Modern Theory of Wage Determination
प्रश्न 12-मजदूरी निर्धारण के आधुनिक सिद्धान्त को समझाइए। Explain the Modern Theory of Wage Determination.
मजदूरी निर्धारण का आधुनिक सिद्धान्त (Modern Theory of Wage Determination)-
आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार श्रम का मूल्य भी अन्य वस्तुओं की भाँति श्रम की माँग व पूर्ति की शक्तियों के द्वारा निर्धारित होता है। संक्षेप में, इस सिद्धान्त के अनुसार, एक उद्योग में मजदूरी उस बिन्दु पर निर्धारित होती है जहाँ पर श्रमिकों की कुल माँग-रेखा और उनकी कुल पूर्ति-रेखा एक-दूसरे को काटती हैं। इस सिद्धान्त का अध्ययन निम्नलिखित दो परिस्थितियों के अन्तर्गत किया जा सकता है-
I. पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत,
II अपूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत।
I. पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत (Under Perfect Competition)
1. श्रम की माँग (Demand of Labour)-श्रम की माँग उत्पादकों द्वारा की जाती है। श्रम की माँग इसलिए की जाती है
क्योंकि श्रमिक उत्पादन करते हैं, अत: श्रम की माँग की कीमत इस बात पर निर्भर करती है कि वह कितना उत्पादन करता है। कोई भी उत्पादक श्रम की सीमान्त उत्पादकता से अधिक कीमत नहीं देना चाहता। इस प्रकार श्रम की सीमान्त उत्पादकता मजदूरी की अधिकतम सीमा को निश्चित करती है।
(i) श्रम की सीमान्त उत्पादकता मजदूरी की अधिकतम सीमा निर्धारित करती है।
(ii) श्रम की माँग उत्पादन की दशाएँ, श्रम द्वारा बनाई गई वस्तु की माँग तथा उत्पत्ति के अन्य साधनों के बीच प्रतिस्थापन की सम्भावनाओं द्वारा व्यक्त होती है।
(iii) अल्पकाल में किसी फर्म की माँग, माँग के नियम के अनुसार होती है, अर्थात् मजदूरी की दर जितनी कम होती है, उत्पादन के लिए श्रमिकों की माँग उतनी ही अधिक होती है।
किसी उद्योग के श्रम का माँग-वक्र बायीं से दायीं ओर नीचे झुकता चला जाता है। यह इस बात को बताता है कि यदि मजदूरी की दर अधिक है तो श्रमिकों की माँग कम होगी तथा मजदूरी की दर कम होने पर श्रमिकों की माँग अधिक होगी।
2. श्रम की पूर्ति (Supply of Labour)-श्रम की पूर्ति श्रमिकों द्वारा की जाती है, अर्थात् श्रमिक श्रम-विक्रेता है। श्रम की पूर्ति से आशय एक विशेष प्रकार के श्रम के उन घण्टों एवं दिनों से है जिन्हें विभिन्न मजदूरी की दरों पर नियोजनार्थ प्रस्तुत किया जाता है। सामान्यतया ऊँची मजदूरी पर अधिक श्रमिक तथा कम मजदूरी पर कम श्रमिक काम करने को तत्पर होते हैं।
श्रमिकों की न्यूनतम मजदूरी उनके सीमान्त त्याग अर्थात् जीवन-स्तर से तय होती है। दूसरे शब्दों में, श्रमिक अपने काम के बदले में कम-से-कम इतनी मजदूरी अवश्य लेना चाहेगा, जो कि उसके वर्ग की सामाजिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त हो। इस प्रकार श्रमिकों का सीमान्त त्याग अथवा उनके रहन-सहन का स्तर उनकी मजदूरी की न्यूनतम सीमा को निश्चित करता है।
किसी उद्योग विशेष में श्रम की पूर्ति को प्रभावित करने वाले तत्त्व इस प्रकार हैं-
(i) अनार्थिक कारण (Non-economic Causes) यद्यपि एक श्रमिक अपनी सौद्रिक आय बढ़ाने का इच्छुक होता है, परन्तु अनेक परिस्थितियाँ उसे ऐसा करने से रोकती हैं; से—वर्तमान रोजगार से मोह, आलस्य तथा घरेलू वातावरण। इसके अलावा रीति-रिवाज, शंस्कृतिक व सामाजिक परिस्थितियाँ तथा श्रमिक का स्वभाव भी श्रम की पूर्ति को प्रभावित करते हैं। श्रम की पूर्ति जनसंख्या के आकार, आयु-वितरण, कार्य के घण्टे, कार्य की गहनता स्था श्रमिकों की कुशलता पर निर्भर होती है।
(ii) आर्थिक कारण (Economic Causes) सामान्यतया ऊँची मजदूरी-दर पर श्रम की पूर्ति अधिक होती है। दूसरे शब्दों में, मजदूरी-दर बढ़ाने पर एक उद्योग में श्रम की पूर्ति यावसायिक गतिशीलता पर निर्भर करती है। व्यावसायिक गतिशीलता निम्नलिखित बातों पर नर्भर करती है-
(a) वैकल्पिक उद्योगों में उपलब्ध मजदूरी,
(b) व्यवसाय में नौकरी की सुरक्षा, पेंशन की व्यवस्था, बोनस आदि लाभों का तुलनात्मक महत्त्व,
(c) स्थानान्तरण लागत।
Related Post
- meaning of business economics
- Assumptions of the Law of Diminishing Returns
- Bcom 1st Year Meaning to Scale
- Meaning and Definitions of Elasticity of Demand
- Bcom 1st Year Marginal Cost Notes
- The Modern Theory of Distribution
- Definition of Marginal Productivity Theory
- Meaning and Definitions of Isoproduct Curves
- The Modern Theory of Intrest
- Modern Theory of Rent
- Difference Between Perfect and Imperfect Market
- Modern Theory of Wage Determination
- Meaning of Monopolistic Competition
- Monopoly and Monopolistic Competition Notes
- Meaning of Imperfect Competition
- Meaning and Definitions of Monopoly
- Corn is not high because rent is paid, but high rent is paid because corn is high