Inflation Meaning in Hindi Notes
प्रश्न 14- मुद्रा स्फीति से आपका क्या अभिप्राय है? इसके प्रभाव की चर्चा कीजिए। इसे कैसे नियन्त्रित किया जा सकता है? What do you mean by Inflation ? Discuss its effects. How can it be controlled ?
मुद्रा स्फीति (Inflation)
जब कोई देश अपने देश की मुद्रा के बदले दूसरे देश की मुद्रा को पहले से कम मूल्य में लेने के लिए तैयार होता है तो उसे मुद्रा का अवमूल्यन कहते हैं। मुद्रा स्फीति की कोई पूर्ण तथा सामान्य परिभाषा देना सरल नहीं है क्योंकि भिन्न-भिन्न अर्थशास्त्रियों ने भिन्न-भिन्न दृष्टिकोणों से ‘मुद्रा स्फीति’ की व्याख्या की है। अत: मुद्रा स्फीति की स्थिति का सही परिचय पाने के लिए यहाँ कुछ महत्त्वपूर्ण परिभाषाओं का अध्ययन करना उचित होगा।
प्रो० कैमरर के शब्दों में—“मुद्रा स्फीति वह अवस्था है जिसमें मुद्रा का मूल्य गिरता है अर्थात् कीमतें बढ़ती हैं।”
यद्यपि प्रो० कैमरर का विचार अत्यन्त सरल, व्यावहारिक और स्पष्ट है तथापि इस परिभाषा को पूर्णतः सन्तोषजनक नहीं कहा जा सकता क्योंकि कीमत स्तर पर होने वाली प्रत्येक वृद्धि, मुद्रा स्फीति नहीं होती है।
“मुद्रा प्रसार वह अवस्था है जब वास्तविक व्यापार की मात्रा से चलन तथा निक्षेप की मात्रा अत्यधिक होती है।”
इस परिभाषा के विश्लेषण से स्पष्ट है कि मुद्रा स्फीति उस समय उत्पन्न होती है जब विनिमय-साध्य वस्तुओं तथा सेवाओं की तुलना में मुद्रा का परिमाण बढ़ जाता है।
प्रो० हाटे के शब्दों में-“वह स्थिति, जिसमें मुद्रा का अत्यधिक निर्गमन हो, मुद्रा-स्फीति कहलाती है।”
प्रो० हाटे की यह परिभाषा नि:सन्देह अत्यन्त सरल है, परन्तु कैमरर की परिभाषा के समान ही यह परिभाषा अत्यन्त अस्पष्ट है।
मुद्रा स्फीति के प्रभाव
(Effects of Inflation)
मुद्रा स्फीति एक आर्थिक रोग है, जो सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता है। प्रो० सी०एन० वकील के शब्दों में, “मुद्रा-स्फीति एक डाकू के समान है। दोनों ही अपने-अपने शिकारों को उनकी कुछ वस्तुओं से वंचित कर देते हैं। अन्तर बस इतना है कि डाकू दिखाई देता है, जबकि मुद्रा स्फीति दिखाई नहीं देती है। डाकू का शिकार एक समय में केवल एक अथवा थोड़े-से व्यक्ति होते हैं, मुद्रा स्फीति का शिकार सम्पूर्ण राष्ट्र होता है। डाकू को न्यायालय में घसीटकर लाया जा सकता है, किन्तु मुद्रा स्फीति वैधानिक होती है।”
मुद्रा स्फीति के परिणामस्वरूप सभी वस्तुओं तथा सेवाओं की कीमतों में समान रूप से परिवर्तन नहीं होते, न ही समाज में सभी व्यक्तियों अथवा वर्गों की मौद्रिक आय में समान रूप से वृद्धि होती है। आय के वितरण में असमानता तथा रोजगार एवं उत्पत्ति के साधनों की स्थिति में परिवर्तन के कारण मुद्रा स्फीति का प्रभाव समाज के विभिन्न वर्गों पर अलग-अलग पड़ता है; यथा
1. उत्पादक तथा व्यापारी वर्ग (Producers and Traders)-सामान्यत: उत्पादक तथा व्यापारी वर्ग के लिए मुद्रा स्फीति लाभदायक ही नहीं अपितु वरदान सिद्ध होती है क्योंकि स्फीति काल में इन वर्गों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हो जाती है। इस वर्ग को अधिक लाभ होने के कई कारण हैं; जैसे-
