Meaning of Self-development
आत्मविकास का आशय
आत्मविकास से आशय एक व्यक्ति में गुणों की समग्रता अर्थात् शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक विकास तथा भौतिकवादिता व आध्यात्मिकता के मिलन से है। वास्तव में, उपर्युक्त गुणों के सन्तुलित शैली में सम्यक् विकास का नाम ही आत्मविकास है।
एक समाज में व्यक्तियों के बीच वार्तालाप केवल सम्प्रेषण के द्वारा ही सम्भव है। आत्मविकास व सम्प्रेषण एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं। अधिक स्पष्ट शब्दों में ‘आत्म’ शब्द से आशय एक व्यक्ति की समग्रता से है, जो उसके निजी गुणों व लक्षणों से सम्बन्धित होती है। गुणों की समग्रता से आशय शारीरिक शक्ति, बौद्धिक प्रतिमान, भौतिकवादिता, आध्यात्मिकता आदि गुणों से है। आत्मविकास बहुआयामी भी हो सकता है।
आधुनिकीकरण के साथ ही विकास की परिभाषा भी बदलती जा रही है। आत्मविकास अब बहुआयामी के साथ ही साथ तीव्रगामी भी होता जा रहा है। आत्मविकास के द्वारा सम्प्रेषण की विधा पर भी प्रभाव पड़ता है तथा हुई परिस्थिति में सम्प्रेषण के प्रकारों में भी तीव्र परिवर्तन परिलक्षित होता है। आत्मविकास सम्प्रेषण के स्रोतों को परिमार्जित भी करता है।
Meaning of self-development
development refers to the totality of qualities in a person i.e. physical, mental, intellectual development and union of materialism and spirituality. In fact, the name of right development in a balanced style of the above qualities is self-development.
In a society, conversation between individuals is possible only through communication. Self-development and communication are interdependent. In more precise terms, the word ‘atma’ refers to the totality of a person, which is related to his personal qualities and traits. The totality of qualities means physical strength, intellectual pattern, materialism, spirituality etc. Self-development can also be multidimensional.
With modernization, the definition of development is also changing. Self-development is now becoming multidimensional as well as rapid. Through self-development, the mode of communication is also affected and in the situation that has happened, rapid changes are also reflected in the types of communication. Self-development also refines the sources of communication.