Meaning of Free Consent

स्वतन्त्र सहमति का अर्थ  (Meaning of Free Consent) भारतीय संविदा अधिनियम के अनुसार, वैध संविदा होने के लिए यह आवश्यक है कि पक्षों की स्वतन्त्र सहमति हो। धारा 10 के अनुसार, “वे सभी समझौते जो संविदा के योग्य पक्षकारों की स्वतन्त्र सहमति से किए गए हों .”।  अतः अधिनियम में पक्षकारों की स्वतन्त्र सहमति’ होनी आवश्यक है। पक्षों की स्वतन्त्र सहमति तब कहलाती है जब दो व्यक्ति एक बात पर एक ही अर्थ में राजी हो जाते हैं, तब कहा जाता है कि उन्होंने सहमति दी है। सहमति तब स्वतन्त्र मानी जाती है जब वह उत्पीड़न (Coercion), अनुचित प्रभाव (Undue Influence), कपट (Fraud), मिथ्यावर्णन (Misrepresentation) अथवा गलती (Mistake) के कारण न दी गई हो । ……. प्रश्न 5 – प्रस्ताव एवं स्वीकृति पर टिप्पणी लिखिए। Write a note on Proposal and Acceptance. किसी समझौते के लिए प्रस्ताव (Proposal) तथा उसकी स्वीकृति (Acceptance) होनी आवश्यक है। धारा 2 (a) के अनुसार, जब कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति से किसी कार्य को करने अथवा न करने के विषय में अपनी इच्छा को इस आशय से प्रकट करे कि दूसरा व्यक्ति उसके कार्य को करने अथवा न करने के लिए अपनी सहमति प्रदान करे तो इस इच्छा को प्रस्ताव कहते हैं। प्रस्ताव रखने वाले को वचनदाता या प्रस्तावक कहा जाता है, जबकि जिसके समक्ष प्रस्ताव रखा जाता है उसे वचनगृहीता कहते हैं। किसी भी समझौते को वैधानिक रूप (संविदा) देने के लिए आवश्यक है कि एक पक्ष द्वारा प्रस्ताव किया जाए जिसकी स्वीकृति दूसरा पक्ष (वचनगृहीता) दे। स्वीकृति से तात्पर्य प्रस्ताव की शर्तरहित स्वीकृति से है। जब वह व्यक्ति जिससे प्रस्ताव किया गया है प्रस्ताव पर अपनी सहमति दे देता है तब प्रस्ताव स्वीकृत किया हुआ माना जाता है। स्वीकार किया हुआ प्रस्ताव वचन या समझौता कहलाता है। धारा 2 (b) के अनुसार, “जब वह व्यक्ति जिसके समक्ष प्रस्ताव रखा गया हो, अपनी सहमति दे देता है तो कहेंगे कि प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया।” Become an Agent एजेन्ट कोई भी व्यक्ति हो सकता है। एजेन्ट बनने के लिए अनुबन्ध करने की क्षमता होना आवश्यक नहीं है क्योंकि तृतीय पक्षकारों के प्रति एजेन्ट के द्वारा किए गए कार्यों के लिए प्रधान (नियोक्ता) स्वयं उत्तरदायी होता है। इसलिए एक अवयस्क अथवा अस्वस्थ मस्तिष्क वाला व्यक्ति भी एजेन्ट बन सकता है, परन्तु ऐसा व्यक्ति नियोक्ता के प्रति अपने कार्यों के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता। दूसरे शब्दों में, एजेन्ट को नियोक्ता के प्रति उत्तरदायी ठहराने के लिए आवश्यक है कि वह वयस्क हो तथा स्वस्थ मस्तिष्क वाला हो। 

Business Communication Notes pdf

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Business communication Question paper 2020 pdf

