लोक प्रशासन एवं निजी प्रशासन (Public Administration and Private Administration)
लोक प्रशासन तथा व्यक्तिगत प्रशासन में अन्तर (difference between public administration and personal administration)
लोक प्रशासन और निजी प्रशासन के प्रमुख अन्तर निम्न प्रकार व्यक्त किए जा सकते हैं-
1. प्रतिनिधित्व का अन्तर-लोक प्रशासन, शासन की इच्छा का प्रतिनिधित्व करता है। इसमें राज्य की बाध्यकारी शक्ति होती है।
2. सामान्य व्यवहार का अन्तर-लोक प्रशासन में समस्त जनता के साथ समानता का व्यवहार किया जाता है। निजी प्रशासन में समान व्यवहार अनिवार्य नहीं होता है।
3. वित्तीय नियन्त्रण-लोक-प्रशासन में वित्तीय नियन्त्रण बाह्य होता है। व्यय कार्यपालिका करती है परन्तु धन व्यवस्थापिका के नियन्त्रण में होता है। व्यवस्थापिका की स्वीकृति के बिना कार्यपालिका किसी प्रकार का कोई धन व्यय नहीं कर सकती है। इस प्रकार का अन्तर निजी प्रशासन में नहीं होता है।
4. लाभ प्राप्ति का उद्देश्य-निजी प्रशासन का मुख्य उद्देश्य लाभ कमाना होता है। लोक-प्रशासन का उद्देश्य लाभ प्राप्त करना न होकर लोक-कल्याण होता है।
5. सेवाओं की प्रकृति-लोक प्रशासन के अन्तर्गत वे सेवाएँ आती हैं जो आधारभूत होती हैं और जिनका सम्बन्ध समाज के जीवन और विकास से होता है। निजी प्रशासन का सम्बन्ध इतने अधिक महत्त्वपूर्ण कार्यों से नहीं होता है।
6. जनता के प्रति उत्तरदायित्व-लोक प्रशासन में लोक सेवक जनता के प्रति उत्तरदायी होते हैं। निजी प्रशासन अपने नियोक्ता के प्रति व्यक्तिगत निष्ठा रखता है।
7. कानून और नियम-लोक प्रशासन कानून और नियमों से बँधा रहता है। निजी प्रशासन कानून और नियमों की जटिल पद्धति से सर्वथा स्वतन्त्र होता है। –
8. राजनीतिक स्वरूप-लोक प्रशासन का स्वरूप राजनीतिक होता है। निजी प्रशासन का स्वरूप राजनीतिक नहीं होता है। इसीलिए इसका विस्तार सीमित होता है तथा यह कर्मिकों के हित का ध्यान रखता है। –
9. एकाधिकार की दृष्टि से-लोक प्रशासन द्वारा समुदाय को प्रदान की जाने वाली अनेक सेवाएँ एकाधिकारी प्रकृति की होती हैं। सेना, पुलिस, डाक-तार, रेल आदि के कार्य नेजी स्तर पर नहीं किए जा सकते हैं। इन विषयों पर सरकार का पूर्ण नियन्त्रण होता है। निजी शासन में ऐसा एकाधिकार नहीं होता है। एक ही क्षेत्र में अनेक उद्योग होते हैं तथा इनमें पतिस्पर्धा रहती है। लोक-प्रशासन की अधिकांश क्रियाएँ एकाधिकार से युक्त होती हैं जिनमें प्रतिस्पर्धा नहीं होती है। –
10. आय के स्रोत-लोक प्रशासन में आय जनता पर कर लगाकर अर्जित की जाती है। प्रायः उतने ही कर लगाए जाते हैं जितना जन-सेवाओं पर व्यय होता है। जनता को दी जाने वाली सेवाओं और प्राप्त किए जाने वाले धन में एक निश्चित समानुपात रहता है। यदि धन बच जाता है तो इस अतिरिक्त लाभ को भी पुन: सार्वजनिक कार्यों में लगा दिया जाता है। निजी प्रशासन में आय अधिक होती है, व्यय कम तथा कार्य का ध्येय निश्चित लाभ की प्राप्ति होता है।