bcom 2nd year tax authority notes

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आय का विवरण Return of income

(1) विवरण दाखिल करने की अवधि (Period for filing the return)-

धारा 139 (1) के अनुसार, प्रत्येक कम्पनी अथवा अन्य कोई भी व्यक्ति, जिसकी कुल आय अथवा उस व्यक्ति की कुल आय, जिनकी आय पर वह आय-कर देने को दायी है, अधिकतम कर-मुक्त सीमा से अधिक है, अपनी तथा उस व्यक्ति की गत वर्ष की आय का विवरण निर्धारित फार्म में तथा निर्धारित ढंग से प्रमाणित करके आय-कर कार्यालय से देय तिथि को या इससे पूर्व के अन्तर्गतं अवश्य प्रस्तुत करेगा।

 किन्तु यदि कम्पनी के अतिरिक्त अन्य कोई व्यक्ति, जो धारा 139 (1) के अन्तर्गत आय का विवरण दाखिल नहीं करता है तथा बोर्ड द्वारा अधिसूचित किसी स्थान पर रहता है एवं गर्त वर्ष में 50,000 रुपये या इससे अधिक की राशि बिजली के उपभोग में व्यय करता है अथवा गर्त वर्ष में किसी भी समय निम्नलिखित शर्तों में से कोई एक शर्त पूरी करता है, तो ऐसा व्यक्ति गत वर्ष की अपनी आय का विवरण निर्धारित फार्म में तथा निर्धारित ढंग से प्रमाणित करके 1 अप्रैल, 2005 से पूर्व समाप्त होने वाले किसी भी गर्त वर्ष में देय तिथि से पूर्व दाखिल अवश्य करेगा।

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ये शर्ते निम्न हैं : –

(i) वह एक निर्धारित फर्श क्षेत्र (specified floor area) से अधिक की अचल सम्पत्ति का स्वामी, पट्टाधारी अथवा अन्य किसी अधिकार से, जिसे बोर्ड ने अधिसूचित कर दिया है, धारक (Possessor) है; अथवा

(ii) वह एक मोटर वाहन का स्वामी या पट्टाधारी है इसमें दो पहिये वाला वाहन सम्मिलित नहीं होगा भले ही उसके साथ अलग हो जाने वाली बगल कार (Detachable side car) लगी हो जिसमें अलग पहिये लगे हो; अथवा

(iii) उसमें स्वयं अपनी अथवा किसी भी अन्य व्यक्ति की विदेशी यात्रा का व्यय वहन किया है। किन्तु इसमें पड़ोसी देशों की यात्रा अथवा अधिसूचित तीर्थ स्थानों (notified . places of pilgrimage) को यात्रा सम्मिलित नहीं होगी।

(iv) वह एक ‘क्रेडिट कार्ड’ (credit card) का धारक है जो किसी बैंक या किसी संस्था द्वारा निर्गत किया गया है किन्तु यह ‘Add on’ कार्ड न हो। bcom 2nd year tax authority notes

(v) वह एक क्लब का सदस्य हैं जहाँ रु. 25,000 या अधिक प्रवेश शल्क लिया जाता 

(2) हानि का विवरण (Return of loss)

धारा 139 (3) के अनुसार यदि किसी व्यक्ति को, गत वर्ष में ‘व्यापार अथवा पेशे के लाभ’ अथवा ‘पूँजी लाभ’ शीर्षक में हानि होती है और वह उसे आय-कर अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार आगे ले जाना चाहता है तो वह इस आशय के लिए धारा 139 (1) के अन्तर्गत स्वीकृत अवधि के अन्दर कर-निर्धारण अधिकारी के सम्मुख एक प्रार्थना-पत्र देगा जिसमें ‘हानि का विवरण’ दिया हुआ होगा, जिसे कर-निर्धारण अधिकारी स्वीकार कर सकता है। कर-निर्धारण अधिकारी द्वारा हानि का विवरण स्वीकार कर लेने की दशा में करदाता को हानि आगे ले जाने का अधिकार मिल जायेगा।

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(3) आय का विवरण देर से दाखिल करना (Late filing of return on income)

धारा 139 (4) के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति ने धारा 139 (1) एवं धारा 139 (2) में निर्धारित अवधि के अन्तर्गत अपनी आय का विवरण दाखिल नहीं किया है तो वह किसी भी गत वर्ष की आय का विवरण’ सम्बन्धित कर-निर्धारण वर्ष के बाद 1 वर्ष के अन्दर अथवा कर-निर्धारण पूर्ण होने से पहले, जो भी तिथि पहले आये, किसी भी समय प्रस्तुत कर सकता है। .

