Law of Diminishing Returns Notes
प्रश्न 2-उत्पत्ति ह्रास नियम की उपयुक्त रेखाचित्र सहित व्याख्या कीजिए। इसके महत्त्व को भी समझाइए। क्या इसकी क्रियाशीलता को रोका जा सकता है? Explain the law of diminishing returns with suitable diagram. Also mention its importance. Whether its operation can be checked ?
अथवा “प्रकृति द्वारा निभाई गई भूमिका उत्पत्ति ह्रास नियम के अनुरूप है, जबकि मनुष्य द्वारा निभाई गई भूमिका उत्पत्ति वृद्धि नियम के अनुरूप होती है।” व्याख्या कीजिए। “Application of natural forces generally causes the operation of the law of diminishing returns, while the application by man results in law of increasing returns.” Explain.
अथवा “उत्पत्ति ह्रास नियम केवल कृषि में ही लागू नहीं होता, बल्कि यह सभी प्रकार के जटिल उत्पादन के लिए सत्य होता है।” इसकी विवेचना कीजिए और उत्पत्ति ह्रास नियम को बताइए। “The law of diminishing returns is not applicable to agriculture alone, it is valid for all complex production.” Discuss this and state the law of diminishing returns.
उत्तर- उत्पादन उत्पत्ति के साधनों के सामूहिक प्रयासों का परिणाम है। सामूहिक उपज पर कुछ विशेष नियम लागू होते हैं, जिन्हें अर्थशास्त्रियों ने उत्पत्ति के नियम (Laws of Returns) की संज्ञा दी है। ये नियम इस तथ्य की व्याख्या करते हैं कि यदि उत्पत्ति के साधनों में कम-से-कम एक साधन यथास्थिर रहे और अन्य साधनों की मात्रा में वृद्धि की जाए तो तीन सम्भावनाएँ हो सकती हैं-
(1) उत्पादन के साधनों की वृद्धि के अनुपात से अधिक मात्रा में वृद्धि हो (अर्थात् उत्पादन वृद्धि की प्रवृत्ति)।
(2) उत्पादन के साधनों की वृद्धि के अनुपात में ही वृद्धि हो (अर्थात् उत्पादन समता प्रवृत्ति)।
(3) उत्पादन में साधनों की वृद्धि के अनुपात से कम मात्रा में वृद्धि हो (अर्थात् उत्पादन ह्रास की प्रवृत्ति)।
इन्हीं तीन सम्भावनाओं तथा परिणामों के आधार पर उत्पत्ति के तीन नियम होते हैं-
1. क्रमागत उत्पत्ति वृद्धि नियम (Law of Increasing Returns),
2. क्रमागत उत्पत्ति समता नियम (Law of Constant Returns),
3. क्रमागत उत्पत्ति ह्रास नियम (Law of Diminishing Returns)।
आधुनिक अर्थशास्त्रियों की दृष्टि में उत्पत्ति का मूलत: केवल एक ही नियम है-उत्पत्ति ह्रास नियम। उत्पत्ति वृद्धि नियम तथा उत्पत्ति समता नियम, तो केवल उत्पत्ति ह्रास नियम की ही दो अस्थायी अवस्थाएँ हैं। उत्पत्ति ह्रास नियम को ही कुछ आधुनिक अर्थशास्त्री परिवर्तनशील अनुपातों का नियम (The Law of Variable Proportions) कहकर पुकारते हैं।
इस प्रकार इस नियम की व्याख्या दो दृष्टिकोणों से की जाती है-
1. परम्परावादी एवं नवपरम्परावादी अर्थशास्त्रियों के दृष्टिकोण से,
2. आधुनिक दृष्टिकोण से।
क्रमागत उत्पत्ति हास नियम
(Law of Diminishing Returns)
नवपरम्परावादी दृष्टिकोण (Neo-classical Approach)
