bcom 1st year business communication pdf notes

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BCom 1st Year Business Communication Oral Presentation Study Material Notes in Hindi

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Meaning of Listening pdf – Bcom Notes

Meaning of Listening pdf – Bcom Notes श्रवणता से अभिप्राय श्रवणता, इतनी सरल क्रिया नहीं है जितनी कि समझी जाती है। अधिकांश व्यक्ति इस बारे में अक्षम होते हैं। वे सुनने व सोचने के बारे में सावधानी नहीं रखते, अतः वे जितना सुनते हैं उससे कुछ कम ही याद कर पाते हैं। फ्लोड जे० जेम्स के शब्दों में— “श्रवण क्षमता की न्यूनता प्रत्येक स्तर पर हमारे कार्य से सम्बन्धित समस्याओं की उत्पत्ति का मुख्य स्रोत है।” व्यावसायिक क्षेत्रों में श्रवणता की महत्ता किसी भी रूप में सम्प्रेषण से कम नहीं आँकी जा सकती । सुनने अर्थात् श्रवण की क्रिया को ध्यानपूर्वक सुव्यवस्थित ढंग से करने पर उसका प्रतिफल उच्च आयामों को प्राप्त होता है। वास्तव में, “श्रवणता स्वीकार करने, ध्यान लगाने तथा कानों से सुने गए शब्दों का अर्थ निरूपण करने की एक क्रिया है । “ श्रवणता के प्रकार (Types of Listening) व्यावसायिक क्षेत्र में श्रवणता का महत्त्व अब सुस्थापित हो चुका है। परिस्थितियों के अनुसार इसके प्रकारों में भी कम या अधिक अन्तर आ जाता है। मुख्य रूप से श्रवणता के विभिन्न प्रकार निम्नलिखित रूप में प्रकट होते हैं 1.एकाग्र श्रवणता (Focus Listening) – इसमें एकाग्रता के तत्त्व का महत्त्व अपेक्षित रूप से सर्वाधिक होता है। इसकी ग्राह्यता अन्य प्रकारों से कई गुना अधिक होती है।  2. विषयगत श्रवणता (Subjective Listening) – ग्राह्य व्यक्ति में सम्प्रेषित विषय की जितनी जानकारी होती है, उसी के अनुसार श्रवणता का प्रभाव भी परिलक्षित होता है। इसका सम्बन्ध व्यक्ति की समझ से होता है। 3. अन्तःप्रज्ञात्मक श्रवणता (Inter Listening) – जब सहज बोधगम्यतावश सन्देश को ग्रहण किया जाता है, तब इसके समानान्तर अन्य विचार मस्तिष्क में आते रहते हैं। यह स्थिति सन्देश को सम्पूर्ण अर्थ में समझने में सहायता करती है । 4. समीक्षात्मक श्रवणता (Analytical Listening) – समीक्षात्मक श्रवणता में ग्राही व्यक्ति में तुरन्त ही समीक्षात्मक तत्त्वों का आविर्भाव होने लगता है। इस प्रकार विशिष्ट बिन्दुओं के मूल्यांकन का मार्ग स्वतः ही प्रशस्त हो जाता है। 5. तदनुभूतिक श्रवणता (Communicating Listening) – इसमें सन्देश को . अन्य व्यक्तियों को बताने की सामर्थ्य होती है। 6. सक्रिय श्रवणता (Creative Listening) – इसमें अन्य व्यक्तियों के विचार व विघटित मानसिक अन्तर्द्वन्द्व समाहित होते हैं। 7. दिखावटी या मिथ्या श्रवणता (Artificial Listening) … Read more

