Tuesday, November 5, 2024
HomeBusiness EconomicsMeaning of Imperfect Competition Notes

Meaning of Imperfect Competition Notes

Meaning of Imperfect Competition

अपूर्ण प्रतियोगिता का अर्थ

(Meaning of Imperfect Competition)

वास्तविक जगत में न तो पूर्ण प्रतियोगिता होती है और न पूर्ण एकाधिकार, वरन् इन दोनों के बीच की स्थितियाँ होती हैं, जिन्हें श्रीमती जोन रोबिन्सन ने अपूर्ण एकाधिकार कहा है। अपूर्ण प्रतियोगिता तब उपस्थित होती है, जबकि पूर्ण प्रतियोगिता के लक्षणों में कोई अपूर्णता हो; जैसे-बाजार में क्रेता और विक्रेताओं की संख्या का अधिक न होना या वस्तु-विभेद आदि। में हम कह सकते हैं कि अपूर्ण प्रतियोगिता वह है जिसमें एक व्यक्तिगत फर्म की वस्तु के लिए माँग पूर्णत: लोचदार नहीं है।

अपूर्ण प्रतियोगिता की परिभाषाएँ

(Definitions of Imperfect Competition)

(1) प्रो० लर्नर के अनुसार, “अपूर्ण प्रतियोगिता तब पायी जाती है, जबकि एक विक्रेता अपनी वस्तु के लिए एक गिरती हुई माँग रेखा का सामना करता है।”

(2) स्टोनियर व हेग के अनुसार, “यद्यपि अपूर्ण प्रतियोगिता की आधारभूत विशेषता यह है कि औसत आगम रेखाएँ अपनी सम्पूर्ण लम्बाई तक नीचे की ओर गिरती हैं, परन्तु वे नीचे की ओर विभिन्न दरों में गिर सकती हैं।”

(3) फेयरचाइल्ड के अनुसार, “यदि बाजार उचित प्रकार से संगठित न हो, यदि क्रेता व विक्रेता के पारस्परिक सम्पर्क में कठिनाई उत्पन्न होती हो तथा अन्य व्यक्तियों द्वारा खरीदी गई वस्तुओं और दी गई कीमतों को ज्ञात करने में समर्थ न हो तो ऐसी स्थिति को हम अपूर्ण प्रतियोगिता कहते हैं।”

अपूर्ण प्रतियोगिता के प्रमुख कारण (Causes of Imperfect Competition)

व्यावहारिक जीवन में अपूर्ण प्रतियोगिता पायी जाती है क्योंकि अनेक कारणों से पूर्ण प्रतियोगिता के लिए आवश्यक शर्ते व्यवहार में पूरी नहीं हो पातीं; जैसे-

1. क्रेताओं तथा विक्रेताओं (उत्पादकों) का बहुत बड़ी संख्या में न होना (Buyers and Sellers not in good number)—व्यावहारिक जीवन में प्रायः अनेक उत्पादनों के बहुत सारे विक्रेता तथा क्रेता नहीं पाए जाते, फलत: क्रेता तथा विक्रेता (मुख्यत: विक्रेता) कीमतों को प्रभावित करने में सफल हो जाते हैं।

2. वस्तु-विभेद (Product Differentiation)-व्यवहार में विभिन्न उत्पादकों द्वारा उत्पादित वस्तुओं में प्रायः पूर्ण समरूपता नहीं पायी जाती, जिससे वस्तुएँ एक-दूसरे की पूर्ण स्थानापन्न नहीं होतीं। वस्तु विभेद वास्तविक अथवा काल्पनिक दोनों प्रकार का हो सकता है। वस्तुत: वस्तु-विभेद ही अपूर्ण प्रतियोगिता का मूल तथा आधारभूत कारण है।

3. क्रेताओं तथा विक्रेताओं का अपूर्ण ज्ञान (Imperfect Knowledge of Market to Buyers and Sellers)-वास्तविक जीवन में न तो क्रेता और विक्रेता एक-दूसरे से पूर्णत: परिचित होते हैं और न ही वे बाजार का पूर्ण ज्ञान ही रखते हैं, अत: उन्हें यह विदित नहीं हो पाता कि बाजार में कौन-सी वस्तु किस स्थान पर तथा किस मूल्य पर बिक रही है, जिससे समस्त बाजार में एक मूल्य के प्रचलित होने में बाधा पड़ती है।

