Incorporation of a Company in India
कम्पनी का प्रवर्तन एवं समामेलन (पंजीयन)
Incorporation of Company and Promotion
कम्पनी का निर्माण ” (Formation of Company) . कम्पनी कानून द्वारा निर्मित कृत्रिम व्यक्ति होती है। अत: इसके निर्माण हेतु अनेक कानूनी औपचारिकताओं का पूरा करना पड़ता है । कम्पनी की स्थापना के विचार से लेकर कम्पनी द्वारा व्यापार शुरू करने के बीच की जाने वाली क्रियाओं को निम्न चार, भागों, अवस्थाओं या चरणों में बांटा जा सकता है
(A) कम्पनी के प्रवर्तन की अवस्था
(B) समामेलन या पंजीयन की अवस्था
(C) समामेलन का प्रमाण पत्र प्राप्त करने की अवस्था
(D) व्यापार शुरू करने का प्रमाण पत्र प्राप्त करने की अवस्था।
कम्पनी के प्रवर्तन की अवस्था
(Stage of Promotion of Company)
प्रवर्तन का अर्थ प्रारम्भ से है। यह कम्पनी के निर्माण की प्रथम अवस्था है । इस अवस्था से आशय व्यक्ति या व्यक्तियों के दिमाग में कम्पनी स्थापित करने की सोच से है । कम्पनी की खोज, जाँच, एकत्रीकरण तथा स्थापना के लिये प्रवर्तन पहली सीढ़ी है।
प्रो० ई० एस० मीड़ के अनुसार, “प्रवर्तन के चार तत्त्व हैं–खोज जाँच वित्त” गर्टनबर्ग के अनुसार-“प्रवर्तन में व्यापार सम्बन्धी सअवसर इसके बाद लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से पूजी, सम्पत्ति तथा प्रबन्ध कला प्रवर्तन में व्यापार सम्बन्धी सुअवसरों की खोज की जाती है और जाता है।”
प्रवर्तन के कार्य या श्रेणियाँ
Functions or Stages of Promotion
प्रवर्तन में मुख्य रूप से निम्न कार्य किये जाते हैं-
(1) विचार की खोज व प्रारम्भिक अनुसन्धान, (व्यवसाय की खोज)
(2) विस्तृत रुप से जाँच पड़ताल करना।
(3) आवश्यक सामान इकट्ठा करना।
(4) पूँजी की व्यवस्था करना।
(5) पूँजी निर्गमन के लिये केन्द्रीय सरकार से अनुमति लेना।
(6) प्रारम्भिक अनुबन्ध करना।
(7) आवश्यक प्रलेख तैयार करना।
(8) कम्पनी का नाम निश्चित करना।
समामेलन या पंजीयन (रजिस्ट्रेशन) की अवस्था
Stage of Incorporation
समामेलन या रजिस्ट्रेशन कम्पनी के निर्माण की दूसरी अवस्था है। पंजीयन की तिथि ही कम्पनी का जन्म-दिन होती है। कम्पनी का रजिस्ट्रेशन कराने के लिये रजिस्टार के पास निम्नलिखित प्रपत्र प्रस्तुत करने होते हैं
(1) पार्षद सीमानियम (Memorandum of Association)-यह सबसे महत्त्वपूर्ण प्रपत्र है। किसी भी कम्पनी का पंजीयन इसके बिना नहीं हो सकता। यह एक ऐसा प्रपत्र है, जिसमें कम्पनी का नाम, रजिस्टर्ड कार्यालय का पता, कम्पनी के उद्देश्य एवं कार्य, अंश पूँजी, सदस्यों के दायित्व की सीमा आदि का उल्लेख होता है । इस प्रपत्र पर सार्वजनिक कम्पनी की दशा में 7 व्यक्ति और निजी कम्पनी की दशा में 2 व्यक्तियों के हस्ताक्षर होना जरूरी है।।
