Thursday, November 21, 2024
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Meaning of Privatization Notes pdf

Meaning of Privatization Notes pdf 

निजीकरण से आशय 

संकुचित अर्थ में निजीकरण का आशय उस नीति से है जिसके अन्तर्गत सार्वजनिक उपक्रमों का निजी क्षेत्र को हस्तान्तरण कर दिया जाता है। इस प्रक्रिया को विराष्ट्रीयकरण (Denationalization) भी कहा जाता है। व्यापक अर्थ में निजीकरण की प्रक्रिया में केवल सार्वजनिक उपक्रमों के स्वामित्व को निजी क्षेत्र में ही नहीं हस्तांतरित किया जा रहा है बल्कि सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित क्रियाओं को भी निजी क्षेत्र को सौंपा जा रहा है तथा निजी क्षेत्र के कार्यकलापों के कार्यों को फैलाया अर्थात् विस्तृत किया जा रहा है। इसके अलावा नीतिगत परिवर्तन करके निजी क्षेत्र को सरकारी नियन्त्रण से मुक्त किया जा रहा है। अब निजी क्षेत्र को विभिन्न प्रकार के उद्योग खोलने की छूट दी गयी है। . 1. अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष के अर्थशास्त्री सुसान के० जोन्स के शब्दों में, “निजीकरण शब्द से तात्पर्य किसी भी कार्य-कलाप को सार्वजनिक क्षेत्र से निजी क्षेत्र को हस्तांतरित करना है। इसमें सार्वजनिक क्षेत्र के कार्य-कलापों में केवल पूँजी अथवा प्रबन्ध विशेषज्ञों का प्रवेश भी हो सकता है किन्तु अधिकांश मामलों में, इसमें सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का निजी क्षेत्र में हस्तांतरण होता है।” 

Meaning of Privatization Notes pdf

2. जिबान के० मुखोपाध्याय के अनुसार, “निजीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें किसी राष्ट्र के आर्थिक कार्य-कलापों में सरकारी प्रभुत्व को कम करना है।” संक्षेप में, ‘निजीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत सार्वजनिक उपक्रमों के . स्वामित्व तथा प्रबन्ध में निजी क्षेत्र को सहभागिता प्रदान की जाती है अथवा स्वामित्व एवं प्रबन्ध को निजी क्षेत्र को हस्तांतरित किया जाता है तथा आर्थिक क्रिया-कलापों पर सरकारी नियन्त्रण को घटाकर देश में आर्थिक प्रजातन्त्र स्थापित किया जाता है।” 

निजीकरण की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं 

(1) यह एक नई विचारधारा है तथा नई व्यह-रचना (Strategy) है। 

(2) यह विचारधारा विश्व-स्तर पर लागू की जा रही है।

(3) यह व्यापक विचारधारा है। इसका उद्देश्य सरकारी प्रभुत्व को कम करके निजी क्षेत्र को बढ़ावा देना है। 

(4) यह आर्थिक प्रजातन्त्र (Economic Democracy) की स्थापना करता है। 

(5) सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन (Social-Economic Changes) का उपकरण अथवा अस्त्र (tool) है। 

(6) इसका विस्तृत क्षेत्र (Wide scope) है। इसमें विराष्ट्रीयकरण (Denationali zation), विनियन्त्रण (Decontrol), विनियमन (Deregulation), आर्थिक उदारीकरण (Economic liberalization) आदि क्रियाएँ शामिल की जाती हैं। 

(7) निजी क्षेत्र सार्वजनिक क्षेत्र की तुलना में प्रबन्ध एवं नियन्त्रण की दृष्टि से अधिक कुशल होता है। 

(8) यह एक प्रक्रिया (Process) है। यह प्रक्रिया क्रमबद्ध तरीके से धीरे-धीरे निश्चित स्वरूप ग्रहण करती है। 

निजीकरण के उद्देश्य 

(Objectives of Privatization

निजीकरण के अनेक सामाजिक, राजनीतिक तथा आर्थिक उद्देश्य होते हैं, उनमें से कुछ . प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं 

