Wednesday, November 20, 2024
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कम्पनी की सभाएँ एवं प्रस्ताव 

(Company’s Meetings and Resolution)

कम्पनी की सभाएँ (Company’s Meetings)

साधारणतया सभा का आशय दो अथवा दो से अधिक व्यक्तियों का पूर्व सूचना या पारस्परिक व्यवस्था द्वारा किसी कार्य के सम्बन्ध में परामर्श करने अथवा कार्य का निष्पादन करने के लिए एक साथ मिलना या एकत्रित होना है। प्रसिद्ध विद्वान एम. ए. शार्लेकर के अनुसार, “दो या दो से अधिक व्यक्तियों का कानूनी उद्देश्य से एक साथ एकत्रित होना सभा कहलाता है।” इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि किसी भी सभा के लिए निम्न बातें होना आवश्यक है (अ) सभा का पूर्व संयोजित होना, (ब) न्यून कार्यवाहक संख्या (कोरम) का उपस्थित होना, (स) सभा विधिवत विद्वान के नियमों के अनुसार बुलायी गयी हो, (द) सभा की कार्यवाही एवं समापन विधानानुकूल किया गया हो।  bcom 2nd year company meeting notes in hindi

कम्पनी की सभाओं के प्रकार 

(Kinds of Company’s Meeting)

कम्पनी की विभिन्न सभाओं को निम्न भागों में विभाजित किया जा सकता है 

(1) अंशधारियों की सभाएँ (Shareholder’s Meetings)-

अंशधारी कम्पनी के स्वामी होते हैं, परन्तु चूंकि ये कम्पनी का प्रबन्ध एवं संचालन करने में बहधा परिस्थितियोंवश असमर्थ रहते हैं, इसलिये संचालक उने प्रतिनिधि के रूप में कम्पनी का प्रबंध करते हैं । सभाओं द्वारा परस्पर मिलकर कम्पनी के बारे में विचार-विमर्श करते हैं । कम्पनी अधिनियम के अनुसार, अशधारियों की निम्नांकित सभाएँ होती हैं-(i) वैधानिक सभा, (ii) वार्षिक साधारण सभा, (iii) असाधारण सभा और (iv) वर्ग सभाएँ। 

(2) संचालक मण्डल की सभाएँ (Meetings of the Board of Directors)

कम्पना के संचालक ही, वास्तव में कम्पनी का प्रबन्ध करते हैं। अतः कम्पनी की नीति, प्रबन्ध, नियन्त्रण व अन्य महत्वपूर्ण बातों पर विचार संचालक मण्डल की सभाओं में किया जाता है। मविषया को छोड़कर जिनके बारे में निर्णय करने का अधिकार अंशधारियों को होता है, साका विषयों पर विचार करने के लिए संचालक-मण्डल की सभाओं में मदद ली जाती है। 

कम्पनी की सभाएँ एवं प्रस्ताव/ 38 इन सभाओं को मख्यत: निम्न कार्य के लिए बुलाया जाता है—

  • अंशों का वितरण करने के लिये,
  • अंशों की याचना करने के लिये,
  • अंशी का हस्तान्तरण करने के लिये,
  • लाभांश दर निश्चित करने के लिये,
  • कम्पनी की कठिनाइयों पर विचार करने तथा

कम्पनी की नीति निर्धारित करने के लिए आदि ।

(3) लेनदारों की सभाएँ (Meetings of Creditors)-

जब कम्पनी का पुनसंगठन या पुनर्निर्माण होता है, तब लेनदारों की सभा करने की आवश्यकता पडती है । कम्पनी द्वारा या उसके किसी लेनदारों या न्यायालय में प्रार्थना-पत्र देने पर न्यायालय कम्पनी के लेनदारी की सभा करने की आज्ञा दे सकता है । कम्पनी की जो योजनाएँ लेनदारों के हितों को प्रभावित करती हैं, उनके लिए लेनदारों की सभाएं की जाती हैं, ताकि उनकी सहमति प्राप्त की जा सके।

(4) ऋणपत्रधारियों की सभाएँ (Meetings of Debenture-holders)

यदि कम्पनी ने ऋण-पत्र के निर्गमन द्वारा पूँजी प्राप्त की है, तो वह ऋणपत्रधारियों की सभा बुलान की योजना बनाती हैं । ऋणपत्रधारियों की सभा वुलाने से सम्बन्धित नियमों का, ऋणपत्रों की शों में,जो कि ऋणपत्र प्रलेख के पीछे छपे रहते हैं,उल्लेख होता है । यदि कम्पनी ऋणपत्रधारियों को दिये जाने वाले व्याज की दर कम करना चाहे तो इसके लिए ऋणपत्रधारियों की स्वीकृति लेना आवश्यक है । शोधनीय ऋणपत्रों की स्वीकृति प्राप्त करने हेतु इनकी सभाओं का आयोजन करना आवश्यक है। समापन की दशा में कम्पनी का निस्तारक किसी समझौता योजना के लिए ऋणपत्रधारियों की सभा बुला सकता है। 

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कम्पनी सभा के आयोजन के सम्बन्ध में वैधानिक प्रावधान 

(Legal Provisions for Holding a Company Meeting)

कम्पनी के सभी निर्णय सभाओं द्वारा किये जाते हैं अत: यह आवश्यक है कि सभाओं का आयोजन वैध तरीके से किया जाये । कम्पनी अधिनियम में एक वैध सभा के आवश्यक प्रावधानों का उल्लेख किया गया है जो निम्नलिखित हैं 

(1) उचित अधिकारी द्वारा सभा का बुलाना-सभा की वैधता के लिये आवश्यक है कि उसका आयोजन उसी अधिकारी द्वारा होना चाहिये जो उसके लिये अधिकृत है। अर्थात सभा तभी वैध मानी जायेगी जबकि उसे उचित अधिकारी द्वारा बुलाया जाये। सामान्यतः सभायें संचालकों द्वारा बुलायी जाती हैं । किन्तु यदि किसी कारण से संचालक सभायें नहीं बुलाते तो अंशधारी, कम्पनी लॉ बोर्ड या केन्द्रीय सरकार द्वारा भी सभायें बुलायी जा सकती हैं। 

(2) सभा की उचित सूचना किसी भी सभा के वैधानिक रूप में होने के लिये यह आवश्यक है कि उन सभी व्यक्तियों को जो सभा में सम्मिलित होने के अधिकारी हैं, उन सभी को तिथि, समय, स्थान तथा कार्यक्रम के बारे में सूचित किया जाये । यह सूचना सभा की तिथि से कम से कम 21 दिन पूर्व लिखित रूप से भेजनी चाहिये।

(3) सभा की कार्य-सूची-किसी भी सभा में सम्पन्न किये जाने वाले कार्यों का विवरण कार्य सूची कहलाता है । सभा की कार्यवाही को सुचारू रूप से चलाने के लिये यह आवश्यक है कि सभा में किये जाने वाले कार्यों की एक सूची सचिव द्वारा पहले से तैयार की जाय तथा उसे सभा में सम्मिलित सदस्यों को भेज दी जाये ताकि वे उस पर विचार कर लें। प्रायः सभ में इस कार्य सूची में वर्णित क्रम से ही कार्यवाही की जाती है। 

