Consolidated Balance Sheet of Holding Companies

Consolidated Balance Sheet of Holding Companies

सूत्रधारी कम्पनियों का समेकित (एकीकृत) चिट्ठा

 सूत्रधारी तथा सहायक कम्पनी का अर्थ एवं परिभाषा

(Meaning and Definition of Holding and Subsidiary Company)

जब कोई कम्पनी किसी दूसरी कम्पनी के 51% या अधिक अंशों को खरीद लेती है या अन्य किसी प्रकार से उस दूसरी कम्पनी पर अपना नियन्त्रण एवं प्रभुत्व स्थापित कर लेती है तो ऐसी कम्पनी को सूत्रधारी कम्पनी’ या ‘पितृ /जनक कम्पनी (Parent Company) कहा जाता है। चूंकि कम्पनी का नियन्त्रण प्रबन्ध संचालक मण्डल (Board of Directors) में निहित होता है, एक कम्पनी संचालक मण्डल के गठन पर नियन्त्रण स्थापित करके कम्पनी को नियन्त्रित एवं प्रभावित कर सकती है। साधारणतया विभिन्न कम्पनियों के हितों को एकीकरण करने के उद्देश्य से सूत्रधारी कम्पनी का निर्माण किया जाता है जो विभिन्न कम्पनियों जिन पर वह नियन्त्रण रखना चाहती है, के बहुमत देने वाले अंशों को खरीद लेती है। इस प्रकार सूत्रधारी कम्पनी संयोजन का एक स्वरूप है। सूत्रधारी कम्पनी जिस कम्पनी के आधे या आधे से अधिक अंशों को खरीद लेती है या जिस कम्पनी का नियन्त्रण अपने हाथ में ले लेती है, उसे सहायक कम्पनी (Subsidiary Company) कहा जाता है।

कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 2(46) के अनुसार, “किसी कम्पनी को एक या अधिक कम्पनियों की सूत्रधारी कम्पनी तभी माना जाता है, जबकि ऐसी कम्पनियाँ उसकी सहायक कम्पनियाँ हो।”

भारतीय कम्पनी अधिनियम, 1956 की धारा 4 (4) के अनुसार “एक कम्पनी को दूसरी कम्पनी की सूत्रधारी कम्पनी तभी माना जायेगा, जबकि दूसरी कम्पनी उसकी सहायक हो।”

भारतीय कम्पनी अधिनियम, 1956 की धारा 4 के अनुसार एक कम्पनी अन्य कम्पनी की सहायक कम्पनी होगी

(i) यदि वह अन्य कम्पनी संचालक मण्डल के गठन पर नियन्त्रण रखती है. अथवा (ii) यदि वह अन्य कम्पनी

(क) प्रथम वर्णित कम्पनी के आधे से अधिक मताधिकारों पर अधिकार अथवा नियन्त्रण रखती है। जहाँ कि प्रथम कम्पनी एक विद्यमान कम्पनी (Existing Company) है जिसमें अधिनियम से पूर्व निर्गमित पूर्वाधिकार अंश के धारकों के मताधिकार सामान्य अंशधारियों के समान है। अथवा

(ख) वह अन्य कम्पनी उस कम्पनी के समता अंशों (Equity Shares) के अंकित मूल्य (Nominal value) के आधे से अधिक की स्वामी है; अथवा (iii) जब कोई कम्पनी किसी दूसरी कम्पनी की सहायक होती है जो किसी और कम्पनी की सहायक है (अर्थात् सहायक कम्पनी की सहायक कम्पनी

कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 2(87) के अनुसार, किसी अन्य कम्पनी के सम्बन्ध में (जिसे सूत्रधारी कम्पनी कहा जाता है) सहायक कम्पनी या ‘सहायक’ का आशय ऐसी कम्पनी से है, जिसमें :

(अ) संचालक-मण्डल के गठन पर नियन्त्रण-जबकि सूत्रधारी कम्पनी इसके संचालक-मण्डल के गठन पर नियन्त्रण करती है : या

(ब)आधे से अधिक मताधिकार पर नियन्त्रण-इसकी स्वयं की या इसकी एक से अधिक सहायक कम्पनियों को मिलाकर कुल अंश पूँजी के आधे से अधिक भाग पर सूत्रधारी कम्पनी नियन्त्रण रखती हो।

उदाहरण—Y कं० लिमिटेड X कं० लिमिटेड की एक सहायक कम्पनी है तथा Z कं० लिमिटेड Yकं० लिमिटेड की सहायक कम्पनी है तो यहाँ पर Z कं. लिमिटेड न सिर्फ Y कं० लि. की सहायक कम्पनी मानी जायेगी वरन् वह X कं० लि. की भी सहायक कम्पनी कहलायेगी। इस प्रकार X कं० लि० तथा Z कं० लि०, Y कं० लि० तथा Z कं० लि० दोनो की सूत्रधारी कम्पनी कहलायेगी।

सूत्रधारी कम्पनी की विशेषताएँ (Features of Holding Company)

1. सूत्रधारी कम्पनी सहायक कम्पनी के 50% से अधिक या समस्त अंशों को खरीद सकती है।

2. सूत्रधारी कम्पनी सहायक कम्पनी के प्रबन्ध व रखती है। इसका कारण यह है कि वह सहायक कम्पनी के अधिकांश संचालकों की नियुक्ति कर सकती

3. सूत्रधारी कम्पनी यदि चाहे तो सहायक कम्पनी के पूर्वाधिकार अंश या ऋणपत्र आदि खरीद सकती है। सहायता दे सकती है।

4. सूत्रधारी कम्पनी सहायक कम्पनी को आर्थिक

सूत्रधारी कम्पनी के प्रमुख उद्देश्य (Main Objects of Holding Company)

सूत्रधारी कम्पनी के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

(1) आपसी प्रतियोगिता को समाप्त करना।

(2) विभिन्न कम्पनियों का अस्तित्व अलग होते हुए भी उनके प्रबन्ध एवं औद्योगिक नीति का केन्द्रीकरण करना।

(3) सम्मिश्रण या एकीकरण तथा संविलयन के दोषों को दूर करना।

(4) अर्जित लाभ को अन्य साधनों में विनियोजित करना।

सहायक कम्पनी के प्रकार

(Types of Subsidiary Company)

सहायक कम्पनी दो प्रकार की हो सकती है-

(1) पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कम्पनी या पूर्ण सहायक कम्पनी (Wholly Owned Subsidiary) जब सहायक कम्पनी के सभी अंश सूत्रधारी कम्पनी द्वारा क्रय कर लिये गये हों, तब उसे पूर्ण सहायक कम्पनी कहा जाता है। इस प्रकार की कम्पनी पर पूर्ण स्वामित्व एवं नियन्त्रण सूत्रधारी कम्पनी का ही होता है। फलतः इस स्थिति में सहायक कम्पनी के सम्पूर्ण लाभ पर सूत्रधारी कम्पनी का ही अधिकार होता है।

(2) ‘आंशिक स्वामित्व वाली सहायक कम्पनी’ या ‘आंशिक सहायक कम्पनी’ (Partly-owned Subsidiary)—जब किसी कम्पनी के आधे से अधिक समता अंशों को सूत्रधारी कम्पनी खरीद लेती है तो इस प्रकार की सहायक कम्पनी को आंशिक धारित सहायक कम्पनी कहा जाता हैं। इस तरह की सहायक कम्पनी में बचे हुए अंश अन्य अंशधारियों द्वारा क्रय किये गये होते हैं जिन्हें ‘अल्पमत अंशधारी’ (Minority Shareholders) अथवा ‘बाह्य अंशधारी'(Outside Shareholders) कहा जाता है। इस तरह की सहायक कम्पनी में सूत्रधारी एवं अल्पमत अंशधारियों का नियन्त्रण हित उनके द्वारा क्रय किये अंशों के अनुपात में होता है। जैसे-X कम्पनी ने Y कम्पनी के 8,000 अंश क्रय किये और 2,000 अंश अन्य लोगों ने क्रय किये तो इस कम्पनी में X कम्पनी तथा अल्पमत अंशधारियों के नियन्त्रण का अनुपात होगा-

8,000 : 2,000 या 8 : 2 या 4 : 1 या 4/5 : 1/5

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सूत्रधारी कम्पनियों के लाभ (Advantages of Holding Companies)

सूत्रधारी कम्पनियों के प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं-

1. मूल्य नियन्त्रण तथा प्रतिस्पर्धा में कमी।

2. एकाधिकारी स्थिति का लाभ प्राप्त होना।

3. आन्तरीक एवं बाह्य मितव्ययिताओं का अधिकतम लाभ प्राप्त करना। 4. सहायक कम्पनी का पृथक् अस्तित्व बना रहना।

5. सूत्रधारी कम्पनी तथा सहायक कम्पनी के लेखे अलग-अलग तैयार किये जाते हैं जिससे इन दोनों कम्पनियों की वित्तीय स्थिति तथा लाभदायकता की जानकारी प्राप्त होती है।

6. सूत्रधारी कम्पनी किसी भी समय अपने अंशों को बेचकर सहायक कम्पनी पर अपने प्रभाव एवं नियंत्रण को समाप्त कर सकती है।

7. सहायक कम्पनी की पूँजी संसाधनों और प्रबन्धकीय क्षमता में वृद्धि होती है।

8. सहायक कम्पनियों का अस्तित्व सूत्रधारी कम्पनी से पृथक् होने के कारण आयकर के उद्देश्य से सहायक कम्पनियों की हानियाँ भावी वर्षों के लाभों से अपलिखित की जा सकती हैं।

सूत्रधारी कम्पनियों की हानियाँ (Disadvantages of Holding Companies)

सूत्रधारी कम्पनी की प्रमुख हानियाँ निम्नलिखित हैं-

1. एकाधिकार की स्थापना होने से उपभोक्ताओं का शोषण हो सकता है। 2. कभी-कभी सूत्रधारी कम्पनी ऐसे निर्णय लेती है जो सहायक कम्पनी के विकास में बाधक सिद्ध होते हैं।

3. अल्पमत अंशधारियों के अधिकारों को दबाकर सूत्रधारी कम्पनी के द्वारा अनुचित लाभ प्राप्त किया जा साकता है जिससे अल्पमत अंशधारियों का अहित होता है।

4. सूत्रधारी कम्पनी का सहायक कम्पनी पर पूर्ण नियन्त्रण होने से छल-कपट की सम्भावना बढ़ जाती है।

5. सूत्रधारी कम्पनी की स्थापना से आर्थिक शक्ति के केन्द्रीकरण को बढ़ावा मिलता है जिससे धन के दुरुपयोग का भय बना रहता है। कई बार सूत्रधारी कम्पनी के निर्देश पर सहायक कम्पनी को अधिक पारिश्रमिक पर प्रबन्धक अथवा संचालक नियुक्त करने पड़ते हैं। 6. अन्तर-कम्पनी के स्टॉक मूल्यांकन में कठिनाई होती है। Consolidated Balance Sheet of Holding Companies

चिट्ठा और लाभ-हानि खातों/विवरणों का समेकन (Consolidation of Balance Sheet and Profit and Loss Account)

भारतीय कम्पनी अधिनियम, 1956 के अनुसार मिश्रित चिट्ठा व मिश्रित लाभ-हानि खाता बनाना आवश्यक नहीं है। किन्तु समूह की सम्मिलित स्थिति दर्शाने के लिये समूहित या मिश्रित चिट्ठा व लाभ-हानि खाता बनाना वांछनीय है। भारतीय कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 129 के अनुसार, सूत्रधारी कम्पनी और सहायक कम्पनी के मिश्रित चिट्टे या वित्तीय विवरण बनाना आवश्यक है। इसके साथ ही स्कन्ध विपणि पर अंशों के सूचीयन की आवश्यकताओं की दृष्टि से सूचीयन अनुबन्ध के वाक्य 32 में यह व्यवस्था है कि सभी सूचीयत कम्पनियों को यह आवश्यक है कि वे प्रतिवर्ष लेखांकन प्रमाप-21 (AS-21) के अनुसार मिश्रित वित्तीय विवरण तैयार करें और उसे अपनी वार्षिक रिपोर्ट में शामिल करें।

मिश्रित चिट्ठा या वित्तीय विवरण से आशय ऐसे चिट्ठे या वित्तीय विवरणों से है, जिसमें एक समूह (सूत्रधारी एवं उसकी सहायक कम्पनियों) की कम्पनियों का चिट्ठा या वित्तीय विवरण इस प्रकार तैयार किया जाता है, जैसे कि वह एक उपक्रम ही हो। इसका उद्देश्य सूत्रधारी कम्पनी के अंशधारियों को सहायक कम्पनियों व सूत्रधारी कम्पनी की वित्तीय स्थिति व लाभ-हानि के बारे में सूचना देना है ताकि उन्हें यह ज्ञात हो सके कि उनके धन का उपयोग किस प्रकार हो रहा है। AS-21 के अनुसार, मिश्रित या समेकित वित्तीय विवरणों में निम्नलिखित को शामिल किया जाता है:

(1) मिश्रित या समेकित चिट्ठा,

(2) मिश्रित या समेकित लाभ-हानि विवरण, (3) खातों के नोट्स, अन्य विवरण एवं व्याख्यात्मक सामग्री,