(1) उद्योगों में प्रतियोगी क्षमता विकसित करने के लिए। 

(2) देश के उद्योगों का अन्तर्राष्ट्रीयकरण करने के लिए। 

(3) देश में विदेशी पूँजी को आमन्त्रित करने के लिए। 

(4) उद्योगों की निष्पादन क्षमता में सुधार लाने के लिए। 

(5) देश में निर्यातों को बढ़ावा देने तथा विदेशी मुद्रा अर्जित करने के लिए। 

(6) औद्योगिक शान्ति को बनाए रखने के लिए। 

(7) सार्वजनिक उपक्रमों के घाटे को दूर करने के लिए। 

(8) देश में तीव्र औद्योगिक विकास का वातावरण तैयार करने के लिए। 

(9) सरकारी बजट के घाटे को दूर करने के लिए। 

(10) देश के संसाधनों को पूर्ण कुशलता के साथ विदोहन करने के लिए। ]

भारत में निजीकरण

(Privatization in India)

भारत में निजीकरण को प्रेरित करने वाले तत्त्व (Factors affecting Privatization in India)

भारत में आजादी के पश्चात् मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया गया जिसमें निजी तथा सावजनिक क्षेत्रों की भूमिका काफी महत्त्वपूर्ण रही, किन्तु सन् 1975 ई० तक राष्ट्रीयकरण का  दौर रहा लेकिन सन् 1980 ई० में यह रुक गया। सन् 1985 ई० के बाद से ही उदारीकरा नीति प्रारम्भ हो गई। सन् 1985 ई० से सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित सार्वजनिक र को शनैः शनैः निजी क्षेत्र के लिए खोला जाने लगा। जो प्रतिबन्ध आजादी के पश्चात् चार में लगाए गए थे उन्हें अब धीरे-धीरे हटाया जा रहा है। सन् 1991 ई० की उदार औद्योगिक नीति ने इस प्रक्रिया को और अधिक तेज कर दिया। भारत में निम्नलिखित कदम निजीकरण दिशा में उठाए गए हैं 

1. पूँजी बाजार का विकास (Extention of Capital Market)-

देश के निजीकरण की प्रक्रिया को गति प्रदान करने के लिए सरकार ने पूँजी बाजार में भी परिजन किए। इसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए SEBI (Security Exchange Board of India) की स्थापना की गई। इस संस्था की स्थापना का उद्देश्य स्कन्ध विनिमय केद्रों का नियमन तशा नियन्त्रण, प्रविवरणों की जाँच करना, मर्चेण्ट बैंकर, ब्रोकर, सब-ब्रोकर, लीड मैनेजर इत्यानि का पंजीयन करने, उनको नियन्त्रित करने एवं उनके कार्यों की समीक्षा करना है। यह संस्था स्थापना के तुरन्त बाद से काफी प्रभावी हो गई है तथा पूँजी बाजार के निजीकरण के वातावरण को ध्यान में रखकर व्यवस्थित विकास कर रही है। 

2. निजी क्षेत्रों में बैंकों की स्थापना की अनुमति मिलना (Permission Opening Banks in Private Sectors)-

अब देश की सरकार निजीकरण में गति प्रदान करने लिए देश के उद्योगपतियों को निजी क्षेत्र में बैंक खोलने के लिए प्रोत्साहन दे रही है। इसके अलावा सरकार ने राष्ट्रीयकृत बैंकों की 70% पूँजी को निजी क्षेत्र में देने की योजना तैयार की है। इससे भी निजीकरण को और अधिक प्रोत्साहन मिलेगा। 

