Promotion of venture opportunity analysis of entrepreneurship

Promotion of venture opportunity analysis of entrepreneurship

उपक्रम की स्थापना एक विशिष्ट कला है जो कि उद्यमीय कौशल से परिपूर्ण विशेष न दारा की जाती है क्योंकि नये उपक्रम के प्रवर्तन के लिए व्यवस्थित. संगठित एवं सामहिक प्रयत्नों की आवश्यकता पड़ती है इसलिए प्रोफेसर बैटी का यह कथन सत्य प्रतीत होता है.”उपक्रम की स्थापना के समय उद्यमी का एकमात्र लक्ष्य उपक्रम का निर्माण करना नहीं होता वरन उसकी सफलता एवं विस्तार को भी सुनिश्चित करना होता है ।” अतः उद्यमी का अत्यन्त सजग होना आवश्यक है। जब कोई नवीन उपक्रम स्थापित होता है तो न केवल रोजगार, उत्पादन तथा आय का सृजन होता है बल्कि यह उपक्रम समाज और राष्ट्र की निरन्तर प्रगति व विकास में भी महत्वपूर्ण योगदान देता है। अत: उपक्रम की स्थापना में प्रारम्भिक व सम्भावित समस्याओं के प्रति उद्यमी का अत्यन्त सजग होना आवश्यक होता है, promotion of a venture इसलिए यह कहा जाता है कि नवीन उपक्रम गीली मिट्टी के समान होता है, जिससे उद्यमी द्वारा उपयुक्त योजना के अनुरूत्प आकार-प्रकार प्रदान किया जाता है।

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उपक्रम की स्थापना के महत्वपूर्ण घटक या अवस्थाएँ

Important Factors of Promotion of Venture

नवीन उपक्रम की स्थापना एवं विस्तार के लिए उद्यमी की विभिन्न महत्वपूर्ण घटकों या तत्वों को ध्यान में रखना पड़ता है एवं विभिन्न अवस्थाओं से होकर गुजरना पड़ता है। यह महत्वपूर्ण घटक निम्नलिखित हैं. (A) व्यावसायिक विचारों की खोज-उचित व्यावसायिक विचारों अथवा अवसरों की खोज व्यावसायिक उपकम की स्थापना का महत्वपूर्ण घटक है ।व्यावसायिक प्रवर्तन का कार्य व्यावसायिक अवसरों की खोज के साथ शुरू होता है। यह विचार विभिन्न स्रोतों से उत्पन्न हा सकता है, जैसे- कहानी, किसी उत्पाद विशेष की बढ़ती हुई माँग, किसी व्यापार, मेले या अदशन को प्रारम्भ करने का अथवा किसी वर्तमान व्यवसाय को अधिगृहीत करने का हो सकता है। किसी भी व्यावसायिक विचार की खोज करने में निम्नलिखित स्रोत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं

(1) बाजारों का निरीक्षण-

बाजार का सर्वेक्षण विभिन्न उत्पादों की माँग एवं पति की  दशाओं को दर्शाता है। उत्पाद के सक्रिय उपभोक्ताओं के नमूने एवं माँग की। करने का प्रयास करना चाहिए। बाजार निरीक्षण के द्वारा प्रतिस्पर्धा एवं की। भी बोध हो जाता है। बाजार निरीक्षण एवं उत्पाद विश्लेषण को परिपूर्ण करने विशेषज्ञों, जैसे-डीलर्स, बैंक प्रबन्धक, विज्ञापन एजेन्सियों, परामर्शदाताओं आदि भी प्राप्त की जा सकती है। Promotion of venture opportunity analysis of entrepreneurship

(2) भावी उपभोक्ताओं से सम्बन्ध-

भावी उपभोक्ताओं से सम्बन्ध यह स्वतः प्रत है कि उत्पाद अथवा सेवाओं की विशेषताएँ क्या होनी चाहिए। व्यवसाय की नींव की उपभोक्ता करता है तथा उसको चलाने में उपभोक्ता की महती भूमिका होती है।” उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं एवं पसन्द से सम्बन्धित समंक अवश्य एकत्र किये जा चाहिएँ।