(2) पार्षद अन्तर्नियम (Articles of Association)-पार्षद सीमानियम में दिये गये उद्देश्यों को किस प्रकार प्राप्त करना है इसका वर्णन इस प्रपत्र में होता है। इस प्रपत्र पर भी उन व्यक्तियों के गवाह सहित हस्ताक्षर होते हैं जो पार्षद सीमानियम पर हस्ताक्षर करते हैं । इसे प्रत्येक कम्पनी निर्गमित नहीं करती। इसके अभाव में “तालिका-अ” के नियम लागू होते हैं। ऐसी दशा में पार्षद सीमानियम को रजिस्ट्रार के पास भेजते समय बिना अन्तर्नियमों के रजिस्टर्ड लिख देना चाहिये। Incorporation of a Company in India
(3) प्रबन्धकीय कर्मचारियों की नियुक्ति सम्बन्धी अनुबन्ध कम्पनी (संशोधन) अधिनियम, 1988 के अनुसार यदि कम्पनी किसी व्यक्ति को प्रबन्ध संचालक, पूर्ण-कालिक संचालक या प्रबन्धक के रूप में नियुक्त करने का प्रस्ताव करती है तो उक्त नियुक्ति सम्बन्धी अनुबन्ध को रजिस्ट्रार के समक्ष प्रस्तुत करना होगा।
(4) संचालकों की सूची (List of Directors)-रजिस्ट्रार के पास भेजे जाने वाले प्रपत्रों में संचालकों की सूची भी एक है। इस सूची में उन व्यक्तियों के नाम, पते व उनसे सम्बन्धित अन्य विवरण होता है जो कम्पनी के संचालक बनने के लिए तैयार हैं। एक निजी कम्पनी के लिए ऐसी सूची भेजना आवश्यक नहीं है। सार्वजनिक कम्पनी की दशा में कम से कम तीन नाम होना आवश्यक है। Incorporation of a Company in India
(5) संचालकों की लिखित सहमति (Written Consent of the Directors) —-एक सार्वजनिक कम्पनी के लिये यह आवश्यक है कि ऐसे संचालकों की लिखित सहमति भी इन प्रपत्रों के साथ संलग्न करे जो कम्पनी के प्रस्तावित संचालक पद को ग्रहण करेंगे । यदि कोई कम्पनी पहले निजी थी और अब सार्वजनिक कम्पनी हो गयी है तो उसको यह कार्यवाही नहीं करनी पड़ती।
(6) संचालकों का योग्यता अंश लेने का लिखित आश्वासन-संचालक बनाने के लिये एक निश्चित संख्या में अंश, जिनको योग्यता अंश कहते हैं,खरीदना आवश्यक है। इसलिये प्रस्तावित संचालकों की ओर से यह लिखित आश्वासन दिया जाना चाहिये कि वे कितने योग्यता अंश लेंगे और उनका भुगतान करेंगे।
(7) कम्पनी के रजिस्टर्ड कार्यालय की सूचना-समामेलन के लिये जो प्रपत्र भेजे जाते हैं उनमें ये उल्लेख होता है कि कम्पनी का कार्यालय कहाँ रहेगा ? यदि ऐसा न हो समामेलन या कार्य आरम्भ करने की तारीख (जो भी पहले हो) से 30 दिन के अन्दर कम्पनी के रजिस्टर्ड कार्यालय की सूचना रजिस्ट्रार को दे देनी चाहिये।
(8) वैधानिक घोषणा (Statutory Declaration)-आवश्यक प्रपत्रों को संग्रहीत करने के पश्चात् किसी उच्च न्यायालय, सर्वोच्च न्यायालय के वकील या किसी ऐसे चार्टर्ड एकाउन्टेन्ट जो कम्पनी के निर्माण से सम्बन्धित हो या अन्तर्नियमों में उल्लेखित कम्पनी के संचालक, सचिव या मैनेजर को इस आशय की एक घोषणा फाइल करनी पड़ती है कि कम्पनी ने रजिस्ट्रेशन से सम्बन्धित सभी वैधानिक कार्यवाहियों की पूर्ति कर ली है। .
