Regional Imbalance in India Notes
भारत में क्षेत्रीय असन्तुलन
भारत के कुछ क्षेत्र-विशेष के राज्यों का त्वरित गति से विकास हुआ है। इसके विपरीत, कुछ राज्य विकास में अत्यधिक पिछड़े हुए हैं। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पाँच दशक बीत जाने के बाद भी क्षेत्रीय असन्तुलन बना हुआ है। यदि किसी देश में तुलनात्मक रूप से अधिक विकसित राज्यों/प्रदेशों एवं आर्थिक दृष्टि से बहुत पिछड़े हुए राज्यों/प्रदेशों की तलना की जाए तो इस स्थिति को क्षेत्रीय असन्तुलन की संज्ञा दी जाती है। जब सरकार कुछ क्षेत्रों के विकास पर अधिक ध्यान देती है एवं अन्य क्षेत्रों की उपेक्षा करती है, तो इससे भी क्षेत्रीय असन्तुलन उत्पन्न हो जाता है।
भारत में सन्तुलित क्षेत्रीय विकास (Balanced Regional Development in India)
भारत एक विशाल देश है। यहाँ पर सभी क्षेत्रों में प्राकृतिक संसाधन पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं हैं। कुछ स्थानों पर ये समुचित मात्रा में पाए जाते हैं तथा कुछ स्थानों पर इनका अभाव होता है। इसी के साथ-साथ कुछ स्थानों पर तो ये संसाधन नगण्य ही हैं। अत: यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि सभी क्षेत्रों में आर्थिक विकास समान रूप में नहीं पाया जाता है। उन क्षेत्रों में कृषि का विकास सम्भव हो पाता है जहाँ अनुकूल जलवायु, पर्याप्त जलापूर्ति, भूमि/मृदा की उच्च उर्वरता तथा उसके अनुकूल अन्य दशाएँ विद्यमान हों। गंगा, कष्णा तथा गोदावरी के डेल्टाई क्षेत्र कृषि की दृष्टि से अधिक सक्षम व समृद्ध हैं। वे क्षेत्र, जहाँ प्रतिकूल जलवायु व उर्वरा शक्ति कम पायी जाती हैं, कृषि के दृष्टिकोण से पिछड़े हुए हैं। ये सभी कारक व प्राकृतिक अन्तर वास्तव में आर्थिक रूप से क्षेत्रीय असन्तुलन को प्रोत्साहित करते हैं। हमारे देश के विभिन्न क्षेत्रों में औद्योगीकरण के स्तर में विभिन्नता भी क्षेत्रीय असन्तुलन को प्रोत्साहित करती है। जूट उद्योग के लिए पश्चिम बंगाल विश्वविख्यात है। बिहार राज्य को लोहा व इस्पात उद्योग के कारण जाना जाता है तथा सूत्री वस्त्र उद्योग के लिए महाराष्ट्र का नाम लिया जाता है। विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न उद्योगों के विकास के लिए जल-शक्ति, परिवहन की सुविधाएँ तथा कच्चे माल की प्राप्ति आदि का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। वे क्षेत्र, जहाँ पर इन सुविधाओं का अभाव पाया जाता है, पिछड़ी हुई दशा में होते हैं। . इसका कारण केवल क्षेत्रीय विभिन्नताओं का पाया जाना और भौतिक सुविधाओं की उपलब्धि ही नहीं अपितु इन सुविधाओं का समुचित रूप से प्रयोग न होना भी है। कुछ क्षेत्रों में व्यक्तियों के अन्दर साहस, संगठन/प्रबन्ध की योग्यता तथा तकनीकी ज्ञान का अभाव भी पाया जाता है, . अत: वे पिछड़ी हुई दशा में ही रह जाते हैं।
आर्थिक तौर पर पिछड़े हुए क्षेत्रों में रोजगार, आय तथा उपभोग का स्तर अपेक्षाकृत निम्न पाया जाता है। इन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों का जीवन-स्तर भी निम्न पाया जाता है। वे मानसिक रूप से पिछड़े हुए रह जाते हैं, जिसके फलस्वरूप वे विकास के लिए प्रयत्न करने में भी सक्षम नहीं रहते।