उत्पत्ति के प्रतिफल के नियमों में यह नियम सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। इस नियम के विकास के प्रारम्भिक चरण में प्रो० एडम स्मिथ (Adam Smith), रिकार्डो (Ricardo) तथा माल्थस (Malthus) आदि ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया, तदुपरान्त प्रो० मार्शल (Marshall) ने इस नियम की विधिवत् वैज्ञानिक व्याख्या प्रस्तुत की है। प्रो० मार्शल के शब्दों में—“यदि कृषि-कला में उन्नति न हो तो सामान्यतः कृषि में लगाई गई पूँजी व श्रम की इकाई से कम अनुपात में उत्पादन बढ़ता है।”
प्रो० मार्शल द्वारा प्रस्तुत इस व्याख्या में दो तथ्य विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं-
(1) यह नियम सामान्यतः (विशेषकर कृषि-भूमि पर शीघ्र) लागू होता है।
(2) इस नियम के क्रियाशील होने के लिए यह आवश्यक है कि कृषि-कला में कोई सुधार न हो।
प्रो० मार्शल की धारणा है कि उत्पादन हेतु मानवीय श्रम तथा प्रकृति दोनों का सहयोग आवश्यक है। जिस क्षेत्र में प्रकृति का अधिक हाथ होता है वहाँ उत्पादन में ह्रास की प्रवृत्ति शीघ्र दृष्टिगत होने लगती है। स्वयं प्रो० मार्शल के शब्दों में- “उत्पादन प्रक्रिया में प्रकृति उत्पत्ति ह्रास नियम के अनुकूल कार्य करती है।” चूँकि प्राकृतिक वातावरण का कृषि पर तत्काल तथा व्यापक प्रभाव पड़ता है, अत: कृषि में उत्पत्ति ह्रास नियम लागू होता है। परन्तु आधुनिक विचारक इस नियम की क्रियाशीलता के लिए प्रकृति की प्रधानता को उत्तरदायी न मानकर यह मानते हैं कि कृषि-कार्य में एक साधन (भूमि) को स्थिर रखकर अन्य साधनों की वृद्धि से आदर्श संयोग भंग हो जाता है और उत्पादन में आनुपातिक रूप से कम वृद्धि होती है।
आधुनिक दृष्टिकोण–परिवर्तनशील अनुपातों का नियम (Modern Approach : Law of Variable Proportions)
आधुनिक विचारकों (श्रीमती जोन रोबिन्सन, बोल्डिंग, सैमुअल्सन आदि) की धारणा है कि यदि उत्पादन के किसी भी एक साधन को अपरिवर्तित रखा जाए और अन्य साधनों की मात्रा में वृद्धि की जाए तो उत्पत्ति ह्रास नियम क्रियाशील होने लगता है। इस नियम को कुछ अर्थशास्त्री परिवर्तनशील अनुपातों का नियम (Law of Variable Proportions) कहकर पुकारते हैं, जबकि अन्य इसे कुछ अन्य नामों (जैसे-अनुपात का नियम, प्रतिफल का नियम, सीमान्त उत्पादकता ह्रास नियम आदि) से पुकारते हैं। प्रो० सैमुअल्सन तथा श्रीमती जोन रोबिन्सन इसे उत्पत्ति हास नियम कहना ही अधिक उपयुक्त समझते हैं।
श्रीमती जोन रोबिन्सन के शब्दों में-“क्रमागत उत्पत्ति ह्रास नियम……….. यह बताता है कि किसी एक साधन की मात्राओं के निश्चित होने की दशा में, एक निश्चित बिन्दु के पश्चात् अन्य साधनों की प्रत्येक अगली इकाई से उत्पत्ति की. घटती हुई वृद्धि प्राप्त होगी।”
नियम की अधिक स्पष्ट व्याख्या करते हुए श्रीमती जोन रोबिन्सन ने आगे लिखा है, “उत्पादन व्यय के दृष्टिकोण से यदि एक साधन की मात्रा निश्चित है, इसके साथ अन्य साधनों की बढ़ती हुई मात्रा का उपयोग किया जाता है तथा न तो कार्यक्षमता में सुधार होता है और न साधनों के अधिक मात्रा में उपयोग होने से इनके मूल्य में ही परिवर्तन होता है तो एक निश्चित बिन्दु के उपरान्त प्रति इकाई उत्पादन व्यय बढ़ जाता है।”