(i) मुद्रा स्फीति में उत्पादन लागत उस अनुपात में नहीं बढ़ती, जिस अनुपात में कीमतों में वृद्धि होती है; परिणामत: उत्पादक कम लागत पर वस्तु प्राप्त करके उसे ऊँचे मूल्यों पर बेचता है जिससे उसे अधिक लाभ प्राप्त होता है।
(ii) स्फीति काल में माँग बढ़ जाने से कीमतों में वृद्धि तो होती ही है, माल भी जल्दी बिक जाता है, जिससे व्यापारी की पूँजी फंसती (Block) नहीं वरन् गतिशील रहती है। Inflation Meaning in Hindi
(iii) इस अवधि में लोगों की मौद्रिक आय में तेजी से वृद्धि होती है और वस्तुओं की माँग बढ़ जाती है। फलत: व्यापारी सरलता से अपनी वस्तुएँ अधिक मूल्य पर बेच लेते हैं।
(iv) मुद्रा स्फीति काल में उत्साहवर्द्धक वातावरण रहता है जिससे वित्तीय साधनों की उपलब्धि में कोई कठिनाई नहीं होती है।
इस प्रकार उत्पादक तथा व्यापारी वर्ग मुद्रा स्फीति से पर्याप्त लाभान्वित होता है।
2. विनियोगकर्ता वर्ग (Investors)-विनियोगकर्ता से हमारा तात्पर्य उन लोगों से है जो पूँजी को उद्योगों में लगाते हैं। विनियोग के आधार पर इस वर्ग के लोगों को दो भागों में बाँटा जा सकता है
(i) निश्चित आय वाले विनियोगी-इस वर्ग में वे विनियोगी आते हैं जिनको विनियोग से निश्चित तथा अपरिवर्तनशील आय प्राप्त होती है। ये वे लोग हैं जो सम्मिलित पूँजी कम्पनियों के ऋणपत्रों (Debentures) तथा राजकीय प्रतिभूतियों में धन का विनियोग करते हैं, जिस पर उन्हें निश्चित दर से ब्याज या लाभांश मिलता है। मुद्रा स्फीति से इस वर्ग को हानि होती है क्योंकि उनकी वास्तविक आय गिर जाती है।
(ii) परिवर्तनशील आय वाले विनियोगी-इस वर्ग के लोगों की आय व्यापार तथा कीमतों में परिवर्तनों से प्रभावित होती है। ये वे लोग हैं जो अपनी पूँजी से कम्पनियों के शेयर खरीदते हैं। इस वर्ग के लोगों को मुद्रा स्फीति से लाभ होता है क्योंकि कम्पनियों को अधिक लाभ प्राप्त होने से इनका लाभांश भी बढ़ जाता है। Inflation Meaning in Hindi
3. श्रमिक तथा अन्य निश्चित आय वर्ग (Labourers and other Fixed Income Groups)-इस वर्ग में प्राय: वे सभी व्यक्ति शामिल किए जा सकते हैं जो मुख्यत: अपनी सेवाओं का विक्रय करते हैं अर्थात् कृषि श्रमिक, औद्योगिक श्रमिक, कार्यालयों में कार्य करने वाले, अध्यापक आदि सब इसी वर्ग में आते हैं। यद्यपि इस अवधि में रोजगार आदि के नए अवसर प्राप्त होते हैं तथापि कुल मिलाकर इस वर्ग पर मुद्रा स्फीति का बुरा प्रभाव ही पड़ता है क्योंकि मुद्रा की क्रय-शक्ति में कमी हो जाने के कारण इस वर्ग का जीवन-स्तर बहुत गिर जाता है।
इसमें सन्देह नहीं कि मुद्रा स्फीति काल में महंगाई भत्ते (Dearness Allowance) आदि में भी वृद्धि की जाती है, परन्तु फिर भी मूल्य वृद्धि के दूषित प्रभाव से मजदूरी सुरक्षित नहीं रह पाती। यही कारण है कि आए दिन मजदूर हड़ताल करते हैं। प्रो० कैमरर के शब्दों में—“मध्यम वर्ग स्फीति के दिनों में अपने को गम्भीर स्थिति में पाता है। आय की तुलना में रहन-सहन का व्यय अधिक बढ़ जाता है। सारी बचत समाप्त हो जाती है और कठिन परिश्रम, स्वतन्त्रता व बचतं करने की आदत मिथ्या दिखाई पड़ती है। ऐसी परिस्थिति में मध्यम वर्ग पर निराशा तथा असफलता की भावना के बादल छा जाते हैं।”