Essentials of First Draft – Bcom Notes

Essentials of First Draft – Bcom Notes सन्देश का प्रथम प्रारूप लेखन (First Drafting ) – लेखन शैली के द्वितीय चरण में सन्देश का प्रथम प्रारूप तैयार किया जाता है। इसमें विचारों को शब्दों का रूप प्रदान करके वाक्यों व पैराग्राफों का निर्माण किया जाता है। इस लेखन में यह सुनिश्चित किया जाता है कि विचारों को कागज पर कैसे लाया जाए, किस प्रकार के शब्दों/वाक्यों का प्रयोग किया जाए तथा कहाँ बात को संक्षिप्त रूप में रखा जाए और कहाँ से विस्तृत रूप प्रदान किया जाए। मुख्य विचार के समर्थन में सम्बन्धित तथ्यों व आँकड़ों को एकत्र किया जाता है। इस प्रकार सभी तथ्यों को कागज पर उतार लेना ही प्रथम प्रारूप कहलाता है।  एक अच्छे प्रारूपण के लिए आवश्यक बातें (Essentials of First Draft) एक अच्छे प्रारूपण के लिए निम्नलिखित बातें ध्यान में रखनी चाहिए – 1. तकनीकी सावधानियाँ (Technical Precautions ) – प्रारूप को तैयार करते समय तकनीकी बातों का ध्यान रखना भी आवश्यक होता है जैसे प्रारूप सदैव अन्य पुरुष में तैयार किया जाना चाहिए तथा यदि उत्तम पुरुष का प्रयोग आवश्यक हो तो वह व्यक्ति बोधक की बजाय पद-बोधक होना चाहिए। इसी प्रकार, प्रारूप किसी भी प्रकार के पूर्वाग्रहों से प्रेरित नहीं होना चाहिए। प्रारूप निश्चित ढाँचे में निश्चित प्रणाली व निर्धारित वाक्यावली में ही तैयार किया जाना चाहिए। > 2. उद्धरण ( Quotation) – विषय को अधिक स्पष्ट करने के लिए प्रारूपण में · विचारों, निर्णयों, आदेशों व उक्तियों का उद्धरण आवश्यक हो जाता है। विषय की गम्भीरता को काट-छाँट के ही मूल शब्दों में व्यक्त किया जाना चाहिए। 3. सरल, सुबोध एवं व्यावहारिक भाषा (Easy, Understandable Practical Language ) – प्रारूप की भाषा अत्यन्त सरल, सुबोध एवं व्यावहारिक होनी चाहिए। छोटे-छोटे सार्थक वाक्यों का प्रयोग किया जाना चाहिए तथा विषय के अनुकूल उससे सम्बन्धित तकनीकी शब्दों का भी प्रयोग किया जाना चाहिए। 4. पैराग्राफ (Paragraph) – एक विषय से सम्बन्धित अनेक उपविषय हो सकते हैं। ऐसी स्थिति में प्रत्येक उपविषय को अलग पैराग्राफ में देना चाहिए तथा पैराग्राफों के लिए संख्या क्रम अंकित किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त, पैराग्राफ बहुत अधिक बड़ा भी नहीं a होना चाहिए। 5. तथ्यों की संगति (Consistency of Data)- प्रारूप तैयार करते समय विषय से सम्बन्धित सभी तथ्यों को सम्मिलित किया जाना आवश्यक होता है। विभिन्न तथ्यों व तर्कों को व्यवस्थित क्रम में प्रस्तुत किया जाना चाहिए। साथ ही साथ तथ्यों का तार्किक विश्लेषण इस प्रकार क्रम से करना चाहिए जिससे वह अपनी सम्पूर्ण संरचना को स्पष्ट कर सके। … Read more

