Corporate Accounting notes for bcom 3rd year
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विषय सूची
2. पूर्वाधिकार अंशों का शोधन (Redemption of Preference Shares)
3. ऋणपत्रों का निर्गमन एवं शोधन (Issue and Redemption of Debentures)
4. संयुक्त पूँजी कम्पनियों के अन्तिम खाते (Final Accounts of Joint Stock Companies)
5. ख्याति का मूल्यांकन (Valuation of Goodwill)
6. अंशों का मूल्यांकन (Valuation of Shares)
7. एकीकरण और पुनर्निमाण (Amalgamation and Reconstruction)
8. सूत्रधारी कम्पनी का समेकित (एकीकृत) चिट्ठा (Consolidated Balance Sheet of Holding Companies)
9. बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)
10. परीक्षा प्रश्न-पत्र (Examination Paper)
B.Com- III : Corporate Accounting syllabus
Unit I : Issue, Forfeiture, and Re-issue of Shares : Redemption of preference shares; Issue and redemption of debentures.
Unit-II : Final accounts : Excluding computation of managerial remuneration, and disposal of profit.
Unit-III : Valuation of Goodwill and Shares.
Unit-IV : Accounting For Amalgamation of Companies as per Indian Accounting Standard 14; Accounting for internal reconstruction-excluding inter-company holdings and reconstruction schemes.
Unit-V : Consolidated Balance Sheet of holding companies with one subsidiary only.
अंशों का निर्गमन, हरण एवं पुनर्निर्गमन
(Issue, Forfeiture and Re-issue of Shares)
कम्पनी का आशय (Meaning of Company)
कम्पनी विधान द्वारा निर्मित एक कृत्रिम व्यक्ति है। वह एक पृथक् वैधानिक अस्तित्व रखती है। इसे अविच्छिन्न उत्तराधिकार प्राप्त है और इसकी एक सार्वमुद्रा होती है। कम्पनी के सदस्यों का दायित्व सीमित होता है। कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 2(20) के अनुसार, “कम्पनी उसे कहते हैं जिसका समामेलन इस अधिनियम के अधीन अथवा इसके पूर्व के किसी कम्पनी अधिनियम के अधीन हुआ है।”
Bcom 3rd Year Corporate Accounting notes
निजी/प्राइवेट कम्पनी (Private Company)-
कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 2(68) के अनुसार “प्राइवेट कम्पनी का आशय एक ऐसी कम्पनी से है जो अपने अन्तर्नियमों द्वारा (अ) अपने अंशों के (यदि कोई हों) हस्तान्तरण पर प्रतिबन्ध लगाती है। (ब) अपने सदस्यों की संख्या को 200 (इससे पूर्व यह संख्या 50 थी) तक सीमित रखती है और (स) कम्पनी के अंशों और ऋणपत्रों के लिए जनता को निमन्त्रण नहीं देती है।’ निजी कम्पनी की स्थापना केवल दो सदस्यों से हो सकती है। कम्पनी अधिनियम, 2013 के । अनुसार निजी कम्पनी ‘एक व्यक्ति कम्पनी’ (One Person Company) के रूप में भी … समामेलित करायी जा सकती है।
सार्वजनिक कम्पनी (Public Company)-
कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 2(71) के अनुसार, पब्लिक कम्पनी से आशय एक ऐसी कम्पनी से है, जो एक प्राइवेट कम्पनी नहीं है तथा जिसकी न्यूनतम चुकता पूँजी 5 लाख ₹ या ऐसी अधिक राशि है, जो निर्धारित की जाये। सार्वजनिक कम्पनी में कम-से-कम 7 सदस्यों का होना अनिवार्य है।
अंश पूंजी (Share Capital)
पूँजी का विवरण–प्रत्येक कम्पनी के पार्षद सीमानियम में उसकी पूँजी लिखी जाती है। उसमें यह भी दिखाया जाता है कि पूँजी कितने अंशों में बँटी हुई है और अंश का कितना मूल्य है।