क्षेत्रीय विभिन्नताएँ वांछनीय (Desirable) नहीं होतीं। हमारे देश में भी अनेक क्षेत्रीय आन्दोलन समय-समय पर सिर उठाते रहते हैं। गोरखालैण्ड आन्दोलन, असम आन्दोलन आदि क्षेत्रीय आन्दोलन, केवल क्षेत्रीय विभिन्नताओं, अल्प रोजगार, विषम आय तथा निम्न जीवन स्तर आदि के शिकंजे का ही परिणाम हैं। इस सम्बन्ध में सरकार का यह दायित्व हो जाता है कि कहीं राजनीतिक अशान्ति किसी राजनीतिक आन्दोलन का कारण न बन जाए, अतः सरकार इस सम्बन्ध में प्रयासरत रहती है कि सन्तुलित क्षेत्रीय विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए क्षेत्रीय असमानताओं को किस प्रकार दूर किया जाए।
क्षेत्रीय असन्तुलन के कारण तथा प्रभाव (Causesand Effects of Regional Imbalance)
भारत की अर्थव्यवस्था में क्षेत्रीय असन्तुलन के प्रमुख कारण एवं प्रभाव निम्नलिखित हैं
1. भौगोलिक परिस्थितियाँ (Geographical Conditions)-
भारत के कई क्षेत्रों के पिछड़े होने का कारण वहाँ की भौगोलिक परिस्थितियाँ भी हैं; जैसे-जम्मू-कश्मीर,के कारण पिछडे देती है। गंगा-यमुना हिमाचल प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश तथा उत्तराखण्ड प्रदेश पहाड़ी क्षेत्र होने के का रहे हैं। पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण यहाँ यातायात की परेशानी रहती है, जिससे इन आवागमन काफी कठिन होता है। जलवायु भी क्षेत्रीय असन्तुलन को जन्म देती है। गंगा का मैदानी भाग जितना उपजाऊ है, उतना उपजाऊ अन्य कोई क्षेत्र नहीं है। इसी वजी क्षेत्र पानी की कमी न होने के कारण विकसित हो गए किन्तु शेष क्षेत्र, जहाँ पानी की थी, पिछड़ गए।
2. ब्रिटिश शासन (British Rule)-
आजादी के पूर्व का इतिहास यदि उवा देखें तो यह विदित होता है कि क्षेत्रीय असन्तुलन के लिए ब्रिटिश शासन काफी हद जिम्मेदार रहा। उन्होंने भारत को एक व्यापारिक केन्द्र के रूप में ही प्रयोग किया। अंग्रेजों के यहाँ का कच्चा माल विदेशों में भेजा तथा वहाँ से आया हुआ पक्का माल यहाँ बेचा। परिणाम यह हुआ कि यहाँ व्यापार तथा उद्योग पिछड़ गए। उन्होंने केवल उन्हीं क्षेत्रों का विकास किया जिनसे उन्हें लाभ प्राप्त होता था। उन्होंने पश्चिम बंगाल तथा महाराष्ट्र का ही विकास किया। इसी तरह जमींदारी प्रथा ने कृषि को विकसित नहीं होने दिया। आय के बड़े हिस्से पर ५९ साहूकारों तथा जमींदारों का कब्जा होता था। ब्रिटिश शासन के दौरान जिन स्थानों से नहरें निकाली गईं वे ही क्षेत्र विकसित हो पाए।
3. नए विनियोग (New Investments)-
नए विनियोगों का जहाँ तक प्रश्न है. * विशेषकर निजी क्षेत्र में, पहले से विकसित क्षेत्रों में ज्यादा नया विनियोग किया गया है, जिसका उद्देश्य ज्यादा लाभ कमानां भी होता है। दूसरे, विकसित क्षेत्रों में पानी, बिजली, सड़क, बैंक, बीमा कम्पनियाँ, श्रमिकों का आसानी से मिलना, बाजार का नजदीक होना इत्यादि का लाभ भी प्राप्त हो जाता है। इस वजह से भी क्षेत्रीय असन्तुलन हो जाता है।
4. कृषि में नवीन तकनीकी (New Technology in Agriculture)-
