National Income of India Notes
प्रश्न 15-राष्ट्रीय आय पर एक विस्तृत लेख लिखिए। Write a detailed note on National Income.
अथवा राष्ट्रीय आय की विभिन्न अवधारणाओं को स्पष्ट कीजिए। Explain the different concepts of National Income.
राष्ट्रीय आय-अर्थ व परिभाषा
(National Income : Meaning and Definition)
सामान्यतया व्यक्तियों, कम्पनियों और सरकार को आय प्राप्त होती है व इनकी आय के स्रोत पृथक्-पृथक् होते हैं। व्यक्तियों को मजदूरी, वेतन, शुल्क, लगान, ब्याज, लाभांश आदि मिलता है। कम्पनियों और सरकारी उद्यमों को लाभ, लगान, ब्याज, लाभांश आदि प्राप्त होता है। सरकार भी कुछ मात्रा में लाभ, लगान, ब्याज आदि प्राप्त करती है। किन्तु इन सभी आयों के कुल योग को राष्ट्रीय आय नहीं कहा जा सकता क्योंकि सभी प्रकार के धन के स्थानान्तरण, आय के स्रोत नहीं होते।
राष्ट्रीय आय में प्रमुख रूप से निम्नलिखित तीन बातें सम्मिलित की जाती हैं-
(1) किसी समय-विशेष में उत्पादन के साधनों से नकद या वस्तु के रूप में मिलने वाली समस्त आय का कुल योग।
(2) राष्ट्रीय उत्पादन के कुल उद्यमों में होने वाले विशुद्ध उत्पादनों का कुल योग।
(3) उपभोक्ताओं के खर्चे, माल और सेवाओं पर सरकारी व्यय तथा पूँजीगत माल पर विशुद्ध व्यय का कुल योग।
प्रो० मार्शल ने देश के समस्त उत्पादन से प्राप्त होने वाली आय को, चाहे उत्पादन भौतिक वस्तुओं के रूप में हो अथवा अभौतिक वस्तुओं के रूप में, राष्ट्रीय आय में सम्मिलित किया है।

राष्ट्रीय आय की विभिन्न अवधारणाएँ
(Various Concepts of National Income)
राष्ट्रीय आय के सम्बन्ध में निम्नलिखित धारणाएँ प्रचलित हैं-
1. कुल राष्ट्रीय उत्पाद-किसी अर्थव्यवस्था में जो भी अन्तिम वस्तुएँ और सेवाएँ एक वर्ष की अवधि में उत्पादित की जाती हैं, उन सभी के बाजार मूल्य के योग को ‘कुल राष्ट्रीय उत्पाद’ कहते हैं। इसमें हम केवल उन्हीं वस्तुओं और सेवाओं को लेते हैं, जो कि बाजार में आती हैं।
कुल राष्ट्रीय उत्पाद के सम्बन्ध में निम्नलिखित बातें ध्यान में रखना आवश्यक है-
(i) कुल राष्ट्रीय उत्पाद को चालू वर्ष में ही उत्पादित वस्तुओं के मौद्रिक मूल्य में सम्मिलित किया जाता है।
(ii) कुल राष्ट्रीय उत्पाद को सही-सही आँकने के लिए किसी भी एक वर्ष में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं को केवल एक ही बार गिना जाना चाहिए, एक से अधिक बार नहीं।
(iii) इसमें केवल अन्तिम वस्तुएँ ही सम्मिलित की जाती हैं। कुल राष्ट्रीय उत्पाद की गणना की दो विधियाँ हैं-
(क) कुल राष्ट्रीय आय की विधि—इसका अभिप्राय किसी राष्ट्र द्वारा एक वर्ष की अवधि में वस्तुओं एवं सेवाओं पर किए गए कुल व्यय से है। इस व्यय को चार भागों में बाँटा जा सकता है-
(अ) व्यक्तिगत उपभोग पर व्यय, (ब) व्यक्तिगत व्यवसायों द्वारा निवेश पर व्यय, (स) सरकार द्वारा वस्तुओं तथा सेवाओं पर व्यय और (द) विदेशियों द्वारा किए गए व्यय।
(ख) कुल राष्ट्रीय उत्पाद की आय विधि-अर्थव्यवस्था में उत्पादित की गई वस्तुओं और सेवाओं पर जो व्यय किया जाता है, वही विभिन्न उत्पादन साधनों की आय बन जाता है। कुल व्यय के दो तत्त्व आय रूप में उपलब्ध नहीं होते-ह्रास तथा परोक्ष कर। सूत्र रूप में,
GNP = मजदूरी + लगान + ब्याज + लाभ – (परोक्ष कर + ह्रास)
2. कुल घरेलू उत्पाद किसी देश में एक वर्ष की अवधि में जिन वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन किया जाता है, उनके मौद्रिक मूल्य को ही ‘घरेलू उत्पाद’ कहते हैं। इस मूल्य में से आय को घटा दिया जाता है, जो हमारे देश में विदेशियों द्वारा अर्जित की जाती है तथा इसमें विदेशों से प्राप्त आय को जोड़ दिया जाता है। सूत्र रूप में,