कम्पनी की अंश पूँजी के प्रकार-कम्पनी की अंश पूँजी विभिन्न प्रकार की होती है । जिसे नीचे समझाया गया है
(1) अधिकृत, अंकित (नाममात्र) या पँजीकृत पूँजी (Authorized, Nominal or Registered Capital)—
जिस पूँजी से किसी कम्पनी की रजिस्ट्री की जाती है उसे ‘अधिकृत पूँजी’ कहते हैं। इसका उल्लेख पार्षद सीमानियम में किया जाता है। दूसरे शब्दों में, यह वह पूँजी होती है जो एक कम्पनी अपने पूरे जीवनकाल में अधिक से अधिक एकत्रित कर सकती
(2) निर्गमित पूँजी (Issued Capital)—
यह अधिकृत पूँजी का वह भाग है, जो जनता के लेने के लिए निर्गमित किया जाता है।
(3) प्रार्थित या अभिदत्त पूँजी (Subscribed Capital)—
यह निर्गमित पूँजी का वह भाग है जिसे लेने के लिए जनता से आवेदन-पत्र/प्रार्थना-पत्र प्राप्त हुए हों।
(4) मांगी हुई या याचित पूँजी (Called-up Capital)
कम्पनी द्वारा आवंटित और के सम्बन्ध में जितनी राशि मांग ली जाती है, उसे ‘माँगी हुई पूँजी’ कहा जाता है।
(5) म मांगी गई या अयाधित पंजी (Uncalled Cupital)
प्रार्थित पंजी के किन भाग के लिए कम्पनी द्वारा माँग नही की जाती है, उसे ‘न मांगी हुई पूँजी’ कहा जाता है।
(6) चुकता पूंजी (Paid-up Capital)
‘मांगी हुई जी’ का वह भाग जो अंशधारित द्वारा भुगतान कर दिया जाता है, ‘चुकता पूंजी’ कालाता है।
(7) संचित पूंजी (Reserve Capital)
कम्पनी अधिनियम, 1956 की धारा अनुसार एक सीमित दायित्व वाली कम्पनी एक विशेष प्रस्ताव द्वारा यह निश्चित कर सकती कि इसको ‘न माँगी हुई पूँजी’ (Uncalled Capital) का कुछ भाग तब तक अंशधारियों में नहीं माँगा जायेगा जब तक कि कम्पनी में विघटन का समय न आ जाये। इस भाग को संचित पूँजी कहा जाता है। इस पूँजी को आर्थिक चिट्टे में प्रदर्शित नहीं किया जाता है।
अंश (Shares)
एक अंश पूँजी वाली कम्पनी की पूँजी को एक निश्चित राशि के जिन हिस्सों में विभाजित किया जाता है, उन्हें ‘अंश’ कहते हैं; जैसे यदि एक कम्पनी की पूँजी 10,000 रुपये है और इसे दस-दस रुपये के 1,000 हिस्सों में बाँटा गया है, तो दस रुपये के इस प्रत्येक हिस्से को ‘अंश’ कहा जायेगा।।
अंशों के भेद (Kinds of Shares)
(1) पूर्वाधिकार अंश (Preference Shares)
कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 43 के अनुसार, “अंशों द्वारा सीमित किसी कम्पनी की दशा में पूर्वाधिकारी अंश पूँजी कम्पनी द्वारा निर्गमित अंश पूँजी का वह भाग है जिस पर (अ) लाभांश के भुगतान में या/तथा (ब) कम्पनी के समापन पर पूँजी के भुगतान में पूर्वाधिकार होता है।” लाभांश सम्बन्धी पूर्वाधिकार का आशय यह है कि जब किसी कम्पनी का लाभ अंशधारियों में बाँटा जाता है तो इस श्रेणी के अंशधारियों को सर्वप्रथम एक निश्चित दर से लाभांश पाने का अधिकार होता है।
जो के पुनर्भुगतान के सम्बन्ध में पूर्वाधिकार का आशय यह है कि जब कम्पनी का विघटन होता है उस समय कम्पनी द्वारा विभिन्न लेनदारों को तथा अन्य बाहरी व्यक्तियों को (जिन्हें कि कम्पनी का भुगतान करना था) भुगतान करने के बाद यदि कोई गशि शेष बचती है, तो अन्य अंशधारियों की तुलना में सर्वप्रथम इन अंशधारियों की पूँजी को लौट या जायेगा। इनके भुगतान के बाद बची हुई रकम में से ही अन्य प्रकार के अंशधारियों का भुगतान किया जायेगा। पूर्वाधिकार अंशाधारियों को कम्पनी के प्रबन्ध संचालन में भाग लेने का अधिकार नहीं होता है एवं केवल विशेष स्थिति में मत देने का अधिकार है।
पूर्वाधिकार अंशों का निर्गमन
(ISSUE OF PREFERENCE SHARES)
कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 55 के अनुसार,
(1) इस अधिनियम के लाग होने के पश्चात् अंशों द्वारा सीमित कोई कम्पनी ऐसे पूर्वाधिकार अंशों का निर्गमन नहीं कर सकती जो अशोध्य हो अर्थात् अब केवल शोध्य पूर्वाधिकार अंश ही निमित किए जा सकते हैं।
(2) अंशों द्वारा सीमित कम्पनी, यदि इसका पार्षद अन्तर्नियम अधिकृत करता है. ऐसे पूर्वाधिकार अंश निर्गत कर सकती है जो निर्गमन की तिथि से आधिकतम 20 वर्ष की अवधि के अन्तर्गत शोध्य हो।
आधारभूत अवसंरचना परियोजनाओं की दशा में कम्पनी 20 वर्ष से अधिक अवधि में शोध्य पूर्वाधिकार अंश निर्गमित कर सकती है, परन्तु यह अवधि 30 वर्ष से अधिक नहीं हो सकती। इसमें भी 20 वर्ष के पश्चात् अर्थात् 21 वें वर्ष से प्रतिवर्ष ऐसे अंशों के कम-से-कम 10% का पूर्वाधिकार अंशधारियों के विकल्प पर आनुपातिक आधार पर शोधन किया जायेगा। Taffetat simt as a
पूर्वाधिकार अंशों (types of Preterence Shares)
(i) असंचयी पूर्वाधिकार अंश-
इन अंशों पर अन्य अंशों की अपेक्षा सर्वप्रथम एक निर्धारित दर से लाभांश दिया जाता है, परन्तु यह लाभांश उसी वर्ष दिया जायेगा जिस वर्ष कम्पनी को पर्याप्त लाभ होगा। जिस वर्ष कम्पनी को लाभ नहीं होगा उस वर्ष उन्हें कोई लाभांश नहीं दिया जायेगा।
(ii) संचयी पूर्वाधिकार अंश-
इन्हें यह अधिकार है कि यदि कम्पनी को किसी वर्ष लाभ न हो तो वे उस वर्ष वाले बकाया लाभ को अगले वर्ष वाले लाभांश में से प्राप्त कर सकते हैं। जब तक कम्पनी के अन्तर्नियमों में अन्यथा न कहा गया हो पूर्वाधिकार अंशों को संचयी पूर्वाधिकार अंश हो माना जाता है।
(iii) परिवर्तनीय पूर्वाधिकार अंश-
जिन पूर्वाधिकार अंशधारियों को यह अधिकार दिया जाता है कि वे (यदि चाहें) अपने अंशों को एक निश्चित समय के अन्दर या एक निश्चित तारीख तक समता अंशों में बदल सकते हैं, उन्हें ‘परिवर्तनीय पूर्वाधिकार अंश’ कहा जाता है।
(iv) अपरिवर्तनीय पूर्वाधिकार अंश-
जिन पूर्वाधिकार अंशधारियों को यह अधिकार नहीं दिया जाता है कि वे अपने अंशों को समता अंशों में बदल लें, उन्हें ‘अपरिवर्तनीय पूर्वाधिकार अंश’ कहा जाता है।
(v) विमोचनशील या शोध्य पूर्वाधिकार अंश-
एक अंश सीमित कम्पनी (यदि अन्तनियमो से अधिकृत हो) ऐसे पूर्वाधिकार अंश निर्गमित कर सकती है जिसका धन कुछ शतों के अनुसार लौटाया जा सके।
(vi) अविमोचनशील या अशोध्य पूर्वाधिकार अंश-
कम्पनी के वे अंश जिनका विमोचन नहीं किया जाता है, ‘अविमोचनशील पूर्वाधिकार अंश’ कहे जाते हैं।
(vii) भागयुक्त पूर्वाधिकार अंश—
इन अंशों को निर्धारित दर से लाभांश मिलने के बाद कम्पनी को अतिरिक्त लाभ (यदि हो) में से हिस्सा बाँटने का अधिकार होता है।
(viii) अभागयुक्त पूर्वाधिकार अंश-
इन अंशधारियों को केवल निश्चित दर पर ही कम्पनी के विभाजन योग्य लाभ में से लाभांश मिलता है। कम्पनी के अतिरिक्त लाभ में इन्हें कोई भाग नहीं मिलता है।
समता अंश (Equity Shares)—
सम्ता अंश का आशय कम्पनी के उन अंशों से है जो पूर्वाधिकार अंश नहीं हैं। इन्हें लाभांश कम्पनी के विभाजन योग्य लाभ में से पूर्वाधिकार अंशधारियों को लाभांश बाँटने के बाद ही मिलता है और यदि पूर्वाधिकार अंशधारियों को लाभांश बाँटने के बाद कोई लाभ नहीं बचता है तो इन्हें कुछ भी लाभांश के रूप में नहीं मिलता। इन्हें किस दर पर लाभांश देना चाहिए, यह संचालकों द्वारा तय किया जाता है। कम्पनी के विघटन पर पूर्वाधिकार अंशधारियों की पूँजी वापस करने के बाद यदि राशि बचे तभी इन अंशधारियों की पूँजी लौटायी जायेगी। समता अंशधारी कम्पनी के प्रबन्ध में सक्रिय भाग लेते हैं, मताधिकार के द्वारा संचालक मण्डल चुनते हैं और वार्षिक सामान्य सभा के द्वारा कम्पनी पर नियन्त्रण रखते हैं। वस्तुतः समता अंशधारी कम्पनी के वास्तविक स्वामी होते हैं।