(3) व्यापार मेले तथा प्रदर्शनियाँ

राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार मेले व्यावसायिक विचार का एक उत्तम स्रोत हैं। इन मेलों में उत्पादक एवं पूर्तिकर्ता अपने उत्पादों का प्रदर्शन करते हैं । इन उत्पादों में अधिकांश उत्पाद नये होते हैं । इन मेलों में उत्पादन, क्रय सह-संगठन डीलरशिप आदि विचारों पर सौदा एवं समझौता वार्ता होती है। Promotion of venture opportunity analysis of entrepreneurship

(4) विभिन्न सरकारी संस्थाएँ-

विभिन्न सरकारी संस्थाएँ उद्यमियों को व्यावसायिक विचार की खोज करने में अत्यधिक सहायक सिद्ध होती हैं। विनियोग केन्द्र, राज्य औद्योगिक विकास बैंक, तकनीकी सलाह संगठन, निर्यात सम्वर्द्धन समिति आदि विभिन्न संस्थाएँ उद्यमियों को तकनीकी, वित्तीय एवं अन्य व्यावसायिक सलाह व सहायता प्रदान करती हैं। व्यापार एवं उद्योग पर प्रकाशित सरकारी प्रकाशन भी नवीन व्यावसायिक विचार खोजने में सहायक हो सकते हैं।

(5) अन्य राष्ट्रों का विकास-

सामान्यतः विकसित देशों के फैशन, चलन आदि का अनुसरण अविकसित देशों के लोगों द्वारा किया जाता है। अतएव एक उद्यमी एक अच्छे व्यावसायिक विचार को प्राप्त कर सकता है। यदि वह विकसित राष्ट्रों में होने वाले हाल ही के विकासों पर ध्यान रखें।

(6) परियोजनाओं की रूपरेखा का सूक्ष्म परीक्षण-

समय-समय पर विभिन्न उद्योगों व परियोजनाओं की रूपरेखा का प्रकाशन अनेकों सरकारी व निजी एजेन्सियों द्वारा किया जाता है। एक उचित व्यवसाय चुनने में ऐसी परियोजनाओं की रूपरेखा का सूक्ष्म परीक्षण अति सहायक सिद्ध हो सकता है किन्तु इस कार्य को सम्पन्न करने व सफल बनाने हेतु तकनीकी व अन्य विशेषज्ञों को नियुक्त किया जाना चाहिए।अन्य स्रोत-उपर्युक्त स्रोतों के अतिरिक्त व्यावसायिक विचारों को खोजने में अप्रयुक्त संसाधन, असन्तुष्ट मांग, नवीन आविष्कार, निम्न कोटि के उत्पाद आदि स्रोत भी सहायक सिद्ध होते हैं। Promotion of venture opportunity analysis of entrepreneurship

(B) विचार का विश्लेषण एवं चयन-

व्यावसायिक उपक्रम की स्थापना करते समय दसरा महत्वपूर्ण घटक विचारों का विश्लेषण एवं चयन है, जिसका ध्यान रखना आवश्यक है। वित के चयन से पूर्व उसका विस्तृत विश्लेषण किया जाता है, जिसको निम्नलिखित अवस्था विभक्त किया गया है-

(1) विचार मूल्यांकन एवं परीक्षण-

व्यावसायिक विचारों की खोज उसका परीक्षण किया जाता है। इस हेतु निम्नांकित तथ्य महत्वपूर्ण हैं तकनीकी सुगमता-   तकनीकी सुगमता से आशय किसी उत्पाद    का उत्पादन करने की ओं से है। इसका निर्णय मशीन, श्रम, कौशल, कच्चा माल, आवश्यक तकनीकों की – आदि के आधार पर किया जाता है। इसको मापने के लिए तकनीकी विशेषज्ञों की लाह एवं सहायता भी आवश्यक हो सकती है !

