हैं।
प्राचीन समय में जब मानव ने भाषा की खोज नहीं की थी, उस समय भी वह अपने सन्देशों का आदान-प्रदान संकेतों एवं चिह्नों के माध्यम से करता था। आज इक्कीसवीं शताब्दी में जब मानव सभ्यता काफी विकसित हो गई है तो सूचना सम्प्रेषण के अनेकों आधुनिक साधन एवं तन्त्र मानव के पास उपलब्ध हैं। लेकिन इसके बावजूद आज भी अशाब्दिक सम्प्रेषण मानव के लिए प्रासंगिक एवं महत्त्वपूर्ण है। वह विचार, भाव अथवा सन्देश जो हजारों शब्दों में भी सम्प्रेषित नहीं हो पाता, वह मात्र संकेत, चित्र, हाव-भाव, भाव-भंगिमा द्वारा कुछ सेकण्डों में ही सम्प्रेषित किया जा सकता है क्योंकि मानव की ज्ञानेन्द्रियों का बोध एवं उनका प्रभाव मानव जीवन के अस्तित्व का प्रमाण है। इस प्रकार अशाब्दिक सम्प्रेषण, सम्प्रेषण का एक प्राकृतिक, स्वाभाविक एवं शक्तिशाली माध्यम है। इसको संकेत सम्प्रेषण भी कहते हैं। अशाब्दिक सम्प्रेषण के संकेत, ज्ञान, विचार, दृष्टिकोण, विश्वास एवं भावनाओं के प्रतीक होते हैं, जिनका सामयिक ढंग से वातावरण के अनुरूप सम्प्रेषण हेतु चयन किया जाता है।