(4) न्यूनतम कार्यवाहक संख्या या कोरम-न्यनतम कार्यवाहक संख्या से आशय समर की उस न्यूनतम संख्या से है जो किसी भी सभा की वैधता के लिये होना आवश्यक है। न्यूनतम सदस्य उपस्थित नहीं हैं तो सभा में की गई समस्त कार्यवाही व्यर्थ होती है । की सभा के सम्बन्ध में एक निजी कम्पनी की दशा में कम से कम दो तथा सार्वजनिक की दशा में कम से कम पांच सदस्यों की उपस्थिति अनिवार्य हैं। संचालक मण्डल की सभा के सम्बन्ध म कुल सचालका की संख्या का 1/3 या दो संचालक (जो भी अधिक हो) न्यूनतम संख्या होगी। 

यदि कोई सभा कोपम के अभाव में स्थगित कर दी जाती है तो यह सभा दूसरे सप्ताह में उसी समय, उसी स्थान पर पुनः होगी और यदि पुनः की जाने वाली इस सभा में भी सभा के समय से आधे घण्टे के अन्दर कोरम पूरा नहीं होता तो जो भी सदस्य उपस्थित हैं, उन्हें कोरम माना जायेगा और सभा की कार्यवाही की जायेगी। 

(5)सभा की अध्यक्षता-सभा की कार्यवाही सुचारू रूप से चलाने के लिये यह आवश्यक है कि सभा में एक अध्यक्ष हो । अध्यक्ष से आशय उस व्यक्ति से होता है जो किसी सभा की अध्यक्षता करने और उसकी कार्यवाही को संचालित करने के लिये सभा से पूर्व या सभा के समय चुना जाता है । प्रायः संचालक मण्डल का अध्यक्ष ही साधारण सभा के भी अध्यक्ष का कार्य करता है । किन्तु यदि वह असमर्थता प्रकट करता है तो जो सदस्य वहाँ उपस्थित होते हैं उन्हीं में से किसी एक को अध्यक्ष पद पर चुना जाता है । कानून के अन्तर्गत ऐसे व्यक्ति के लिये कोई वैधानिक योग्यतायें निर्धारित नहीं हैं।

(6) प्रावेदन एवं प्रस्ताव कम्पनी की सभाओं में निर्णय प्रजातांत्रिक तरीके से लिये जाते हैं। अतः कोई भी सदस्य कार्य सूची के आधार पर अध्यक्ष की अनुमति से कोई सुझाव सभा में विचार हेतु प्रस्तुत कर सकता है । यह सुझाव प्रावेदन है । जब इस सुझाव को उसी रूप में या संशोधित रूप में उपस्थित सदस्यों द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है तो उसे प्रस्ताव का संकल्प कहते हैं। 

(7) सभा की मन: स्थिति-सभा में सदस्यों द्वारा रखे गये प्रावेदन पर पर्याप्त विचार विमर्श के बाद उपस्थित सदस्यों की मन:स्थिति का पता लगाया जाता है। यदि सभी सदस्य उस प्रावेदन के पक्ष में होते हैं तो वे प्रावेदन सर्वसम्मति से स्वीकृत माना जाता है और वह इस प्रकार प्रस्ताव बन जायेगा। यदि सदस्य उस प्रावेदन के विपक्ष में होते हैं तो वह प्रावेदन अस्वीकृत हो जाता है और यदि कुछ सदस्य उस प्रावेदन का विरोध करते हैं और कुछ विरोध नहीं करते तो अध्यक्ष उस प्रावेद के सम्बन्ध में सदस्यों की मनःस्थिति जानने के लिये मतदान कराता है । यदि मतदान के बाद प्रावेदन स्वीकृत हो जाता है तो उसे प्रस्ताव कहते हैं।

(8) सभा का स्थान-सभा के स्थगन का आशय सभा को किसी भावी तिथि तक के लिये स्थगित कर देते हैं। स्थगन के पश्चात् पुनः आयोजित होने वाली सभा जिसे स्थगित सभा कहते हैं, मूल सभा का ही भाग मानी जाती है । अत: इसमें केवल वही कार्य सम्पन्न किये जाते हैं, जो मूल सभा में आयोजित नहीं किये जा सके थे। परन्तु वैधानिक सभा के सम्बन्ध में यह शर्त लागू नहीं होगी। 

कोई भी स्थगित सभा स्थगन की तिथि के 30 दिन के अन्दर आयोजित की जाती है तो नया नोटिस भेजना आवश्यक नहीं है । यदि 30वें दिन या इसके पश्चात् आयोजित की जाती है तो मूल सभा की भाँति नया नोटिस भेजा जाता है। 

(9) सभा के सूक्ष्म कम्पनी की सभाओं में की जाने वाली समस्त कार्यवाही और उसमें लय जाने वाले निर्णयों का पूर्ण लेखा-जोखा रखना आवश्यक है जिससे भविष्य में आवश्यकता पड़न पर जानकारी प्राप्त की जा सके और प्रमाण के रूप में उसका प्रयोग किया जा सके । इसके लिये यह आवश्यक है कि सभा के सूक्ष्म रखने चाहिये। 

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वैधानिक सभा 

(Statutory Meeting)

कम्पनी अधिनियम, 2013 के अनुसार, “प्रत्येक अंश द्वारा सीमित दायित्व वाली कम्पनी और गारण्टी द्वारा सीमित दायित्व वाली कम्पनी, जिसमें अंश पूँजी है, के लिए अनिवार्य है कि वह व्यापार प्रारम्भ करने के लिए अधिकृत होने की तिथि के कम से कम एक माह पश्चात और अधिक से अधिक 6 माह के भीतर कम्पनी के सदस्यों की एक सभा बुलाये, जिसे वैधानिक सभा (Statutory Meeting) कहते हैं।” 

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आवश्यकता 

(Necessity)

वैधानिक सभा निम्नलिखित दो प्रकार की कम्पनियों के लिए ही बुलाना आवश्यक है (अ) अंशों द्वारा सीमित दायित्व वाली कम्पनी, और (ब) अंश पूँजी वाली गारण्टी द्वारा सीमित दायित्व वाली कंपनी । निम्नलिखित कम्पनियों को वैधानिक सभा बुलाने से मुक्त रखा गया है-

  • निजी कम्पनी
  • असीमित दायित्व वाली कम्पनी ।
  • बिना अंश पूँजी वाली गारण्टी द्वारा सीमित दायित्व वाली कम्पनी ।
  • कोई विद्यमान निजी कम्पनी जिसे बाद में सार्वजनिक कम्पनी में परिवर्तित किया जाता है।

वैधानिक सभा के उद्देश्य 

(Objects of Statutory Meetings)

वैधानिक सभा बुलाने का मुख्य उद्देश्य सदस्यों को कम्पनी के निर्माण से सम्बन्धित जानकारी देना होता है, लेकिन फिर भी सदस्यों को इस सभा से मुख्यतः निम्न सूचनाएँ प्राप्त हो जाती हैं 

(1) कम्पनी को अंशों के निर्गमन से कितना धन प्राप्त हआ है।

(2) इस राशि में से किये गये व्ययों का विवरण ।

(3) कम्पनी द्वारा खरीदी गई व खरीदी जाने वाली सम्पत्तियों का विवरण।

(4) कम्पनी द्वारा किये गये मुख्य अनुबन्ध व अभिगोपन के समझौते। 

(5) कम्पनी को वर्तमान वित्तीय स्थिति व भावी विकास की सम्भावनाएँ। 

(6) सभा में प्रस्तुत की जाने वाली वैधानिक रिपोर्ट के अन्तर्गत अंशों के आवंटन, प्राप्त व भुगतान की गई राशि, प्रारम्भिक व्यय, अभिगोपन समझौते आदि का उल्लेख किया जाता 

