Nature of Communication pdf Notes

Nature of Communication pdf Notes सम्प्रेषण की प्रकृति  सम्प्रेषण की प्रकृति के नाना रूप दृष्टिगत होते हैं। इनको प्रमुख बिन्दुओं के रूप में निम्नवत् उद्घाटित किया जा सकता है  उचित माध्यम का चयन (Selection of Proper Media)-सम्प्रेषण के लिए किसी माध्यम का होना अत्यन्त आवश्यक है। सम्बन्धित सन्देश हेतु प्रयुक्त उचित माध्यम, सन्देश की विषय-वस्त … Read more

Main Principles of Effective Communication Notes

Main Principles of Effective Communication Notes सम्प्रेषण प्रक्रिया में सन्देश सदैव स्पष्ट होना चाहिए ताकि प्रेषक एवं प्राप्तकर्त्ता को आपसी समझ तथा वांछित प्रतिपुष्टि प्राप्त हो सके। सम्प्रेषण की स्पष्ट अभिव्यक्ति के लिए यह आवश्यक है कि सूचना का सामान्य शब्दों एवं प्रभावी वाक्यों में आदान-प्रदान किया जाए। इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए सम्प्रेषण के कुछ सिद्धान्त निर्धारित किए गए हैं। इस प्रकार, सम्प्रेषण के सिद्धान्तों से आशय उन मार्गदर्शक नियमों से है, जिनके पालन करने पर सम्प्रेषण प्रक्रिया अपने निहित उद्देश्यों को प्राप्त कर लेती है । प्रभावी सम्प्रेषण के मुख्य सिद्धान्त (Main Principles of Effective Communication) व्यावसायिक सूचनाओं एवं सन्देशों के आदान-प्रदान में जिन महत्त्वपूर्ण नियमों या सिद्धान्तों को ध्यान में रखा जाना आवश्यक है, वे निम्नवत् हैं- 1. स्पष्टता (Clarity) – प्रभावशाली सम्प्रेषण के लिए यह आवश्यक है कि सन्देश एवं उच्चारण स्पष्ट होना चाहिए, जिससे सम्बन्धित व्यक्ति सन्देश को उसी रूप व अर्थ में समझे, जिस रूप व अर्थ में सन्देश को प्रसारित किया गया है। स्पष्टता के अन्तर्गत सम्प्रेषण व्यवस्था में निम्नलिखित बातें आवश्यक होती हैं- (i) अभिव्यक्ति की स्पष्टता – सन्देशग्राही को यह स्पष्ट होना चाहिए कि सन्देश-प्रेषक से किस प्रकार सन्देश लिया जाए। सेना में ‘कोड’ शब्द प्रचलित हैं, अतः दोनों पक्षों के मध्य कोड स्पष्ट होने चाहिए। शब्दों के चयन में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए – ] (a) निश्चित एवं स्पष्ट अभिव्यक्ति का प्रयोग होना चाहिए। (b) सरल शब्दों का प्रयोग करना चाहिए ।  (c) निवारक रूपों को प्राथमिकता देनी चाहिए। (ii) विचारों की स्पष्टता – सन्देश देने वाले व्यक्ति के मस्तिष्क में जैसे ही विचार आता है तभी सन्देशकर्त्ता को स्वयं सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि सामग्री क्या ह- (a) सम्प्रेषण की (b) सम्प्रेषण का उद्देश्य क्या है, (c) सम्प्रेषण के उद्देश्य को पूर्ण करने के लिए संचार का कौन-सा माध्यम उपयुक्त होगा।  (iii) अपरिमित रूप का प्रयोग न करना – अपरिमित रूप का प्रयोग सन्देश को औपचारिक बना देता है जैसे- ;  कैशियर का कर्त्तव्य है कि वेतन का भुगतान करे। कैशियर वेतन का भुगतान करता है। (iv) सन्देहात्मक शब्दों का प्रयोग न करना – यदि किसी सन्देश का अर्थ स्पष्ट नहीं है तो सन्देश का प्रयोग करना उचित न होगा; जैसे “गाड़ी रोको मत जाने दो” इसके दो अर्थ निकलते हैं— (a) … Read more