4. उपभोक्ता वर्ग (Consumers)-समाज का प्रत्येक व्यक्ति, चाहे वह उत्पादक हो या न हो, उपभोक्ता अवश्य होता है और उपभोक्ताओं की दृष्टि से मुद्रा स्फीति सदैव ही कष्टदायक होती है क्योंकि मुद्रा की क्रय शक्ति गिर जाने से जीवन की अनिवार्यताएँ ही पूरी नहीं हो पातीं। मुद्रा स्फीति मध्यम तथा निम्न वर्ग के लिए तो नि:सन्देह एक अभिशाप सिद्ध होती है।
5. ऋणी एवं ऋणदाता वर्ग (Debtors and Creditors)-मुद्रा स्फीति से ऋणी वर्ग को लाभ तथा ऋणदाता वर्ग को हानि होती है। कीमत-स्तर में वृद्धि होने पर पहले से दिए गए ऋणों पर ब्याज की दर नहीं बढ़ती, जिसके कारण ऋणदाता को मिलने वाले ब्याज की क्रय शक्ति कम हो जाती है। यदि स्फीति काल में ही ऋणी मूलधन लौटा देता है तो ऋणी को लाभ तथा ऋणदाता को हानि होती है क्योंकि जब ऋण दिया गया था उस की अपेक्षा अब उस धन की क्रय-शक्ति गिरी हुई है। प्राय: यह कहा जा सकता है कि स्फीति-काल में ऋणों के लिए माँग अधिक होने के कारण ऋणदाता को यह लाभ होता है कि उसे अधिक ऊँची ब्याज-दर प्राप्त होती है, जबकि ऋणी को ऊँची ब्याज-दर के कारण हानि होती है। इस सम्बन्ध में यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि ब्याज-दर बढ़ने से ऋणी को वास्तव में हानि नहीं होती; क्योंकि वह अधिक लाभ का उपार्जन कर रहा होता है, जबकि ऋणदाता ऊँची ब्याज-दर के लालच में पूरी रकम को ही खतरे में डाल देता है। निरन्तर कीमतें बढ़ते रहने से हो सकता है कि ऋण की रकम वापस लौटने तक उसकी बहुत ही कम क्रय-शक्ति रह जाए। ऋणदाता को लाभ तभी हो सकता है जब कीमतों की वृद्धि-दर ब्याज-दर से कम हो, अधिक नहीं। मान लीजिए, ब्याज-दर 10 प्रतिशत वार्षिक है जबकि मुद्रा का मूल्य 20 प्रतिशत वार्षिक की दर से घट रहा है तो ऋणदाता को हानि होना स्वाभाविक ही है। Inflation Meaning in Hindi
6. अन्य प्रभाव (Other Effects)-समाज में विभिन्न वर्गों को प्रभावित करने के अतिरिक्त मुद्रा स्फीति के कुछ अन्य आर्थिक, नैतिक, सामाजिक तथा राजनीतिक प्रभाव भी होते हैं, जिनमें से कुछ विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं; जैसे-
(i) करों में वृद्धि-मुद्रा स्फीति की अवधि में सरकार पुराने करों में वृद्धि करती है तथा नए करों को लगाती है, जिनका जनता विरोध करती है; फलतः देश में तनाव व विरोध का वातावरण जन्म लेता है।
(ii) धन का असमान वितरण-मुद्रा स्फीति के परिणामस्वरूप व्यापारी तथा उत्पादक वर्ग को लाभ व निश्चित आय वर्ग के लोगों को हानि होती है, जिससे आर्थिक शक्ति कुछ ही हाथों में केन्द्रित हो जाती है। परिणामत: आय व सम्पत्ति के वितरण में विषमताएँ उत्पन्न हो जाती हैं। Inflation Meaning in Hindi
(iii) रोजगार के अवसरों में वृद्धि-मुद्रा स्फीति से उद्योगों को अधिक लाभ प्राप्त होता है, जिससे उद्योगों व व्यवसायों के विस्तार को प्रोत्साहन मिलता है। उद्योगों के विस्तार से यातायात, परिवहन व संचार सेवाओं का विस्तार, बैंकिंग सुविधाओं में वृद्धि व प्रशासकीय तन्त्र सुदृढ़ होता है। इन सब क्रियाओं के फलस्वरूप देश में बेरोजगारी की समस्या सुलझने लगती है।