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(4) पुण्यार्थ अथवा धार्मिक ट्रस्टों की आय का विवरण (Return of income of charitable or religious trusts)

धारा 139 (4-A) के अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति जिसे पूर्णतया अथवा आंशिक रूप से पुण्यार्थ अथवा धार्मिक उद्देश्यों के लिए रखी गई सम्मपत्ति एवं ऐच्छिक चन्दों से आय प्राप्त होती है और ऐसी कुल आय अधिकतम कर-मुक्त सीमा से अधिक है तो वह निर्धारित फार्म पर, निर्धारित अवधि में तथा निर्धारित ढंग से प्रमाणित करके ट्रस्ट की आय का विवरण प्रस्तुत करेगा।

(5) राजनैतिक पार्टियों की आय का विवरण (Return of Political parties)

धारा 139 (4-B) के अनुसार, प्रत्येक राजनैतिक पार्टी का मुख्य प्रशासकीय अधिकारी, जो चाहे किसी भी नाम से पुकारा जाता हो, यदि राजनैतिक पार्टी की कुल आय अधिकतम कर-मुक्त सीमा से अधिक है तो वह निर्धारित अवधि में तथा निर्धारित ढंग से पार्टी की ‘आय का विवरण’ प्रस्तुत करेगा।

(6) आय का संशोधित विवरण (Revised return of income)-

धारा 139 (5) के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति को अपनी आय का विवरण दाखिल करने के बाद अपनी कोई भूल या गलती का आभास होता है तो वह कर-निर्धारण के पूर्ण होने से पूर्व अथवा सम्बन्धित कर-निर्धारण वर्ष की समाप्ति के बाद 1 वर्ष के अन्दर, जो भी तिथि पहले आये, किसी भी समय संशोधित आय का विवरण दाखिल कर सकता है। bcom 2nd year tax authority notes

(7) आय के विवरण का निर्धारित फार्म (Presribed form of return of income)

धारा 139 (6) के अनुसार, आय के निर्धारित विवरण में करदाता द्वारा निम्नलिखित सूचनायें दी जाती हैं-

  • करदाता की निर्धारित प्रकृति की सम्पत्तियाँ तथा उनका मूल्य;
  • करदाता का बैंक खाता एवं करदाता द्वारा धारित ‘क्रेडिट कार्ड’; को
  • निर्धारित मदों पर किया गया निर्धारित सीमा से अधिक व्यय; तथा
  • अन्य कोई व्यय जो निर्धारित कर दिये जायें। धारा 139 (6-A) के अनुसार, व्यापार अथवा पेशे में लगे हुए करदाता को निम्नलिखित 
  • कर-मुक्त कार्यों का विवरण,

 सूचनाएँ देनी होती हैं

(i) अंकेक्षण की रिपोर्ट अथवा यदि अंकेक्षण रिपोर्ट पर्व में ही दाखिल कर दी गई है तो अंकेक्षण रिपोर्ट की एक प्रति तथा अंकेक्षण रिपोर्ट किये जाने का साक्ष्यः

(ii) व्यापार अथवा पेशे का मख्य स्थान तथा उसकी शाखाओं के नाम एव पत; (iii) सभी साझेदारों के नाम एवं पते; तथा (iv) प्रत्येक साझेदार का व्यापार या पेशे के लाभ-हानि में भाग ।

(8) ब्याज या दायित्व (Liability for interest)