अंशों का आबंटन (Allotment of Shares)
जनता से अंशों को लेने के लिए आवेदन-पत्र प्राप्त हो जाने के बाद संचालक अंशों का आबंटन करते हैं। एक निजी कम्पनी के लिए अंशों के आबंटन से सम्बन्धित कोई प्रतिब नहीं है जबकि प्रत्येक सार्वजनिक कम्पनी को अंशों के आबंटन के पूर्व प्रविवरण में उल्लेखित न्यूनतम अभिदान (Minimum Subscription) राशि अवश्य प्राप्त कर लेनी चाहिए। कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 39 के अनुसार प्रत्येक अंश के प्रार्थना-पत्र/आवेदन पर देश राशि अंश के अंकित मूल्य के 5% से कम नहीं होनी चाहिए, परन्तु सेबी (SEBI) के 6.3.1995 के निर्देशों के अनुसार यह राशि अंश के निर्गमित मूल्य के 25% से कम नहीं हो सकती है।
सेबी मार्गदर्शन, 2000 (SEBIGuidelines, 2000) के अनुसार, “निर्गमित राशि के 90% से कम न्यूनतम अभिदान पूँजी नहीं हो सकती है। यदि निर्गमन के बन्द होने की तिथि से 60 दिनों के अन्दर निर्गमित राशि का 90% न्यूनतम अभिदान प्राप्त नहीं होता है तो कम्पनी को 78 दिनों के अन्दर अभिदान की पूरी राशि बिना ब्याज के वापस कर देनी होगी एवं निर्गमन के बन्द होने के 78 दिनों के बाद देरी की अवधि के लिए 15% वार्षिक ब्याज सहित राशि वापस करनी होगी।”
याचनाएँ (Calls)-
वर्तमान काल में कम्पनियाँ अपनी पूँजी की सारी रकम साधारणतया एक साथ प्राप्त नहीं करती हैं, वरन् कुछ रकम आवेदन-पत्र के साथ, कुछ आबंटन के समय और शेष रकम आवश्यकता पड़ने पर माँगती रहती हैं। आबंटन के बाद पूँजी की जो रकम अंशधारियों से माँगी जाती है, उसे याचना (Call) करना कहते हैं। यदि पार्षद अन्तर्नियमों में प्रतिबन्ध न हो तो कम्पनी के संचालक पूँजी की सम्पूर्ण राशि अंशधारियों से एक साथ वसूल कर सकते हैं। याचनाएँ करते समय कम्पनी के अन्तर्नियमों (Articles of Association) का पालन अवश्य ही करना चाहिये। अन्तर्नियमों के अभाव में कम्पनी अधिनियम में दी गई TableA के प्रावधान लागू हो जाएँगे जो निम्नलिखित हैं :
1. यदि अंशों का कुल निर्गमन 250 करोड़ ₹ से अधिक का है तो आवेदन पर अथवा आबंटन पर अथवा किसी भी एक याचना पर माँगी गई राशि कुल निर्गमन मूल्य के 25% से अधिक नहीं होगी। इसका अर्थ यह हुआ कि 250 ₹ करोड़ तक के निर्गमनों के लिए कम्पनी पूरी राशि आवेदन पर ही माँग सकती है।
2. अंशों पर सभी राशियाँ आबंटन की तिथि के 12 महीने के अन्दर ही माँग लेनी चाहिये। परन्तु यह दिशा-निर्देश 500 करोड़ अथवा इससे अधिक के लिए लागू नहीं होगा।
3. प्रत्येक याचना के मध्य कम से कम एक माह का अन्तर अवश्य होना चाहिए।
4. अंशधारी को याचना चुकाने के लिए कम से कम 14 दिन का नोटिस अवश्य दिया जाना चाहिए।
5. एक ही वर्ग के सभी अंशों पर समान रूप से याचना की जानी चाहिए।
6. अंशधारी का याचना चुकाने के लिए दिए गए नोटिस में याचना की राशि, भुगतान का विधि याचना राशि भजन का पता और याचना भेजने की अन्तिम तिथि स्पष्ट रूप से दी होना चाहिए।
अंशों का निर्गमन (Issue of Shares)
अंशों के निर्गमन और आबंटन के सम्बन्ध में निम्नांकित लेखे किये जाते हैं
(I) आवेदन-पत्र की राशि प्राप्त होने
Bank A/c
Share Application A/c …Dr.