प्रो० बोल्डिंग के शब्दों में—“यदि उपादानों के संयोग में हम किसी एक उपादान की मात्रा में वृद्धि करते हैं तो इस वृद्धि किए जाने वाले उत्पादन की सीमान्त उत्पादकता एक समय बाद अवश्य घटेगी।”
प्रो० बेन्हम के शब्दों में—“उत्पादन के साधनों के संयोग में एक साधन का अनुपात ज्यों-ज्यों बढ़ाया जाता है, उस साधन का सीमान्त तथा औसत उत्पादन घटता जाता है।”
नियम की व्याख्या (Explanation of the Law)
उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि कुछ अर्थशास्त्रियों ने नियम के प्रतिपादन में एक साधन को स्थिर माना है, जबकि अन्य ने एक साधन को परिवर्तनशील मानकर अन्य को स्थिर रखा है। वस्तुत: इन दोनों दृष्टिकोणों में कोई मौलिक अन्तर नहीं है क्योंकि सार इस तथ्य में निहित है कि कुछ साधन स्थिर होने चाहिए तथा कुछ परिवर्तनशील।
इस नियम की व्याख्या तीन अर्थशास्त्रीय धारणाओं पर आधारित है-कुल उत्पाद, सीमान्त उत्पाद तथा औसत उत्पाद।
कुल उत्पाद (Total Product)-कुल उत्पाद वह उत्पादन है, जो परिवर्तनशील साधनों की निश्चित इकाइयों के प्रयोग से प्राप्त होता है।
सीमान्त उत्पाद (Marginal Product)-सीमान्त उत्पाद वह उत्पादन है, जो साधन की एक अतिरिक्त इकाई के प्रयोग से प्राप्त होता है।
औसत उत्पाद (Average Product)-औसत उत्पाद उत्पादन की वह मात्रा है, जो कुल उत्पादन को परिवर्तनशील साधन की कुल इकाइयों से भाग देने पर प्राप्त होता है। इस नियम की व्याख्या एक सरल उदाहरण द्वारा की जा सकती है।
कुल, औसत तथा सीमान्त उत्पाद की तालिका (Table of Total, Average and Marginal Product)
उदाहरण में श्रम को परिवर्तनशील तथा अन्य साधनों को स्थिर माना गया है। तालिका में स्वतः स्पष्ट है कि समस्त उत्पादन प्रक्रिया तीन अवस्थाओं में विभक्त है—
प्रथम अवस्था (Stage I)—प्रारम्भ में जब परिवर्तनशील साधन अर्थात् श्रम की इकाइयों में वृद्धि की जाती है, तो अन्य स्थिर साधनों का अधिक अच्छा प्रयोग होने लगता है जिससे सीमान्त उत्पादन में उत्तरोत्तर वृद्धि होती है और कुल उत्पादन में तीव्र (अर्थात् निरन्तर बढ़ती हुई) गति से वृद्धि होती है। इस प्रकार प्रथम अवस्था में कुल उत्पादन, औसत उत्पादन तथा सीमान्त उत्पादन तीनों में वृद्धि होती है। इस अवस्था को ‘बढ़ते हुए उत्पादन की अवस्था’ कहा जाता है (देखिए रेखाचित्र-10)।
द्वितीय अवस्था (Stage II) -इस अवस्था में सीमान्त उत्पादन गिरने लगता है, अतः कुल उत्पादन में वृद्धि घटती हुई दर से होती है। अन्य शब्दों में, परिवर्तनशील साधन के बढ़ने से कुल उत्पादन में वृद्धि कम अनुपात में होती है। कुछ अर्थशास्त्री इस द्वितीय अवस्था को स्वतन्त्र अवस्था न मानकर प्रथम अवस्था का एक अंग मानते हैं।
तृतीय अवस्था (Stage III)-इस अवस्था में सीमान्त उत्पादन ऋणात्मक हो जाता है, अत: कुल उत्पादन तथा औसत उत्पादन गिरने लगता है। इस प्रकार इस अवस्था में घटते हुए औसत उत्पादन का नियम (Law of Diminishing Average Returns) कार्यान्वित हो जाता है।