(iv) ऋणों में वृद्धि-स्फीति काल में विनियोगों में वृद्धि के कारण ऋणों की मात्रा में काफी वृद्धि हो जाती है। साथ ही सरकार भी अपने घाटे के बजट को पूरा करने के लिए लोक ऋण लेती है। इस प्रकार सरकार के ऋण-भार में भी काफी वृद्धि हो जाती है।
(v) बैंकिंग तथा बीमा उद्योग का विकास-इस अवधि में लोगों की मौद्रिक आय बहुत तेजी से बढ़ती है अत: बैंकिंग तथा बीमा उद्योगों के लिए मुद्रा स्फीति वरदान सिद्ध होती है।
(vi) विदेशी व्यापार पर प्रतिकूल प्रभाव-मुद्रा स्फीति काल में आन्तरिक कीमत-स्तर में तेजी से वृद्धि होती है जिससे निर्यात हतोत्साहित और आयात प्रोत्साहित होता है; परिणामतः भुगतान शेष प्रतिकूल हो जाता है।
(vii) बचतों को आघात-मुद्रा स्फीति काल में मुद्रा की क्रय-शक्ति में कमी होने के कारण बचतों को सदैव ही आघात पहुँचता है।
(viii) नियन्त्रण का प्रसार-मुद्रा स्फीति काल में उपभोग को नियन्त्रित करने के लिए अनेक प्रतिबन्ध लगाए जाते हैं जिससे नियन्त्रण प्रणाली का जन्म होता है।
(ix) राजनीतिक अस्थिरता एवं अशान्ति-मुद्रा स्फीति काल में प्राय: वेतन तथा महँगाई भत्ते की माँग को लेकर मालिकों तथा श्रमिकों में विवाद होते हैं, जिसका परिणाम हड़ताल तथा तालाबन्दी के रूप में सामने आता है। इससे देश में राजनीतिक अस्थिरता जन्म लेती है और सारा देश अशान्ति से पीड़ित रहता है।
(x) वस्तु-संग्रह को प्रोत्साहन-मुद्रा की क्रय शक्ति में कमी होने के कारण लोग उपयोगी तथा मूल्यवान् वस्तुओं का संग्रह करने लगते हैं। इससे सामान्य जनता को अत्यन्त कष्ट होता है। सरकार कीमत नियन्त्रण तथा राशनिंग व्यवस्था को अपनाती है, जिससे भ्रष्टाचार, चोरबाजारी, रिश्वत आदि को प्रोत्साहन मिलता है।
(xi) अनैतिकता में वृद्धि-मुद्रा प्रसार से मूल्य स्तर तथा आर्थिक विषमताओं में वृद्धि होती है जिससे अनिवार्यताओं का पूरा करना भी कठिन हो जाता है; परिणामतः भ्रष्टाचार व अनैतिक व्यवहारों में अत्यधिक वृद्धि होती है। सारे समाज में दुराचार, विलासिता और बेईमानी का बोलबाला हो जाता है।
मुद्रा स्फीति को रोकने के उपाय
(Measures to control Inflation)
मुद्रा स्फीति के प्रभावों की व्याख्या के आधार पर यह स्पष्ट हो जाता है कि जाता है कि मुद्रा स्फीति एक आर्थिक रोग है। रोग चाहे कैसा भी हो, कभी अच्छा नहीं होता और उसका उपचार करना आवश्यक होता है। मुद्रा स्फीति एक ऐसा रोग है जिसका उपचार न होने पर वह दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जाता है अत: इसकी रोकथाम करना प्रत्येक सरकार का आवश्यक कर्त्तव्य होता है। मुद्रा स्फीति की स्थिति के आरम्भ होते ही इसे दबा देना अधिक अच्छा होता है। मुद्रा स्फीति को रोकने के समस्त उपायों को हम तीन खण्डों में बाँट सकते हैं
I. मौद्रिक उपाय (Monetary Measures),
II. राजकोषीय उपाय (Fiscal Measures),
III. अन्य उपाय (Other Measures)|
I. मौद्रिक उपाय (Monetary Measures)