Business communication Question paper 2020 pdf व्यावसायिक सम्प्रेषण (Business Communication) B.Com. (Part 1) इस प्रश्न-पत्र को पाँच खण्डों-अ, ब, स, द एवं इ में विभाजित किया गया है। खण्ड-अ (लघु उत्तरीय प्रश्न) में एक लघु उत्तरीय प्रश्न है, जिसके दस भाग हैं। ये सभी दस भाग अनिवार्य हैं। खण्डों-ब, स, द एवं इ (विस्तृत उत्तरीय … Read more

Audience Analysis

Audience Analysis श्रोता विश्लेषण श्रोताओं का समूह सम्प्रेषण का दूसरा किनारा एवं महत्त्वपूर्ण पक्ष होता है। श्रोताओं की प्रतिक्रिया, प्रतिपुष्टि अथवा प्रत्युत्तर सम्प्रेषण प्रक्रिया का महत्त्वपूर्ण घटक है। सम्प्रेषण प्रक्रिया में श्रोताओं की भूमिका निम्नांकित चित्र द्वारा प्रदर्शित की जा सकती है – व्यावसायिक सम्प्रेषण प्रक्रिया में सन्देश एवं प्रत्युत्तर क्रमश: Input तथा Output होते हैं | सन्देश एवं उनके प्रत्युत्तर द्वारा आन्तरिक एवं बाह्य दोनों पक्षों को प्रभावित / प्रेरित (Influence) कर संगठनात्मक छवि (Organisational Image) का निर्माण किया जाता है। सम्प्रेषण द्वारा सहयोगियों, वैयक्तिक, प्रबन्धकीय, संगठनात्मक एवं व्यावहारिक क्षमताओं को विकसित करने के लिए प्रेरित करना तथा साथ-साथ बाह्य पक्षों के मध्य संगठन, उत्पाद, कार्यप्रणाली की स्वच्छ छवि को निर्मित करना प्रमुख ध्येय होता है। इस लक्ष्य पूर्ति के लिए सम्प्रेषण के प्रभावों का परीक्षण एवं उनका अध्ययन ही श्रोता विश्लेषण कहा जाता है। Audience Analysis Audience group is the other side and important aspect of communication. Audience feedback is an important component of the communication process. The role of the audience in the communication process can be represented … Read more

Explain AIDA formula to write a Persuasive Letter.

Explain AIDA formula to write a Persuasive Letter. प्रेरित करने वाले पत्र के लिए AIDA सूत्र की व्याख्या कीजिए। उत्तर -जब पत्र लेखक को इस बात की आशंका होती है कि पत्र प्राप्तकर्ता आपत्ति या विरोध प्रकट करेंगे तो उसे अपनी बात पर बल देने के लिए प्रमाणों तथा आँकड़ों की आवश्यकता पड़ती है। इस विधि के अन्तर्गत प्रेरक पत्रों का नियोजन प्रसिद्ध सूत्र AIDA के आधार पर किया जाता है— इस प्रकार एक प्रेरित करने वाले पत्र के चार भाग हो सकते हैं- 1. A. ध्यान – प्रथम वाक्य खण्ड (A : Attention: First Paragraph) प्रेरक पत्रों का प्रथम भाग पाठक/श्रोता का ध्यान आकर्षित करने के उद्देश्य से लिखा जाता इसमें पाठक के हित व लाभ की बात को स्पष्ट करना चाहिए जिससे वह पत्र पढ़ने के लिए प्रेरित हो जाए। पाठकों को प्रारम्भ में ही भरोसा दिलाना होता है कि आप कुछ लाभदायक अथवा रोचक बात कहने जा रहे हैं। पाठक जानना चाहता है कि ‘मेरे लिए क्या सन्देश है?’ प्रत्येक प्रेरित करने वाले पत्र को ऐसे आरम्भ करना चाहिए ताकि पाठकों का ध्यान आकर्षित हो । प्रेरक पत्र (अ) व्यक्तिगत (ब) ‘आप’ दृष्टिकोण (You’ Attitude) प्रयोग से भरपूर (स) फिजूल बातों रहित तथा (द) प्रासंगिक (Relevant) होना चाहिए। १ एक प्रेरित करने वाले पत्र का आरम्भ निम्नलिखित ढंग से किया जा सकता है – 2. I. रुचि – दूसरा वाक्य खण्ड (I. Interest : Second Paragraph) — पत्र के द्वितीय भाग का उद्देश्य पाठक में रुचि जाग्रत करना होता है अर्थात् पत्र के इस हिस्से में ऐसे तथ्यों व संवादों का प्रयोग किया जाता है जिससे उस पत्र के प्रस्ताव के प्रति रुचि जाग्रत हो जाए। इसलिए आवश्यक है कि इस हिस्से में पाठक के विचारों की अभिव्यक्ति की जाए। अपनी बात पर बल देने के लिए तथ्य व आँकड़े दिए जाने चाहिए तथा भावनात्मक व मनोवैज्ञानिक अपील की जानी चाहिए । इस खण्ड में अपनी योजना, उत्पाद अथवा सेवा के विषय में बताने के पश्चात् यह बताना चाहिए कि पाठकों के लिए यह किस प्रकार लाभदायक है। अपने उत्पाद, योजना तथा सेवा की मुख्य विशेषताएँ, निर्माण, आकार, कार्यक्षमता, सुन्दरता, कार्य आदि को स्पष्ट करना चाहिए। इससे पाठकों को होने वाले प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष लाभों को स्पष्ट रूप से वर्णित करना चाहिए। 3. D. इच्छा – तीसरा वाक्य खण्ड (D. … Read more