GDP = कुल राष्ट्रीय उत्पाद – (निर्यात मूल्य – आयात मूल्य)
3. शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद-कुल राष्ट्रीय उत्पाद (G.N.P.) में से मूल्य ह्रास (Depreciation) एवं पुरानेपन से होने वाला ह्रास (Obsolescence) घटा देने से जो शेष बचता है, उसे ‘शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद’ (N.N.P.) कहते हैं। इसे ‘बाजार मूल्यों पर राष्ट्रीय आय’ (National Income at Market Prices) भी कहा जाता है। संक्षेप में,
शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद = कुल राष्ट्रीय उत्पाद – ह्रास
शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद की धारणा चालू उपयोग एवं चालू प्रतिस्थापन निवेश (Replacement Investment) के ऊपर कुल उत्पादन में वृद्धि को स्पष्ट करती है तथा आर्थिक विकास के लिए पूँजी की भौतिक उत्पादकता में विशुद्ध वृद्धि को प्रदर्शित करती है। ये गुण इस धारणा को विकास अर्थशास्त्र के लिए अत्यधिक उपयोगी बना देते हैं।
4. शुद्ध घरेलू उत्पाद-एक देश में एक वर्ष की अवधि में देश के अपने ही साधनों द्वारा उत्पादित की गई वस्तुओं और सेवाओं के कुल मौद्रिक मूल्य में से यदि घिसावट व्यय अथवा प्रतिस्थापन व्यय घटा दिया जाए, तो जो शेष बचता है, उसे ‘शुद्ध घरेलू उत्पाद’ कहते हैं। सूत्र रूप में,
शुद्ध घरेलू उत्पाद = कुल घरेलू उत्पाद – प्रतिस्थापन व्यय
5. साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय आय-बाजार मूल्यों पर विशुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद में से परोक्ष कर घटाने व आर्थिक सहायता जोड़ने से जो राशि आती है, वह साधन लागत पर विशुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद कहलाती है। इसे ही देश की ‘राष्ट्रीय आय’ कहा जाता है। संक्षेप में,
राष्ट्रीय आय = शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद – परोक्ष कर + आर्थिक सहायता
6. वैयक्तिक आय–एक वर्ष की अवधि में एक देश के सभी व्यक्ति या परिवार जितनी आय वास्तव में प्राप्त करते हैं, उन सभी आयों के योग को ‘वैयक्तिक आय’ कहते हैं। इसके अन्तर्गत हम मजदूरी, वेतन, ब्याज, लगान तथा लाभांश आदि को सम्मिलित करते हैं। राष्ट्रीय आय में से वैयक्तिक आय निकालने के लिए हमें आय का वह भाग, जो कमाया गया हो किन्तु प्राप्त न हुआ हो, घटा देना चाहिए तथा हस्तान्तरण भुगतान जोड़ देने चाहिए। सूत्र रूप में,
वैयक्तिक आय = राष्ट्रीय आय – (सामाजिक सुरक्षा कटौती + संयुक्त पूँजी वाली कम्पनियों के लाभ का वह भाग जो शेयर होल्डर्स में न बाँटा गया हो- हस्तान्तरित भुगतान)
7. उपभोग्य आय-व्यक्ति तथा परिवारों के पास जो वैयक्तिक आय होती है, वह सब उपभोग कार्यों पर व्यय नहीं की जाती क्योंकि वैयक्तिक आय के एक भाग का वैयक्तिक करों के रूप में सरकार को भुगतान करना होता है और केवल वह भाग जो शेष बचा रहता है, उपभोग के काम आता है। अतः वैयक्तिक आय में से सरकार द्वारा लगाए गए वैयक्तिक करों को निकाल देने से जो भाग शेष रहता है, उसे ‘उपभोग्य आय’ कहते हैं। सूत्र रूप में,
उपभोग्य आय = वैयक्तिक आय-वैयक्तिक कर
परन्तु यह आवश्यक नहीं है कि उपभोग्य आय पूरी तरह से उपयोग पर व्यय कर दी जाए। प्राय: व्यक्ति अपनी आय का कुछ भाग बचा लेते हैं। सूत्र रूप में,
उपभोग्य आय = उपभोग + बचत
राष्ट्रीय आय के द्वारा न मापी जाने वाली प्रक्रियाएँ