1. मुद्रा की मात्रा कम करना-मुद्रा स्फीति की स्थिति उस समय उत्पन्न होती है जब मुद्रा की माँग की अपेक्षा मुद्रा की पूर्ति अधिक हो जाती है अत: मुद्रा की माँग को कम करने की दृष्टि से केन्द्रीय बैंक मुद्रा निर्गमन सम्बन्धी नियमों को कठोर बना सकता है, मुद्रा के पीछे रखे जाने वाले स्वर्ण व विदेशी विनिमय कोष की मात्रा बढ़ा सकता है और यदि ये सब उपाय सार्थक सिद्ध न हों तो पुरानी मुद्रा का विमुद्रीकरण करके नई मुद्राओं का प्रचलन किया जा सकता है।
2. साख मुद्रा का नियन्त्रण-मुद्रा स्फीति को रोकने के लिए साख सृजन पर अंकुश लगाना भी परम आवश्यक है। केन्द्रीय बैंक विभिन्न उपायों द्वारा साख मुद्रा पर नियन्त्रण स्थापित कर सकता है। ये उपाय हैं बैंक दर नीति, खले बाजार की क्रियाएँ, न्यूनतम नकद कोष में परिवर्तन, साख की राशनिंग, प्रत्यक्ष कार्यवाही आदि। इन उपायों का प्रयोग करके केन्द्रीय बैंक साख मुद्रा की मात्रा को वांछनीय स्तर पर ला सकता है।
3. प्रतिभूतियों का विक्रय-मुद्रा की पूर्ति को सीमित करने के उद्देश्य से केन्द्रीय बैंक अपनी प्रतिभूतियों का (जनता को) विक्रय कर सकता है। ऐसा करने से अतिरिक्त क्रय शक्ति जनता से सरकार के पास पहुँच जाएगी, जिससे मुद्रा की माँग व पूर्ति में सन्तुलन स्थापित करना सरल हो जाएगा।
II. राजकोषीय उपाय (Fiscal Measures)
मुद्रा स्फीति को नियन्त्रित करने के लिए केवल मौद्रिक उपाय ही पर्याप्त नहीं होते हैं; अतः सरकार को उपयुक्त राजकोषीय नीति का पालन करना चाहिए। इसके अन्तर्गत सरकार निम्नलिखित उपाय कर सकती है-
1. कराधान में वृद्धि-मुद्रा स्फीति को रोकने के लिए सरकार को कराधान में वृद्धि कर देनी चाहिए। विभिन्न नए प्रत्यक्ष व परोक्ष कर लगाने चाहिए, जिससे जहाँ एक ओर सरकार की आय में वृद्धि हो वहीं दूसरी ओर समाज की अतिरिक्त क्रय शक्ति (Additional purchasing power) को प्रभावहीन बनाया जा सके। Inflation Meaning in Hindi
2. सार्वजनिक व्यय में कमी–स्फीति काल में सरकार को अपने व्यय में यथासम्भव कमी करनी चाहिए, जिससे मुद्रा की चलन गति कम रह जाए। अनुत्पादक व्यय (Unproductive expenditure) को कम करना इस समय की सबसे बड़ी आवश्यकता होती है।
3. सार्वजनिक ऋणों में वृद्धि-मुद्रा स्फीति काल में सरकार को विशाल सार्वजनिक ऋण प्राप्त करके उनका उत्पादक कार्यों में विनियोग करना चाहिए। इससे जहाँ एक ओर लोगों के पास तरल द्रव्य की मात्रा कम हो जाएगी, वहीं दूसरी ओर उत्पादन में वृद्धि होगी।
4. सन्तुलित बजट नीति का अनुसरण-स्फीति काल में सरकार को यथासम्भव सन्तुलित बजट बनाने चाहिए। किसी भी दशा में घाटे के बजट (Deficit Budgets) न बनाए क्योंकि घाटे के बजटों से मुद्रा स्फीति को प्रोत्साहन मिलता है।
5. उपभोग पर नियन्त्रण-सरकार को विभिन्न वित्तीय उपायों द्वारा अनुपयोगी एवं प्रदर्शनात्मक उपभोग पर नियन्त्रण लगाना चाहिए।
6. बचतों को प्रोत्साहन-स्फीति काल में सरकार को विभिन्न उपायों द्वारा बचतों को प्रोत्साहित करना चाहिए। इस हेतु बचतों पर ब्याज की दरों में वृद्धि कर देनी चाहिए। स्फीति को नियन्त्रित करने के लिए कभी-कभी सरकार अनिवार्य बचत योजना भी लागू करती है।