To Share Application Alc
(ii) आवेदन-पत्र की राशि पूँजी पर खाते में हस्तान्तरित करनेपर
Share Application A/c ….Dr
To Share Capoital A/C
(iii) आबंटन राशि की याचना करने पर
Share Allotment A/c …Dr.
To Share Capital A/c
(iv) आबंटन की राशि प्राप्त होने पर
Bank A/c ….Dr
To Share Allotment A/c
(v) प्रथम याचना पर
Share First Call a/c ….Dr
To Share Capital a/c
(vi) प्रथम याचना की राशि प्राप्त होने
Bank a/c ….Dr
To Share first Call a/c
(vii) द्वितीय एवं अन्तिम याचना करने
Share IInd & Final Call a/c ….dr
To share Capital a/c
(viii) द्वितीय एवं अन्तिम याचना की राशि प्राप्त होने पर
Bank a/c …..dr
Share Ilnd & Final Call A/C
अंशों का निर्गमन-अंशों का निर्गमन निम्नांकित प्रकर से हो सकता है
(1) सम-मूल्य पर निर्गमन (Issue at Par) एक अंश का इसके अंकित मूल्य पर निर्गमन; जैसे—-100 रुपये के अंश का 10 रुपये पर निर्गमना
(2) अंशों का प्रीमियम पर निर्गमन (Issue of Shares at a Premium)-जब अंश इसके अंकित मूल्य से अधिक पर निर्गमित किये जाते हैं तो इस आधिक्य की राशि को प्रीमियम कहा जाता है। जैसे, 10 रुपये के अंश को 12 रुपये पर निर्गमित करना है तो 2 रुपये प्रीमियम है। कम्पनी अधिनियम, 2013 की अनुसूची III के अनुसार प्रीमियम को प्रतिभूति प्रीमियम संचय (Securitics Premium Reserve) खाते में क्रेडिट किया जायेगा। यह नाममात्र का खाता है।
प्रीमियम की राशि आयगत प्राप्ति (Revenue receipt) नहीं है। इसे लाभांश की तरह नहीं बाँटा जा सकता है। इसे लाभ-हानि खाते में क्रेडिट नहीं किया जाता है। यह राशि कम्पनी अधिनियम, 1956 की धारा 78 एवं कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 52 के अनुसार निम्नलिखित कार्यों के लिए ही प्रयोग की जा सकती है-
(i) कम्पनी के अनिर्गमित अंशों को कम्पनी के सदस्यों में चुकता बोनस अंशों के रूप में निर्गमित करने के लिए।
(ii) कम्पनी के प्रारम्भिक व्ययों को अपलिखित करने के लिए।
(iii) कम्पनी के अंशों या ऋणपत्रों के निर्गमन पर किये हुए व्ययों, कमीशन या छूट को अपलिखित करने के लिए।
(iv) कम्पनी के विमोचनशील पूर्वाधिकार अंशों या ऋणपत्रों के शोधन पर दिये जाने वाले प्रीमियम का प्रबन्ध करने के लिए।
(v) अपने स्वयं के अंशों या प्रतिभूतियों को क्रय करने के लिए।
अंशों का प्रीमियम पर निर्गमन नकदी के लिए या अन्य प्रतिफल के रूप में भी हो सकता सेबी के दिशा-निर्देश के अन्तर्गत अनुमत कम्पनियाँ ही अपने अंश प्रीमियम पर निर्गमित कर सकती हैं। अंश प्रीमियम की राशि का निर्धारण अंश निर्गमित करने वाली कम्पनी के द्वारा ही किया जाता है, इस सम्बन्ध में कोई वैधानिक प्रतिबन्ध नहीं है। ‘प्रतिभूति प्रीमियम खाते’ की राशि कम्पनी के चिठे में दायित्व पक्ष की ओर’ संचय एवं आधिक्य’ (Reserve and Surplus) शीर्षक के अन्तर्गत दिखलाते हैं।
अंश प्रीमियम की राशि का लेखा-अंश प्रीमियम की राशि के लेखा के लिए आवंटन खाता या याचना खाता (यदि प्रीमियम याचना के साथ लिया जाता है।) डेबिट किया जाता है। और प्रतिभूति प्रीमियम संचय खाता क्रेडिट किया जायेगा।