(7) सभा में वैधानिक रिपोर्ट में दिये गये विषयों के अतिरिक्त भी किसी अन्य विषय में विचार-विमर्श किया जा सकता है। यदि सदस्यों द्वारा इस आशय की सूचना उचित रूप से दे दी जाती है। यह उल्लेखनीय है कि वैधानिक सभा का विशेष महत्व है। यंट तापी में केवल एक ही बार बुलायी जाती है और कम्पनी की प्रथम व्यापक सभा होती है। यही वह सभा है, जिसम सदस्या को सर्वप्रथम अपने विचार प्रकट करने का अवसर मिलता है और वे कम्पनी की वास्तविक स्थिति से परिचित होते हैं। 

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वैधानिक नियम 

(Legal Provisions)

अनिवार्यता प्रत्येक सीमित अंश पूँजी वाली पब्लिक कम्पनी (अंश सीमित तथा गारण्टी द्वारा सीमित) के लिये यह बैठक करना अनिवार्य है। प्राइवेट कम्पनी. असीमित कम्पनी या अंशरहित गारण्टी कम्पनी के लिये यह बैठक करने की आवश्यकता नहीं है। 

समय सीमा–यह बैठक व्यापार आरम्भ करने का प्रमाण-पत्र मिलने के दिन से कम से कम एक माह और अधिक से अधिक 6 महीने के भीतर बुलायी जायेगी। 

संकल्प पारित करना-इस बैठक में वही संकल्प पारित किया जा सकता है, जिसकी विधिवत सूचना 21 दिन पहले देना आवश्यक है। जिन कार्यों के लिये कम्पनी अधिनियम में विशेष सूचना देना अनिवार्य है, उनके लिये 14 दिन की सूचना दिये जाने का नियम है। किन्तु वैधानिक बेठक समय-समय पर स्थगित की जा सकती है और उस स्थगित बैठक में संकल्प पारित हो सकता है, यदि सूचना सम्बन्धी नियम की पूर्ति हो गयी है अर्थात् यदि स्थगित बैठक की तिथि को सूचना देने की अवधि से सम्बन्धित नियम का पालन हो चुका हो, तब वह संकल्प पारित किया जा सकता है। 

स्थगित बैठक के अधिकार-जब कोई वैधानिक सभा या बैठक स्थगित की जाती है, तो स्थगित बैठक में सदस्यों और कम्पनी के अधिकार बिल्कुल वही होंगे, जो मूल बैठक में होते नियम भंग का दण्ड-यदि बैठक के किसी भी नियम को भंग किया जाता है, तो दोष निदेशक या अन्य किसी अधिकारी पर 5,000 रु० तक जुर्माना लगाया जा सकता है। वैधानिक रिपोर्ट कम्पनी अधिनियम के अन्तर्गत कम्पनी के निदेशक मण्डल को एक रिपोर्ट कम्पनी के सदस्यों के समक्ष प्रस्तुत करनी होती है । इसे वैधानिक रिपोर्ट’ कहते हैं। 

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वैधानिक सभा के सम्बन्ध में सचिव के कर्त्तव्य 

(Duties of Secretary Regarding Statutory Meeting)

वैधानिक सभा के सम्बन्ध में सचित द्वारा अनेक कार्य किये जाते हैं, जिन्हें अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से निम्नलिखित तीन

शीर्षकों में विभाजित किया जा सकता है

सभा के पूर्व के कर्त्तव्य (Duties before the Meeting) 

(1) सभा की तिथि, समय एवं स्थान निर्धारित करना-अधिनियम में निर्धारित अवधि के भीतर सभा बुलाने की व्यवस्था करना, अर्थात् यह देखना कि वैधानिक सभा कम्पनी द्वारा व्यापार प्रारम्भ करने के लिए अधिकृत होने की तिथि से कम से कम एक माह पश्चात् और अधिक से अधिक 6 माह के भीतर बुला ली गई है। 

(2) निर्धारित प्रारूप में वैधानिक रिपोर्ट तैयार करना । (3) सदस्यों को भेजी जाने वाली सभा की सूचना तैयार करना। 

(4) वैधानिक रिपोर्ट व सभा की सूचना पर विचार करने व उनका अनुमोदन करने के लिए संचालक मण्डल की सभा का आयोजन करना। 

(5) संचालकों द्वारा प्रमाणित किये जाने के बाद रिपोर्ट में निर्दिष्ट प्राप्तियों व भुगतानों स सम्बन्धित विवरण को अंकेक्षकों द्वारा प्रमाणित कराना । 

(6) संचालकों के निर्देशानुसार वैधानिक रिपोर्ट, तथा सभा की सूचना व कार्यावली (Agenda) को छपवाना।

(7) सभा की तिथि से कम से कम 21 दिन पूर्व सभा की सूचना सदस्यों को भेजना। सभा की सूचना के साथ वैधानिक रिपोर्ट की प्रतिलिपि संलग्न की जाती है ।

(8) वैधानिक रिपोर्ट को सदस्यों के पास भेजने के पश्चात इस रिपोर्ट की एक प्रतिलिपि रजिस्ट्रार को भेजना। 

(9) सदस्यों की सूची तैयार करना इस सूची में सदस्यों के नाम, पते, व्यवसाय, उनके द्वारा लिये हुए अंशों की संख्या आदि का उल्लेख किया जाता है। 

(10) वैधानिक सभा की सूचना को स्थानीय समाचार-पत्रों में प्रकाशित कराना एवं सभा भवन की व्यवस्था करना-सदस्यों को बैठने, आवश्यक कागज, पेन्सिल आदि की व्यवस्था, अध्यक्ष की मेज पर सभा की सूचना, कार्यावली, वैधानिक रिपोर्ट व आवश्यक स्टेशनरी रखना आदि । इसके अतिरिक्त, अध्यक्ष द्वारा माँगे जा सकने वाले कम्पनी के महत्वपूर्ण प्रलेखों को तैयार रखना।

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सभा के समय के कर्त्तव्य (Duties at the Meetings) 

(1) सभा में उपस्थित सभी सदस्यों के हस्ताक्षर करवाना। 

(2) यह पता लगाने में सभापति (अध्यक्ष) की सहायता करना कि सभा में कार्यवाहक संख्या उपस्थित है या नहीं।

(3) सभापति के निर्देश पर सभा की सूचना को पढ़ना। 

(4) यदि अध्यक्ष की आज्ञा हो, तो वैधानिक रिपोर्ट पढ़कर सुनाना । 

(5) सभा में की जाने वाली कार्यवाही की टिप्पणियाँ लेना, जिससे सभा के सूक्ष्म लिखने में आसानी रहें । 

(6) सभा के संचालन में अध्यक्ष की सहायता करना। इस हेतु वह सभापति या सदस्यों द्वारा माँगी जाने वाली सूचनाएँ, स्पष्टीकरण आवश्यक प्रलेख आदि उपलब्ध कराता है। . 