4. क्रेताओं का आलस्य (Inertia of Buyers) बहुधा क्रेता मूल्य का ज्ञान होते हुए भी अपने आलस्य आदि के कारण निकट के स्थान से ही वस्तुओं का क्रय कर लेते हैं। क्रेताओं की यह प्रवृत्ति भी एक मूल्य के प्रचलन में बाधा डालती है।

5. परिवहन एवं संचार के साधनों का अभाव अथवा उच्च परिवहन लागत (Lack of Transport and Communication and High Cost of Transportation) कुशल, सस्ते तथा सुलभ परिवहन साधनों के अभाव के कारण ही बहुधा क्रेता सस्ते बाजार से वस्तुओं का क्रय नहीं कर पाते।

उपर्युक्त कारणों के अतिरिक्त कभी-कभी अपूर्ण बाजारों का निर्माण कुछ अन्य कारणों से भी हो जाता है जैसे विज्ञापनों की प्रचुरता व प्रभावशीलता के कारण बहुधा क्रेता विवेक से काम नहीं ले पाते अथवा ट्रेडमार्क आदि के कारण विक्रेता अधिक उच्च मूल्य वसूलने में सफल हो जाते हैं।

अपूर्ण प्रतियोगिता के भेद (Kinds of Imperfect Competition)

1. द्वयाधिकार (Duopoly)-द्वयाधिकार से अभिप्राय बाजार की उस स्थिति से है, जिसमें वस्तु के केवल दो ही उत्पादक होते हैं, दोनों एक ही वस्तु बेचते हैं, दोनों उत्पादकों की वस्तुएँ प्राय: एकरूप होती हैं, दोनों ही अपने उत्पादन कार्य में स्वतन्त्र होते हैं एवं दोनों की वस्तुएँ एक-दूसरे से प्रतियोगिता करती हैं।

2. अल्पाधिकार (Oligopoly)-अल्पाधिकार का अर्थ है-कुछ विक्रेता। यदि किसी वस्तु की कुल पूर्ति कुछ फर्मों या व्यक्तियों के द्वारा की जाती है तो इसे अल्पाधिकार की स्थिति कहते हैं। इस स्थिति में विक्रेताओं की संख्या कम होती है, अत: वे वस्तु की पूर्ति तथा उसकी कीमत के प्रति सजग रहते हैं। इसका कारण यह है कि एक विक्रेता की व्यावसायिक नीति का दूसरे विक्रेताओं पर भी प्रभाव पड़ता है।

3. एकाधिकृत प्रतियोगिता (Monopolistic Competition)-एकाधिकृत प्रतियोगिता में एकाधिकार व प्रतियोगिता दोनों का मिश्रण होता है।

अपूर्ण प्रतियोगिता में कीमत-निर्धारण (Price Determination Under Imperfect Competition)

पूर्ण प्रतियोगिता तथा एकाधिकार की भाँति अपूर्ण प्रतियोगिता में भी मूल्य-निर्धारण माँग और पूर्ति की शक्तियों द्वारा ही होता है।

माँग शक्ति (Demand Force)—अपूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत फर्मों की संख्या अधिक होती है तथा प्रत्येक फर्म अलग-अलग, परन्तु निकट की स्थानापन्न वस्तुओं (Close Substitutes) का उत्पादन करती है। यही कारण है कि हर फर्म की उत्पादित वस्तु की माँग बहुत लोचदार होती है। इस दशा में औसत alist (Average Revenue Curve -AR) या माँग-वक्र बाएं से दाएँ नीचे की तरफ झुकता हुआ होता है। हर उत्पादक इकाई (फर्म) की वस्तु की माँग उपभोक्ताओं की रुचियों, स्वभाव एवं अधिमानों तथा वस्तु की अन्य स्थानापन्न वस्तुओं की कीमतों से प्रभावित होती है। इस प्रकार हर फर्म की माँग की लोच (Elasticity of Demand) भिन्न-भिन्न होती है, जिससे उनके माँग वक्र भी भिन्न-भिन्न होते हैं। साथ ही इसका अभिप्राय यह है कि यदि कोई एक फर्म अपनी वस्तु की कीमत में परिवर्तन करती है तो उसका अन्य फर्मों की कीमत नीति (Price Policy) पर कोई उल्लेखनीय प्रभाव नहीं पड़ता।

पूर्ति शक्ति (Supply Force)–हर स्थिति में प्रत्येक फर्म का एक औसत लागत वक्र (Average Cost Curve-AC) होता है। यह वक्र U आकार का होता है। अपूर्ण प्रतियोगिता (एकाधिकृत प्रतियोगिता) के अन्तर्गत कुछ फर्मों के प्रवेश अथवा बहिर्गमन से इसके आकार पर कोई उल्लेखनीय प्रभाव नहीं पड़ता। Meaning of Imperfect Competition Notes