(4) समेकित रोकड़ प्रवाह विवरण, यदि सूत्रधारी कम्पनी अपना कोष प्रवाह विवरण प्रस्तुत करती है।

समेकित वित्तीय विवरण यथासम्भव उसी प्रारूप में प्रस्तुत किए जाते हैं, जिन्हें सूत्रधारी कम्पनी द्वारा अपने पृथक् वित्तीय विवरण के लिए अपनाया गया है।

मिश्रित चिट्ठा तैयार करना (Preparing Consolidated Balance Sheet)

मिश्रित चिट्ठे में सूत्रधारी कम्पनी और उसकी सहायक कम्पनी के चिट्ठों की विभिन्न सम्पत्ति और दायित्व की मदों को जोड़कर लिखा जाता है किन्तु इसमें निम्नलिखित समायोजन किये जाते हैं-

1. सहायक कम्पनी के अंशों में विनियोग खाते की समाप्ति ( Elimination of Investment in Shares Account of Subsidiary)—

सूत्रधारी कम्पनी के चिट्ठे के सम्पत्ति पक्ष में प्रदर्शित “Investment in Shares of Subsidiary A/c” सूत्रधारी कम्पनी की सहायक कम्पनी में समता (Equity) से निरस्त हो जाता है। सूत्रधारी कम्पनी की सहायक कम्पनी में समता का आशय अंश क्रय की तिथि पर सहायक कम्पनी की अंश पूँजी, संचितियों और अवितिरित लाभों में सूत्रधारी कम्पनी के भाग के योग से होता है।

2. सहायक कम्पनी के पूँजी और आयगत लाभ की गणना (Calculation of CapitalProfits and Revenue Profits of Subsidiary) सहायक कम्पनी के लाभों को पूँजीगत लाभ (अंश क्रय से पूर्व के लाभ) और आयगत लाभ (अंश क्रय के बाद के लाभ) में विभाजित करना आवश्यक होता है, क्योंकि सहायक कम्पनी के पूँजीगत लाभों में सूत्रधारी कम्पनी के भाग को सहायक कम्पनी, में विनियोग की लागत से समायोजित किया जाता है, जबकि उसके आयगत लाभों में भाग को मिश्रित चिट्ठे में सूत्रधारी कम्पनी के लाभों में जोड़कर दिखलाया जाता हैं। इस विभाजन के लिये अंश क्रय की तिथि निर्धारक कारक होती है। सूत्रधारी कम्पनी द्वारा सहायक कम्पनी में विनियोग की तिथि पर सहायक कम्पनी के चिट्ठे में प्रदर्शित संचित लाभ और संचितियों को पूँजीगत लाभ या क्रय से पूर्व का लाभ कहते हैं तथा अंश क्रय की तिथि के बाद अर्जित लाभ और बनायी गई संचितियों को आयगत लाभ या क्रय के बाद के लाभ कहते हैं। Consolidated Balance Sheet of Holding Companies

अंश क्रय की तिथि पर यदि सहायक कम्पनी के चिट्ठे में हानियाँ दर्शायी गयी हैं तो ये पूँजीगत हानियाँ होंगी तथा इन हानियों में सूत्रधारी कम्पनी के भाग को या तो सहायक कम्पनी में अंशों की लागत में जोड़ देना चाहिये या सूत्रधारी कम्पनी की सहायक कम्पनी की समता में से घटा देना चाहिये। अंश क्रय की तिथि के बाद सहायक कम्पनी की हानियाँ आयगत हानियाँ होती हैं और इनमें सूत्रधारी कम्पनी के भाग को मिश्रित चिट्ठे में सूत्रधारी कम्पनी के अपने लाभों में से घटा दिया जाता है।

जहाँ तक अल्पमत अंशधारियों का सम्बन्ध है, उनके लिये पूँजीगत और आयगत लाभ-हानि का अन्तर निरर्थक है। सहायक कम्पनी के कुल लाभ और संचितियों में अल्पमत अंशधारियों के भाग को ‘अल्पमत अंशधारी हित’ की गणना में सम्मिलित किया जायेगा।

3. ख्याति अथवा पूँजीगत संचिति की गणना (Calculation of Goodwill or Capital Reserve)—इसकी गणना के लिये अंश क्रय की लागत (Cost of Shares Acquired) की तुलना सूत्रधारी कम्पनी की सहायक कम्पनी में समता के मूल्य (Value of Holding Company’s Equity in Subisidiary) से की जाती है

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