(7) मतदान कराने में सभापति की सहायता करना और सभापति के निर्देशानुसार मतदान की व्यवस्था करना। 

(8) सभा के समय सदस्यों के निरीक्षण हेतु सदस्यों की सूचना को खुला रखना।

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सभा के पश्चात् के कर्तव्य (Duties after the Meeting) 

(1) सभा के दौरान ली गई टिप्पणियों के आधार पर सभा के सूक्ष्म को सूक्ष्म-पुस्तिका में लिखना। 

(2) सभा के सूक्ष्म को सभापति द्वारा प्रमाणित कराना।

(3) यदि इस सभा में कोई विशेष प्रस्ताव पारित किया गया हो, तो उसकी प्रतिलिपि कम्पनी रजिस्ट्रार के पास सभा समाप्त होने के तीन दिन के अन्दर सचिव द्वारा भेजा जाना।

(4) सभा में पारित किये गये प्रस्तावों के लिये गये निर्णय का क्रियान्वयन करना। 

(5) यदि वैधानिक सभा का स्थगन किया गया हो, तो ऐसी स्थगित सभा को बुलाने की व्यवस्था भी सचिव द्वारा ही की जाती है। 

इस प्रकार वैधानिक सभा के सूक्ष्म तैयार करने से लेकर सम्बन्धित पक्षों को विधिवत सूचना देना तथा सभा में पारित प्रस्तावों से अवगत कराना आदि कम्पनी सचिव के महत्त्वपूर्ण कार्य होते हैं। 

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प्रस्ताव 

(Resolution)

एक प्रस्तावित प्रस्ताव या ‘सुझाव’ (Motion) जब अंश धारियों के आवश्यक बहमत द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है, तो वह प्रस्ताव (Resolution) का रूप धारण कर लेता है। दसरे शब्दों में स्वीकृत ‘सुझाव’ को ही प्रस्ताव कहते हैं। ऐसा सझाव उसी रूप में या संशोधनों के साथ स्वीकार किया जा सकता है। 

प्रस्ताव के प्रकार 

(Kinds of Resolution)

कम्पनी अधिनियम के अन्तर्गत निम्न तीन प्रकार के प्रस्तावों को मान्यता प्राप्त है

(1) साधारण प्रस्ताव (Ordinary Resolution) 

साधारण प्रस्ताव का अर्थ ऐसे प्रस्ताव से है, जो सदस्यों के सामान्य बहुमत (Simple Majority) से पारित किया जाता है। सामान्य बहुमत का आशय है कि प्रस्ताव के पक्ष में कुल प्रयुक्त वैध मतों के 50 प्रतिशत से अधिक मत प्राप्त हों । यह उल्लेखनीय है कि साधारण बहुमत की गणना करते समय सदस्यों द्वारा दिये गये वैध मतों या दिखाये गये हाथों (Show of hands) को गिना जाता है न कि सभा में उपस्थित सदस्यों को। इस प्रकार यदि कुछ सदस्य मतदान में भाग नहीं लेते या उनके द्वारा दिये गये मत अवैध घोषित हो जाते हैं, तो साधारण बहुमत की गणना करते समय उनकी गिनती नहीं की जाती है। साधारण प्रस्ताव पारित करते समय सभा का अध्यक्ष स्वतन्त्र मत दे सकता है, यदि अन्तर्नियमों से ऐसी व्यवस्था है। इसी प्रकार किसी प्रस्ताव के पक्ष और विपक्ष में बराबर मत आने पर अध्यक्ष को निर्णायक मत (Casting vote) देने का अधिकार भी अन्तर्नियमों द्वारा प्रदान किया जा सकता है। 

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साधारण प्रस्ताव द्वारा किये जाने वाले कार्य 

(Business transactions with ordinary resolution)

ऐसे सभी कार्य जिनके निर्णय के लिए विशेष प्रस्ताव पारित करने की आवश्यकता नहीं होती है, वे साधारण प्रस्ताव पारित करके ही किये जाते हैं। साधारण प्रस्ताव द्वारा किये जाने वाले कार्य निम्न हैं 

(1) साधारण कार्य (Ordinary Business) 

(i) कम्पनी के अन्तिम खातों व उनसे सम्बन्धित संचालकों व अंकेक्षकों के प्रतिवेदन को स्वाकार करना।

(ii) लाभांश घोषित करना।

(iii) रिटायर हुए संचालकों के स्थान पर सचालको की नियुक्ति करना (iv) अंकेक्षकों की नियुक्ति करना व उनका पारिश्रमित निश्चित 

करना। 

(2) विशेष कार्य (Special Business) उपर्युक्त के अन्तर्गत ऐसे विशेष कार्य भी साधारण प्रस्ताव पारित करके किये जा सकते हैं, जिनके लिए विशेष प्रस्ताव पारित करने की आवश्यकता नहीं होती, परन्तु ऐसे विशेष कार्यो के लिए पूर्व सूचना देना आवश्यक होता है। साधारण प्रस्ताव पारित करके किये जाने वाले कुछ विशेष कार्य निम्नलिखित हैं 

(i) वैधानिक रिपोर्ट स्वीकार करना।

(ii) बट्टे पर अंशों का निर्गमन करना ।

(iii)अंश पूजा में परिवर्तन (Alteration) करना ।

(iv) अन्तर्नियमों द्वारा निर्धारित सीमा के अन्तर्गत संचालकों की संख्या में कमी या वृद्धि करना

  • किसी संचालक को उसके पद से हटाना।
  • एकाकी विक्रय एजेन्टों की नियुक्ति करना।
  • संचालकों को कम्पनी के कारोबार को बेचने के लिए अधिकृत करना ।
  • विशिष्ट दशाओं में कम्पनी का ऐच्छिक समापन करना ।
  • अन्तर्नियमों के अनुसार अन्य कोई कार्य करना ।

यह उल्लेखनीय है कि ऐसे सभी कार्यों के लिए साधारण प्रस्ताव पारित करना ही पर्याप्त है, जब तक कि कम्पनी अधिनियम या अन्तर्नियमों के अन्तर्गत कोई विपरीत बात न दे दी गई हो। 

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विशेष प्रस्ताव (Special Resolution) 

कम्पनी अधिनियम 2013 के अनुसार एक प्रस्ताव विशेष प्रस्ताव कहलाता है,जबकि 

1. व्यापक सभा की सूचना देते समय प्रस्ताव को विशेष प्रस्ताव के रूप में प्रस्तुत करने का इरादा (intention) स्पष्ट कर दिया गया हो। 

2. अधिनियम के अन्तर्गत आवश्यक व्यापक सभा की सूचना उचित रूप में दे दी गई हो । (अर्थात् सभा की सूचना कम से कम 21 दिन पूर्व भेज दी गई हो) 

3. प्रस्ताव के पक्ष में प्राप्त मतों की संख्या विपक्ष में प्राप्त मतों से कम से कम तीन गुन हो (अर्थात् 3/4 या इससे अधिक मत प्रस्ताव के पक्ष में प्राप्त हों)। इस प्रकार स्पष्ट है कि विशेष प्रस्ताव कम से कम तीन-चौथाई या 75 प्रतिशत बहुमत से पारित किया जाता है। ऐसे प्रस्ताव को प्रस्तुत करने की सूचना कम से कम 21 दिन पूर्व दी जानी चाहिए और ऐसी सूचना में विशेष प्रस्ताव किये जाने का इरादा भी स्पष्ट कर देन चाहिए। 

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विशेष प्रस्ताव द्वारा किये जाने वाले कार्य (Business transactions with Special Resolution)

कम्पनियों द्वास सभी महत्वपूर्ण विशेष प्रस्ताव पारित करके ही किये जाते हैं । निम्नलिखि कार्यों के लिए विशेष प्रस्ताव पारित करने की आवश्यकता होती है 

(i) कम्पनी के पार्षद सीमानियम में परिवर्तन करने के लिए। 

(ii) कम्पनी के पार्षद अन्तर्नियमों में परिवर्तन करने के लिए।

(iii) संचित पूँजी (Reserve Capital) का निर्माण करने के लिए। 

(iv) अंश पूँजी में कमी करने के लिए। 

(v) रजिस्टरों व प्रत्यायों (Returns) को कम्पनी के रजिस्टर्ड कार्यालय के अतिरि अन्य स्थान पर रखने के लिए।