धारा 139 (8) (a) के अनुसार. याद आय का विवरण निर्धारित तिथि के बाद दाखिल किया जाता है तो करदाता निधारित तिथि से आय का विवरण दाखिल करने की तिथि का 15% -प्रति वर्ष की दर से साधारण ब्याज देने को दायी होगा। यदि करदाता ने आय का विवरण प्रस्तत नहीं किया है तो ब्याज निर्धारित तिथि के बाद से कर-निर्धारण पूर्ण होने की तिथि तक का लगाया जायेगा। ब्याज को गणना उस राशि पर की जायेगी जो नियमित कर-निर्धारण के अन्तर्गत आने वाली कर-राशि में से अग्रिम चुकाया गया तथा स्रोत पर काटा गया आय-कर घटाने के बाद आता है। bcom 2nd year tax authority notes

(9) आय का विवरण दोषपूर्ण होना (Defective return of income).

धारा 139 (9) के अनुसार, यदि कर-निर्धारण अधिकारी की सम्मत्ति में आय का विवरण दोषपूर्ण है, तो करदाता को दोष के बारे में सूचना देगा तथा सूचना के बाद 15 दिन के अन्दर उस दोष को सुधारने का अवसर प्रदान करेगा। करदाता द्वारा आवेदन करने पर 15 दिन की अवधि कर-निर्धारण अधिकारी द्वारा बढ़ाई भी जा सकती है। यदि करदाता निर्धारण अवधि में दोष को नहीं सुधारता तो उसका आय का विवरण अवैध माना जायेगा तथा इस अधिनियम के प्रावधानों को मानते हुए लागू किया जायेगा जैसे कि करदाता ने आय-विवरण दाखिल ही नहीं. किया है।

(10) विवरण पर हस्ताक्षर किसके हों (Return by whom to be signed)

धारा 140 के अनुसार, धारा 139 अथवा 115WD के अन्तर्गत दाखिल किया जाने वाला आय का विवरण निम्न द्वारा हस्ताक्षरित होना चाहिये

(i) एक व्यक्ति की दशा में, स्वयं उस व्यक्ति द्वारा यदि वह व्यक्ति भारत के बाहर गया हुआहै तो उसके स्वयं के द्वारा अथवा उसके द्वारा विधिवत् रूप से इस हेतु अधिकृत व्यक्ति द्वारा, यदि वह व्यक्ति मानसिक रूप से अपने कार्यों को करने के योग्य नहीं है तो उसके संरक्षक द्वारा अथवा किसी अन्य दूसरे व्यक्ति के द्वारा जो उसकी ओर से कार्य करने के योग्य है तथा यदि किसी भी कारण से उस व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षर करना सम्भव नहीं है तो उस व्यक्ति द्वारा विधिवत् किसी भी व्यक्ति द्वारा। किन्तु यह आवश्यक है कि हस्ताक्षर करने वाले व्यक्ति के पास वैधानिक ‘पॉवर ऑफअटॉर्नी’ (Power of attorney) हो। ,

(ii) हिन्दू अविभाजित परिवार की दशा में, परिवार का कर्ता यदि भारत के बाहर गया हुआ है या वह मानसिक रूप से अपने कार्यों को करने में अयोग्य है तो परिवार के किसी भीवयस्क सदस्य द्वारा।

(iii) कम्पनी की दशा में, उसके प्रबन्ध-संचालक द्वारा अथवा यदि किसी कारणवश कम्पनी का प्रबन्ध-संचालक आय-विवरण को प्रमाणित एवं हस्तान्तरित न कर सके अथवा यदि कम्पनी में कोई प्रबन्ध-संचालक हो ही नहीं, तो कम्पनी के किसी भी संचालक द्वारा; . किन्तु यदि कम्पनी भारत में निवासी नहीं है तो आय का विवरण किसी भी ऐसे व्यक्ति द्वारा प्रमाणित एवं हस्ताक्षरित किया जा सकता है जिसके पास कम्पनी की ओर से वैध मख्तियारनामा (Power of attorney) हो। समापन में गई कम्पनी की आय का विवरण उसके निस्तारक (liquidator) द्वारा तथा केन्द्रीय अथवा राज्य सरकार के प्रबन्ध में आई कम्पनी की आय का विवरण उसके मुख्य अधिकारी द्वारा हस्ताक्षरित एवं प्रमाणित होगा।

