Distribution Meaning in Hindi Notes
प्रश्न 6–वितरण के आधुनिक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए। Critically discuss the Modern Theory of Distribution.
आधुनिक अर्थशास्त्री वितरण के सीमान्त उत्पादकता सिद्धान्त को स्वीकार नहीं करते वरन् उन्होंने इसके स्थान पर माँग व पूर्ति के आधार पर एक नए सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है। माँग व पूर्ति का यह सिद्धान्त कीमत सिद्धान्त (Theory of Value) से बहुत कुछ मिलता-जुलता है। इस सिद्धान्त की आधारभूत मान्यता यह है कि जिस प्रकार वस्तु की कीमत वस्तु की माँग व पूर्ति की शक्तियों द्वारा होता है, उत्पादन के उपादानों का प्रतिफल भी उनकी माँग व पूर्ति की शक्तियों द्वारा होता है। का निर्धारण
सिद्धान्त की मान्यताएँ (Assumptions)
वितरण का आधुनिक सिद्धान्त निम्नलिखित मान्यताओं पर आधारित है-
(1) बाजार में पूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति विद्यमान है।
(2) उत्पत्ति ह्रास नियम अथवा परिवर्तनशील अनुपातों का नियम लागू होता है।
(3) साधन की सभी इकाइयाँ समरूप हैं। अत: वे एक-दूसरे की पूर्ण स्थानापन्न हैं।
(4) प्रत्येक साधन छोटी-छोटी इकाइयों में पूर्णतः विभाज्य है।
(5) उत्पत्ति के सभी साधन पूर्णतया गतिशील हैं।
(6) साधन की सीमान्त उत्पादकता को मापा जा सकता है और उसकी अवसर लागत दी
उत्पत्ति के उपादान की माँग (Demand of Factors of Production)-उत्पादन के विभिन्न उपादानों (साधनों) की माँग प्रत्यक्ष माँग (Direct Demand) नहीं होती वरन् व्युत्पन्न माँग (Derived Demand) होती है और साधन की माँग उसकी सीमान्त उत्पादकता (Productivity) पर निर्भर करती है। इसका अभिप्राय यह है कि यदि किसी वस्तु की माँग में वृद्धि होती है, तो उस वस्तु के उत्पादन में प्रयुक्त होने वाले साधनों की माँग में भी वृद्धि हो जाती है।
उत्पादकों के द्वारा किसी भी साधन की माँगी जाने वाली मात्रा उस साधन की सीमान्त आगम उत्पादकता (Marginal Revenue Productivity) पर निर्भर करती है। अतः उत्पादक किसी भी साधन को उसकी आय उत्पादकता से अधिक प्रतिफल नहीं देंगे। इसके अतिरिक्त, जैसे-जैसे किसी साधन की अतिरिक्त इकाइयों का प्रयोग किया जाएगा, वैसे-वैसे
उत्पत्ति ह्रास नियम के क्रियाशील होने के कारण उत्पादकता कम होती चली जाएगी। यही कारण है कि साधन की माँग का वक्र बाएँ से दाएँ नीचे की ओर झुकता है।
उत्पत्ति के उपादान की पूर्ति (Supply of Factors of Production)-जिस प्रकार किसी वस्तु की पूर्ति वस्तु की लागत से प्रभावित होती है, ठीक उसी प्रकार उत्पत्ति के उपादान (साधन) की पूर्ति उसकी अवसर लागत (Opportunity Cost) से निर्धारित होती है। “अवसर लागत द्रव्य की वह मात्रा है जो किसी साधन को किसी अन्य सर्वश्रेष्ठ वैकल्पिक उपयोग में मिल सकती है।” अत: साधन को वर्तमान उद्योग में इतना प्रतिफल अवश्य मिलना चाहिए जितना कि उसे किसी अन्य वैकल्पिक उद्योग में प्राप्त हो सकता है अन्यथा साधन अपने वर्तमान उद्योग को त्याग कर उस उद्योग-विशेष में चला जाएगा। इस प्रकार साधन का पूर्ति मूल्य उसकी अवसर लागत से निर्धारित होता है।
साधन की पूर्ति कीमत जितनी अधिक होगी साधन की पूर्ति भी उतनी ही अधिक होगी। अतः पूर्ति वक्र बाएँ से दाएँ की ओर ऊपर को उठेगा। इसके अतिरिक्त, साधन विशेष की पूर्ति कई कारकों से प्रभावित होती है। जैसे श्रम की पूर्ति शिक्षा तथा ‘प्रशिक्षण की लागत’, कार्य करने की दशाओं आदि से प्रभावित होती है। इसके अलावा साधनों की पूर्ति पर आर्थिक घटकों के साथ अनार्थिक घटकों का भी व्यापक प्रभाव पड़ता है। Distribution Meaning in Hindi Notes
साधन के प्रतिफल का निर्धारण (Determination of Factor Pricing)
साधन या उपादान का प्रतिफल उस बिन्दु के द्वारा निर्धारित होगा, जिस बिन्दु पर साधन की माँग उसकी पूर्ति के ठीक बराबर होगी।
रेखाचित्र-21 में साधन की माँग रेखा DD तथा पूर्ति रेखा SS है, जो एक-दूसरे को P बिन्दु पर काट रही हैं। इस प्रकार साधन की माँग व पूर्ति OM मात्रा होगी और OS प्रतिफल निर्धारित होगा। यहाँ एक प्रश्न यह उठता है कि प्रतिफल P बिन्दु से OS ही क्यों निर्धारित हुआ OS1 अथवा OS2 प्रतिफल क्यों नहीं निर्धारित होता? इसका कारण यह है कि OS1 बिन्दु पर माँग की मात्रा S1A है जबकि पूर्ति की मात्रा S1B है। इस प्रकार साधन की मात्रा माँग पूर्ति से बहुत कम है (अन्य शब्दों में अतिरिक्त पूर्ति की अवस्था है) OS2, बिन्दु पर माँग तो S2E है, परन्तु पूर्ति S2C मात्र है (इस प्रकार अतिरिक्त माँग की दशा है)। अन्य शब्दों में, ये दोनों अवस्थाएँ ही असाम्य की हैं। अत: प्रतिफल का निर्धारण P बिन्दु पर ही होगा जहाँ माँग व पूर्ति की मात्राएँ परस्पर साम्य की दशा में हैं।
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