Meaning and Definition of Balance of Trade
व्यापार-सन्तुलन का अर्थ एवं परिभाषा
सामान्य शब्दों में, व्यापार-सन्तुलन से आशय सम्बन्धित देशों के आयात और निर्यात के अन्तर से है। यदि एक देश में आयात अधिक तथा निर्यात कम हैं तो उसका व्यापार-सन्तुलन प्रतिकूल (Unfavourable) कहा जाता है। इसकी विपरीत स्थिति में व्यापार-सन्तुलन अनुकूल (Favourable) कहा जाता है। व्यापार-सन्तुलन की स्थिति जानने के लिए किसी देश के अन्य देशों से एक वर्ष में होने वाले कुल आयातों का योग ले लिया जाता है और इसी प्रकार अन्य देशों के होने वाले कुल निर्यातों को जोड़ दिया जाता है। इन दोनों राशियों का अन्तर ही व्यापार-सन्तुलंन कहलाता है। यह सम्भव है कि कुछ देशों से व्यापार-सन्तुलन अनुकूल हो तथा कुछ से प्रतिकूल अतः ऐसी स्थिति में जिन देशों से रकम प्राप्त करनी होती है, उनसे रकम लेकर लेनदार देशों को चुकता कर दी जाती है।इसप्रकार भुगतान करने के पश्चात् जो कुछ शुद्ध लेना या देना शेष रहता है, वह शुद्ध व्यापार-सन्तुलन (Net Trade Balance) कहलाता है।
बेनहम के अनुसार, “एक निश्चित अवधि में किसी देश के निर्यातों के मूल्य एवं आयातों के मूल्य के सम्बन्ध को ही व्यापर-सन्तुलन कहते हैं।’
डब्ल्यू०एम० स्केमैल के अनुसार, “व्यापार-सन्तुलन किसी देश के निवासियों द्वारा हसरे देश के निवासियों को बेची गई वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्य तथा उस देश के निवासियों नारा अन्य देश के निवासियों से खरीदी गई वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्य का अन्तर होता है।” इस प्रकार स्केमैल व्यापर-सन्तुलन में वस्तुओं के अतिरिक्त सेवाओं को भी शामिल करते हैं।
निष्कर्ष रूप में कह सकते हैं कि “व्यापार-सन्तुलन एक निश्चित समय-अवधि (एक वर्ष) में एक देश के दृश्य एवं अदृश्य निर्यातों तथा दूसरे देश में दृश्य एवं अदृश्य निर्यातों के मूल्यों का अन्तर है।”
भुगतान-सन्तुलन का अर्थ
Meaning of Balance of Payments
भुगतान-सन्तुलन से आशय किसी देश के अन्य देशों से सम्पूर्ण लेन-देन के विस्तृत विवरण से होता है। इस विवरण में प्राय: आयात और निर्यात सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण होते हैं और इसमें भुगतान सम्बन्धी अन्य सभी लेन-देन सम्मिलित किए जाते हैं। हम जानते हैं कि भुगतान-सन्तुलन निश्चित रूप से सन्तुलित होता है क्योंकि जब किसी देश में भुगतान की असन्तुलित स्थिति रहती है तो उसे सन्तुलित करने के लिए स्वर्ण द्वारा भुगतान की व्यवस्था कर दी जाती है या दोनों देशों में ऋण सम्बन्धी समझौता हो जाता है जिसके फलस्वरूप भुगतान निश्चित रूप से सन्तुलित हो जाता है। भुगतान-सन्तुलन की प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं –
बेनहम के शब्दों में, “एक देश का भुगतान-सन्तुलन एक निश्चित काल के भीतर उसके शेष विश्व के साथ मौद्रिक सौदों का लेखा होता है।”
किण्डल बर्जर के शब्दों में, “एक देश के भुगतान-सन्तुलन से आशय एक दी हुई अवधि में उस देश के निवासियों और विदेशियों के मध्य हुए सभी आर्थिक व्यवहारों के क्रमबद्ध विवरण से है।”
प्रो० स्नाइडर के अनुसार, “भुगतान-सन्तुलन को परिभाषित करते हुए यह कहा जा सकता है कि यह किसी देश और शेष संसार के निवासियों, व्यापारियों, सरकार तथा संस्थाओं के बीच एक विशेष समय में किए गए समस्त विनियोगों के मौद्रिक मूल्य और वस्तुओं के हस्तान्तरण एवं सेवाओं के मौद्रिक मूल्य तथा ऋण अथवा स्वामित्व को उचित वर्गीकरण के साथ प्रदर्शित करता हुआ विवरण है।” निष्कर्षत: यह कह सकते हैं कि “भुगतान-सन्तुलन एक ऐसा विवरण है जिसमें किसी देश के एक निश्चित समय के समस्त विदेशी लेन-देनों का लेखा होता है।” इस विवरण में समस्त लेनदारियाँ और देनदारियाँ अलग-अलग दिखाई जाती हैं। भुगतान-सन्तुलन के विवरण में प्रायः समस्त विदेशी सौदों का सारांश अंकित किया जाता है। भुगतान-सन्तुलन में एक देश के निवासियों का सम्पूर्ण विदेशी विनियोग, विदेशों में किए गए विनियोगों का ब्याज व विदेशों में स्थापित उद्योग और व्यापार का लाभ, विदेशियों को भुगतान किए गए लाभांश, उपहार और सहायता आदि सम्मिलित किए जाते हैं। चकता कर दी जाती है। इस प्रकार भुगतान करने के पश्चात् जो कुछ शुद्ध लेना या देना शेष रहता है, वह शुद्ध व्यापार-सन्तुलन (Net Trade Balance) कहलाता है। इसे स्वर्ण लेकर या देकर चुकता करना होता है।
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