Body Language in Communication pdf Notes

Body Language in Communication pdf Notes शारीरिक भाषा शारीरिक भाषा से आशय शरीर के विभिन्न हिस्सों की गतिशीलता के द्वारा अपनी भावनाओं/संवेदनाओं के माध्यम से सन्देश / सूचना के सम्प्रेषण से है । शारीरिक भाषा के अन्तर्गत आँखों को घुमाना / चलाना, होंठों को चबाना / चलाना, ताली बजाना इत्यादि सम्मिलित हैं। इसे ‘KINESICS’ भी कहा जाता है। इससे व्यक्ति अपने सन्देश को अन्तर्वैयक्तिक क्रियाकलापों/ गतिविधियों द्वारा अन्य व्यक्तियों या समूहों तक पहुँचाता है। यद्यपि शारीरिक भाषा भाषिक / शाब्दिक सम्प्रेषण की पूरक कहलाती है क्योंकि जब यह शाब्दिक भाषा के पूरक का कार्य करती है, तब ही सम्प्रेषक के सन्देश का अर्थ स्पष्ट होता है और वह शाब्दिक भाषा के साथ जुड़ जाती है। जे० फास्ट के शब्दों में – “अविश्वास के लिए हमारे द्वारा अपनी भौंहों को ऊपर चढ़ाना, घबराहट, परेशानी के लिए नाक को रगड़ना / मलना, स्वयं को संरक्षित करने के लिए अपने हाथों को बाँधना, स्वयं को पृथक् बताने के लिए कन्धों को उचकाना, घनिष्ठता बताने के लिए आँख मारना/ पलक झपकाना, घबराहट के लिए उँगलियों को थपथपाना, विस्मरण के लिए स्वयं के माथे को थप्पड़/चाँटा मारना इत्यादि क्रियाएँ शारीरिक भाषा के अन्तर्गत आती हैं।” शारीरिक भाषा – एक प्राकृतिक प्रक्रिया (Body Language: A Natural Phenomenon ) शारीरिक भाषा सम्प्रेषण की सम्पूर्ण प्रक्रिया है जिसका स्वरूप प्राकृतिक है। इसमें भाषा के स्थान पर शारीरिक अंगों के हाव-भाव से विचारों का उचित सम्प्रेषण किया जाता है। इसका किसी प्रकार का औपचारिक प्रशिक्षण नहीं होता है, लेकिन सतत अभ्यास के द्वारा इसको विकसित किया जा सकता है। वास्तव में शाब्दिक सम्प्रेषण के सापेक्ष शारीरिक भाषा के प्राकृतिक संवेग अधिक प्रभावशाली होते हैं। जितना सम्प्रेषणकर्त्ता शारीरिक भाषा में दक्ष होगा सम्प्रेषण की क्रिया उतनी ही सुगठित अवस्था को प्राप्त होगी। इसके कुछ उपादानों का विवरण निम्नलिखित है— 1. आँखों का सम्पर्क (Eyes Contact ) — आँखों द्वारा किसी विचार का सम्प्रेषण शारीरिक भाषा का सबसे मुखर बिन्दु है। चेहरे को दिल का आइना कहा गया है और चेहरे का आइना आँखें होती हैं। इनके द्वारा प्रेषित सन्देश, ग्राही व्यक्ति द्वारा सहजरूपेण ही ग्रहण कर लिए जाते हैं। 2. स्पर्शानुभूति द्वारा सम्प्रेषण ( Communication by Sense of Touch)— शारीरिक स्पर्श मानवीय संवेदी ऊतकों को गहराई तक झंकृत करने की सामर्थ्य रखते हैं। स्पर्श द्वारा दो प्रकार के संवेगी सम्प्रेषण- अच्छे तथा बुरे को दूसरे व्यक्ति तक अशाब्दिक सम्प्रेषण के रूप में सहज ही पहुँचाया जा सकता है। स्पर्श का संकेत विभिन्न स्थितियों तथा एक व्यक्ति के दूसरे व्यक्ति से सम्बन्धों की अभिव्यक्ति भी करता है। 3. … Read more