(vi) 50 लाख रुपये या इससे अधिक प्रदत्त पूँजी वाली कम्पनी के लिए एकाको विन एजेण्ट को नियुक्ति करने के लिए। 

(vii) पूँजी में से ब्याज का भुगतान करने के लिए। 

(viii) संचालकों व कम्पनी के अन्य अधिकारियों के दायित्व को असीमित करन लिए। 

(ix) अन्वेषण (Investigation) की मांग करने के लिए।

(x) किसी संचालक को लाभ का स्थान ग्रहण करने के लिए। 

(xi) कम्पनीको पार्थित भेश एबी Subscribed Star Cavital) को प्रतिशत मा मधिक भाग पर सरकार या सार्वजनिक वित्तीय संस्थाको मादिका मक्षिकार होने की दशा में भक्षकों की नियुक्ति या पुनर्नियुक्ति करने के लिए। 

(xii) एक ही प्रबन्ध के अन्तर्गत भाने वाली कम्पनियों को ना देने के लिए।

(xiii) कम्पनी के अनिवार्य समापन हेतु न्यायालय को प्रार्थना पत्र देने के लिए। (Ain’) संचालकों के पारिमिक निर्धारण के लिए (यदि अन्तर्निगगों द्वारा आवश्यक हो)।

(xiv) कमानी का ऐति समापन करने के लिए। 

(xv) ऐकिक समापन की अवस्था में निस्तारक को कम्पनी की सम्पत्तियों के विक्रम के प्रतिफल में अन्य कम्पनियों के श स्वीकार करने का अधिकार देने के लिए। 

(xvi)किसी भी वर्ग के अशधारियों के अधिकारों में परिवर्तन के लिए।

(xviii) कम्पनी की मूलभूत संरचना में परिवर्तन करने के लिए। Aviv) अन्य कोई भी ऐसा कार्य करने के लिए जिसके लिए सलानियमों में विशेष प्रस्ताव 

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विशेष सूचना वाले प्रस्ताव (Resolutions requiring Special)

विशेष सूचना वाले प्रस्ताव से आशय ऐसे प्रस्ताव से है जिसे प्रस्तुत कने वाल सदस्य का इसको सूचना सभा के कम से कम 14 दिन पर्व को भेजनी होती है। इन 14 दिन का गणना करते समय सभा के दिन व सचना प्राप्ति के दिन को सम्मिलित नहीं किया जाता । एस प्रस्ताव के सम्बन्ध में कम्पनी को सभी सदस्यों को सूचना देनी होती है । यह सूचना सभा हान स कम से कम (स्पष्ट रूप से) 7 दिन पूर्व सभी सदस्यों को भेजी जाती है । यदि पृथक स सभा सदस्यों को सूचित करना सम्भव न हो. तो समाचार-पत्र के माध्यम से सभी सदस्यों का एस प्रस्ताव के सम्बन्ध में सूचित किया जाता है। इस प्रकार विशेष सूचना वाले प्रस्ताव का प्रस्तुत करने से पूर्व सम्बन्धित सदस्य द्वारा सूचना सभी सदस्यों को सभा से कम से कम 7 दिन पूर्व सभा की सूचना के साथ भेजी जाती है या समाचार-पत्र के माध्यम से या अन्तर्निया में दी गई विधि से दी जाती है। विशेष सूचना वाले प्रस्ताव को साधारण अथवा विशेष प्रस्ताव के रूप में जेसी भी आवश्यकता हो, पारित किया जा सकता है। ऐसे प्रस्तावों का उद्देश्य कम्पनी के सदस्यों को विस्तृत विचार हेतु पर्याप्त समय व अवसर देना है। bcom 2nd year company meeting notes in hindi

विशेष सूचना वाले प्रस्ताव द्वारा (Business Transaction with Special Notice Resolution)

निम्नलिखित कार्यों से सम्बन्धित प्रस्तावों के लिए विशेष सूचना की आवश्यकता होती 

है

(1) रिटायर होने वाले अंकेक्षक के अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति को नियुक्त करने के 

(2) रिटायर होने वाले अंकेक्षक की पुनर्नियुक्ति न करने हेतु स्पष्ट घोषणा या प्रावधान के लिए। 

(3) किसी संचालक को उसके कार्यकाल की समाप्ति से पूर्व हटाने के लिए। 

(4) इस प्रकार हटाये गये संचालक के स्थान पर किसी अन्य व्यक्ति की नियुक्ति करने के लिए। 

इस प्रकार एक कम्पनी में उपर्युक्त तीनों प्रस्तावों का अपना-अपना पृथक महत्त्व होता है। 

सूक्ष्म 

(Minutes)

सूक्ष्म से आशय कम्पनी की विभिन्न प्रकार की सभाओं में होने वाले कामकाज और निर्णयों के लिखित विवरण से है। दूसरे शब्दों में किसी सभा की कार्यवाहियों के संक्षिप्त लिखित विवरण को उस सभा का सूक्ष्म या कार्यवाही कहा जाता है । 

ली एण्ड बार के अनुसार, “कम्पनी के संचालकों अथवा अंशधारियों की सभा की कार्यवाहिया, किये गये काम-काज तथा लिये गये निर्णयों के लिखित अभिलेख के रूप में सक्षम को परिभाषित किया जा सकता है।” 

पामर के अनुसार, “सूक्ष्म सभा में किये गये कार्यों का लिखित अभिलेख है।” उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि किसी सभा की कार्यवाही का सार ही उसका सक्षम होता है।

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सूक्ष्म के उद्देश्य (Objects of Minutes)

सूक्ष्म निम्नलिखित उद्देश्यों के लिये तैयार किये जाते हैं –

(1) सभा में किये गये कार्यों एवं लिये गये निर्णयों के स्थायी रिकार्ड तैयार करने के लिये। 

(2) विवाद के समय साक्षी के रूप में प्रस्तुत करने के लिये। 

(3) सभा की कार्यवाही ही स्मृति को सबूत या प्रमाण के रूप में रखने के लिये। 

सूक्ष्म की विशेषताएँ

(Characteristics of Minutes)

सूक्ष्म की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं 

(1) सूक्ष्म में इस बात का स्पष्ट उल्लेख होना चाहिये कि सभा किसकी है। इसके अतिरिक्त सभा की तिथि,स्थान,सभा के अध्यक्ष का नाम,उपस्थित सदस्यों की संख्या, उपस्थित संचालकों के नाम आदि बातों का वर्णन होना चाहिए। 

(2) सूक्ष्म में केवल वास्तविक या व्यावसायिक वाद-विवाद एवं उन पर लिये गये निर्णयों का वर्णन होता है। 

(3) सूक्ष्म को संक्षिप्त और सरल भाषा में लिखा जाना चाहिये।

(4) सूक्ष्म में केवल सही तथ्यों का उल्लेख होना चाहिये। (5) इसमें प्रस्तावकों एवं अनुमोदनकर्ताओं के नाम का उल्लेख रहता है। 

(6) प्रस्ताव के पारित होने पर अध्यक्ष द्वारा प्रस्ताव पारित होने की घोषणा तथा उस प्रस्ताव के पक्ष-विपक्ष में पड़े मतों की संख्या का उल्लेख होता है। 

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सूक्ष्म तैयार करते समय ध्यान देने योग्य बातें (Points to be considered While Preparing Minutes)