स्वतन्त्रता के पश्चात् कृषि की दशा सुधारने के लिए नए-नए यन्त्रों का भारत में निर्माण किया जाने लगा, किन्तु उन्नत यन्त्रों का प्रयोग केवल बड़े किसानों द्वारा ही किया गया। साथ ही जो विकसित क्षेत्र थे, उन्हीं क्षेत्रों में इनका अधिक प्रयोग किया गया। परिणाम यह हुआ जो विकसित क्षेत्र थे वे और ज्यादा विकसित हो गए तथा जो पिछड़े क्षेत्र थे वे और ज्यादा पिछड़ गए।
5. संसाधनों का असमान वितरण (Unequal Distribution of Resources)—
विभिन्न राज्यों के अन्तर्गत यह देखने में आता है कि प्राकृतिक संसाधनों के वितरण में काफी असमानता है जैसे कहीं पेट्रोलियम उत्पाद ज्यादा मात्रा में हैं तो कहीं पत्थर की खानें, कहीं वन अधिक हैं तो कहीं बलुआ भूमि है तथा कहीं रेगिस्तान। इस प्रकार प्राकृतिक संसाधनों के असमान वितरण के कारण भी क्षेत्रीय विषमताएँ अधिक प्रतीत होती हैं।
6. आर्थिक संरचना का असमान वितरण (Unequal Distribution of Economic Infrastructure)-
बहुत-से राज्यों में औद्योगिक प्रगति के लिए जिस आर्थिक संरचना की आवश्यकता होती है, उसका वितरण सही प्रकार से नहीं हो सका है; जैसे-विद्युत शक्ति, विपणन तथा साख सुविधाएँ, सन्देशवाहन के साधन, परिवहन हेतु सड़कें इत्यादि। इन
सविधाओं का पर्याप्त विकास न होने के कारण वे क्षेत्र आज भी पिछड़े हुए हैं। अत: क्षेत्रीय असन्तुलन का यह भी काफी महत्त्वपूर्ण कारण है। .
8. सामाजिक व्यवस्था (Social System)-
जिन प्रदेशों में सामाजिक व्यवस्था ऐसी होती है कि वहाँ के लोग नई सोच, नए परिवर्तन को स्वीकार नहीं करते, वे विकास की दौड में पिछड़ जाते हैं। दूसरी ओर जिन प्रदेशों के लोग नई सोच, नया जोश तथा साहस रखते हैं. वे प्रदेश विकास के रास्ते तय करके अग्रणी बन जाते हैं। इस प्रकार सामाजिक व्यवस्था की वजह से भी क्षेत्रीय असन्तुलन हो जाता है।
9. राजनीतिक प्रभाव (Political Influence)-
जिन क्षेत्रों में नागरिक शिक्षित थे एवं उनमें राजनीतिक रूप से जागरूकता थी, उन्होंने राजनीतिक लोगों की मदद लेकर अपने क्षेत्र का विकास करा लिया, किन्तु जिन क्षेत्रों के नागरिकों ने ज्यादा ध्यान नहीं दिया, उन क्षेत्रों में विकास नहीं हो पाया। इस प्रकार भी क्षेत्रीय असन्तुलन हो जाता है।
10.निर्धनता (Poverty)-
भारत में कई प्रदेश गरीबी के कारण भी विकास में पिछड़ गए हैं। गरीबी के कारण वे राज्य गरीबी के दुष्चक्र में फँसकर रह जाते हैं तथा उससे बाहर निकलने का प्रयास करते हुए भी बाहर नहीं निकल पाते। किन्तु जो क्षेत्र गरीब नहीं हैं, वे क्षेत्र अपना विकास शीघ्रता से कर लेते हैं।
विदेशी सहायता तथा प्राविधिक ज्ञान (Foreign Assistance and Technical Knowledge)-
जो राज्य विदेशी सहायता, प्राविधिक ज्ञान तथा पूँजी प्राप्त करने में सफल हो जाते हैं, वे अपना विकास कर लेते हैं। इसके विपरीत, वे राज्य, जो इस प्रकार की सहायता प्राप्त करने में असफल रहते हैं, विकास में पिछड़ जाते हैं। इससे भी क्षेत्रीय असन्तुलन हो जाता है।
क्षेत्रीय सन्तुलित विकास के लिए किए गए विभिन्न उपाय (Various Measures adopted for Regional Balanced Development)