अंशों का कटौती पर निर्गमन (Issue of Shares at a Discount)
यदि अंश को उसके अंकित मूल्य से कम पर निर्गमित किया जाता है तो उसे अंशों का कटौती पर निर्गमन कहते हैं, जैसे 10 रू० के अंश का 8 रु० पर निर्गमन। यहाँ 2 रु० कटौती है।
धारा 79 में अंशों को कटौती पर निर्गमन के सम्बन्ध में कुछ शर्ते दी गयी हैं। अंशों का कटौती पर निर्गमन केवल इन्हीं दशाओं में हो सकता है। ये दशाएँ निम्नलिखित हैं-
(1) कम्पनी को साधारण सभा में अंशों को कटौती पर निर्गमन करने का प्रस्ताव पास करना चाहिए और इस पर कम्पनी लॉ बोर्ड की स्वीकृति होनी चाहिए।
(2) प्रस्ताव में कटौती की अधिकतम दर का उल्लेख होना चाहिए परन्तु यह दर 10% या उस प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए जिसके लिए कम्पनी लॉ बोर्ड कुछ विशेष दशाओं में अनुमति दे दे।
(3) कम्पनी को व्यापार प्रारम्भ करने का अधिकार प्राप्त करने की तारीख से कम-से-कम एक साल बाद ही अंश कटौती पर निर्गमित किये जा सकते हैं।
(4) कटौती में दिये जाने वाले अंशों का निर्गमन कम्पनी लॉ बोर्ड की अनुमति प्राप्त करने के दो माह के अन्दर कर देना चाहिए। यह दो माह का समय कम्पनी लॉ बोर्ड द्वारा बढ़ाया भी जा सकता है।
(5) एक कम्पनी किसी भी वर्ग के अंशों का कटौती पर निर्गमन नहीं कर सकती है, जिन अंशों का निर्गमन पहले हो चुका है, उसी वर्ग के अंशों को बाद में कटौती पर निर्गमित किया जाता है।
कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 53 के अनुसार स्वैट समता अंशों (Sweat equity shares) के अतिरिक्त कम्पनी कटौती पर अंशों का निर्गमन नहीं करेगी। स्पष्ट है कि अब सामान्यतः कटौती पर अंशों का निर्गमन नहीं किया जा सकता।
अंशों की कटौती के सम्बन्ध में लेखा-अंश कटौती खाता डेबिट और अंश पूजा खात क्रेडिट किया जाता है। यह लेखा अधिकतर आबंटन (Allotment) के साथ होता है।
अंश पर कटौती पूँजी हानि है, जब तक कि भिन्न सूचना न दी हो। इसकी राशि का धीर-धीरे अपलिखित किया जाता है।
अवशिष्ट याचना (Calls in Arrears)-
जब कुछ अंशधारी याचना किया हुआ प अपनी को नहीं देते हैं तो जो रकम उनके द्वारा भुगतान होने से रह जाती है उसे अवाश
निगमीय लेखांकन याचना कहा जाता है। इस खाते की बाकी चिट्ठे में दायित्व की ओर पूँजी में से घटाकर दिखायी जाती है।
अवशिष्ट याचना की राशि पर ब्याज (Interest on the Amount of Calls in Arrears)
यदि पार्षद अन्तर्नियमों में अवशिष्ट याचना की राशि पर व्याज के लेखे के सम्बन्ध में कोई वर्णन नहीं है तो तालिका ‘अ’ (‘Table A) का प्रयोग किया जा सकता है। Table A : 16(1) के अनुसार अवशिष्ट याचना की राशि पर पाँच प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से ब्याज उस अवधि के लिए लगाया जा सकता है जिसमें भुगतान की त्रुटि रही हो। कम्पनी अधिनियम 2013 की Tablet के अनुसार ब्याज की दर 10% वार्षिक या संचालक मण्डल द्वारा निर्धारित इससे कम दर होगी। यह ब्याज याचना की देयतिथि से वास्तविक भुगतान तिथि तक लिया जाता है।
अवशिष्ट याचना की राशि पर ब्याज आयगत लाभ है अतः इसे लाभ-हानि खाते में हस्तान्तरित किया जाता है।