सूक्ष्म सचिव द्वारा लिखे जाते हैं अत: उसे संक्षिप्तीकरण कला में निपुण तथा भाषा का अच्छा ज्ञान होना चाहिये। इसके साथ-साथ सूक्ष्म लिखते समय उसे निम्न बातों को भी ध्यान में रखना चाहिये

(1) उचित शीर्ष एवं क्रमांक –

सभा के सूक्ष्म का एक उचित शीर्षक होना चाहिये, जो सभा का स्वभाव, दिन, समय और स्थान बताये। इसके अतिरिक्त सभा तथा सूक्ष्म की क्रम, संख्या, भी होनी चाहिये।

(2) पृथक् शीर्षक व क्रम संख्या-

सूक्ष्म में प्रत्येक मद के लिये पृथक् शीर्षक व क्रम सख्या डालनी चाहिये ताकि संदर्भ खोजने में सुविधा रहे।

(3) उपस्थित सदस्यों के नाम-

सभा में सदस्य की हैसियत से उपस्थित सदस्य तथा अन्य किसी हैसियत से उपस्थित व्यक्तियों के नाम दिये जाने चाहिये।

(4) विचार-विमर्श का संक्षिप्त विवरण-

प्रस्ताव पर हये विचार-विमर्श का एक संक्षिप्त विवरण प्रस्तावक व अनुमोदनकर्ता के नाम सहित दिया जाना चाहिये। 

(5) सन्दर्भ व उसकी तिथि-

यदि सूक्ष्म में कहीं प्रतिवेदनों, प्रपत्रों व अभिलेखों का हवाला आया हो तो उसकी तिथि क्रमांक आदि का सन्दर्भ होना चाहिये। 

(6) सूक्ष्म का पुष्टिकरण-

सूक्ष्म पर अध्यक्ष द्वारा हस्ताक्षर करना ‘सूक्ष्म पुष्टिकरण’ कहा जाता है। इसके लिये अध्यक्ष सचिव से पिछली सभा पढ़ने को कहता है। अध्यक्ष की आपत्ति के न होने पर सूक्ष्म पर अनुमोदित या पुष्टिकृत लिखकर तिथि सहित अपने हस्ताक्षर कर देता 

(7) सूक्ष्म की सूची-

प्रत्येक सभा के सूक्ष्म पर क्रम संख्याएँ डाल दी जाती हैं और फिर वर्णन-क्रमानुसार सूची बनाई जाती है।

(8) बहुमत सम्बन्धी उल्लेख-

जब किसी प्रस्ताव की स्वीकृति के लिये एक निश्चित बहुमत की आवश्यकता हो, तब सूक्ष्म में प्रस्ताव के स्वीकार होने से सम्बन्धित पड़े पक्ष और विपक्ष मतों की संख्या देनी चाहिये। 

(9) अध्यक्ष से अनुमोदन-

सचिव सूक्ष्म का एक रफ ड्राफ्ट बनाकर अध्यक्ष के अनुमोदन करने, (आवश्यक संशोधनों सहित) के बाद उसे सूक्ष्म पुस्तिका में लिखता है। 

(10) सूक्ष्म में परिवर्तन सम्भव नहीं-

एक बार लिखे गये सूक्ष्म में परिवर्तन करना सम्भव नहीं है । किन्तु यदि कोई लिपिकीय त्रुटियाँ हैं तो उनमें सुधार किया जा सकता है । सुधार पर अध्यक्ष के हस्ताक्षर करा लेना चाहिये। 

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सक्ष्म सम्बन्धी वैधानिक प्रावधान 

(Statutory Provisions Regarding Minutes)

सूक्ष्म से सम्बन्धित कम्पनी अधिनियम की प्रमुख व्यवस्थायें निम्नलिखित हैं

(1) कार्यवृत पुस्तिका में पृष्ठ संख्या क्रमवार होनी चाहिये। (2) कार्यवृत पुस्तिका में कागज पर लिखा कार्यवृत चिपकाना नहीं चाहिये। 

(3) कम्पनी की सामान्य सभाओं, संचालक मण्डल और संघात्मक समितियों को सभाओं के लिये अलग-अलग कार्यवृत पुस्तिका अनिवार्य हैं। 

(4) कार्यवृत पुस्तिका में सभा की कार्यवाहियों का उचित और सही सारांश लिखा जाना चाहिये। 

(5) सामान्य सभा की तिथि से 309 दिन के अन्दर सभा के कार्यवृत लिखकर उस सभा के अध्यक्ष से उसकी पुष्टि करानी चाहिए। संचालक मण्डल की सभा के कार्यवृत या पष्टिकरण इसी प्रकार या आगामी सभा में करा लेना चाहिये। 

(6) उपरोक्त प्रकार से तैयार किया गया कार्यवृत इस बात का साक्ष्य माना जाता है कि सभा और उसकी कार्यवाहियाँ नियमानुसार हुई हैं। 

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सूक्ष्म के सम्बन्ध में सचिव के कर्त्तव्य 

(Duties of Secretary Regarding Minutes)

सूक्ष्म के सम्बन्ध में सचिव के कर्तव्य निम्नलिखित हैं

(1) सभा की तिथि से 30 दिन के अन्दर सूक्ष्म तैयार कर लेना चाहिये।

(2) प्रत्येक सभा के लिये सूक्ष्म पुस्तिका’ अलग-अलग रखनी चाहिये। 

(3) सभा की तिथि, स्थान तथा प्रकृति आदि को स्पष्ट करने के लिये अलग अनुच्छदा की व्यवस्था होनी चाहिये। 

(4) सभा की कार्यवाही की संक्षिप्त किन्तु सुस्पष्ट व सरल भाषा में सूक्ष्म लिखना चाहिय।

(5) सूक्ष्म पुस्तिका के प्रत्येक पृष्ठ पर अध्यक्ष से हस्ताक्षर कराने चाहिये।

(6) सूक्ष्म प्रस्ताव के साथ विचार-विमर्श करने के बाद तैयार करना चाहिय। 

(7) सूक्ष्म प्रस्ताव के सम्बन्ध में हुये वाद-विवाद को न लिखकर केवल उससे सम्बन्धित तथ्यात्मक विवरण को लिखना चाहिये। 

(8) सूक्ष्मों को सुरक्षित रखना। 

वार्षिक साधारण सभा या व्यापक सामान्य सभा 

(Annual General Meeting)

वार्षिक साधारण सभा से आशय सदस्यों की ऐसी सभा से है जो कम्पनी अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार प्रतिवर्ष बुलाई जाती है। कम्पनी अधिनियम 2013 की धारा 96 के अनुसार प्रत्येक कम्पना का प्रत्येक वर्ष अन्य सभाओं के अतिरिक्त सदस्यों की एक व्यापक सामान्य सभा का आयोजन करना आवश्यक है,जिसे वार्षिक सामान्य सभा कहा जाता है । दो वार्षिक साधारण सभाओं के मध्य 15 माह से अधिक का अन्तर नहीं होना चाहिये, परन्तु एक कम्पनी अपनी प्रथम वार्षिक साधारण सभा अपने समामेलन का प्रमाणपत्र मिलने की तारीख से 18 माह के भीतर कर सकती है। 

वार्षिक व्यापक सभा के उद्देश्य 

(Object of Annual General Meeting)

कम्पनी की वार्षिक व्यापक सभा बुलाये जाने के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं

(1) कम्पनी के सदस्यों का कम्पनी के कार्य एवं प्रबन्ध पर अन्तिम नियन्त्रण बनाये रखना।

(2) कम्पनी के सदस्यों को कम्पनी के गत वर्ष के कार्यों एवं प्रगति से अवगत कराना।

(3) वार्षिक खातों की अन्तिम स्वीकृति प्राप्त करना।

(4) लाभांश घोषित करना। 

(5) सेवानिवृत अथवा अन्य कारणों से रिक्त होने वाले संचालकों के पदों पर नवीन संचालकों की नियुक्ति करना। 

(6) अंकेक्षकों की नियुक्ति करना। 

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वार्षिक व्यापक सभा से सम्बन्धित वैधानिक प्रावधान

(Statutory Provisions Regarding Annual General Meeting)

कम्पनी अधिनियम 2013 के अनुसार व्यापक सभा से सम्बन्धित वैधानिक प्रावधान निम्नलिखित हैं 

(1) प्रतिवर्ष सभा बलाना-

प्रत्येक कम्पनी के लिए प्रतिवर्ष वार्षिक व्यापक सभा बुलाना भावश्यक है । ऐसी सभा को सचना में इस बात का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया जाता है कि यह कम्पनी को वार्षिक व्यापक सभा है। 

(2)वाषेक व्यापक

सभाओं के मध्य समयान्तर कम्पनी का दो वार्षिक व्यापक मध्य 15 माह से अधिक का अन्तराल नहीं होना चाहिए। 

(3) प्रथम वार्षिक व्यापक सभा का समय-

कम्पनी द्वारा प्रथम वार्षिक व्यापक सभा का आयोजन समामेलन के 18 महीने के भीतर किसी भी समय किया जा सकता है।

(4) सभा की अवधि बढ़ाना-

किसी विशेष कारण की अवस्था में रजिस्ट्रार द्वारा वार्षिक व्यापक सभा बुलाने की अवधि को अधिक से अधिक 3 महीने के लिए बढ़ाया जा सकता है, परन्तु प्रथम वार्षिक व्यापक सभा बुलाने की अवधि में वृद्धि करने का अधिकार रजिस्ट्रार को नहीं है। 

(5) सभा का समय, स्थान व दिन-

कम्पनी की वार्षिक व्यापक सभा कम्पनी के कामकाज के घण्टों में किसी भी ऐसे दिन जो सार्वजनिक अवकाश का दिन नहीं हो, कम्पनी के रजिस्टर्ड कार्यालय में अथवा उस शहर या कस्बे या गाँव में जहाँ कम्पनी का रजिस्टर्ड कार्यालय स्थित है, किसी भी स्थान पर बुलायी जा सकती है। यह उल्लेखनीय है कि सभा का कामकाज के घण्टों में शुरू होना ही आवश्यक है और ऐसी सभा की कार्यवाही कामकाज के घण्टी के बाद तक जारी रह सकती है। यदि सभा की सूचना देने के बाद सभा के दिन सार्वजनिक अवकाश घोषित हो जाता है, तो भी ऐसे दिन सभा बुलायी जा सकती है। 

(6) केन्द्रीय सरकार द्वारा छूट (Exemption)

केन्द्रीय सरकार को यह अधिकार है कि यदि वह चाहे तो किसी भी कम्पनी को उन शर्तों के अन्तर्गत जिन्हें वह उपयुक्त समझे, सभा के समय, स्थान तथा दिन सम्बन्धी व्यवस्थाओं से मुक्त कर सकती है। 

(7) सभापति –

प्रायः कम्पनी के अन्तर्नियमों में यह उल्लेख होता है कि संचालक मण्डल का सभापित वार्षिक व्यापक सभा का भी सभापति होगा। परन्तु यदि अन्तर्नियमों में सभापति के लिए ऐसी व्यवस्था नही है, तो उपस्थित सदस्यों द्वारा सभापति का चुनाव किया जायेगा। 

(8) सभा की सूचना-

वार्षिक व्यापक सभा की सूचना सभा से कम से कम 21 दिन पूर्व दिया जाना आवश्यक है, किन्तु यदि सभा में मत देने का अधिकार रखने वाले सभी सदस्य कम अवधि की सूचना पर सहमति दे देते हैं, तो कम अवधि की सूचना देकर भी यह सभा बुलायी जा सकती है। 

(9) कार्यवाहक संख्या

सामान्यतः प्रत्येक कम्पनी के अन्तर्नियमों में कार्यवाहक संख्या का उल्लेख रहता है। यह संख्या अधिनियम द्वारा निर्धारित न्यूनतम संख्या से कम नहीं होनी चाहिए। यदि कम्पनी के अन्तर्नियमों में कार्यवाहक संख्या का उल्लेख नहीं है. तो सार्वजनिक कम्पनी की दशा में कम से कम 5 तथा निजी कम्पनी की दशा में कम से कम 2 सदस्यों का वार्षिक व्यापक सभा में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होना आवश्यक है। 

(10) स्थगित सभा

यदि कम्पनी की किसी वार्षिक सभा को स्थगित किया जाता है, तो ऐसी स्थगित सभा में केवल उन्हीं विषयों पर विचार किया जा सकता है, जिन पर पिछली सभा में विचार नहीं किया जा सका। 

(11) स्थगित सभा की सूचना-

यदि वार्षिक व्यापक सभा का स्थगन 20 दिन या इससे अधिक अवधि के लिए किया जाता है तो ऐसी स्थगित सभा की सूचना सदस्यों को उसी प्रकार दी जायेगी, जैसे-मूल वार्षिक व्यापक सभा की दी जाती है। अन्य शब्दों में 20 दिन या अधिक अवधि के लिए स्थगित करने पर सभा की सूचना 21 दिन पूर्व दी जायेगी। 

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असाधारण सभा या असाधारण सामान्य सभा 

(Extra-ordinary General Meeting) 

कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 100 के अनुसार, वैधानिक बैठक एवं सामान्य सभा को छोड़कर कम्पनी का अन्य किसी भी सामान्य बैठक को ‘असाधारण सामान्य सभा’ कहा जाता है। कम्पना द्वारा किसी भी समय असाधारण व्यापक सभा बलायी जा सकती है। असाधारण व्यापक सभा ऐसे कार्यों को करने के लिए बलायी जाती है. जिन पर निर्णय के लिए आगामी वार्षिक सभा तक इन्तजार करना सम्भव न हो जैसे—पार्षद सीमा नियम में परिवर्तन. ऋणपत्रों का निर्गमन आदि। 

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कार्य का उद्देश्य 

(Functions or Objectives)

साधारणतया एक असाधारण व्यापक सभा निम्नलिखित कार्यों के लिए बुलाई जा सकती 

(1) पार्षद सीमानियम एवं अन्तर्नियम में परिवर्तन करना।

(2) अंश पूँजी में परिवर्तन करना।

(3) अंशों को बट्टे पर निर्गमित करना।

(4) ऋणपत्रों को निर्गमित करना।

(5) पंजीकृत कार्यालय को एक राज्य से दूसरे राज्य में ले जाना।

(6) संचालकों के पारिश्रमिक में वृद्धि करना।

(7) कम्पनी के विलयन, एकीकरण अथवा समापन पर विचार करना ।

(8) संचालकों को ऋण प्रदान करना। 

(9) अन्य कोई कार्य, जिसमें सदस्यों की स्वीकृति लेना आवश्यक हो । उदाहरण के लिए, 29 अप्रैल, 1984 को भारत के उच्चतम न्यायलय ने जीवन बीमा निगम को यह अधिकार प्रदान किया कि वह एस्कोर्ट संचालक मण्डल का पुनर्गठन करने के लिए असाधारण व्यापक सभा बुला सकता है। 