पिछड़े क्षेत्रों का विकास करने तथा क्षेत्रीय असन्तुलन को दूर करने के लिए किए गए प्रयासों को निम्नलिखित तीन भागों में रखा जा सकता है
(i). भारत सरकार द्वारा किए गए प्रयास,
(ii). राज्य सरकारों द्वारा किएगए प्रयास, _
(iii.) वित्तीय संस्थाओं द्वारा किए गए प्रयास।
भारत सरकार द्वारा किए गए प्रयास (Efforts made by Government of India)
भारत सरकार द्वारा क्षेत्रीय असन्तुलन को दूर करने की दिशा में निम्नलिखित प्रयास किए गए हैं
1. सार्वजनिक उपक्रमों की स्थापना (Establishment of Public Sector’ Undertakings)-
क्षेत्रीय असन्तुलन को दूर करने के लिए सरकार ने पिछड़े क्षेत्रों में सार्वजनिक उपक्रमों की स्थापना की है। सार्वजनिक उपक्रम की स्थापना होने से वहाँ सहायक उद्योगों की छोटी-छोटी इकाइयाँ विकसित हो जाती हैं।
2.लाइसेन्सिंग प्रणाली को शुरू करना (Introducing a System)-
‘औद्योगिक विकास एवं नियमन अधिनियम Development and Regulation Act), 1951 ई० में पारित किया गया। को बनाए जाने का प्रमख उद्देश्य औद्योगिक केन्द्रीकरण वाले क्षेत्रों में नए लाइसेन्स पर तथा नई औद्योगिक इकाइयों की स्थापना पर रोक लगाना था। इससे भी कुछ हद तक में नए संस्थानों के खुलने पर रोक लगी।
3.औद्योगिक बस्तियों की स्थापना (Establishment. of India Estates)-
उद्योगों का विस्तार करने के लिए भारत सरकार ने देश के सभी राज्यों पिछड़े इलाकों में औद्योगिक बस्तियों की स्थापना की है। इन औद्योगिक बस्तियों में साह (Entrepreneures) को विकसित भूमि, भवन, विद्युत तथा आवश्यक चीजों एवं सेवाओं कम दर पर उपलब्ध कराया जाता है। इन बस्तियों को पिछड़े हुए क्षेत्रों में बसाया जाता है जिससे कि उन क्षेत्रों का विकास हो सके। .
4.आयात सुविधाएँ (Import Facilities)-
देश के अनेक पिछड़े जिलों में औद्योगिक इकाइयाँ खोलने पर अनेक सुविधाएँ सरकार प्रदान कर रही है; जैसे—आयात के लिए प्राथमिकता के आधार पर आयात लाइसेन्स, विदेशी विनिमय की सुविधा, आवश्यक कच्चे माल, संयन्त्रों एवं कल-पुों को सस्ते दर पर उपलब्ध कराना इत्यादि।
5.केन्द्रीय विनियोग उपदान योजना (Central Investment Subsidy Plan)—
यह उपदान योजना सन् 1970 ई० से लागू की गई है। इस योजना का उद्देश्य पिछड़े क्षेत्रों को विकास की पटरी पर लाना है। ये उपदान सम्बन्धी नियम निम्नलिखित हैं –
(i) यह उपदान निजी, सार्वजनिक, संयुक्त एवं सहकारी सभी क्षेत्रों के प्रतिष्ठानों को दिया जाता है। –
(ii) इस योजना के अन्तर्गत प्राप्त अनुदान आयकर से मुक्त होता है।
(iii) यह उपदान देश के विशेष पिछड़े क्षेत्रों में स्थापित किए गए उद्योगों को दिया जाता है। यह पूँजी विनियोग का 15% अथवा ₹ 15 लाख (जो दोनों में कम हो) के बराबर उपदान के रूप में दिया जाता है। यह उपदान केन्द्रीय सरकार द्वारा दिया जाता है।
(iv) यह उपदान पहले तो अविकसित राज्य के एक अविकसित जिले को ही उपलब्ध था, किन्तु अब साहसी को स्थान का निर्धारण करने में स्वतन्त्रता प्रदान कर दी गई है तथा यह उपदान प्रत्येक अविकसित राज्य में 2 से 6 जिलों तक तथा प्रत्येक विकसित राज्य में 1 से 3 जिलों तक बढ़ा दिया गया है।.
6. आयकर में छूट (Income Tax Exemption)—
‘आयकर अधिनियम, 1961’ के अन्तर्गत 31 मार्च, 1973 ई० के बाद पिछड़े क्षेत्रों में स्थापित की गई औद्योगिक इकाई अथवा होटल के लाभों का 20%, आयकर से मुक्त कर दिया गया है। यह छूट पिछड़े क्षेत्रों में लगाई गई इकाई की स्थापना के 10 कर निर्धारण वर्षों तक दी जाएगी। यह छूट तभी दी जाएगी जब इन इकाइयों द्वारा विद्युत शक्ति का प्रयोग न करने पर कम-से-कम 20 व्यक्ति इनमें कार्यरत हों। दूसरे, नई इकाई की स्थापना किसी ऐसी मशीन एवं प्लाण्ट के हस्तान्तरण से न की गई हो, जो पहले किसी भी उद्देश्य से किसी पिछड़े इलाके में प्रयोग में लायी गई है।
॥. राज्य सरकारों द्वारा किए गए प्रयास (Efforts made by State Governments)
राज्य सरकारों द्वारा भी क्षेत्रीय असन्तुलन को दूर करने के लिए समय-समय पर प्रयास किए जाते रहे हैं, जिनमें से प्रमुख प्रयास निम्नलिखित हैं –
1.विक्रय कर में छूट (Exemption from Sales Tax)-
ज्यादातर राज्य सरकार द्वारा पिछड़े क्षेत्रों का औद्योगिक विकास करने के लिए औद्योगिक कारखानों को विक्रय कर में छूट तथा रियायतें दी जाती हैं। उदाहरणार्थ-राजस्थान में पाँच वर्ष तक ऐसी औद्योगिक इकाइयों को विक्रय कर में छूट दी जाती है।
2.सस्ती दर पर भूमि तथा भवन का आवंटन (Allotment of Land of Building at Concessional Rate)-
ज्यादातर राज्य सरकारों द्वारा विभिन्न जिलों में साहसियों को सस्ती दर पर भूमि तथा भवन का आवंटन किया जाता है जिससे कि पिछड़े क्षेत्रों में औद्योगिक विकास हो सके। ऐसे कई राज्य हैं जहाँ राज्य सरकारों द्वारा जमीन के मूल्य का 25% से 50% तक उपदान के रूप में दिया जाता है तथा शेष राशि का भुगतान किस्तों में लिए जाने की भी व्यवस्था है। .