अग्रिम याचना की भुगतान राशि पर ब्याज (Interest on Calls paid in advance)-
कम्पनी अंशधारियों से याचना की राशि अग्रिम (Advance) के रूप में प्राप्त कर सकती है, यदि पार्षद अन्तर्नियम इसका उल्लंघन न करते हों। याचना की अग्रिम प्राप्त राशि पर प्राप्ति की तिथि से याचना के माँगे जाने की तिथि तक का अधिकतम 6% प्रतिवर्ष की दर से ब्याज दिया जा सकता है। कम्पनी अधिनियम, 2013 के अनुसार अग्रिम याचना की भुगतान राशि पर ब्याज की दर 12% से अधिक नहीं हो सकती है।
अंशों का हरण या जब्तीकरण (Forfeiture of shares)-
अंशों के हरण का आशय अंशधारियों के द्वारा अंशों के आबंटन एवं याचनाओं पर माँगी गई राशियों को समय पर भुगतान नहीं किये जाने पर आवश्यक औपचारिकताओं को पूरा करने के बाद सदस्यों के रजिस्टर से सम्बन्धित अंशधारियों का नाम हटा/काट देने से है अर्थात् अंशों के आबंटन को रद्द कर देने से है। हरण किये गये अंशों के सम्बन्ध में सम्बन्धित अंशधारियों के द्वारा भुगतान की . जा चुकी राशि कम्पनी द्वारा जब्त कर ली जाती है।
अंशों के हरण के सम्बन्ध में कम्पनी अधिनियम, 2013 की Table F के 28 से 34 तक के प्रावधानों के अनुसार निम्नलिखित व्यवस्थाएं हैं –
1. यदि कोई सदस्य अंशों पर किसी निर्धारित तिथि पर किसी याचना या याचना की किस्त का भुगतान करने में असफल रहता है तो उसके पश्चात् संचालक मण्डल उसे एक नोटिस दे सकता है, जिसमें न चुकायों गई याचना के भुगतान करने के लिए कहा जाता है तथा इस पर अर्जित ब्याज के भुगतान को भी जोड़ा जाता है।
2. नोटिस में एक तिथि दी जाती है (जो नोटिस तामील होने के 14 दिन की समाप्ति से पहले नहीं हो सकती) और यह कहा जाता है कि इस तिथि तक भुगतान न होने पर सम्बन्धित अंशों का हरण किया जा सकता है।
3. इस नोटिस का अनुपालन न होने पर संचालक मण्डल के प्रस्ताव द्वारा अंशों का हरण किया जाएगा।
4. हरण किए गए अंशों को संचालक मण्डल द्वारा समझी जाने वाली उपयुक्त शर्तों के आधार पर बेचा या निपटारा किया जा सकता है। विक्रय से पूर्व संचालक मण्डल उन शर्तों पर हरण को निरस्त कर सकता है, जिन्हें वह उपयुक्त समझे।
5. उस व्यक्ति, जिसके अंश हरण किए जाते हैं, की हरण किए गए अंशों के पास कम्पनी की सदस्यता समाप्त हो जाती है, लेकिन हरण किए गए अंशों पर बकाया सम्बन्ध में उसका दायित्व उस समय तक बना रहता है, जब तक कम्पनी को वह राशि हो जाए। –
अंशों के हरण पर लेखांकन व्यवहार
(Accounting Treatment on Forfeiture of Shares) –
अशों को जब्ती के कारण अंश पूँजी कम हो जाती है, इसलिए अंश पंजी खाता रकम से डेबिट किया जाता है जितनी कि जब्त किये जाने वाले अंशों की रकम पंजीयन क्रेडिट की जा चुकी है और उन याचनाओं के खाते को क्रेडिट किया जाता है जिन पर प्राप्त नहीं हो पायी है। साथ ही जो राशि प्राप्त हो चुकी है, उसे ‘जब्त अंश खाते’ (Forfly Shares Ac) या ‘अंश अपहारित खाते’ (Shares Forfeited Account) में क्रेडिट का दिया जाता है।
1. सम मूल्य पर निर्गमित अंशों के हरण करने का लेखा –
Share Capital A/c (जब्त अंश x माँगी गयी राशि प्रति अंश) Dr.