Importance of Communication for Managers – Bcom Notes

Importance of Communication for Managers – Bcom Notes प्रबन्धकों के लिए सम्प्रेषण / संचार का महत्त्व  आधुनिक युग में प्रबन्ध और व्यवसाय में प्रभावी सम्प्रेषण का महत्त्वपूर्ण स्थान है। अब व्यवसाय का क्षेत्र स्थानीय, प्रान्तीय तथा राष्ट्रीय सीमाओं को पार करके अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में पहुँच चुका है। अत: व्यवसाय के सफल संचालन हेतु सुव्यवस्थित सम्प्रेषण पद्धति आज की आवश्यकता बन गई है। नीतियों एवं नियोजन का क्रियान्वयन कार्य प्रगति एवं नियन्त्रण, अधीनस्थों की कठिनाइयाँ एवं उनका निराकरण, सामूहिक निर्णयन एवं प्रबन्ध में हिस्सेदारी, अभिप्रेरित एवं ऊँचे मनोबल वाले मानव संसाधन आदि के लिए प्रभावी आन्तरिक सम्प्रेषण आवश्यक होता है। इसीलिए थियो हैमन ने कहा है “प्रबन्धकीय कार्यों की सफलता प्रभावी सम्प्रेषण पर निर्भर है। “ व्यवसाय के सफल संचालन के लिए सम्प्रेषण के महत्त्व को स्पष्ट करते कीथ हुए डेविस ने लिखा है कि “सम्प्रेषण व्यवसाय के लिए उसी प्रकार आवश्यक है जिस प्रकार मनुष्य के लिए रक्त आवश्यक है।” प्रबन्धकों के लिए व्यावसायिक सम्प्रेषण के महत्त्व को निम्नलिखित प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है- 1. प्रबन्धकीय कार्यों का आधार (Basis of Managerial Functions) – प्रभावशाली सम्प्रेषण प्रबन्ध की आधारशिला है क्योंकि इसकी आवश्यकता निर्देश में ही नहीं बल्कि प्रबन्ध के प्रत्येक कार्य में पड़ती है। प्रबन्ध अपने सहयोगियों एवं अधीनस्थों से विचार-विमर्श करके ही योजनाएँ बनाता है और सम्प्रेषण द्वारा ही वह निर्धारित उद्देश्यों नीतियों एवं कार्यक्रमों से दूसरों को अवगत कराता है। सम्प्रेषण के अभाव में नियोजन एक कागजी कार्यवाही है। चेस्टर बर्नाड के अनुसार, “सम्प्रेषण की व्यवस्था का विकास करना एवं उसे बनाए रखना प्रबन्ध का प्रथम कार्य है । ” “ 2. संगठन के समन्वय में सहायक (Helpful in Co-ordination of Organization ) – व्यावसायिक संगठन के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए, इसके विभिन्न समूहों के बीच समन्वय एवं कार्य एकरूपता का होना नितान्त आवश्यक है। यह समन्वय तभी सम्भव हो सकता है जबकि उनके मध्य सन्देशों एवं विचारों का आदान-प्रदान सरलता एवं सुगमता से हो सके। सम्प्रेषण ही ऐसा माध्यम है जो प्रबन्धकों को विचारों एवं सन्देशों के आदान-प्रदान का सुअवसर प्रदान करके संगठन में सद्भाव एवं समन्वय बनाए रखने में सहायता करता है। 3. व्यवसाय का सफल संचालन ( Successful Operation of the Business)—व्यावसायिक क्रियाओं के सफल संचालन के लिए आन्तरिक एवं बाह्य पक्षों से निरन्तर सम्पर्क बनाए रखने के लिए संचार की आवश्यकता होती है। हेरोल्ड मॉस्किन के अनुसार, “संचार व्यवस्था हमारे व्यवसाय के संचालन में अधिकाधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। हमें अनेक व्यक्तियों को सूचना देनी होती है, अनेक व्यक्तियों को सुनना होता है तथा उनसे समस्याओं के सुलझाने में सहायता लेनी पड़ती है और अन्य अनेक विषयों के सम्बन्ध में बातचीत करनी होती है।” इस प्रकार सम्प्रेषण व्यवसाय के सफल संचालन में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है। इसीलिए थियो हैमन ने कहा है कि “सम्प्रेषण एक-दूसरे के मध्य सूचना एवं समझदारी बनाए रखने की प्रक्रिया है। “ 4. भारार्पण एवं विकेन्द्रीकरण (Delegation and Decentralization) – बड़े व्यावसायिक संगठनों में उच्च प्रबन्धक समस्त कार्यों की देखरेख स्वयं नहीं कर सकते इसलिए उन्हें भारार्पण व विकेन्द्रीकरण की प्रक्रिया को अपनाना पड़ता है तथा प्रभावी सम्प्रेषण की सहायता से ही भारार्पण व विकेन्द्रीकरण सफल हो सकता है। 5. बाह्य संस्थाओं से श्रेष्ठ सम्पर्क (Good … Read more