रेखाचित्र द्वारा व्याख्या
रेखाचित्र-10 से स्पष्ट है कि नियम का कार्यान्वयन तीन अवस्थाओं के अन्तर्गत होता है जिनकी व्याख्या ऊपर की गई है।
रेखाचित्र में G झुकाव बिन्दु है, जो यह प्रदर्शित करता है कि 0 से G बिन्दु तक उत्पादन में तीव्र गति से वृद्धि होती है क्योंकि इस अवस्था में सीमान्त उत्पादन उत्तरोत्तर तीव्र गति से बढ़ता है। इसलिए O से G तक TP (कुल उत्पादन) रेखा OX के प्रति उन्नतोदर (Convex) हो जाती है, परन्तु G बिन्दु के बाद TP रेखा Ox के प्रति नतोदर (Concave) हो जाती है क्योंकि सीमान्त उत्पादन में क्रमश: ह्रास होने लगता है। रेखाचित्र-10 से यह भी स्पष्ट है कि G बिन्दुE बिन्दु (सीमान्त उत्पादन से अधिकतम होने के स्थान) के ठीक ऊपर है।
व्यवहार में उत्पादक किस अवस्था में होगा और वह परिवर्तनशील साधन (श्रम) की कितनी मात्रा नियोजित करेगा, इन दो महत्त्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर भी हमें इस रेखाचित्र से प्राप्त हो जाते हैं। व्यवहार में उत्पादक प्राय: द्वितीय अवस्था में पाया जाता है क्योंकि प्रथम अवस्था में कुल उत्पादन और औसत उत्पादन निरन्तर वृद्धि पर होता है। तृतीय अवस्था में कोई भी उत्पादक नहीं रहेगा क्योंकि इस अवस्था में कुल उत्पादन गिरने लगता है। इस प्रकार उत्पादन केवल द्वितीय अवस्था में ही रहेगा। इस द्वितीय अवस्था में यद्यपि सीमान्त तथा औसत उत्पादन घटने लगते हैं, लेकिन कुल उत्पादन घटती हुई दर से बढ़ता है और C बिन्दु पर अधिकतम होता है।
अब जहाँ तक परिवर्तनशील साधन (श्रम) की नियोजित इकाइयों का प्रश्न है-प्रथम अवस्था में चूँकि कुल उत्पादन तथा औसत उत्पादन वृद्धि पर होता है, इसलिए उत्पादक कम-से-कम OF श्रम को नियोजित करेगा, लेकिन वह किसी भी दशा में ON से अधिक परिवर्तनशील साधन (श्रम) की इकाइयो का प्रयोग नहीं करेगा क्योंकि C बिन्दु, जहाँ उत्पादन अधिकतम हो जाता है, पर सीमान्त उत्पादन शून्य हो जाता है। इस प्रकार, F और N बिन्दु दो ‘सीमाएँ हैं जिनका कोई भी उत्पादक उल्लंघन नहीं करेगा।
उपर्युक्त व्याख्या के आधार पर हम इस नियम को इन शब्दों में भी परिभाषित कर सकते हैं-“यदि हम अन्य साधनों की स्थिर मात्राओं के साथ परिवर्तनशील साधनों की अधिक इकाइयों का प्रयोग करते हैं तो अन्य बातों के समान रहने पर, हम उन बिन्दुओं पर पहुँचेंगे जिनके बाद से सीमान्त उत्पादन (MP), तत्पश्चात् औसत उत्पादन (AP) और अन्त में कुल उत्पादन (TP) घटने लगता है।”
उत्पत्ति हास नियम की मान्यताएँ (Assumptions of the Law of Diminishing Returns)
अन्य आर्थिक नियमों की भाँति यह नियम भी कुछ मान्यताओं पर आधारित है। इस नियम की मान्यताएँ निम्नवत् हैं-
(1) उत्पादन के साधनों के मिलने के अनुपात में इच्छानुसार परिवर्तन किया जा सकता है।
(2) इस नियम की क्रियाशीलता के लिए आवश्यक है कि यदि अन्य साधन परिवर्तनशील रहें तो एक साधन अवश्य ही स्थिर रहे अथवा यदि एक साधन परिवर्तनशील हो तो अन्य साधन स्थिर रहें।