3. अंश पूँजी का विनिवेश (Disinvestment of Share Capital)—

यह भी निजीकरण की दिशा में एक प्रयास है। सबसे पहले वर्ष 1991-92 में 30 सार्वजनिक उपक्रमों का विनिवेश किया गया, जिससे लगभग ₹ 8,721 करोड़ प्राप्त किए गए। उसके बाद सन् 2001-02 ई० में विनिवेशों से ₹ 12,000 करोड़ की प्राप्ति का लक्ष्य रखा गया। वर्तमान में केन्द्र सरकार ने अंश पूँजी के विनिवेश नियमों में परिवर्तन कर नई योजनाएं लागू की हैं। इसके अन्तर्गत विदेशों से विनिवेश को प्राथमिकता दी जा रही है। विनिवेश के लिए स्वयं प्रधानमन्त्री प्रोत्साहित कर रहे हैं। इसके लिए बड़े लक्ष्य रखे गए हैं और अनेक सुविधाएँ दी जा रही हैं। 

4. सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित उद्योग वर्गों की संख्या में कमी (Lesser Share of Reserve Public Sector)-

सन् 1956 ई० में औद्योगिक नीति के अन्तर्गत 17 उद्योगों को सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित (Reserved) किया था किन्तु बाद में सन 1991 ई० में उस संख्या को घटाकर 8 कर दिया गया। सन् 1993 में पुन: घटाकर इस संख्या को 6 कर दिया गया। किन्तु वर्तमान में यह संख्या मात्र 2 रह गई है। 

यह आँकड़े दर्शा रहे हैं कि सरकार तेजी से निजीकरण की तरफ बढ़ रही है। 

5. विदेशी वित्तीय संस्थाओं का रजिस्ट्रेशन (Registration of Foreign Finance Companies)-

देश में अंशों, ऋणपत्रों तथा अन्य प्रकार की प्रतिभतियों में विनियोग करने वाली विदेशी वित्तीय संस्थाओं का रजिस्ट्रेशन किया जाने लगा है। इसका प्रमुख उद्देश्य देश में पूजी को उपलब्धता बनाए रखना तथा इसमें सधार किया जाना है। इससे भी है। में निजी क्षेत्रों को विकसित होने में सहायता प्राप्त हो रही है। 

6. लाइसेन्सिंग राज की समाप्ति की ओर प्रयास (Trying to Finish Licencing Raj)-

लाइसेन्स की अनिवार्यता को सरकार शनैः शनैः समाप्त कर रही है। सन् 1991 ई० की औद्योगिक नीति में 18 वर्ग ऐसे थे जिनमें उद्योग लगाने से पूर्व लाइसेन्स लेना आवश्यक होता था किन्तु इनकी संख्या घंटाकर मात्र 3 कर दी गयी है। वर्तमान में केवल आण्विक ऊर्जा तथा सामाजिक सुरक्षा से सम्बन्धित उद्योगों की स्थापना के लिए ही लाइसेन्स प्राप्त करना अनिवार्य है। 

7. निजी सहयोग निधियों की स्थापना (Establishing Mutual Funds in Private Sector)-

पहले सार्वजनिक क्षेत्र में यूनिट ट्रस्ट ऑफ इण्डिया ही एक मात्र संस्था थी जो Mutual Fund का कार्य करती थी। लेकिन अब भारत राष्ट्र में अनेकों संस्थाओं को निजी क्षेत्र में सहयोग निधियों की स्थापना के लिए खोला गया है। इनमें Morgan Stanley, Twentieth Century, Appex, टॉरस, एस०बी०आई० म्यूचुअल फण्ड, आई०सी०आई०सी०आई० इसमें SBI सरकारी क्षेत्र में है बाकी निजी क्षेत्र में हैं। ये कोष देश के निजी क्षेत्र के उद्योगों के लिए ‘पूँजी जुटाने का कार्य कर रहे हैं। 

8.अंश पूँजी का ऋणपत्रों में परिवर्तन नहीं (No Conversion of Share Capital in Debentures)-

पहले यह प्रावधान था कि यदि सार्वजनिक वित्तीय संस्था चाहेगी तो वह किसी कम्पनी को दिए गए ऋणों की राशि को उसकी अंश पूँजी में परिवर्तित कर सकेगी। किन्तु अब यह प्रावधान समाप्त कर दिया है। इससे भी निजीकरण को बढ़ावा मिल रहा है। , 