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सभा की सम्मति अथवा मतदान 

(Sense or Voting of the Meeting)

जब किसी विषय या सुझाव पर पर्याप्त विचार-विमर्श हो जाता है, तो उस पर अन्तिम निर्णय करने के लिए सभापति को सभा की सम्मति ज्ञात करना आवश्यक है। इस हेतु प्रायः मतदान का सहारा लिया जाता है। यदि सुझाव के पक्ष में आवश्यक मत प्राप्त हो जाते हैं, तो वह स्वीकृत मान लिया जाता है और सभी उससे बाध्य हो जाते हैं। 

मतदान की विधियाँ या प्रणालियाँ 

(Method of Voting)

किसी भी सभा की सम्मति का पता लगाने के लिए कई विधियाँ प्रयोग में लायी जाती हैं, उनमें से सर्वाधिक प्रचलित विधियाँ निग्न हैं 

(1) आवाज लगाकर (Byacclamation of voice)-

इस प्रविधि में सभा की सम्मति जानने के लिए सभापति द्वारा सदस्यों की आवाज या हर्षध्वनि या तालियों का सहारा लिया जाता है | इस विधि का प्रयोग प्रायः तभी किया जाता है, जबकि निर्णय के सर्वसम्मति या लगभग सर्वसम्मति से होने की आशा होती है । प्रायः सभापति द्वारा सदस्यों से कहा जाता है . सुझाव के पक्ष में हों वे ‘हाँ’ (Yes) कहें। बाद में सुझाव के विपक्ष में होने वाले पत्यः स ‘नहीं’ (NO) कहने को कहा जाता है । दोनो पक्षों की आवाज को सुनकर सभापति द्वारा निर्णय दिया जाता है। इस विधि से तालियाँ बजाकर या हर्ष ध्वनि करके भी मार द्वारा सम्मति प्रकट की जा सकती है। 

(2) हस्त प्रदर्शन द्वारा (By show of hands)-

सभा की सम्मति जानने की यह सरल विधि है, जिसका काफी प्रयोग होता है । इस विधि के अन्तर्गत सभापति द्वारा राक्षा पक्ष में होने वाले सदस्यों को हाथ खड़ा करने को कहा जाता है और उन्हें गिना जाता है । बार में सुझाव के विपक्ष वाले सदस्यों को हाथ खड़ा करने को कहा जाता है और उनकी गिनती की जाती है। दोनों पक्षों में खड़े किये गये हाथों की गणना करने के बाद जिस पक्ष में अधिक हाथ खड़े किये गए हों उसी के पक्ष में सभापति द्वारा निर्णय दिया जाता है । कम्पनी की किरी व्यापक सभा की सम्मति का पता लगाया जाता है । इस विधि के अन्तर्गत एक सदस्य केवल एक ही मत दे सकता है। भले ही उसके पास कितने ही अंश हो । अन्तर्नियमों द्वारा अधिकत होने पर प्रतिपुरुष (proxy) भी हस्त प्रदर्शन द्वारा मतदान में भाग ले सकते हैं। 

(3) विभाजन द्वारा (By division)-

इस विधि के अन्तर्गत सभा की सम्मति जानने के लिए सभापति द्वारा सभा में उपस्थित सदस्यों को दो वर्गों में विभाजित किया जाता है। एक ओर वे सदस्य एकत्र हो जाते हैं, जो सुझाव के पक्ष में हों व दूसरी ओर वे सदस्य एकत्र हो जाते हैं,जो सुझाव के विपक्ष में हों । दोनों पक्षों के सदस्यों की गणना करने के बाद सभापति द्वारा निर्णय दिया जाता है। इस विधि का प्रयोग बहुत कम किया जाता है। 

(4) मतपत्र द्वारा (By ballot)-

इस विधि के अन्तर्गत सभा में उपस्थित सदस्यों को . एक-एक मत-पत्र दे दिया जाता है और उन्हें सुझाव पर अपनी सम्मति ‘हाँ’ या ‘नहीं’ लिखकर मतपेटी में डालने को कहा जाता है। बाद में मतपेटी को खोला जाता है और पक्ष व विपक्ष के मतों की गणना करके सभा के निर्णय को घोषणा सभापति द्वारा की जाती है। 

(5) मतगणना द्वारा (By poll)-

उपर्युक्त सभी विधियों के अन्तर्गत अंशों की संख्या और मूल्य (Value) के आधार पर मतदान नहीं किया जाता। प्रत्येक सदस्य को एक ही मत देने का अधिकार मिलता है, चाहे उसके पास कितने ही अंश क्यों न हो। साथ ही अनुपस्थित सदस्य भी मतदान में भाग नहीं ले सकते। इन कठिनाइयों को दूर करने के लिए कम्पनी अधिनियम में मतगणना द्वारा मतदान की व्यवस्था की गई है। मतगणना द्वारा मतदान के अन्तर्गत प्रत्येक सदस्य को उसके द्वारा धारित अंशों की संख्या एवं मूल्य के आधार पर मत देने का अधिकार होता है। साथ ही इस विधि में प्रतिपुरुष (proxy) को भी मतदान में भाग लेने का अधिकार मिल जाता है।

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प्रति प्रतिनिध 

(Proxy)

जब कोई अंशधारी किसी कारणवश सभा में नहीं जा सकता है तो वह अपने स्थान पर किसी अन्य व्यक्ति को उपस्थित होने के लिए नियुक्त कर सकता है। इस प्रकार नियुक्त कि गये व्यक्ति को ति प्रतिनिध (Proxy) कहते हैं। दूसरे अर्थ में प्रॉक्सी से भी लगाया जाता है जिसके द्वारा प्रति प्रतिनिधि की नियुक्ति की जाती है। ऐसे व्यक्ति से आशय एक भर सभा में बोलने का तो अधिकार नहीं होता है बल्कि वोट डालने का अधिकार होता है । के अधिनियम, 2013 की धारा 105 प्रावधान करती है कि सभा में वोट देने का अधिकार र वाला सदस्य अन्य व्यक्ति को चाहे वह सदस्य हो या न हो अपनी ओर से सभा म उपाय होने के लिए प्राक्सी के रूप में नियुक्त कर सकता है। 

प्रतिपुरुष से सम्बन्धित बैधानिक प्रावधान 

(Statutory Provisions Regrading Proxy)

प्रतिपुरुष से सम्बन्धित वैधानिक प्रावधान निम्नलिखित हैं-

1. प्रॉक्सी को कम्पनी की सभा में बोलने का अधिकार नहीं होता है। (धारा 105) 

2. यदि अन्तर्नियमों में भिन्न सूचना न दी हुई हो तो एक प्रोक्सी केवल मतगणना पर ही वोट दे सकता है अन्य किसी दशा में नहीं।

3. जब तक अन्तर्नियमों में अन्य व्यवस्था न हो अंशपूँजी वाली कम्पनी का सदस्य प्रॉक्सी को नियुक्त नहीं कर सकते।

4. निजी कम्पनी का सदस्य एक अवसर पर उपस्थित होने के लिए एक से अधिक प्राक्सी नियुक्त नहीं कर सकता है। 

5. सभा की सूचना में यह लिखा होना चाहिए कि सदस्य प्राक्सी को नियुक्त कर सकताहै!

6. प्राक्सी को नियुक्त करने वाला विलेख लिखित रूप में होना चाहिए। 7. कम्पनी को तीन दिन की सूचना देकर सदस्य प्राक्सी की जाँच कर सकते हैं।

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