SWOT Analysis and Communication

SWOT Analysis and Communication स्वॉट विश्लेषण की उत्पत्ति कहाँ से हुई यह अब भी अस्पष्ट है, परन्तु यह स्पष्ट है कि ऐनसोफ ने इस तकनीक को प्रसिद्ध बनाने में इसे आमतौर पर प्रयोग होने वाली व्यूहरचना विश्लेषण तकनीक ही नहीं बनाया बल्कि एक आवश्यक बाजार विश्लेषण और सम्प्रेषण की तकनीक बना दिया।” स्वॉट विश्लेषण और सम्प्रेषण (SWOT Analysis and Communication) स्वॉट शब्दावली का प्रयोग आमतौर पर प्रबन्धकीय व्यापारिक रणनीति हेतु किया जाता है, जहाँ इन शब्दों का प्रयोग निम्नलिखित रूप में किया जाता है- S = शक्ति, क्षमता ( Strengths ) W = दुर्बलता (Weaknesses) O = अवसर (Opportunities) T = समस्याएँ / चुनौतियाँ (Threats ) प्रबन्धक स्वॉट (SWOT)का प्रयोग अपनी अद्भुत शक्ति तथा उन दुर्बलताओं की पहचान करने और विश्लेषण करने में लगाते हैं जिन पर काबू पाया जा सके और आन्तरिक शक्तियों एवं दुर्बलताओं द्वारा अवसर पाकर बाहरी वातावरण की समस्याओं से मुकाबला किया जा सके। इस स्वॉट तकनीक (Technique)के विश्लेषण का प्रयोग विभिन्न संचार अवस्थाओं के अन्तर्गत व्यक्तिगत तथा संगठनात्मक रूप में किया जा सकता है।  (1) प्रबन्धक स्वॉट (SWOT) के विश्लेषण का प्रयोग अपनी शक्ति और सम्प्रेषण क्षमता की दुर्बलता एवं विभिन्न अवसरों पर तथा बाहरी वातावरण में उपस्थित समस्याओं का मुकाबला करने के लिए करता है। (2) संगठन स्वॉट (SWOT ) के विश्लेषण का प्रयोग अपने औपचारिक और अनौपचारिक नेटवर्क की शक्ति एवं दुर्बलताओं को जानने हेतु तथा बदलते व्यापारिक वातावरण के कारण आने वाली समस्याओं का मुकाबला करने के लिए किया जाता है। स्वॉट विश्लेषण के अंग (Parts of SWOT Analsysis ) (1) बाह्य वातावरण ( External Environment), (2) आन्तरिक वातावरण (Internal Environment) (1) बाह्य वातावरण से अभिप्राय जो व्यवसाय के बाहर स्थित है। यह व्यवसाय को बाहर से प्रभावित करते हैं। बाह्य वातावरण व्यवसाय को ‘अवसर’ प्रदान करता है एवं व्यवसाय के समक्ष ‘चुनौतियाँ’ भी उत्पन्न करता है । … Read more

Meaning of Grapevine Communication pdf Notes

Meaning of Grapevine Communication pdf Notes अंगूरीलता सम्प्रेषण का आशय अंगूरीलता सम्प्रेषण अनौपचारिक सम्प्रेषण का ही एक रूप है। सामाजिक मनोविज्ञान के अनुसार व्यक्ति की स्वाभाविक प्रकृति सामाजिक ही होती है। अधिकांश व्यक्ति सामूहिक रूप से मिलने एवं बातचीत करने के अवसरों को नहीं खोना चाहते। किसी व्यवसाय एवं संगठन में साथ-साथ कार्य करने वाले व्यक्ति शनैः शनैः अनौपचारिक ढंग से आपस में मिल-बैठकर व्यवसाय के सम्बन्ध में सन्देशों का आदान-प्रदान करते हैं। यह सम्प्रेषण अवकाश के क्षणों में अथवा भोजनावकाश में, सार्वजनिक एवं सामाजिक कार्यक्रमों में, क्लबों एवं पार्टियों में अथवा जब कभी भी उसे अवसर प्राप्त होता है, सम्प्रेषण करते हैं। इस सम्प्रेषण में जहाँ एक ओर तथ्यपूर्ण एवं सार्थक विषयों पर चर्चाएँ होती हैं, वहीं दूसरी ओर गप्पबाजी तथा अफवाहों का बाजार भी गर्म होता है। अंगूरीलता सम्प्रेषण की विशेषताएँ (Characteristics of Grapevine Communication) अंगूरीलता सम्प्रेषण की प्रमुख विशेषताएँ अग्रलिखित हैं- (1) अंगूरीलता सम्प्रेषण की स्थायी रूपरेखा नहीं होती। (2) अंगूरीलता सम्प्रेषण सत्य के निकट हो भी सकता है और नहीं भी क्योंकि इसमें सुनी-सुनाई सूचनाओं का प्रसारण होता है। (3) अंगूरीलता सम्प्रेषण में कुछ-न-कुछ मिलावट अवश्य ही होती है। जितने अधिक व्यक्तियों के मध्य से होकर यह सन्देश गुजरता है, उतना ही अधिक यह विकृत हो जाता है। ( 4 ) अंगूरीलता सम्प्रेषण प्राचीनतम प्रणालियों में से एक है और वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इसका अधिक महत्त्व भी है। (5) अंगूरीलता सम्प्रेषण में सामान्य, गोपनीय, मूल्यवान् एवं व्यर्थ सभी प्रकार की सूचनाओं का सम्प्रेषण होता है। (6) अंगूरीलता सम्प्रेषण लम्बवत्, क्षैतिज, कर्णीय (आड़ी-तिरछी) आदि सभी दिशाओं में हो सकता है। अंगूरीलता सम्प्रेषण के प्रकार (Types of Grapevine Communication ) कीथ डेविस ने अंगूरीलता सम्प्रेषण श्रृंखला को निम्नलिखित चार वर्गों में विभाजित किया है 1. एकाकी धारा शृंखला (Single Stand Chain) — इसमें एक तीर की तरह एक दिशा में ही सम्प्रेषण होता है जैसे A किसी सन्देश को B से कहता है, B इसी सन्देश को C से कहता है और इस प्रकार यह क्रम सतत रूप से चलता रहता है। प्रत्येक सम्प्रेषण अपनी ओर से इस सन्देश में स्वाभाविक रूप से कुछ मिलावट कर देता है। इसको निम्नांकित चित्र द्वारा दर्शाया जा सकता है- F … Read more

Barriers of Communication pdf Notes

Barriers of Communication pdf Notes संसार में प्राणी के जन्म से ही सम्प्रेषण क्रिया प्रभावी हो जाती है, अर्थात् पृथ्वी पर रहने वाला प्रत्येक प्राणी सम्प्रेषण प्रक्रिया का प्रयोग करता है। परन्तु मनुष्य ही एकमात्र ऐसा प्राणी है, जो अच्छे व प्रभावी ढंग से अपनी किसी भी बात को सम्प्रेषित कर पाने में सक्षम है। सम्प्रेषण को सम्प्रेषक से प्राप्तकर्त्ता तक पहुँचाने में कई प्रक्रियाओं से होकर गुजरना पड़ता है। इन प्रक्रियाओं में आने वाली बाधाओं को ही सम्प्रेषण की बाधाएँ कहते हैं। सम्प्रेषण की बाधाएँ (Barriers of Communication) सम्प्रेषण को प्रभावित करने वाली बाधाओं का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है – 1. धन / वित्त सम्बन्धी बाधा (Money related Barrier) — धन की सीमितता के कारण भी सम्प्रेषण क्रिया में व्यवधान उत्पन्न हो जाता है। वित्तीय साधनों की अल्पता के कारण सन्देश सम्प्रेषणग्राही की पहुँच से दूर ही रह जाता है। वैज्ञानिक व शोधकर्ता विभिन्न स्थानों पर आयोजित संगोष्ठियों, परिचर्चाओं, सम्मेलनों, कार्यशालाओं में हिस्सा लेने से वंचित रह जाते हैं। आधुनिक तकनीक महँगी होने के कारण इनके द्वारा सन्देश प्राप्त होने में व्यवधान आते हैं। 2. समय सम्बन्धी बाधा (Time related Barrier) — सन्देश के सम्प्रेषण के समय यदि औपचारिक माध्यमों का उपयोग किया जाता है तो वे अधिक समय लेते हैं। इन माध्यमों द्वारा सन्देश के प्रकाशन में अधिक समय लगता है तथा सन्देश के सरल प्रवाह में बाधा उत्पन्न होती है। 3. साहित्यिक विस्फोट सम्बन्धी बाधा (Literature Explosion related Barrier) — ज्ञान के विस्फोट के कारण सम्पूर्ण साहित्य एक ही सम्प्रेषण केन्द्र से प्राप्त करना असम्भव है। स्वतन्त्र सम्प्रेषण में यह भी एक बाधक तत्त्व है। 4. आधुनिक तकनीक सम्बन्धी बाधा ( Modern Technique related Barrier)—वर्तमान समय में कम्प्यूटर के माध्यम से सम्प्रेषण प्रक्रिया को पूरा करना प्रत्येक के वश की बात नहीं है क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति इस तकनीक का अभ्यस्त नहीं होता। साथ ही जिन स्थानों पर सन्देश कम्प्यूटर के माध्यम से सम्प्रेषित किए जाते हैं, वहाँ पर प्राप्तकर्ता उन्हें प्राप्त करने में कठिनाई का अनुभव करता है। 5. भाषा सम्बन्धी बाधा (Language related Barrier) — सम्प्रेषण के लिए भाषा अनिवार्य माध्यम है। शाब्दिक अथवा अशाब्दिक दोनों ही प्रकार की भाषाओं का सम्प्रेषण में प्रयोग किया जाता है। अधूरी, अस्पष्ट भाषा तथा असामयिक विविध अर्थों वाले शब्दों या संकेतों का चयन-सम्प्रेषण में प्रमुख बाधा है। 6. माध्यम सम्बन्धी बाधा (Medium related Barrier) — … Read more