Body Contact in Business communication pdf

Body Contact in Business communication pdf शारीरिक स्पर्श (Body Contact ) In Business communication स्पर्श सम्प्रेषण का प्राथमिक स्वरूप है। शरीर के विभिन्न हिस्सों में स्पर्श विभिन्न प्रकार के सम्प्रेषण को सम्प्रेषित करते हैं, साथ ही स्पर्श क्रिया पर स्थान का भी प्रभाव पड़ता है। इसके अन्तर्गत टक्कर मारना, भिड़ जाना, धक्का देना, पकड़ना / धारण करना, थपथपाना/टहोकना, हाथ मिलाना, आलिंगन करना इत्यादि क्रियाएँ सम्मिलित हैं। इनका प्रयोग कई प्रकार के सम्बन्धों व स्थितियों को व्यक्त करता है जैसे विभिन्न व्यक्तियों का सार्वजनिक या निजी स्थानों पर स्पर्श करना, कौन व्यक्ति किसको स्पर्श कर रहा है व उनके बीच क्या सम्बन्ध है आदि बातें भी शारीरिक स्पर्श के विभिन्न पहलुओं को जन्म देती हैं। डॉक्टर व मरीज के बीच शारीरिक स्पर्श, पति-पत्नी के बीच शारीरिक स्पर्श, आशीर्वाद के रूप में दिया गया शारीरिक स्पर्श इत्यादि में शारीरिक स्पर्श के विभिन्न पहलू विद्यमान हैं। शारीरिक स्पर्श की श्रेणियाँ (Classes of Body Contact) जॉन्स व मार्वग ने शारीरिक स्पर्श क्रियाओं के विश्लेषण के आधार पर शारीरिक स्पर्श की निम्नलिखित पाँच श्रेणियाँ बताई हैं 1. नियन्त्रण – सावधान व अनुपालन । 2. सजीवता – परिहास व प्रसन्नता / जिन्दादिली । 3. अनुष्ठानिक – संस्कार, विधि या धार्मिक आवश्यकताओं के लिए; जैसे— शुभकामनाएँ व मृत्यु / प्रयाण सम्बन्धी | 4. अनुकूल प्रभाव – सम्मान, प्रशंसा, लगाव, आश्वासन, प्रशिक्षण या मौन रुचि। 5. कार्य सम्बन्धी – नियमित कार्य से सम्बन्धित; जैसे- नर्स द्वारा नब्ज का देखा जाना। इसके अतिरिक्त प्रतिकूल प्रभावी व आक्रमणशील स्पर्श भी होते हैं; … Read more

bcom 1st year business communication notes

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BCom 1st Year Business Communication Oral Presentation Study Material Notes in Hindi