(iv) साझेदारी फर्म की दशा में, उसके प्रबन्ध साझेदार द्वारा अथवा यदि किसी कारणवश फर्म का प्रबन्ध साझेदार (Managing partner) आय-विवरण को प्रमाणित एवं हस्ताक्षरित न कर सके अथवा यदि फर्म में कोई प्रबन्ध साझेदार है ही नहीं तो अवयस्क को छोड़कर फर्म के किसी भी साझेदार द्वारा;

(v) स्थानीय सत्ता की दशा में, उसके मुख्य अधिकारी (Principal Officer) द्वारा; .

(vi) एक राजनैतिक पार्टी की दशा में, उसके मुख्य कार्यकारी अधिकारी (Chief Executive Officer) द्वारा भले ही वह अधिकारी सचिव या अन्य किसी पदनाम से जाना जाता हो;

(vii) अन्य किसी संघ की दशा में, संघ के किसी भी सदस्य या उसके मुख्य अधिकारी द्वारा; तथा . –

(viii) अन्य किसी व्यक्ति की दशा में, स्वयं उसी व्यक्ति द्वारा अथवा उसकी ओर से कार्य करने के लिए अधिकृत किसी अधिकृत व्यक्ति द्वारा ।

प्रश्न 2. किन परिस्थितियों में करदाता को दोषी माना जाता है ? करदाता कब दोषी माना जाता है?

(When assessee deemed in default ?)

ans- निम्न दशाओं में करदाता भुगतान में दोषी माना जाता है

(1) धारा 220 (4) के अनुसार, जब करदाता माँग के नोटिस में दर्शाई गई राशि, नोटिस में दिये गये समय में निर्धारित स्थान तथा व्यक्ति को भुगतान नहीं करता तो करदाता को दोषी माना जाता है।

(2) धारा 220 (5) के अनुसार, यदि करदाता को किस्तों में भुगतान की सुविधा प्रदान कर दी थी और वह किसी एक किस्त का भुगतान निर्धारित समय में निर्धारित स्थान तथा निर्धारित व्यक्ति को नहीं करता तो वह उस किस्त तथा शेष सभी अदत्त किस्तों के लिए दोषी माना जायेगा तथा शेष अदत्त किस्त भी उसी दिन देय मानी जायेंगी जिस दिन उसने किसी एक किस्त के भुगतान में त्रुटि की है।

(3) धारा 220 (6) के अनुसार, यदि करदाता ने मांगी गई राशि के विरुद्ध अपील कर दी है तो कर-निर्धारण अधिकारी स्व-विवेकाधिकार के अन्तर्गत उन शर्तों के आधीन, जिन्हें वह उचित समझे,करदाता को भुगतान में दोषी होने’ से मुक्त मान सकता है, भले ही उस राशि के भुगतान का समय समाप्त हो चुका है। अर्थात अपील की दशा में करदाता द्वारा माँग की राशि का भुगतान न करने पर वह दोषी नहीं माना जायेगा, बशर्ते कि कर-निर्धारण अधिकारी ने ऐसा. आदेश दे दिया है।

(4) धारा 220 (7) के अनुसार, यदि किसी करदाता पर ऐसी विदेशी आय के सम्बन्ध म कर लगा है जिसे उस देश के कानून के अनुसार भारत में नहीं लाया जा सकता है तो कर-निर्धारण अधिकारी ऐसी आय पर कर के भुगतान की त्रुटि के लिए करदाता को उस समय तक दोषी नहीं मानेगा जब तक वह विदेशी आय को भारत में नहीं ले आता अथवा जब तक विदेशी सरकार उसे आय को भारत में लाने का प्रतिबन्ध समाप्त नहीं कर पा ।

कर भुगतान में दोषी होने के कारण अर्थ दण्ड

(Penalty payable when tax is in default)

