Meaning and Definitions of Isoproduct Curves
प्रश्न 8-आप समोत्पाद रेखाओं से क्या समझते हैं? तटस्थता वक्र रेखाओं तथा समोत्पाद रेखाओं में अन्तर बताइए। What do you understand by Isoproduct Curves ? How do they differ from Indifference Curves ?
अथवा समोत्पाद वक्रों की व्याख्या कीजिए तथा बताइए कि ये वक्र उदासीनता वक्रों से किस प्रकार भिन्न हैं? Explain Isoquants and mention how these are different from Indifference Curves ?
अथवा समोत्पाद वक्रों पर एक लेख लिखिए। Write a note on Isoproduct Curves.
समोत्पाद रेखाओं का अर्थ एवं परिभाषाएँ
(Meaning and Definitions of Isoproduct Curves)
तटस्थता वक्र की भाँति अर्थशास्त्रियों ने समोत्पाद वक्रों का भी निर्माण किया है, जो दो साधनों के ऐसे विभिन्न संयोगों को व्यक्त करते हैं, जिनमें एक फर्म उत्पादन की समान मात्रा को उत्पादित करती है। समोत्पाद वक्रों (Isoproduct Curves) को कई नामों से पुकारा जाता है; जैसे—समोत्पत्ति वक्र (Equal product Curves), रेखाएँ उत्पादन उदासीनता वक्र (Production Indifference Curves) आदि।
प्रो० कीयरस्टेड ने समोत्पाद रेखाओं को परिभाषित करते हुए लिखा है-“समोत्पाद रेखा दो साधनों के उन सब सम्भावित संयोगों को बताती है जो कि एकसमान मात्रा में उत्पादन प्रदान करते हैं।”
कोहन व सीयर्ट के शब्दों में, “एक समोत्पाद वक्र वह वक्र होता है जिस पर उत्पादन की अधिकतम प्राप्ति योग्य दर स्थिर होती है।”
समोत्पाद वक्र की धारणा को एक कल्पित उदाहरण द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है। माना कोई फर्म किसी वस्तु की 70 इकाइयों को प्राप्त करने के लिए श्रम एवं पूँजी (अथवा साधन X तथा साधन Y) के कुछ वैकल्पिक संयोगों का प्रयोग करती है। इन संयोगों को हम अग्रांकित तालिका द्वारा व्यक्त कर सकते हैं जो समोत्पाद तालिका कहलाती है
समोत्पाद तालिका (Isoproduct Schedule)
यदि उपर्युक्त समोत्पाद तालिका को रेखांकित करें तो हम एक वक्र प्राप्त करते हैं। यही समोत्याद वक्र (Isoproduct Curve) है (देखिए रेखाचित्र-25)
रेखाचित्र-25 में X-अक्ष पर श्रम की इकाइयों तथा Y-अक्ष पर पूँजी की इकाइयों को प्रदर्शित किया गया है। IP समोत्पाद रेखा है जो श्रम तथा पूँजी के उन सभी वैकल्पिक संयोगों को प्रदर्शित कर रही है जिनसे 70 इकाइयाँ प्रदा (output) के रूप में प्राप्त हो रही हैं।
जब एक से अधिक समोत्पाद वक्र एक ही चित्र में प्रदर्शित किए जाते हैं तब उसे समोत्पाद-मानचित्र (Isoproduct Map) की संज्ञा दी जाती है जैसा कि रेखाचित्र में प्रदर्शित किया गया है।
समोत्पाद वक्रों की मान्यताएँ
(Assumptions of Isoproduct Curves)
समोत्पाद वक्रों का निर्माण करते समय हम निम्नलिखित कुछ आधारभूत मान्यताओं को स्वीकार करते हैं; जैसे-