मूल्य-निर्धारण के सम्बन्ध में कुछ उल्लेखनीय बातें (Important considerations Regarding Price Determination)

मूल्य-निर्धारण के सम्बन्ध में कुछ उल्लेखनीय बातें निम्नलिखित हैं-

(1) पूर्ण प्रतियोगिता तथा एकाधिकार की भाँति अपूर्ण प्रतियोगिता (एकाधिकृत प्रतियोगिता) के अन्तर्गत भी सीमान्त आगम (Marginal Revenue-MR) का सीमान्त लागत (Marginal Cost-MC) के बराबर होना आवश्यक है।

(2) प्रत्येक फर्म की माँग रेखा नीचे की ओर गिरती हुई (बाएँ से दाएँ) होती है, परिणामतः सीमान्त आगम (MR) औसत आगम (AR) से कम होता है।

(3) वस्तु सीमान्त लागत से ऊँची कीमत पर बेची जाती है।

इस प्रकार अपूर्ण प्रतियोगिता में वस्तु की कीमत उस बिन्दु पर निर्धारित होती है, जहाँ सीमान्त लागत (MC) सीमान्त आगम (MR) के बराबर होगी। कीमत-निर्धारण की प्रक्रिया की व्याख्या दो समयावधियों में की जा सकती है-

(1) अल्पकाल (Short-period) तथा (2) दीर्घकाल (Long-period)।

अल्पकाल में अपूर्ण (एकाधिकृत) प्रतियोगिता के अन्तर्गत मूल्य-निर्धारण [Price Determination under Imperfect (Monopolistic) Competition in Shortperiod]

अल्पकाल के अन्तर्गत एक फर्म लाभ, हानि तथा सामान्य लाभ तीनों में से किसी भी दशा में हो सकती है। सामान्यत: लाभ, हानि तथा सामान्य लाभ की स्थिति इस बात पर निर्भर करेगी कि फर्म द्वारा उत्पादित वस्तु की माँग कैसी है। यदि वस्तु की माँग अत्यन्त प्रबल है तो लाभ की सम्भावना अधिक होगी। यदि माँग सामान्य है तो सामान्य या शून्य लाभ की प्राप्ति होगी और यदि माँग बहुत कम है तो हानि की भी सम्भावना हो सकती है।

इन तीनों सम्भावित दशाओं का विवरण निम्न प्रकार है-

रेखाचित्र-48 में AR औसत आगम वक्र, MC अल्पकालीन सीमान्त लागत वक्र तथा AC अल्पकालीन औसत लागत वक्र है। उत्पादक निश्चय ही उस मात्रा तक उत्पादन बढ़ाएगा,

जहाँ तक कि उसे अधिकतम लाभ प्राप्त होगा और अधिकतम लाभ निश्चय ही उस बिन्दु पर होगा जहाँ MR तथा MC एक-दूसरे के

Meaning of Imperfect Competition

बराबर होंगे। रेखाचित्र में MR और MC एक-दूसरे को B बिन्दु पर काट रहे हैं (अर्थात् B बिन्दु पर MR, MC के बराबर है), अत: OM मात्रा में वस्तु का उत्पादन होगा। MC रेखा MR को B बिन्दु पर स्पर्श करती है, फलत: EM अथवा OP मूल्य निर्धारित होगा। यही EM या OP है मूल्य है।

अब जहाँ तक लाभ/हानि का प्रश्न है,

इसके लिए हमें औसत लागत रेखा पर दृष्टिपात करना होगा। चूँकि औसत लागत FM है, जो मूल्य (कीमत) EM से कम है, अत: EF (प्रति इकाई) लाभ की मात्रा हुई। इस प्रकार कुल मिलाकर OM उत्पादन पर SPEF लाभ की मात्रा होगी। Meaning of Imperfect Competition Notes

रेखाचित्र-49 में फर्म बिन्दु E पर अपना साम्य स्थापित करती है जहाँ MR = MC है। फर्म की कुल औसत लागत वस्तु की कीमत के बराबर है, अत: फर्म को न लाभ होता है और न हानि। फर्म को केवल सामान्य लाभ ही प्राप्त होता है।