(१) निश्चित शुल्क (Fees)-उपरोक्त प्रपत्रों को समामेलन हेतु रजिस्ट्रार के यहाँ फाइल करने के साथ एक निश्चित शुल्क भी भेजना पड़ता है । यह शुल्क और इसका भुगतान भारत के रिजर्व बैंक में भारत की सरकारों के खातों में जमा किया जाता है। Incorporation of a Company in India
समामेलन के प्रमाण पत्र की अवस्था रजिस्ट्रार के कार्यालय में कम्पनी से सम्बन्धित जब सभी प्रपत्र निर्धारित शुल्क के साथ जमा हो जाते हैं तब रजिस्ट्रार उनकी जाँच करता है और जब वह इस बात से सन्तुष्ट हो जाता है कि कम्पनी के निर्माण से सम्बन्धित सभी वैधानिक कार्यवाहियाँ एवं औपचारिकतायें पूरी कर दी गयी है तो वह कम्पनी का नाम अपने रजिस्टर में लिख लेता है अर्थात् कम्पनी का रजिस्ट्रेशन कर लेता है और इस आशय का प्रमण-पत्र दे देता है जिसे ‘समामेलन का प्रमाण-पत्र कहते हैं। अब कम्पनी अपने सदस्यों से पृथक् वैधानिक अस्तित्व रखने वाली एक समामेलित संस्था और एक कृत्रिम व्यक्ति बन जाती है।
व्यापार प्रारम्भ करने की अवस्था . (Stage of Commencement of Business)
एक निजी कम्पनी समामेलन के तुरन्त बाद अपना व्यापार शुरू कर सकती है। लेकिन सार्वजनिक कम्पनी उस समय तक अपना व्यापार शुरू नहीं कर सकती जब तक उसे व्यापार प्रारम्भ करने का प्रमाण-पत्र न मिल जाये । कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 11 के अनमा व्यापार प्रारम्भ करने का प्रमाण-पत्र प्राप्त करने के लिए एक पब्लिक कम्पनी को निम्नलिखित आवश्यकताओं की पूर्ति करनी होती है।
(1) यदि प्रविवरण निर्गमित किया गया है जनता को प्रविवरण निर्गमित करने पर काम अपना व्यापार उस समय तक प्रारम्भ नहीं कर सकती जब तक (i) न्यूनतम अभिदान राशि के बराबर अंशों का आवंटन न हो जाये, (ii) संचालकगण अपने द्वारा लिये गये अंशों पर आवंटल तक मागी गयी राशि का भुगतान नहीं कर देते, (iii) प्रविवरण में दिये गये समय तक किसी स्टॉक एक्सचेन्ज में प्रार्थना-पत्र न देने अथवा आज्ञा न मिलने पर आवेदकों को कोई भी धन न तो दिया जायेगा तथा न उन पर देय होगा, तथा (iv) कम्पनी सचिव अथवा कोई संचालन यह घोषणा न करे कि उपर्युक्त आवश्यकताओं की पूर्ति कर दी गयी है।
(2) यदि प्रविवरण निर्गमित नहीं किया गया है-यदि कम्पनी प्रविवरण निर्गमित नहीं करती है तो कम्पनी व्यापार प्रारम्भ करने की अधिकारी नहीं है जब तक कि (i) रजिस्ट्रार के पास स्थानापन्न प्रविवरण प्रस्तुत नं कर दिया जाये, (ii) संचालकगण अपने द्वारा लिये गये अंशों पर आवंटन तक माँगी गयी राशि का भुगतान न कर दें, तथा (iii) कम्पनी सचिव या संचालकगण यह घोषणा न कर दें कि उपर्युक्त आवश्यकताओं को पूरा कर लिया गया है।
व्यापार प्रारम्भ करने का प्रमाण-पत्र–उपरोक्त वर्णित आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाने पर रजिस्ट्रार ऑफ कम्पनीज व्यापार प्रारम्भ करने का प्रमाण-पत्र निर्गमित करता है जो कि इस बात का एक निश्चयात्मक प्रमाण-पत्र है कि कम्पनी व्यापार प्रारम्भ करने की अधिकारी है।
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