9.विदेशों में प्रतिभूतियों को जारी करने की अनुमति (Permission of Issuing Securities in Foreign)-

देश की सरकार ने निजी क्षेत्र की कम्पनियों को अधिक एवं सस्ते वित्तीय साधन उपलब्ध कराने के उद्देश्य से उन्हें विदेशी बाजारों में अपनी प्रतिभूतियाँ जारी करने की अनुमति भी प्रदान कर दी है। कम्पनियाँ अब स्वयं अपनी प्रतिभूतियाँ बेचकर विदेशी मुद्रा अर्जित कर रही हैं। इससे भी निजीकरण को और अधिक गति मिल रही है। 

10. विदेशी व्यक्तियों की प्रबन्धन में नियुक्ति (Appointing Foreign Individuals. in Management)-

अब विदेशी व्यक्तियों की प्रबन्धकीय पद पर नियुक्ति के प्रतिबन्ध को समाप्त कर दिया है। इसके लिए नियम यह है कि विदेशी व्यक्ति यदि भारत से प्राप्त आय को विदेशी मुद्रा में विदेशों में ले जाना चाहते हैं, तभी उनकी नियुक्ति के लिए RBI से अनुमति लेनी होगी, अन्यथा नहीं। विदेशी व्यक्तियों जिन्हें भारत में उद्योग में प्रबन्धक बनाया गया है उन्हें विशेष अनुलाभों को भी दिया जा सकता है। इससे भी निजीकरण को काफी बल मिल रहा है। .. 

11. कुछ क्षेत्रों में 100% विदेशी पूँजी निवेश की छूट (Permission of 100% Foreign Share in certain Sector)-

सरकार कुछ विशेष क्षेत्रों में शत-प्रतिशत विदेशी-पूँजी निवेश की अनुमति दे चुकी है। 

12. विदेशी कम्पनियों के पूँजी निवेश की सीमा में वृद्धि करना (Increasing the Share of Foreign Investments)-

सरकार ने देश की कम्पनियों के विदेशी सहयोगियों की पूँजी निवेश की सीमा बढ़ा दी है। पहले यह काफी कम थी। 

13. पूँजी निवेश के आधार पर नियन्त्रण हटाया जाना (Removing Control on ne basis of Investment)-

अब उद्योगों का नियन्त्रण पूँजी निवेश की मात्रा के आधार पर नहीं किया जाता है। पहले MRTP Act तथा Industrial Development (Regulation) Act के अन्तर्गत पूँजी निवेश के आधार पर उद्योगों पर बहुत अधिक नियन्त्रण लगाए गए थे। यह कदम भी निजीकरण को और अधिक बढ़ावा देता है।

14. अन्य कदम (Other Steps)-

(i) स्पीड पोस्ट तथा संचार सेवा के क्षेत्र ‘कूरियर सेवा’ तथा पी०सी०ओ०/एस०टी०डी० सेवाओं को निजी क्षेत्र में प्रवेश दिया जा चुका है। 

(ii) देश की निजी क्षेत्र की कम्पनियों को बिजली तथा टेलीकम्यूनीकेशन के क्षेत्र में भी काफी छुटे तथा सुविधाएँ प्रदान की गई हैं। .. 

(iii) बीमा क्षेत्र में निजी कम्पनियों को व्यवसाय की अनुमति दे दी गई है। 

(iv) देश की प्रमुख संस्थाओं की पूँजी जनता को निर्गमित किया जाना (जैसे—IFCI. ___IDBI etc.) 

(v) देश की वायु परिवहन सेवाओं में भी निजी कम्पनियों को शामिल किया गया है। 

(vi) बारहवीं पंचवर्षीय योजना में विकास दर 9.2% रखी गयी थी। यह योजना अब समाप्त हो गई है। 


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