Meaning of Imperfect Competition

रेखाचित्र-50 में फर्म बिन्दु E पर अपना साम्य स्थापित करती है। साम्य कीमत PQ है तथा उत्पादन की मात्रा OQ है। फर्म की कुल औसत लागत CQ है, जो कि कीमत PQ से अधिक है, अत: फर्म को कुल ABPC हानि होती है। निष्कर्ष-(1) यदि MR, MC के बराबर है तो यह फर्म के साम्य की स्थिति होगी। (2) यदि AR, AC से अधिक है तो फर्म को असामान्य लाभ होगा। (3) यदि AR, AC के बराबर है तो फर्म को केवल सामान्य रूप से लाभ होगा। (4) यदि AR,AC से कम है तो फर्म को हानि होगी, लेकिन AVC प्राप्त होने के कारण वह उत्पादन जारी रखेगी।

(5) यदि AR, AVC से कम है तो फर्म उत्पादन बन्द कर देगी। Meaning of Imperfect Competition Notes

दीर्घकाल में अपूर्ण (एकाधिकृत) प्रतियोगिता के अन्तर्गत कीमत-निर्धारण [Price Determination under Imperfect (Monopolistic) Competition in LongPeriod] ]

Y प्रतिफल/लागत→ B दीर्घकाल के अन्तर्गत फर्मे केवल सामान्य लाभ ही अर्जित कर पाती हैं। अतिरिक्त लाभ या हानि की प्राप्ति दीर्घकाल में सम्भव नहीं है क्योंकि यदि लाभ की स्थिति होगी तो अतिरिक्त लाभ से आकर्षित होकर नई फर्मे उत्पादन के क्षेत्र में आ जाएँगी, जिससे प्रतियोगिता में वृद्धि होगी और अन्ततः अतिरिक्त लाभ की स्थिति समाप्त होकर सामान्य लाभ की स्थिति रह जाएगी। इसके विपरीत, यदि हानि की स्थिति है तो यह दशा भी अधिक समय तक स्थायी नहीं रह सकती क्योंकि उत्पादक दीर्घकाल तक हानि नहीं सह सकते, अत: कुछ उत्पादक अवश्य ही उत्पादन कार्य को बन्द कर देंगे। उनके उत्पादन बन्द करने से पूर्ति में कमी होगी, जिससे अन्ततः मूल्यों में वृद्धि होकर सामान्य लाभ की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी।

Meaning of Imperfect Competition

रेखाचित्र-51 में AR औसत आगम वक्र तथा MR सीमान्त आगम रेखा है। LAC दीर्घकालीन औसत लागत वक्र LMC तथा LMC दीर्घकालीन सीमान्त लागत वक्र है। रेखाचित्र-51 में E MR तथा LMC एक-दूसरे को B बिन्दु पर काट रहे हैं जिसमें -LAC B बिन्दु से OX पर डाला गया लम्ब उत्पादन की मात्रा OM को निर्धारित करता है। LAC तथा AR परस्पर सन्तुलन बिन्दु E पर AR एक-दूसरे को स्पर्श कर रहे हैं जिससे स्पष्ट है कि OM सन्तुलन MR →X M मात्रा तथा OP सन्तुलन मूल्य पर केवल सामान्य लाभ की ही उत्पादन की मात्रा प्राप्ति हो रही है। इस प्रकार स्पष्ट है कि दीर्घकाल में केवल रेखाचित्र-51 सामान्य लाभ की ही प्राप्ति होगी

पूर्ण तथा अपूर्ण प्रतियोगिता में अन्तर (Distinction between Perfect and Imperfect Competition)


Related Post

  1. meaning of business economics
  2. Assumptions of the Law of Diminishing Returns
  3. Bcom 1st Year Meaning to Scale
  4. Meaning and Definitions of Elasticity of Demand
  5. Bcom 1st Year Marginal Cost Notes
  6. The Modern Theory of Distribution
  7. Definition of Marginal Productivity Theory
  8. Meaning and Definitions of Isoproduct Curves
  9. The Modern Theory of Intrest
  10. Modern Theory of Rent
  11. Difference Between Perfect and Imperfect Market
  12. Modern Theory of Wage Determination
  13. Meaning of Monopolistic Competition
  14. Monopoly and Monopolistic Competition Notes
  15. Meaning of Imperfect Competition
  16. Meaning and Definitions of Monopoly
  17. Corn is not high because rent is paid, but high rent is paid because corn is high

Meaning of Imperfect Competition Notes

Admin
Adminhttps://dreamlife24.com
Karan Saini Content Writer & SEO Analyst I am a skilled content writer and SEO analyst with a passion for crafting engaging, high-quality content that drives organic traffic. With expertise in SEO strategies and data-driven analysis, I ensure content performs optimally in search rankings, helping businesses grow their online presence.
RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments