Fiscal Policy of India

Fiscal Policy of India

भारत की राजकोषीय नीति

स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत में लोक-कल्याणकारी राज्य की स्थापना हुई। 1951 ई० से देश में आर्थिक नियोजन अपनाया गया। तीव्र आर्थिक विकास, जन-कल्याण, समाजवादी समाज की रचना, न्याय, समानता आदि आर्थिक नियोजन के उद्देश्य रखे गए। इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए राजकोषीय नीति का सहारा लिया गया। भारत की राजकोषीय नीति, विकास योजनाओं के उद्देश्यों के अनुरूप बनाई गई है।

Fiscal Policy of India

भारत की राजकोषीय नीति को सफल बनाने के लिए कर नीति को प्रभावी रूप से लागू किया गया है। भारत की कर नीति के दो उद्देश्य रहे हैं—प्रथम, आय प्राप्त करना तथा द्वितीय, आर्थिक विषमता को दूर करना। इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए देश में अनेक कर लगाए गए हैं; जैसे—आय कर, विक्रय कर, उत्पादन कर आदि। कुछ कर प्रगतिशील दरों से लगाए गए हैं; अर्थात् प्रारम्भ में एक सीमा तक करों में छूट दी जाती है किन्तु बाद में करों की दर बढ़ती जाती है। प्रगतिशील दर से कर लगाने के कारण धनिकों पर कर-भार अधिक पड़ता है, जबकि गरीबों पर कम। Fiscal Policy of India

राजकोषीय नीति के उद्देश्य (Objectives of Fiscal Policy)

भारत के परिप्रेक्ष्य में एक विकासशील अर्थव्यवस्था में राजकोषीय नीति के निम्नलिखित उद्देश्य हो सकते हैं-

1. रोजगार के अवसर बढ़ाना-राजकोषीय नीति का एक प्रमुख उद्देश्य रोजगार के अवसर बढ़ाना तथा बेकारी व अर्द्ध-बेरोजगारी को कम करना होता है। इसके लिए राज्य को सामाजिक व आर्थिक सुविधाएँ बढ़ानी चाहिए। ग्रामीण जनसंख्या वाले क्षेत्रों में सामुदायिक विकास कार्यक्रम को अपनाना चाहिए।

2. आर्थिक स्थिरता को बढ़ावा-राजकोषीय नीति का उद्देश्य अन्तर्राष्ट्रीय चक्रीय उतार-चढ़ाव के विपरीत प्रभावों को कम कर देश में आर्थिक स्थिरता प्रदान करना है। राजकोषीय नीति बाहरी एवं आन्तरिक शक्तियों को नियन्त्रित कर आर्थिक स्थिरता प्रदान करती है। तेजी काल में उतार-चढ़ाव को कम करने के लिए आयात-निर्यात पर कर लगाए जाते हैं जबकि मन्दी. काल में सार्वजनिक निर्माण कार्यों को बढ़ावा देकर उसके दुष्प्रभावों को कम किया जाता है।

3. निवेश की दर में वृद्धि-राजकोषीय नीति का उद्देश्य निजी व सार्वजनिक क्षेत्र में निवेश की दर को बढ़ाना है। निवेश की दर बढ़ाने के लिए सरकार को सार्वजनिक क्षेत्र में योजनाबद्ध निवेश की नीति प्रारम्भ करनी चाहिए। इससे निजी क्षेत्र में निवेश की मात्रा बढ़ती है। निर्धन देशों में प्रति व्यक्ति आय कम होने व रोजगार की कमी के कारण पूँजी निर्माण की दर कम होती है। यहाँ निर्धनता का कुचक्र प्रमुख समस्या होती है। अत: यहाँ राजकोषीय नीति करों के द्वारा उपभोग को कम करती है तथा बचत को प्रोत्साहित करने का प्रयत्न करती है। विकसित देशों में अवांछित उपभोग को कम करने में करारोपण की नीति को काम में लाया जाता है।

4. पूँजी निर्माण-राजकोषीय नीति का उद्देश्य देश में पूँजी निर्माण को बढ़ावा देना भी है। राष्ट्रीय आय कम होने से देश में बचत व विनियोग कम होते हैं, फलस्वरूप पूँजी निर्माण भी कम होता है। इस कमी को दूर करने के लिए राजकोषीय नीति का सहारा लिया जाता है। राजकोषीय नीति में कर नीति के माध्यम से उपभोग को कम करके बचत को प्रोत्साहित किया जाता है। इससे देश में पूँजी निर्माण में वृद्धि होती है।