(1) वस्तु के उत्पादन हेतु केवल दो साधनों का ही प्रयोग किया जा सकता है। (क्योंकि यदि हम दो से अधिक साधनों के प्रयोग की मान्यता स्वीकार करते हैं तो समोत्पाद वक्रों की सरलता समाप्त हो जाती है।)
(2) विश्लेषण की अवधि में उत्पादन की प्राविधिक दशाएँ (technical production conditions अपरिवर्तित रहती हैं।
(3) उत्पादन के साधन छोटी-छोटी इकाइयों में विभाज्य हैं।
(4) साधनों को पूर्ण कुशलता के साथ प्रयुक्त किया जा रहा है।
समोत्पाद वक्रों की विशेषताएँ (Characteristics of Isoproduct Curves)
समोत्पाद वक्रों की प्रमुख विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं-
(1) एक समोत्पाद वक्र बाएँ से दाएँ को नीचे की ओर गिरता हुआ होता है, अर्थात् उसका ढाल ऋणात्मक होता है। इसका कारण यह है कि यदि एक फर्म एक साधन L की इकाइयाँ बढ़ाती है तो दूसरे साधन C की इकाइयाँ घटानी पड़ेंगी। तभी उसे इन दोनों साधनों के विभिन्न संयोगों से समान उत्पादन मिलेगा। (देखिए रेखाचित्र-26)।
(4) दायीं ओर स्थित समोत्पाद वक्र अधिक उत्पादन को प्रदर्शित करते हैं। (देखिए रेखाचित्र-29)
(5) समोत्पाद वक्र की वक्रता दो साधनों की परस्पर प्रतिस्थापन दर को सूचित करती है।
(6) समोत्पाद वक्र किसी भी अक्ष को स्पर्श नहीं कर सकते। (देखिए रेखाचित्र-30)
(7) ऋजु रेखाएँ उत्पादन क्षेत्र की आर्थिक सीमाओं का निर्माण करती हैं। ये रेखाएँ अपने पीछे की ओर झुकती हैं। ये रेखाएँ ही उत्पादन के आर्थिक क्षेत्र की सीमाएँ हैं। इन रेखाओं के केवल वे भाग जो कि ऋजु रेखाओं के बीच में हैं, उत्पादन के लिए उपयुक्त हैं। (देखिए रेखाचित्र-31)
तटस्थता वक्र रेखाओं तथा समोत्पाद रेखाओं में अन्तर (Differences between Indifference Curves and Isoproduct Curves)
तटस्थता वक्र रेखाओं एवं समोत्पाद रेखाओं में व्यापक समानता पायी जाती है। उदाहरणार्थ-दोनों वक्र बाएँ से दाएँ नीचे की ओर गिरते हुए होते हैं। दोनों वक्र ही मूलबिन्दु के प्रति उन्नतोदर होते हैं एवं ये वक्र एक-दूसरे को परस्पर काट नहीं सकते आदि। परन्तु इस व्यापक समानता के बावजूद तटस्थता वक्र रेखाओं एवं समोत्पाद रेखाओं में महत्त्वपूर्ण अन्तर पाया जाता है-
(1) जहाँ तटस्थता वक्र रेखाओं को परिमाणात्मक मूल्य नहीं प्रदान किया जा सकता (क्योंकि उपयोगिता एक मनोवैज्ञानिक और आत्मपरक विचार है) वहाँ समोत्पाद रेखाओं को परिमाणात्मक मूल्य प्रदान किया जा सकता है क्योंकि उत्पादित वस्तुओं का भौतिक मापन (physical measurement) सम्भव है।
(2) तटस्थता वक्र रेखाओं की मान्यता है कि एक निश्चित समयावधि में उपभोक्ता का व्यय लगभग निश्चित होता है (अर्थात् उपभोक्ता की द्राव्यिक आय द्वारा सीमित होता है)। इसके विपरीत, समोत्पाद रेखाओं की मान्यता है कि एक उत्पादक अपने साधनों में एक सीमा तक सरलता से परिवर्तन करने में समर्थ होता है।
(a) प्रतिस्थापन प्रभाव (Substitution Effect)-आरम्भ में जब मजदूरी बढ़ती है तो श्रमिक उच्चतर मजदूरी का लाभ उठाकर अधिक कमाना चाहता है। इसलिए वह विश्राम को कार्य से प्रतिस्थापित करता है। प्रतिस्थापन प्रभाव धनात्मक होता है, अर्थात् यह अधिक कार्य तथा कम विश्राम के पक्ष में होता है।
(b) आय प्रभाव (Income Effect)-जैसे-जैसे मजदूरी बढ़ती जाती है वैसे-वैसे आय में वृद्धि के कारण श्रमिक की आर्थिक स्थिति अच्छी होती जाती है। अब श्रमिक कम कार्य और अधिक विश्राम पसन्द करने लगता है, अत: आय-प्रभाव ऋणात्मक अर्थात् कम काम तथा अधिक विश्राम के पक्ष में होता है।
रेखाचित्र-32 में SS श्रम का पूर्ति वक्र है। आरम्भ में यह दायीं ओर ऊपर की तरफ चढ़ता हुआ है, परन्तु K बिन्दु के बाद वह बायीं ओर पीछे की ओर झुकता हुआ है। इसका अर्थ यह है कि जब मजदूरी OW तक बढ़ती है तो श्रमिक OM1 घण्टों तक कार्य करने को तैयार है, किन्तु जब मजदूरी दर OW से बढ़कर OW1 हो जाती है तो (आय-प्रभाव के कारण) श्रमिक अधिक घण्टे (OM1) कार्य करने के बजाय कम घण्टे (OM) ही करता है। Meaning and Definitions of Isoproduct Curves
पूर्ण प्रतियोगिता में मजदूरी का निर्धारण (Wage Determination Under Perfect Competition)
पूर्ण प्रतियोगिता वाले श्रम बाजार में मजदूरी-दर उस बिन्दु पर निर्धारित होगी, जहाँ श्रमिकों की कुल माँग उनकी कुल पूर्ति के बराबर होगी। रेखाचित्र-33 में मजदूरी-दर OW (या PQ) निर्धारित होगी क्योंकि इस दर पर श्रमिकों की माँग व पूर्ति में सन्तुलन स्थापित हो जाता है। यदि मजदूरी-दर इससे ऊँची होगी तो कुछ श्रमिकों को रोजगार नहीं मिलेगा, अत: वे कम मजदूरी पर कार्य करने को तैयार हो जाएंगे। इसके विपरीत, यदि मजदूरी-दर सन्तुलन से नीची रहेगी तो कुछ फर्मों को आवश्यक मात्रा में श्रमिक उपलब्ध नहीं होंगे, अत: वे मजदूरी-दर को बढ़ा देंगे और मजदूरी-दर अन्ततः सन्तुलन स्तर पर पहुँच जाएगी।
एक व्यक्तिगत फर्म की दृष्टि से मजदूरी का निर्धारण (Wage Determination from the Point of View of Individual Firm)-मजदूरी का निर्धारण उद्योग में श्रमिकों की कुल माँग तथा कुल पूर्ति की सापेक्षिक शक्तियों द्वारा होता है। एक बार उद्योग द्वारा मजदूरी-दर निर्धारित किए जाने पर प्रत्येक व्यक्तिगत फर्म इसे स्वीकार कर लेती है। रेखाचित्र-33 में इसे OX अक्ष के समान्तर एक पड़ी रेखा (Wage Line) से दिखाया गया है। चूँकि पूर्ण प्रतियोगिता में सम्पूर्ण उद्योग में मजदूरी-दर एक-सी रहती है, अत: फर्म के लिए
AW = MW
एक फर्म श्रमिकों की उस मात्रा का प्रयोग करेगी, जिस पर उसके लिए श्रमिकों की आय उत्पादकता (MRP) श्रम की सीमान्त लागत (MW) के बराबर होगी, अर्थात् MRP = MW होगी।
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