(3) परिवर्तनशील साधन की सब इकाइयाँ समरूप होनी चाहिए।
(4) यह नियम तभी क्रियाशील होगा जबकि परिवर्तनशील साधन की पर्याप्त इकाइयों का प्रयोग हो चुका हो।
(5) यह मान लिया जाता है कि नियम की क्रियाशीलता की अवधि में उत्पादन की विधि, कला तथा प्रविधि (टेक्नोलॉजी) में कोई परिवर्तन नहीं होता।
(6) इस नियम का सम्बन्ध वस्तु की भौतिक मात्रा से होता है, उसके मूल्य से नहीं। (7) यदि लागत की दृष्टि से इस नियम की सत्यता पर विचार करना हो तो इस नियम अर्थात् लागत वृद्धि नियम के क्रियाशील होने के लिए आवश्यक है कि सभी साधनों (स्थिर तथा परिवर्तनशील) तथा उत्पादनों की कीमतें दी हुई हों।
उत्पत्ति हास नियम की क्रियाशीलता के कारण
(Causes for the Application of the Law of Diminishing Returns)
इस नियम के क्रियाशील होने के लिए मुख्य रूप से अग्रलिखित कारण उत्तरदायी हैं-
1. एक अथवा कुछ साधनों का स्थिर होना (One or more factors being static)-जब एक अथवा कुछ साधनों को स्थिर और शेष साधनों को परिवर्तनशील रखा जाता है तो परिवर्तनशील साधनों की पूर्ण क्षमता का उपयोग नहीं हो पाता, परिणामत: उत्पादन शक्ति में हास हो जाता है। अन्य शब्दों में-(i) उत्पादन के विभिन्न साधन सदा सीमित मात्रा में उपलब्ध होते हैं, किसी भी साधन की पूर्ति में असीमित वृद्धि नहीं की जा सकती तथा (ii) विभिन्न साधन एक निश्चित बिन्दु पर अनुकूलतम संयोग की दशा में होते हैं, लेकिन जब कुछ साधनों की मात्रा को स्थिर रखा जाता है तो अनुकूलतम संयोग की स्थिति समाप्त हो जाती है और उत्पादन शक्ति में ह्रास होने लगता है।
अन्य शब्दों में, उत्पत्ति के साधनों पर मानव का पूर्ण अधिकार नहीं होता, अत: साधनों को आदर्श अनुपात में बनाए रखना सम्भव नहीं होता। इसके अतिरिक्त, साधनों की अविभाज्यता भी उनके सर्वोत्तम उपयोग में बाधक सिद्ध होती है।
2. उत्पादन के साधन एक-दूसरे के पूर्ण स्थानापन्न नहीं होते (Factors production not fully substituted)-उत्पादन के एक साधन को किसी दूसरे साधन के स्थान पर एक सीमा तक ही प्रयोग किया जा सकता है। यदि विभिन्न साधनों को पूर्णत: प्रतिस्थापित किया जा सकता तब न तो किसी साधन की परिमितता का प्रश्न उठता और न ही उत्पत्ति ह्रास नियम क्रियाशील होता। श्रीमती जोन रोबिन्सन के शब्दों में—“एक साधन को दूसरे के स्थान पर केवल एक सीमा तक ही प्रतिस्थापित किया जा सकता है……..”
नियम का क्षेत्र (Scope of the Law)
प्रो० मार्शल ने इस नियम की क्रियाशीलता के क्षेत्र को केवल कृषि एवं भूमि से सम्बद्ध कुछ अन्य व्यवसायों (जैसे—मछली उद्योग, खनन आदि) तक ही सीमित माना था, परन्तु यह सत्य नहीं है। आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार यह नियम उत्पादन के सभी क्षेत्रों में क्रियाशील होता है। शर्त केवल यही है कि उत्पादन प्रक्रिया दीर्घकाल तक चलती रहे। प्रो० विक्सटीड के शब्दों में—“इस नियम की क्रियाशीलता सर्वव्यापी है।” (This law is as universal as the law of life itself.)
