Main factors Responsible for the Sickness of Small Scale Industries
लघु औद्योगिक इकाइयों की रुग्णता के लिए उत्तरदायी प्रमुख घटक
31 मार्च, 2002 ई० तक देश में रुग्ण इकाइयों की संख्या ढाई लाख से भी ऊपर पहुँच चकी थी. जो एक चिन्ता का विषय है। भारत में लघु औद्योगिक इकाइयों (SSI) की रुग्णता पर गए विभिन्न अध्ययनों के आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है कि इन इकाइयों की रुग्णता के लिए प्रमुखत: अग्रलिखित घटक उत्तरदायी होते हैं –
1. प्रबन्धकीय सिद्धान्तों की अवहेलना-लघु औद्योगिक इकाइयों के मालिक बहुत कम स्वामित्व पूँजी से अपना कारोबार शुरू करते हैं तथा वे अच्छी परिस्थितियों में भी आन्तरिक वित्तीय संसाधनों के निर्माण हेतु कोई प्रयास नहीं करते। इन इकाइयों में प्राय: उत्पादन एवं बिक्री की तुलना में स्कन्ध के निर्माण हेतु मात्रा बहुत अधिक रखी जाती है जिससे कार्यशील पूँजी की कमी हो जाती है तथा उत्पादन लागत में भी वृद्धि होती है। अनेक लघ औद्योगिक इकाइयाँ अल्पकालीन उधार को मध्यमकालीन अवधि में निवेश के लिए प्रयुक्त कर लेती हैं जिससे वित्तीय प्रबन्धन में कठिनाई उत्पन्न होती है। दूसरे शब्दों में, लघु औद्योगिक इकाइयाँ अक्सर प्रबन्धकीय सिद्धान्तों का पालन नहीं करती हैं, जिससे इनके प्रबन्धन में बाधा आती है तथा कालान्तर में ये इकाइयाँ रुग्ण हो जाती हैं।
2. क्षमता का अपूर्ण उपयोग-कई बार कार्यशील पूँजी के अभाव, माँग में कमी एवं कच्चे माल की कमी के कारण लघु औद्योगिक इकाइयों की उत्पादन क्षमता का पूरा उपयोग नहीं हो पाता है। इससे ये इकाइयाँ धीरे-धीरे रुग्णावस्था में पहुँच जाती हैं।
3. सरकार का भारी उद्योगों की ओर झुकाव-सरकारी नीतियाँ भी लघु औद्योगिक इकाइयों की सफलता एवं साध्यता को प्रभावित करती हैं। कई बार सरकारी नीतियों में परिवर्तन का लघु औद्योगिक इकाइयों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, परिणामस्वरूप ये इकाइयाँ रुग्ण हो जाती हैं। उदाहरणार्थ-भारत में लघु औद्योगिक इकाइयों के लिए आरक्षित उत्पादों की सूची में कटौती के कारण ये इकाइयाँ प्रतियोगिता में नहीं ठहर पा रही हैं तथा अधिकांश इकाइयाँ घाटे में चल रही हैं। इसके साथ ही सरकार का झुकाव भी भारी उद्योगों के विकास की ओर अधिक रहा है। भूमण्डलीकरण की नीति के कारण लघु औद्योगिक इकाइयों को वृहत् उद्योगों तथा बहुराष्ट्रीय निगमों (MNCs) से प्रतियोगिता करनी पड़ती है और लघु औद्योगिक इकाइयाँ इस प्रतियोगिता में नहीं ठहर पाती, फलस्वरूप ये या तो घाटे में चल रही हैं अथवा रुग्ण हो चुकी हैं।
4. प्रबन्ध कार्य में अकुशलता-लघु स्तरीय औद्योगिक इकाइयों की स्थापना करने वाले अधिकांश साहसी प्रबन्ध का विशिष्ट ज्ञान नहीं रखते हैं। प्रबन्धकीय कुशलता के अभाव में इन इकाइयों की उपरिव्यय लागतें बहुत ऊँची होती हैं। इन इकाइयों की स्थापना में लगी पँजी पर ब्याज की दरें प्राय: ऊँची होती हैं तथा शुरुआत में साहसियों द्वारा मितव्ययिता भी नहीं अपनायी जाती। अतः प्रबन्धकीय अनुभव की कमी के कारण अनेक लघु औद्योगिक इकाइयाँ रुग्ण हो जाती हैं।
लघु स्तरीय उद्योगों की रुग्णता को दूर करने हेतु उपाय (Measures to remove the Sickness of Small Scale Industries)
भारी उद्योगों तथा लघु उद्योगों को एक ही पैमाने से नहीं मापा जाना चाहिए। लघु इकाइयों की समस्याएँ भारी उद्योगों से सर्वथा भिन्न हैं। लघु उद्योगों की रुग्णता को रोकने हेतु ठोस उपाय किए जाने की आवश्यकता है। लघु स्तर की इकाइयों की रुग्णता को रोकने के लिए कुछ उपाय निम्नलिखित हैं
(1) लघु स्तरीय इकाइयों में स्कन्ध की मात्रा को अनुकूलतम स्तर पर रहना चाहिए ताकि लागतों में कमी की जा सके तथा उत्पादन एवं बिक्री पर भी विपरीत प्रभाव न पड़े।
(2) अल्पकालीन वित्तीय स्रोतों से प्राप्त पूँजी को मध्यमकालीन/दीर्घ प्रयुक्त किया जाए।
(3) लघु औद्योगिक इकाइयों के साहसियों को प्रशिक्षण देकर उनमें प्रव का विकास करना चाहिए।
(4) लघु औद्योगिक इकाइयों को वित्तीय संसाधनों (आन्तरिक वित्तीय सृजन पर विशेष ध्यान देना चाहिए। जिस वर्ष इकाई को अधिक लाभ हो, उसका पुनर्विनियोग अधिक किया जाना चाहिए।
(5) लघु औद्योगिक इकाइयों में उपरिव्ययों में कटौती के प्रयास किए जा लागत में कमी लायी जाए तथा कोषों का अन्यत्र उपयोग न किया जाए। ‘
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