(Activities which are not measured by National Income)
एक दिए गए वर्ष में राष्ट्रीय आय संगठित बाजार में आर्थिक क्रियाओं के प्रवाह को मापने का कार्य करती है, किन्तु उन आर्थिक क्रियाओं को, जो बाजार के बाहर घटित होती हैं, राष्ट्रीय आय नहीं मापती है, हालाँकि इनके द्वारा वास्तविक साधनों का उपयोग किया जाता है तथा ये मनुष्य की आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करती हैं। राष्ट्रीय आय द्वारा न मापी जाने वाली ऐसी प्रमुख क्रियाएँ निम्न प्रकार हैं-
1. काला धन इकट्ठा करने सम्बन्धी क्रियाएँ (Black Money Collecting Activities)-ऐसी आय, जो आयकर के अन्तर्गत नहीं दर्शायी जाती, काले धन के अन्तर्गत आती है।
2. गैर-बाजार सम्बन्धी क्रियाएँ (Non-market related Activities)—इनके अन्तर्गत निम्नलिखित क्रियाओं को शामिल किया जाता है स्वेच्छा से बिना पारिश्रमिक किया हुआ कार्य, गृहिणी द्वारा किया गया गृह-कार्य इत्यादि।
3. अवैधानिक आर्थिक क्रियाएँ (Illegal Economic Activities)-जैसे नशीली दवाओं का व्यापार, चोरी की वस्तुओं का व्यापार, जुआ खेलना, वेश्यावृत्ति इत्यादि।
भारत में राष्ट्रीय आय की धीमी वृद्धि के कारण
(Causes of Slow Growth of National Income in India)
भारत में राष्ट्रीय आय एवं प्रति व्यक्ति आय के कम होने के पीछे बहुत-से कारण हैं। इनमें से प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-
1. औद्योगीकरण का पिछड़ना (Backwarding of Industrialization)भारत में राष्ट्रीय आय में कम वृद्धि होने के पीछे औद्योगीकरण का पिछड़ना भी एक कारण है। भारत में अभी भी आधुनिक ढंग के आधारभूत बड़े उद्योगों का अभाव है। यही नहीं, उपभोक्ता उद्योगों का भी अभी यहाँ पूरी तरह से विकास नहीं हो पाया है। किन्तु पिछले कुछ वर्षों से वैश्वीकरण तथा उदारीकरण के कारण इस दिशा में काफी तेजी से परिवर्तन देखने में आ रहे हैं तथा अनुमान है कि इससे देश की राष्ट्रीय आय तथा प्रति व्यक्ति आय बढ़ने की पूर्ण सम्भावनाएँ हैं।
2. कृषि पर अधिक निर्भरता (More Dependence on Agriculture)-भारत की राष्ट्रीय आय कम होने का प्रमुख कारण यहाँ के लोगों का बहुतायत में कृषि पर आश्रित होना है। यहाँ प्रत्येक 10 व्यक्तियों में से लगभग 7 व्यक्ति केवल कृषि पर आश्रित हैं। इसकी वजह से कृषि पर अधिक भार पड़ता है, जिसके परिणामस्वरूप देश में पट्टे, उपविभाजन, अनार्थिक जोत, भूमिहीन ग्रामीणों तथा अपखण्डन इत्यादि की समस्याएँ बहुत अधिक हैं, जिनका प्रभाव कृषि उत्पादन पर काफी प्रतिकूल पड़ता है तथा भारतीय राष्ट्रीय आय भी कम रहती है।
3. पूँजी निर्माण की कमी का होना (Lack of Capital Formation)-भारत को आज भी Poor Capital Economy कहा जाता है, जिसका प्रमुख कारण है-बचत का कम होना तथा उद्योगों के लिए पर्याप्त पूँजी का न मिल पाना। इसके अलावा यहाँ पर परम्परागत विधियाँ तथा उपकरण प्रयुक्त होते हैं और व्यक्तियों के द्वारा पैतृक धन्धों में लगना, उत्पादन का छोटा होना, कम मशीनों का प्रयोग करना इत्यादि भी कम पूँजी निर्माण के महत्त्वपूर्ण कारण हैं। वास्तव में पूँजी निर्माण की दृष्टि से भारत में तीन प्रकार की समस्याएँ पायी जाती हैं-
(i) कम राष्ट्रीय आय का होना
(ii) कम बचत का होना
(iii) जनसंख्या का बाहुल्य होना।
उक्त तीनों के संयुक्त परिणाम की वजह से यहाँ पूँजी के निर्माण की दर कम है।