3.ब्याज उपदान (Interest Subsidy)-
कुछ राज्य सरकारों द्वारा छोटे उद्योगों को अविकसित क्षेत्रों में स्थापित करने पर एवं इस हेतु बैंकों अथवा वित्तीय संस्थानों से ऋण लेने पर ब्याज की दर में 2% तक उपदान दिया जाता है। इस प्रकार के उपदान मध्य प्रदेश, बिहार, ओडिशा इत्यादि राज्य सरकारों द्वारा प्रदान किए जाते हैं।
4.विद्युत के लिए छूट (Rebate for Electricity)-
कुछ राज्य सरकारों के द्वारा पिछड़े क्षेत्रों के औद्योगिक विकास के लिए औद्योगिक यूनिटों को सस्ती दर पर बिजली उपलब्ध कराई जाती है। उदाहरणार्थ-उत्तर प्रदेश में पिछड़े क्षेत्रों में ₹ 85 लाख से अधिक पूँजी निवेश वाली इकाइयों को 5 वर्ष तक विद्युत कर (Electric Duty) की छूट दी जाती है।
5.पूँजी विनियोग उपदान (Capital Investment Subsidy)—
यह योजना सभी राज्यों द्वारा उन क्षेत्रों में चलायी जाती है जहाँ ‘केन्द्रीय विनियोग उपदान योजना’ लागू नहीं है। इस योजना के तहत पूँजी विनियोग का 15% अथवा ₹ 15 लाख (जो दोनों में कम हो) तक का उपदान उपकर्मियों को दिया जाता है, किन्तु आदिवासी क्षेत्रों में यह उपदान 20% है।
III. वित्तीय संस्थाओं द्वारा किए गए प्रयास (Efforts made by Financial Institutions)
क्षेत्रीय विषमताओं को दूर करने के लिए विभिन्न वित्तीय संस्थाओं द्वारा भी काफी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया जाता है। इन संस्थाओं द्वारा निम्नलिखित प्रयास किए जा रहे हैं –
1.ऋणों को सस्ती ब्याज दर पर उपलब्ध कराना (To Provide Loans on Cheap Rate of Interest)-
कई भारतीय वित्तीय संस्थान; जैसे—IFCI, IDBI, ICICI तथा IRCI, पिछड़े क्षेत्रों/जिलों में औद्योगिक इकाई खोलने के लिए सस्ती दरों पर दीर्घकालीन ऋण एवं कार्यशील पूँजी के लिए ऋण उपलब्ध कराते हैं। इन ऋणों को ब्याज दर उद्योगों तथा अनुसूचित दरें और भी कम होती हैं। lp in Preparing the योजना की रिपोर्ट बनाने में उनके द्वारा व्यवहार्यता रिपोर्ट गिक इकाई का निर्माण होने provide Facility of घीय लघु उद्योग निगम उपलब्ध करवाता है। इसके शि आसान किस्तों पर ली पिछड़े क्षेत्रों में सामान्यत: 1 से 21 % तक कम होती है। लघु एवं कुटीर उद्योगों न. जातियों या जनजातियों द्वारा प्रारम्भ किए गए उद्योगों की दशा में ये दरें और
2.प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार करने में सहायता देना (Help in p. Project Report)-
यदि साहसियों द्वारा इन संस्थाओं से परियोजना मदद ली जाती है तो ये संस्थाएँ इसमें काफी मदद करती हैं। इनके द्वारा – (Feasibility Report) भी तैयार की जाती है जिससे कि औद्योगिक इकाई से पहले साहसियों को इस सन्दर्भ में पूर्ण जानकारी हो जाए।
3.लघ तथा मध्यम उद्योगों को मशीनों की सुविधा (To provi Machines to Small and Medium Industries)–
‘राष्ट्रीय लघ की (National Small Industries Corporation) 3faafia 372 al fused स्थापित होने वाली इकाइयों को किराया-क्रय पद्धति पर मशीन उपलब्ध करवा अन्तर्गत अग्रिम भुगतान लगभग 10% लिया जाता है। शेष राशि आसान किर जाती है। ऐसी राशि पर पिछड़े क्षेत्रों की इकाइयों से लगभग 2-% कम ब्याज वसन जाता है।
4.तकनीकी आर्थिक सर्वेक्षण (Techno-Economic Survey)
आर्थिक विकास के लिए नियोजन करते समय पिछड़े हुए क्षेत्रों का आर्थिक-तकनीकी सर्वेक्षण उनी की क्षमता का ज्ञान प्राप्त करने के लिए अवश्य करना चाहिए। अध्ययन तथा जाँच के पश्चात उन क्षेत्रों के विकास के लिए आवश्यक कार्यवाही की जाए। यदि शिक्षा, परिवहन तथा संचार के लिए योजनाएँ लागू की जाती हैं तो ये क्षेत्र आसानी से विकासकारी शक्तियाँ ग्रहण कर लेंगे तथा वहाँ पर विकास की सम्भावनाएँ भी विकसित हो जाएँगी।
Regional Imbalance in India Notes
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