5. तीव्र आर्थिक विकास-तीव्र आर्थिक विकास में सरकार का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। सरकार अपनी आय राजकोषीय नीति के माध्यम से उन कार्यों पर व्यय कर सकती है जो देश के तीव्र आर्थिक विकास में सहयोग दे सकें। आधारभूत उद्योग, सिंचाई, विद्युत आदि पर व्यय करके सरकार तीव्र आर्थिक विकास का मार्ग खोलती है। Fiscal Policy of India

6. साधनों का उचित आवंटन-साधनों का उचित आवंटन भी राजकोषीय नीति का एक प्रभावी उद्देश्य है। प्रायः सभी प्राकृतिक व मानवीय संसाधन अपनी आवश्यकता की तुलना में सीमित हैं, अत: उनको दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए तथा इन साधनों के प्रयोग को उन कार्यों में प्राथमिकता दी जानी चाहिए जो अधिक आवश्यक हैं। देश की सम्पदा का दुरुपयोग रोकने व उसका न्यायोचित वितरण करने तथा रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए प्रयोग होने से ही साधनों का अनुकूलतम वितरण हो सकता है। राजकोषीय नीति के माध्यम से साधनों का हस्तान्तरण विलासितापूर्ण कार्यों से आवश्यक कार्यों की ओर हो सकता है।

7. मूल्य स्थायित्व-मूल्यों में उतार-चढ़ाव का सभी पहलुओं से समाज के विभिन्न अंगों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। मूल्यों में वृद्धि से जहाँ जनसामान्य पर बुरा असर पड़ता है तथा अनुचित लाभ कमाने के अवसर बढ़ जाते हैं, वहीं मूल्यों में कमी से रोजगार व उत्पादन पर बुरा असर पड़ता है। राजकोषीय नीति इन दोनों दोषों को दूर कर मूल्यों में स्थायित्व लाने का प्रयास करती है। करों में कमी करके अथवा आर्थिक सहायता प्रदान कर मूल्य कम किए जाते हैं। इस प्रकार मूल्यों में गिरावट होने पर सरकार अधिक मूल्य पर वस्तु खरीद कर अथवा वस्तुएँ खरीदने के लिए आर्थिक सहायता प्रदान कर मूल्यों में होने वाली गिरावट को रोकती है। 8. मुद्रास्फीति पर नियन्त्रण-सार्वजनिक आय की तुलना में सार्वजनिक व्यय अधिक होने के कारण वर्तमान समय में घाटे की वित्त व्यवस्था का सहारा लिया गया है। घाटे की वित्त व्यवस्था अपनाने से देश में मुद्रा स्फीति की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। मुद्रा स्फीति का देश की अर्थव्यवस्था पर बहुत प्रतिकूल असर पड़ता है अत: इस पर तुरन्त रोक लगाना आवश्यक हो जाता है। राजकोषीय नीति का एक उद्देश्य देश में मुद्रा स्फीति पर नियन्त्रण भी हो सकता है। राजकोषीय नीति द्वारा बचत को प्रोत्साहन दिया जाता है जिससे बाजार में मुद्रा की मात्रा कम हो जाती है, परिणामस्वरूप मुद्रा स्फीति कम हो जाती है। राजकोषीय नीति द्वारा ‘कर’ बढ़ाकर जनता की क्रय शक्ति को सीमित किया जाता है। इससे मुद्रा स्फीति एवं मूल्य वृद्धि पर नियन्त्रण लगता है।

9. पर्याप्त आय प्राप्त करना-राजकोषीय नीति का सबसे प्रभावी उद्देश्य पर्याप्त सार्वजनिक आय प्राप्त करना है। वर्तमान समय में सरकार के उत्तरदायित्वों का क्षेत्र बहुत बढ़ गया है, अत: अपने उत्तरदायित्वों को पूरा करने के लिए सरकार को पर्याप्त मात्रा में आय की आवश्यकता होती है। यद्यपि धन के अभाव में राज्य अपने उत्तरदायित्वों को पूरा असमर्थ होते हैं, किन्तु आय वृद्धि के लिए अन्धाधुन्ध ‘कर’ नहीं लगाए जा सकते हैं। ‘कर’ देश के निवासियों की करदान क्षमता पर आधारित होने चाहिए तथा सामाजिक दृष्टि से सभी पर बराबर कर-भार होना चाहिए। साथ ही करारोपण का देश में बचत व विनियोग पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए। इस प्रकार राजकोषीय नीति का मुख्य उद्देश्य उचित करारोपण व्यवस्था द्वारा सरकार की आय में वृद्धि करना है+

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