आधुनिक राज्य में लोक प्रशासन की भूमिका (Role of Public Administration in the Modern State)
आधुनिक राज्य में लोक प्रशासन का कार्यक्षेत्र व्यापक होता जा रहा है। व्यवस्था का पतन या उत्थान प्रशासन पर ही निर्भर करता है, अत: प्रशासन को निम्नलिखित बातों का पूरा ध्यान रखना चाहिए
1. लोकमत के प्रति जिम्मेदार-प्रजातन्त्र में प्रशासन को सदैव लोकमत के प्रति जागरूक रहते हुए कर्मशील रहना चाहिए।
2. जन-इच्छा का सम्मान-प्रजातन्त्र में लोकसेवक को यह सदैव याद रखना चाहिए कि वह सेवक है और जनता स्वामी है, लेकिन वर्तमान में हो इसके विपरीत रहा है। प्रशासक सेवक बनकर जनता की भावनाओं को जनसम्पर्क के माध्यम से समझते हुए कार्य करें।
3. जनसहयोग-जनसहभागिता एवं सहयोग विकास का मार्ग प्रशस्त करता है, लोक प्रशासन सरकार के अधिकाधिक कार्यों में जनसहयोग प्राप्त करने का प्रयास करे। जनसहयोग मिलते ही प्रशासन का आधा कार्य सम्पन्न हुआ समझिए।
4. जनता की नब्ज पर प्रशासन की अंगुलियाँ रहनी चाहिए ताकि जनता की भावना और जरूरतें देखकर प्रशासन नीतियों के निर्माण में अपेक्षित सहयोग दे सके और उन्हें साकार रूप दे सके।
5. प्रशासक स्वेच्छाचारिता से दूर रहे। उसे सदैव याद रखना चाहिए कि संविधान, कानून व नियम, कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका उस पर निरन्तर निगरानी रखे हुए हैं। अत: प्रशासन मर्यादा में रहते हुए, सेवक बनकर नरमी से शासनतन्त्र को चलाए तो बेहतर होगा।
6. सत्ता के केन्द्रीकरण के स्थान पर विकेन्द्रीयकरण की नीति करना चाहिए। प्रशासन को जनता की जरूरतें नीचे-से-नीचे स्तर तक पूरी करने का भरसक प्रयत्न करना चाहिए। अगर जनता को प्रत्येक कार्य के लिए मुख्यालय या राजधानी जाना पड़ा तो एक दिन असन्तोष उग्र रूप धारण करेगा और फिर खून-खराबा, क्रान्ति और हिंसा ही एकमात्र विकल्प बचेगा।
7. प्रशासन को जानबूझकर किए गए अपने प्रत्येक गलत कार्यों के लिए निजी तौर पर जिम्मेदार ठहराने से ही विकास सम्भव है। अनजानी गलतियों और कार्यों के लिए हर्जाने की व्यवस्था लोक कोष से हो, लेकिन जानबूझकर की गई गलतियों का हर्जाना सौ फीसदी प्रशासक की जेब से ही भरने की व्यवस्था से क्रान्तिकारी और सफल परिणाम प्राप्त हो सकते हैं।
8. निर्णयों को न्यूनतम गुप्त रखा जाए। प्रजातन्त्र में जो भी फैसले लिए जाएँ, उन्हें जनता तक पहुँचाया जाना चाहिए। प्रशासकों की वर्तमान नीति के अन्तर्गत प्रशासन को खुली किताब के स्थान पर जनता के लिए यह बन्द पुस्तक ही समझा जा रहा है। जहाँ तक हो सके, जो भी प्रशासनिक निर्णय लिए जाएँ, वे प्रचार और प्रसार के माध्यमों द्वारा जनता तक अवश्य ही पहुँचाए जाने चाहिए तभी प्रशासन के प्रति जनता का विश्वास बढ़ेगा।
अतः कल्याणकारी राज्य की अवधारणा आज धीरे धीरे जोर पकड़ती जा रही है। विश्व के अधिकाधिक राष्ट्र कल्याणकारी राज्य की श्रेणी में आते जा रहे हैं। पं० नेहरू के शब्दों में, “सबके लिए समान अवसर प्रदान करना, धनवानों और निर्धनों के बीच अन्तर को मिटाना व रहन-सहन के स्तर को ऊँचा उठाना कल्याणकारी राज्य के आधारभूत तत्त्व हैं।