4. योग्य साहसियों का अभाव (Lack of Efficient Entrepreneurs)-यह निश्चित है कि आर्थिक विकास के क्षेत्र में साहसी वर्ग का होना अत्यन्त आवश्यक है। साहसी वर्ग ही निर्जीव साधनों को सक्रिय साधनों में बदल देता है और औद्योगिक अवसरों का पता लगाकर उनमें पदार्पण करता है तथा जोखिम उठाकर लाभ कमाने की चेष्टा करता है। उदारीकरण से पूर्व भारत का सामाजिक, आर्थिक वातावरण इस तरह का बना रहा जिससे साहसियों की कमी बनी रही। नतीजा यह हुआ कि यहाँ की राष्ट्रीय आय भी कम रही।
5. आर्थिक संरचना में कमी (Shortage in Economic Infrastructure)-देश में आर्थिक विकास के लिए जिस आर्थिक संरचना की आवश्यकता थी. उसकी पर्याप्त मात्रा नहीं थी। ये आधारभूत संरचना हैं रेलवे, सड़क, बिजली, पुल इत्यादि। इनकी कमी की वजह से देश का आर्थिक विकास तीव्र गति से नहीं हो सका, जिसके कारण यहाँ की राष्ट्रीय आय कम रही।
6. निम्न उत्पादकता (Low Productivity)-हमारे देश की प्रति श्रमिक उत्पादकता आय एवं अन्य विकसित देशों की तुलना में काफी कम है जिसकी वजह से भी प्रति व्यक्ति राष्ट्रीय आय में कम वृद्धि होती है।
7. बेरोजगारी की समस्या (Problem of Unemployment)-देश में बेरोजगारी तथा अर्द्ध-बेरोजगारी की समस्या काफी विस्तृत है, जिसका प्रमुख कारण यहाँ जनसंख्या का बाहुल्य है। यहाँ श्रमिकों की बहुलता तथा पूँजीगत साधनों का अभाव है, अतः समस्त कार्यकारी जनमानस को लाभकारी रोजगार देना सभी सरकारों के लिए लोहे के चने चबाने जैसा हो गया है जिसकी वजह से राष्ट्रीय आय तथा प्रति व्यक्ति आय काफी कम है।
8. राष्ट्रीय आय का असमान वितरण (Unequal Distribution of National Income)-भारत में राष्ट्रीय आय का वितरण बहुत ही असमान है, जिसका मुख्य कारण यहाँ की कर नीति है। वर्तमान समय में यहाँ का गरीब व्यक्ति अधिक गरीब होता जा रहा है तथा अमीर व्यक्ति और अधिक अमीर होता जा रहा है।
9. जाति तथा धर्म के बन्धन (Boundations of Caste and Religion)-भारत में जाति तथा धर्म के बन्धन इतने कठोर हैं कि नवीन परिस्थितियों में भी ये टूटने का नाम नहीं ले रहे। इनके कारण यहाँ की अधिकांश जनता में गतिशीलता का अभाव है, जिसके कारण उद्योग पिछड़ी हुई स्थिति में हैं।
10. बच्चों का शीघ्र विवाह (Early Marriage of Children)-भारत में जहाँ भी अशिक्षा की स्थिति व्याप्त है, वहाँ के परिवारों में आज भी लड़के, लड़कियों को बाल्यावस्था में ही विवाह के बन्धन में बाँध दिया जाता है, जिससे बच्चों का पूर्ण विकास नहीं हो पाता तथा वे अल्पायु में ही सामाजिक बन्धन में बंध जाते हैं और केवल जनसंख्या बढ़ाने में ही अपना योगदान दे पाते हैं।
ll. अशिक्षा व अज्ञानता (literacy and Ignorance)-हमारे देश की जनसंख्या का काफी बड़ा भाग आज भी अशिक्षित एवं अज्ञानी है, जिसके कारण देश आर्थिक एवं सामाजिक दृष्टिकोण से पिछड़ा हुआ है।
देश की राष्ट्रीय आय बढ़ाने हेतु सुझाव (Suggestions for Raising The National Income of the Country)
देश की राष्ट्रीय आय बढ़ाने हेतु कतिपय सुझाव निम्नलिखित हैं-
(1) ग्रामों का समन्वित विकास होना चाहिए,
(2) कृषि का समुचित विकास किया जाए,
(3) सामाजिक पूँजी का विकास किया जाए,
(4) औद्योगिक विकास की दर को और अधिक बढ़ाया जाए,
(5) वित्तीय स्थिरता लायी जाए,
(6) पूँजी तथा उत्पादन अनुपात में कमी लायी जानी चाहिए,
(7) बचत तथा विनियोग की दर को बढ़ाया जाना चाहिए;
(8) मानवीय पूँजी का विकास अत्यधिक मात्रा में किया जाए;
(9) वैज्ञानिक तथा तकनीकी विकास तेजी से होना चाहिए,
(10) जनसंख्या को नियन्त्रित करने की आवश्यकता है। ‘One Child Norm’ को अपनाना चाहिए।
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