धारा 221 के अनुसार अर्थ दण्ड से सम्बन्धित आय-कर दोषी मान लिया जाता है (अर्थात जब वह माग के नोटिस में प्रदर्शित आय-कर की राशि का यथा-समय, यथा-स्थान एवं यथा-व्याक्त भुगतान नहीं कर पाता) वह कर की बकाया राशि तथा उस पर ब्याज देने के अलावा उस अथ-दण्ड (penalty) को चकाने के लिए भी दायी होगा जो कर-निर्धारण अधिकारी द्वारा आदाशत हो । उसके लगातार वटि किये जाने पर अर्थ-दण्ड की राशि को समय-समय पर बढ़ाया जा सकता है, किन्तु यह राशि अधिकतम बकाया कर की राशि के बराबर हो सकती

(2) अर्थ-दण्ड लगाने से पूर्व करदाता को सुनवाई का पूर्ण अवसर दिया जायेगा।

(3) यदि करदाता कर-निर्धारण अधिकारी को सन्तुष्ट कर दे कि त्रुटि पर्याप्त एवं उचित कारणों की वजह से हुई थी उस पर इस धारा के अन्तर्गत कोई अर्थ-दण्ड नहीं लगाया जायेगा।

(4) यदि करदाता ने अर्थ-दण्ड लगाने से पूर्व ही कर का भुगतान कर दिया है तो भी अर्थ दण्ड के दायित्व से मुक्त नहीं हो सकता।

(5) यदि किसी अन्तिम आदेश के अन्तर्गत कर की वह राशि, जिस पर अर्थ दण्ड लगाया गया है पूर्णतया समाप्त कर दी गई है तो लगाया गया अर्थ-दण्ड रद्द कर दिया जायेगा। यदि करदाता ने अर्थ-दण्ड का भुगतन कर दिया था तो उसे वापस कर दिया जायेगा।

प्रश्न 3. कर-निर्धारण या पुन:कर निर्धारण पूर्ण करने की कितनी समय सीमा है ? विवरण तैयार कीजिये ?

उत्तर- कर-निर्धारण अथवा पुन: कर-निर्धारण पूर्ण करने की समय-सीमा (Time-limit for completion of assessments and re-assessments)

धारा 153] (1) ‘नियमित कर-निर्धारण’ (धारा 143) एवं ‘सर्वोत्तम निर्णय कर-निर्धारण’ (धारा 144) निम्न समय-सीमा के बाद नहीं किये जा सकते

(i) जिस वर्ष करदाता की आय सर्वप्रथम कर-योग्य हुई उस कर-निर्धारण वर्ष की समाप्ति के 2 वर्षों के बाद; अथवा

(ii) कर-निर्धारण वर्ष (1988-89) या इससे पूर्व के कर-निर्धारण वर्षों से सम्बन्धित आय का विवरण या संशोधित आय का विवरण दाखिल किये जाने की दशा में [धारा 139 (4) एवं (5) के अन्तर्गत। आय का विवरण या संशोधित आय-विवरण दाखिल किये जाने वाले वित्तीय वर्ष की समाप्ति के एक वर्ष बाद; जो भी तिथि दोनों में बाद में आती है।)

(2) यदि आप पर प्रथम कर-निर्धारण, कर-निर्धारण वर्ष 2004-05 से कर-निर्धारण वर्ष 2009-10 में हुआ है, तो उक्त दो वर्ष के स्थान पर समय-सीमा 21′ महीने होगी। किन्तु यदि आय पर प्रथम कर-निर्धारण, कर-निर्धारण वर्ष 2005-06 से कर-निर्धारण व 2008-09 में हुआ है, तो उक्त 2 वर्ष के स्थान पर समय-सीमा 33 माह होगी। यदि आय पर प्रथम कर-निर्धारण, कर-निर्धारण वर्ष 2009-10 में अथवा बाद किसी कर-निर्धारण वर्ष में हुआ है तथा कुल आय पर कर-निर्धारण की कार्यवाही के  धारा 92CA (1) के अन्तर्गत कोई निर्देशन-

(अ) 1 जुलाई, 2012 से पूर्व किया गया है, किन्तु उस धारा के अन्तर्गत कोई आदेश पारित नहीं हुआ है; अथवा ·