7. अतिमूल्यन-मुद्रा स्फीति को नियन्त्रित करने की दृष्टि से अतिमूल्यन की नीति को अपनाया जा सकता है। अतिमूल्यन (Over Valuation) के परिणामस्वरूप देश के आयात बढ़ते हैं तथा निर्यात कम हो जाते हैं जिससे देश में वस्तुओं की पूर्ति बढ़ जाती है।
8. विनियोग पर नियन्त्रण-स्फीति काल में प्राय: विनियोग बड़ी मात्रा में किया जाता है, जिससे मौद्रिक आय में वृद्धि के साथ-साथ मुद्रा स्फीति को प्रोत्साहन मिलता है। ऐसे समय में उद्योगपति भी बैंकों से बड़ी मात्रा में पूँजी उधार लेते हैं। अतः स्फीति काल में सरकार को विनियोग पर अंकुश रखना चाहिए, जिससे उन क्षेत्रों में कम विनियोग हो जहाँ से उत्पादन की प्राप्ति दीर्घकाल में होती है। Inflation Meaning in Hindi
III. अन्य उपाय (Other Measures)
1. मजदूरी बन्धन-कुछ अर्थशास्त्री स्फीति नियन्त्रण हेतु उचित आय नीति के पालन का सुझाव देते हैं। इसके अन्तर्गत मजदूरी बन्धन (Wage freeze) का उपाय शामिल है क्योंकि, यदि मजदूरी बढ़ेगी तो लागत में वृद्धि होगी और अन्तत: मुद्रा स्फीति को प्रोत्साहन मिलेगा।
2. उत्पादन में वृद्धि-मुद्रा स्फीति का प्रभाव कम करने के लिए उत्पादन की मात्रा में वृद्धि करना भी आवश्यक होता है। ऐसे उद्योगों को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए जिनमें पूँजी का विनियोग तो कम हो, परन्तु शीघ्र उत्पादन द्वारा उपभोक्ताओं की आवश्यकताएँ अधिक-से-अधिक पूरी की जा सकें। कृषि के उत्पादन में वृद्धि मुद्रा-स्फीति के नियन्त्रण में विशेष रूप से सहायक होती है।
3. वितरण व्यवस्था का नियमन-मुद्रा प्रसार के समय वितरण व्यवस्था को सुदृढ़ बनाना भी परम आवश्यक है, जिससे आवश्यक वस्तुओं का लाभ हेतु संचय न किया जाए। Inflation Meaning in Hindi
4. आयात को प्रोत्साहन व निर्यात में कमी-वस्तुओं की उपलब्धि को बढ़ाने के लिए आयात में वृद्धि तथा निर्यात में कमी करनी चाहिए। मुद्रा स्फीति के समय अल्पमूल्यन (Under Valuation) तथा अवमूल्यन (Devaluation) की नीति कदापि नहीं अपनानी चाहिए। यदि मुद्रा का अधिमूल्यन (Over Valuation) सम्भव न हो तो उसकी विनिमय दर में स्थिरता तो हर कीमत पर रहनी चाहिए।
5. मूल्य नियन्त्रण-मुद्रा स्फीति को रोकने के लिए सरकार को कीमत नियन्त्रण की नीति को कठोरता से अपनाना चाहिए। आवश्यकता के समय दुर्लभ वस्तुओं की राशनिंग (Rationing), विदेशी व्यापार का नियमन (Regulation) तथा औद्योगिक नीति में समयानुकूल परिवर्तन भी करने के लिए तत्पर रहना चाहिए। उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि मुद्रा स्फीति को नियन्त्रित करने के लिए विभिन्न उपाय अपनाए जा सकते हैं। परन्तु यहाँ यह स्पष्टत: समझ लेना चाहिए कि मुद्रा स्फीति को नियन्त्रित करना कोई सरल कार्य नहीं अत: किसी एक उपाय द्वारा मुद्रा स्फीति को नियन्त्रित करना सम्भव नहीं है। परिणामतः विभिन्न उपायों को सामूहिक रूप से इस प्रकार अपनाना चाहिए जिससे वांछनीय व आशानुकूल परिणाम प्राप्त हो सकें।
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