Meaning of Feedback pdf – Bcom Notes

Meaning of Feedback pdf – Bcom Notes प्रतिपुष्टि का आशय  प्रतिपुष्टि एक प्रत्यार्पित सन्देश होता है, जो सन्देश प्राप्तकर्ता सम्प्रेषक को देता है। जब सम्प्रेषक सूचनाग्राही अथवा प्राप्तकर्ता को सन्देश भेजता है तो सम्प्रेषक उस भेजे गए सन्देश की प्रतिक्रिया चाहता है ।  सन्देश प्राप्त कर लेने के बाद सन्देश प्राप्तकर्ता द्वारा उस सन्देश को उचित प्रकार से समझा जाता है, तत्पश्चात् सन्देश पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की जाती है। इस प्रतिक्रिया का स्वरूप अनुकूल भी हो सकता है अथवा प्रतिकूल भी हो सकता है। यही प्रतिक्रिया प्रतिपुष्टि कहलाती है। प्रतिपुष्टि सन्देश प्रक्रिया का अन्तिम महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। प्रतिपुष्टि के अभाव में कोई भी सम्प्रेषण प्रक्रिया पूर्ण नहीं हो सकती। प्रतिपुष्टि के आधार पर ही सम्प्रेषक द्वारा पूर्व सन्देश में परिवर्तन, सुधार अथवा संशोधन कर प्रभावी स्वरूप प्रदान किया जाता है। प्रतिपुष्टि प्रक्रिया (Feedback Process ) एक सन्देश प्राप्तकर्त्ता उचित प्रतिपुष्टि उसी स्थिति में कर सकता है जब वह सम्प्रेषक द्वारा भेजे गए सन्देश को ठीक से समझे अथवा सुने तथा उस सन्देश को उसी दृष्टिकोण से समझे, जिस दृष्टिकोण से सम्प्रेषक उसे समझाना चाहता है। जब सन्देश प्राप्तकर्त्ता सन्देश की कोई प्रतिक्रिया देता है, तभी सम्प्रेषण प्रक्रिया में प्रतिपुष्टि प्रक्रिया की उपस्थिति मानी जाएगी। प्रतिपुष्टि निम्नांकित चित्र द्वारा समझी जा सकती है – प्रतिपुष्टि प्रतिक्रिया में जब सम्प्रेषक सन्देश प्राप्तकर्ता को सन्देश भेजता है तो वह सन्देश मौखिक, लिखित, शाब्दिक अथवा अशाब्दिक हो सकता है। सम्प्रेषण प्रक्रिया में सम्प्रेषण के लिए वह बात जाननी आवश्यक है कि जब सम्प्रेषक सन्देश प्राप्तकर्त्ता को सन्देश भेजता है तो सन्देश प्राप्तकर्ता उस सन्देश के प्रति कैसी प्रतिक्रिया व्यक्त करता है। लीलेण्ड ब्राउन के अनुसार, “सम्प्रेषण व प्राप्तकर्ता दोनों की प्रभावशीलता की एक वांछित मात्रा अत्यन्त आवश्यक होती है । ” प्रतिपुष्टि के प्रभाव (Effects of Feedback) प्रतिपुष्टि के प्रभाव निम्नलिखित हैं- (1) एक सम्प्रेषण प्रक्रिया के अन्तर्गत जिस प्रकार सम्प्रेषक की प्रत्येक क्रिया प्राप्तकर्त्ता की प्रतिक्रियाओं को प्रभावित करती है. ठीक उसी प्रकार प्राप्तकर्ता की प्रतिक्रियाएँ भी सम्प्रेषक की क्रियाओं को प्रभावित करती हैं। (2)एक सम्प्रेषण प्रक्रिया के अन्तर्गत प्राप्तकर्ता सम्प्रेषक को अपने द्वारा व्यक्त प्रतिक्रिया के स्वरूप के आधार पर नियन्त्रित करने का प्रयत्न करता है।  (3) यदि सन्देश प्राप्तकर्त्ता द्वारा कोई प्रतिपुष्टि प्राप्त नहीं होती है तो पूर्व भेजे गए सन्देश को बदल देते हैं। एक सम्प्रेषण प्रक्रिया के अन्तर्गत प्राप्तकर्ता की प्रतिक्रियाएँ ही प्रतिपुष्टि कहलाती हैं, जो सम्प्रेषक को उसके उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए कुशलता प्रदान करती हैं। प्रतिपुष्टि की विधियाँ (Methods of Feedback) प्रतिपुष्टि की विभिन्न विधियाँ निम्नलिखित हैं- 1. लिखित सम्प्रेषण ( Written Communication) – इस विधि में पाठकों के चेहरे के भावों को समझना अथवा पढ़ना असम्भव होता है तथा शीघ्र ही कोई प्रतिक्रिया भी प्राप्त नहीं होती। लिखित सम्प्रेषण सबसे अच्छी विधि मानी जाती है क्योंकि इसमें सम्प्रेषक जो भी सन्देश भेजना चाहता है वह सरल तथा स्पष्ट होता है एवं उसमें किसी भी प्रकार का भ्रम नहीं होता। 2. आमने-सामने सम्प्रेषण (Face to Face Communication) … Read more