(ब) 1 जुलाई, 2012 को अथवा इसके बाद दिया गया है, तो उक्त दो वर्ष के स्थान पर समय सीमा 3 वर्ष होगी।

(4) फ्रिन्ज लाभों (अर्थात् धारा 115WE अथवा धारा 115WG के अन्तर्गत) के सम्बन्ध में कोई भी कर-निर्धारण आदेश उस वित्तीय वर्ष की सम्पत्ति के 21 माह के बाद नहीं किया जायेगा। जिस वित्तीय वर्ष में फ्रिन्ज लाभों पर प्रथम बार कर-निर्धारण हुआ है।

(5) धारा 115WG के अन्तर्गत कोई भी कर-निर्धारण अथवा पुनः कर-निर्धारण आदेश उस वित्तीय वर्ष की समाप्ति के 9 माह बाद पारित नहीं किया जायेगा। जिस वित्तीय वर्ष में धारा 115WH के अन्तर्गत नोटिस जारी किया गया है। . .

(6) यदि धारा 148 के अन्तर्गत दिये गये नोटिस के द्वारा धारा 147 के अन्तर्गत कर-निर्धारण, पुनः कर-निर्धारण या पुनः गणना (recomputation) की जानी है तो ऐसा कर-निर्धारण, पुनः कर-निर्धारण या पुनः गणना उस वित्तीय वर्ष जिसमें धारा 148 के अन्तर्गत नोटिस दिया गया है, की समाप्ति के 1 वर्ष बाद नहीं किया जा सकता। किन्तु यदि धारा 148 के अन्तर्गत दिये गये नोटिस की तामील 1 अप्रैल, 1999 के बाद किन्तु 1 अप्रैल 2000 से पूर्व तक हो जाती है तो ऐसा कर-निर्धारण, पुनः कर-निर्धारण या पुनः गणना 31 मार्च, 2002 तक ही की जा सकती है। किन्तु निम्न दशाओं में कर-निर्धारण अथवा पुनः कर-निर्धारण अथवा पुनः गणना (recomputation) के लिए कोई समय-सीमा लागू नहीं होगी-धारा 153 (3) के अनुसार, निम्न परिस्थितियों में कर-निर्धारण अथवा पुनः कर-निर्धारण कभी भी किया जा सकता है bcom 2nd year tax authority notes

(7) अपील या रिवीजन में हुए निर्णय के फलस्वरूप नया कर-निर्धारण (fresh assessment) अथवा पुनः कर-निर्धारण अथव पुनः गणना करने के लिए; किन्तु यदि 1 अप्रैल, 1999 से 31 मार्च, 2000 की अवधि में मुख्य आयुक्त अथवा आयुक्त द्वारा कोई अपीलीय आदेश प्राप्त किया जाता है अथवा मुख्य आयुक्त अथवा आयुक्त द्वारा कोई रिवीजन आदेश पारित किया जाता है, तो ऐसा नये कर-निर्धारण का आदेश 31 मार्च,2002 तक कभी भी पारित किया जा सकता है। किन्तु यदि धारा 148 के अन्तर्गत नोटिस 1 अप्रैल, 2005 को अथवा इसके बाद किन्त 1 अप्रल,2011 से पूर्व दिया गया है.तो ऐसे कर-निर्धारण, पुनः कर-निर्धारण अथवा पुनः गणना का आदेश की समय-सीमा उपर्युक्त वर्णित 1 वर्ष न होकर 9 माह होगी। किन्तु यदि धारा 148 के अन्तर्गत नोटिस 1 अप्रैल, 2006 को अथवा इसके बाद किन्तु अप्रल,2010 से पर्व दिया गया है.तो ऐसे कर-निर्धारण, पुनः कर निर्धारण अथवा पंन गणना आदेश की समय-सीमा उपर्युक्त वर्णित 1 वर्ष न होकर, कुछ विशेष दशाओं में,21 महीने होगी (ii) यदि साझेदारी फर्म का पुनः कर-निर्धारण किया गया है तो उसके साझेदारों का

कर-निर्धारण करने के लिए

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