वाणिज्यिक सुगमता-   वाणिज्यिक सुगमता से आशय प्रस्तावित परियोजनाओं की ना एवं अवसरों को ऑकने के लिए बाजार दशाओं एवं प्रचलित स्थितियों के विस्तृत यन करने से है। इस अध्ययन के अन्तर्गत विभिन्न संगणनाएँ करनी होती हैं; -सम्भावित माँग, विक्रय कीमत, उत्पादन लागत, सम-विच्छेद बिन्दु आदि ।

(2) सप्पूर्ण विश्लेषण-   

विचारों के प्रारम्भिक मूल्यांकन एवं परीक्षण के बाद उपयुक्त विचार का समस्त कोणों से सम्पूर्ण विश्लेषण किया जाता है। यह अवस्था काफी महत्वपूर्ण होती है क्योंकि विचार की स्वीकृति अथवा अस्वीकृति का निर्णय इसी अवस्था पर किया जाता है। प्रस्तावित परियोजना की तकनीकी सुगमता एवं आर्थिक सजीवता की पूर्ण जाँच-पड़ताल की जाती है एवं उस विचार की वित्तीय एवं प्रबन्धकीयं सुगमता का परीक्षण किया जाता है। सम्पर्ण विश्लेषण के पश्चात् निष्कर्षों को प्रतिवेदन के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। Promotion of venture opportunity analysis of entrepreneurship

(3) उपयुक्त विचार का चुनाव- 

 परियोजना प्रतिवेदन प्राप्त होने पर उसका विश्लेषण कर उपयुक्त विचार का चयन कर लिया जाता है । इसका चयन करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि कोई उत्पाद सरकार द्वारा प्रतिबन्धित तो नहीं है तथा किस उत्पाद के लिए अनुदान या सरकारी प्रोत्साहन उपलब्ध है? इसके साथ-साथ कौन-से उत्पाद की माँग पूर्ति से ज्यादा है व किस उत्पाद में उच्च लाभदायकता है? कौन-सा उत्पाद देश की औद्योगिक लाइसेन्सिंग नीति के अनुरूप है आदि।

(C) व्यावसायिक वातावरण की जाँच-  

 व्यावसायिक विचार के विश्लेषण एवं चयन के पश्चात् व्यावसायिक परिदृश्य अथवा वातावरण का मूल्यांकन अपरिहार्य होता है। व्यावसायिक परिवेश अनेक आर्थिक, सामाजिक, भौगोलिक, राजनीतिक एवं शासकीय तत्वों का सम्मिश्रण होता है। अत: उद्यमी को आज के गतिशील प्रतिस्पर्धात्मक परिवेश में उपक्रम को स्थापित एवं संचालित करना एक महत्वपूर्ण कौशल है । उद्यमी को ग्राहकों,पूर्तिकर्ताओं,मध्यस्थों,प्रतिद्वन्द्वियों क मानसिक दृष्टिकोण एवं सरकारी नीतियों, आर्थिक तत्वों के साथ-साथ प्राकृतिक एवं भागालिक तत्वों के मध्य उचित तारतम्य भी स्थापित करना पड़ता है। व्यावसायिक वातावरण का उपयुक्त जाँच व्यावसायिक उपक्रम को उन्नति के पथ पर अग्रसर कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। .  

(D) आवश्यक संसाधनों को जटाना-

उद्यमी उपक्रम को प्रारम्भ करने के लिए आवश्यक बन जुटाने का कार्य करता हैं। उसे आवश्यक वित्त की व्यवस्था करनी होती है. भूमि भवन, प्लाण्ट, फर्नीचर, पेटेण्ट आदि खरीदने होते हैं एवं कर्मचारियों की नियुक्ति करनी होती । इन संसाधनों को निम्न भागों में विभक्त किया गया हैं