आधुनिक विचारकों की धारणा है कि यह नियम उत्पादन के सभी क्षेत्रों में लागू होता है और उत्पत्ति वृद्धि नियम तथा उत्पत्ति समता नियम, उत्पत्ति ह्रास नियम की ही अपनी अवस्थाएँ हैं। प्रो० सैलिगमैन के शब्दों में—क्रमागत उत्पत्ति हास नियम ही उत्पत्ति का सामान्य नियम है एवं क्रमागत उत्पत्ति वृद्धि तथा उत्पत्ति समता नियम ह्रास नियम के ही अस्थायी रूप हैं।”
श्रीमती जोन रोबिन्सन के शब्दों में—“उत्पत्ति ह्रास नियम एक तार्किक अनिवार्यता (Logical necessity) है और उत्पत्ति वृद्धि नियम एक अनुभवसिद्ध तथ्य (Empirical fact) है।”
उत्पत्ति हास नियम का महत्त्व (Significance of the Law of Diminishing Returns)
उत्पत्ति ह्रास नियम अर्थशास्त्र का एक आधारभूत नियम है, अत: इसका अर्थशास्त्र के प्रत्येक क्षेत्र में व्यापक महत्त्व है। यह नियम मूल्य-निर्धारण, उत्पादन की मात्रा-निर्धारण, जनसंख्या-नियन्त्रण, लगान तथा भूमि की समस्याओं के समाधान आदि में अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है, जैसा कि निम्नलिखित विवरण से स्पष्ट है,
(1) माल्थस का जनसंख्या सिद्धान्त इसी नियम पर आधारित है। इसके अतिरिक्त जनसंख्या का एक देश से दूसरे देश को होने वाला प्रवास भी इसी नियम से प्रभावित होता है।
(2) रिकार्डो का लगान सिद्धान्त भी इसी नियम पर आधारित है।
(3) सीमान्त उत्पादकता सिद्धान्त की रचना भी इसी सिद्धान्त के आधार पर की गई है।
(4) यह नियम जीवन-स्तर के निर्धारण को भी प्रभावित करता है।
(5) यह नियम नित्य नए होने वाले आविष्कारों के लिए भी उत्तरदायी है।
(6) यह नियम उत्पादन के प्रत्येक क्षेत्र (यथा-कृषि, मछली पकड़ना, खनन, भवन निर्माण आदि) पर लागू होता है।
प्रो० केयरनीज (Cairnes) ने इस नियम के महत्त्व को स्पष्ट करते हुए लिखा है’यदि उत्पत्ति ह्रास नियम न होता तो राजनीतिक अर्थशास्त्र का रूप इतनी पूर्णता से बदल जाता जैसे मानव-प्रकृति ही परिवर्तित हो गई हो।”
क्या नियम की क्रियाशीलता को स्थगित किया जा सकता है (Whether the Applicability of Law be postponed)
प्रो० मार्शल का कथन है— “उत्पादन क्रिया में प्रकृति उत्पत्ति ह्रास नियम के अनुकूल दिशा में कार्य करती है, जबकि मनुष्य का प्रयत्न उत्पत्ति वृद्धि नियम को प्राप्त करने की दिशा में होता है।” इस प्रकार स्पष्ट है कि मनुष्य के प्रयत्न उत्पत्ति ह्रास नियम की क्रियाशीलता में बाधा डालते हैं।
अत: कृषि, खनन उद्योग आदि के क्षेत्रों में वैज्ञानिक आविष्कारों के प्रयोग, कृषि विधि में सुधार, यातायात व संचार के साधनों में विस्तार आदि के द्वारा इस नियम की क्रियाशीलता को कुछ समय के लिए अवश्य ही स्थगित किया जा सकता है। विकसित देशों में इस दिशा में पर्याप्त सफलता भी प्राप्त की गई है। इस प्रकार मानवीय प्रयासों से इस नियम की क्रियाशीलता को स्थगित अवश्य किया जा सकता है, परन्तु अन्तत: यह नियम अवश्य क्रियाशील होगा। विक्सटीड के शब्दों में—“इसकी क्रियाशीलता विश्वव्यापी है।”
Related Post
- meaning of business economics
- Assumptions of the Law of Diminishing Returns
- Bcom 1st Year Meaning to Scale
- Meaning and Definitions of Elasticity of Demand
- Bcom 1st Year Marginal Cost Notes
- The Modern Theory of Distribution
- Definition of Marginal Productivity Theory
- Meaning and Definitions of Isoproduct Curves
- The Modern Theory of Intrest
- Modern Theory of Rent
- Difference Between Perfect and Imperfect Market
- Modern Theory of Wage Determination
- Meaning of Monopolistic Competition
- Monopoly and Monopolistic Competition Notes
- Meaning of Imperfect Competition
- Meaning and Definitions of Monopoly
- Corn is not high because rent is paid, but high rent is paid because corn is high
Bcom 1st Year assumptions meaning in hindi