BCom 1st Year Business Communication Oral Presentation Study Material Notes in Hindi : Purposes of Oral Presentation Principles of Oral Presentation Process of Oral Presentation Sales Presentation Steps of Training Presentation Survey Object of Survey Process of Planing for Survey Steps of survey Methods of Survey Meaning of Speech Guidelines For Prepairing a Speech Speech … Read more

Meaning of Listening pdf – Bcom Notes

Meaning of Listening pdf – Bcom Notes श्रवणता से अभिप्राय श्रवणता, इतनी सरल क्रिया नहीं है जितनी कि समझी जाती है। अधिकांश व्यक्ति इस बारे में अक्षम होते हैं। वे सुनने व सोचने के बारे में सावधानी नहीं रखते, अतः वे जितना सुनते हैं उससे कुछ कम ही याद कर पाते हैं। फ्लोड जे० जेम्स के शब्दों में— “श्रवण क्षमता की न्यूनता प्रत्येक स्तर पर हमारे कार्य से सम्बन्धित समस्याओं की उत्पत्ति का मुख्य स्रोत है।” व्यावसायिक क्षेत्रों में श्रवणता की महत्ता किसी भी रूप में सम्प्रेषण से कम नहीं आँकी जा सकती । सुनने अर्थात् श्रवण की क्रिया को ध्यानपूर्वक सुव्यवस्थित ढंग से करने पर उसका प्रतिफल उच्च आयामों को प्राप्त होता है। वास्तव में, “श्रवणता स्वीकार करने, ध्यान लगाने तथा कानों से सुने गए शब्दों का अर्थ निरूपण करने की एक क्रिया है । “ श्रवणता के प्रकार (Types of Listening) व्यावसायिक क्षेत्र में श्रवणता का महत्त्व अब सुस्थापित हो चुका है। परिस्थितियों के अनुसार इसके प्रकारों में भी कम या अधिक अन्तर आ जाता है। मुख्य रूप से श्रवणता के विभिन्न प्रकार निम्नलिखित रूप में प्रकट होते हैं 1.एकाग्र श्रवणता (Focus Listening) – इसमें एकाग्रता के तत्त्व का महत्त्व अपेक्षित रूप से सर्वाधिक होता है। इसकी ग्राह्यता अन्य प्रकारों से कई गुना अधिक होती है।  2. विषयगत श्रवणता (Subjective Listening) – ग्राह्य व्यक्ति में सम्प्रेषित विषय की जितनी जानकारी होती है, उसी के अनुसार श्रवणता का प्रभाव भी परिलक्षित होता है। इसका सम्बन्ध व्यक्ति की समझ से होता है। 3. अन्तःप्रज्ञात्मक श्रवणता (Inter Listening) – जब सहज बोधगम्यतावश सन्देश को ग्रहण किया जाता है, तब इसके समानान्तर अन्य विचार मस्तिष्क में आते रहते हैं। यह स्थिति सन्देश को सम्पूर्ण अर्थ में समझने में सहायता करती है । 4. समीक्षात्मक श्रवणता (Analytical Listening) – समीक्षात्मक श्रवणता में ग्राही व्यक्ति में तुरन्त ही समीक्षात्मक तत्त्वों का आविर्भाव होने लगता है। इस प्रकार विशिष्ट बिन्दुओं के मूल्यांकन का मार्ग स्वतः ही प्रशस्त हो जाता है। 5. तदनुभूतिक श्रवणता (Communicating Listening) – इसमें सन्देश को . अन्य व्यक्तियों को बताने की सामर्थ्य होती है। 6. सक्रिय श्रवणता (Creative Listening) – इसमें अन्य व्यक्तियों के विचार व विघटित मानसिक अन्तर्द्वन्द्व समाहित होते हैं। 7. दिखावटी या मिथ्या श्रवणता (Artificial Listening) … Read more