(1) सूचनाएँ-  

सूचनाओं का एकत्रीकरण एक महत्वपूर्ण कार्य है। उत्पाद व सेवा की माँग

मार एव प्रकृति, पूर्ति की मात्रा एवं स्रोत, उत्पाद की कीमत, लागत मात्रा सम्बन्ध से cscanneकत्र की जाती हैं। तकनीकी संयन्त्र एवं मशीनों के पूर्तिकर्ताओं, आवश्यक कर्मचारियो को संख्या एवं प्रकार स्रोत कच्चे माल के स्रोत.प्रतिस्पर्धा की प्रकृति, आवश्यक कोषों के मोर से विभिन्न सूचनाएँ एकत्र करना उद्यमी का कार्य है। सूचनाओं के एकत्रीकरण व उनको सरक्षित रखने में कम्प्यूटर का उपयोग अत्यधिक सहायक होता है।

(2) धन की व्यवस्था-   

धन किसी भी व्यवसाय को सुदृढ़ बनाने के लिए अति-आवश्यक हैं। वित्त किसी भी व्यवसाय के जीवनरक्त के समान होता है । व्यवसाय में लगे वित्त को व्यवसाय की पंजी कहा जाता है। स्थायी सम्पत्तियों में लगा वित्त ‘स्थाया पूजा एवं चान सम्पत्तियों में लगा वित्त ‘कार्यशील पँजी’ कहलाती है । व्यवसाय के लिए आवश्यक कोषों का अनुमान लगाने के बाद उसके स्रोतों को ढूंढना एवं स्रोतों से प्राप्त होने वाले वित्त का अनुपात सुनिश्चित करना ‘पूँजी संरचना’ कहलाता है।

(3) कर्मचारियों का प्रबन्ध- 

 उपक्रम हेतु कर्मचारियों का चयन करना भी एक महत्व व परम आवश्यक कार्य है । कर्मचारी संस्था की एक महत्वपूर्ण कड़ी का कार्य करते हैं । कर्मचारी संस्था की न ह्रासित होने वाली सम्पत्ति होती है। कर्मचारियों का चयन आवश्यकतानुसार किया जाना चाहिए। भर्ती के स्रोत ज्ञात करके कर्मचारियों का चयन विधिसम्मत ढंग से करना चाहिए। उद्यमी को कर्मचारियों के निष्पादन मूल्यांकन की व्यवस्था करनी चाहिए तथा उनकी सुरक्षा, कल्याण, स्वास्थ्य हेतु प्रदान की जाने वाली सुविधाओं का ध्यान रखना चाहिए । इनको उपलब्ध कराना उद्यमी का महत्वपूर्ण कर्तव्य है।

(E) उद्यम स्थापना-     

ऊपर वर्णित कार्यविधि पूर्ण हो जाने के उपरान्त व आवश्यक संसाधनों के एकत्र हो जाने के पश्चात् उपक्रम का कार्यशील ढाँचा तैयार करने की कार्यवाही की जाती है। इसे निम्नलिखित शीर्षकों से स्पष्ट किया गया है

(1) संगठन संरचना-   

उद्यमी अपने द्वारा चयनित विचार के अनुरूप उपक्रम का संगठन करते हैं । व्यावसायिक विचार के अनुरूप उपक्रम का आकार निर्धारित करते हैं । एकल स्वामित्व, साझेदारी संगठन, संयुक्त पूँजी वाली कम्पनी या सहकारी संगठन के रूप में वैधानिक कार्यवाही को पूर्ण कर अपने विचार को मूर्त रूप प्रदान किया जा सकता है। Promotion of venture opportunity analysis of entrepreneurship

(2) व्यावसायिक संगठन– 

 उद्यमी को व्यवसाय के अनेक पहलुओं के सम्बन्ध में समग्र योजनाएँ बनानी पड़ती हैं। व्यावसाय की समग्र योजनाओं के प्रमुख अंग निम्नलिखित हैं