Essentials of First Draft – Bcom Notes

Essentials of First Draft – Bcom Notes सन्देश का प्रथम प्रारूप लेखन (First Drafting ) – लेखन शैली के द्वितीय चरण में सन्देश का प्रथम प्रारूप तैयार किया जाता है। इसमें विचारों को शब्दों का रूप प्रदान करके वाक्यों व पैराग्राफों का निर्माण किया जाता है। इस लेखन में यह सुनिश्चित किया जाता है कि विचारों को कागज पर कैसे लाया जाए, किस प्रकार के शब्दों/वाक्यों का प्रयोग किया जाए तथा कहाँ बात को संक्षिप्त रूप में रखा जाए और कहाँ से विस्तृत रूप प्रदान किया जाए। मुख्य विचार के समर्थन में सम्बन्धित तथ्यों व आँकड़ों को एकत्र किया जाता है। इस प्रकार सभी तथ्यों को कागज पर उतार लेना ही प्रथम प्रारूप कहलाता है।  एक अच्छे प्रारूपण के लिए आवश्यक बातें (Essentials of First Draft) एक अच्छे प्रारूपण के लिए निम्नलिखित बातें ध्यान में रखनी चाहिए – 1. तकनीकी सावधानियाँ (Technical Precautions ) – प्रारूप को तैयार करते समय तकनीकी बातों का ध्यान रखना भी आवश्यक होता है जैसे प्रारूप सदैव अन्य पुरुष में तैयार किया जाना चाहिए तथा यदि उत्तम पुरुष का प्रयोग आवश्यक हो तो वह व्यक्ति बोधक की बजाय पद-बोधक होना चाहिए। इसी प्रकार, प्रारूप किसी भी प्रकार के पूर्वाग्रहों से प्रेरित नहीं होना चाहिए। प्रारूप निश्चित ढाँचे में निश्चित प्रणाली व निर्धारित वाक्यावली में ही तैयार किया जाना चाहिए। > 2. उद्धरण ( Quotation) – विषय को अधिक स्पष्ट करने के लिए प्रारूपण में · विचारों, निर्णयों, आदेशों व उक्तियों का उद्धरण आवश्यक हो जाता है। विषय की गम्भीरता को काट-छाँट के ही मूल शब्दों में व्यक्त किया जाना चाहिए। 3. सरल, सुबोध एवं व्यावहारिक भाषा (Easy, Understandable Practical Language ) – प्रारूप की भाषा अत्यन्त सरल, सुबोध एवं व्यावहारिक होनी चाहिए। छोटे-छोटे सार्थक वाक्यों का प्रयोग किया जाना चाहिए तथा विषय के अनुकूल उससे सम्बन्धित तकनीकी शब्दों का भी प्रयोग किया जाना चाहिए। 4. पैराग्राफ (Paragraph) – एक विषय से सम्बन्धित अनेक उपविषय हो सकते हैं। ऐसी स्थिति में प्रत्येक उपविषय को अलग पैराग्राफ में देना चाहिए तथा पैराग्राफों के लिए संख्या क्रम अंकित किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त, पैराग्राफ बहुत अधिक बड़ा भी नहीं a होना चाहिए। 5. तथ्यों की संगति (Consistency of Data)- प्रारूप तैयार करते समय विषय से सम्बन्धित सभी तथ्यों को सम्मिलित किया जाना आवश्यक होता है। विभिन्न तथ्यों व तर्कों को व्यवस्थित क्रम में प्रस्तुत किया जाना चाहिए। साथ ही साथ तथ्यों का तार्किक विश्लेषण इस प्रकार क्रम से करना चाहिए जिससे वह अपनी सम्पूर्ण संरचना को स्पष्ट कर सके। … Read more