(i) उत्पाद नियोजन-   

उत्पाद नियोजन से आशय उत्पादित किये जाने वाले उत्पाद के सम्बन्ध में योजना बनाने से है । प्रस्तावित वस्तु के सम्बन्ध में योजना बनाते समय उद्यमी को यह पता लगाने का प्रयास करना चाहिए कि लोगों की आवश्यकताएँ क्या हैं? एवं उनके अनुरूप उत्पाद को डिजाइन करना चाहिए। उद्यमी को विशिष्ट उत्पादों के सम्बन्ध में सभी परिणामों पर मनन करना, उत्पाद के सुधार के तरीकों पर विचार करना, मितव्ययी उत्पादन पद्धति बनाना, उत्पाद के पैंकिंग, ब्राण्ड नाम आदि की योजना बनाना आदि तथ्यों का विशेष ध्यान रखना चाहिए।

(ii) उत्पाद नियोजन-   

उत्पाद हेतु योजना का मौलिक उद्देश्य सम्भव उच्चतम विनिर्माण कार्य-कुशलता के साथ उत्पादन की विभिन्न शाखाओं में पूर्व निर्धारित आपूर्ति, समय-सूची के अनुसार वस्तुओं के प्रकार और मात्रा के रूप में विक्रय संस्था की आवश्यकता को सन्तुष्ट करना है।

वित्तीय नियोजन-

 वित्तीय नियोजन का आशय उन सम्पत्तियों के प्रकार सम्बन्ध लेने एवं इन सम्पत्तियों में निवेश की सीमा से है, जिनमें वित्तीय संसाधन निवेशित होते । सामान्यतः उद्यमी को यह पग उठाना होता है कि वह कुल वित्त में से कम से कम पूँजी लेशित करे व अधिकतम सामान उधार ले।

(iv) कोष नियोजन-उद्यमी का महत्वपूर्ण कार्य कोषों का बुद्धिमत्तापूर्वक सदुपयोग करना होता है। आधुनिक परिप्रेक्ष्य में उद्यमी को फण्ड निवेश के सम्बन्ध में वैज्ञानिक ढंग से सोचना होता है ! उद्यम के आकार एवं सूचना प्रौद्योगिकी का ज्ञान तथा धन एकत्रीकरण एवं व्यय सम्बन्धी जानकारी आवश्यक होती है।

(v) लाभ नियोजन-लाभ नियोजन उत्पादन लाइन के चयन में मूल्य निर्धारण, लागत तथा उत्पादन परिमाण की ओर संकेत करता है अतएव लाभ नियोजन.निवेश एवं वित्त सम्बन्धी निर्णय की एक पूर्वापेक्षा है।

(vi) विपणन नियोजन-विपणन नियोजन उपक्रम के समग्र नियोजन का एक भाग है। इसके अन्तर्गत निम्न घटकों के सम्बन्ध में निर्णय लेने होते हैं

(a) कीमत नियोजन-

उद्यमी के द्वारा उत्पाद का प्रथम बार मूल्य निर्धारण करना एक समस्या के समान होता है। कीमत-निर्धारण करते समय उत्पादन की सम्भावित माँग, माँग (लोच) के सन्दर्भ में मूल्य, लक्ष्य समूह एवं उसकी क्रय-शक्ति, प्रचार की नीति एवं विक्रय पद्धति व उनके व्ययों को ध्यान में रखना चाहिए। .

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(b) वितरण नियोजन-

उद्यमी को उत्पादन के वितरण हेतु उपयुक्त माध्यम का चुनाव करते समय नेटवर्क पर ध्यान देना चाहिए। वितरण की कड़ी जितनी छोटी होती है, नियन्त्रण उतना ही प्रभावी होता है। वितरण पद्धति बाजार पहुँच के साथ मितव्ययी होनी चाहिए।

(c) विक्रय सम्वर्द्धन-

वस्तुओं के सफल विक्रय के लिए कुशल विक्रेताओं की भर्ती करना चाहिए तथा सम्वर्द्धन के विभिन्न माध्यमों; जैसे-विज्ञापन एवं बिक्री बढ़ाने के अन्य उपायों पविचार करना चाहिए। इसके साथ-साथ विज्ञापन माध्यम, बजट एवं समयावधि आदि पर भी विचार करना चाहिए

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