To Share Allotment A/c (आबंटन पर बकाया राशि)
To Share First Call A/c (प्रथम याचना पर बकाया राशि)
To Share Final Call A/c (अन्तिम याचना पर बकाया राशि)
To Forfeited Shares A/c हरण किये गये अंशों पर अब तक प्राप्त राशि)
नोट-(i) यदि अंश की पूरी राशि मांगी जा चुकी हो तो अंश पूँजी खाता (Shares Capital A/c) की पूरी राशि (Shares Forfeited x Rate per Share) से डेबिट करेंगे। अगर पूरी राशि न माँगी गयी हो तो जब्त अंशों की संख्या x प्रति अंश याचित रकम (Shares Forfeited x Amounts called per share) की राशि से डेबिट करेंगे।
(ii) Forfeited Shares A/c को चिट्ठे के दायित्व पक्ष में दिखायेंगे।
2. प्रीमियम पर निर्गमित अंशों को हरण करने का लेखा
(A) यदि हरण किये जाने वाले अंशों पर प्रीमियम की राशि प्राप्त हो गयी हो तो हरण करते समय प्रीमियम की कोई प्रविष्टि नहीं होगी। उपर्युक्त प्रविष्टि (1) ही की जायेगी। अन्तर्नियमों में जब्ती के बारे में कोई नियम न दिये हों तो तालिका ‘अ’ के नियम लागू होते हैं।
(B) यदि हरण ( जब्त) किये जाने वाले अंशों पर प्रीमियम की राशि बकाया या अदत्त हो—ऐसी स्थिति में अवशिष्ट या बकाया प्रीमियम खाता (Unpaid Premium A/c) डेबिट तथा आवंटन खाता क्रेडिट किया जायेगा और चिठे में प्रीमियम की राशि घटाकर दिखायी जाती है।
जर्नल प्रविष्टि –
Share Capital A/C Dr.
Security Premium Reserve A/c (माँगी गयी प्रीमियम की राशि) Dr.
To Forfeited Shares Alc
To Share Allotment A/c )
To Share First Call A/c बकाया राशि
To Share Final Call A/C
(C) कटौती पर निर्गमित अंशों की जब्ती के लेखे-यदि जब्त किये गये अंशों को पहले कटौती पर जारी किया गया था तो जन्ती की प्रविष्टि करते समय Discount on Issue of Shares A/c को क्रेडिट किया जायेगा। Share Capital A/C To Forfeited Shares A/C To Discount on issue of Shares N/c To Share first Call A/c |बकाया राशि To Share Final Call Me हरण किये हुए अंशों का
पुनर्निर्गमन (Reissue of Forfeited Shares)
हरण किये हुए अंशों को संचालक मण्डल द्वारा पुनः बिक्री की जा सकती है या उन्हें निरस्त किया जा सकता है।
हरण किये गये अंशों को उस रकम से कम पर पुन: नहीं बेचा जा सकता है जो उन पर बकाया थी अर्थात् कम्पनी द्वारा जितनी राशि का हरण किया गया है अधिक-से-अधिक उतनी ही राशि पुनर्निर्गमन पर कटौती के रूप में दी जा सकती है।
हरण किये हुए अंशों के पुनर्निर्गमन पर निम्नलिखित लेखा प्रविष्टि की जाती है-
हरण खाते की बाकी का पूँजी संचय में हस्तान्तरण (Transfer of Forfeiture Balance to Capital Reserve)-
हरण वाले अंशों के पुनर्निर्गमन के बाद जो बाकी हरण खाते में बचती है उसे पूँजी संचय खाते में हस्तान्तरित किया जाता है, पर हरण किये हुए जिन अंशों का पुनर्निर्गमन नहीं किया जाता है उनसे सम्बन्धित हरण की बाकी को पूँजी संचय खाते में हस्तान्तरित नहीं किया जाता है।
अंशों का समर्पण (Surrender of Shares)—
जब कोई अंशधारी स्वेच्छा से कम्पनी को अपने अंश-समर्पित करता है अर्थात् अपने सभी अधिकारों को त्यागकर अंशों को कम्पनी के सुपुर्द कर देता है, तो इसे ‘अंशों का समर्पण’ कहा जाता है।
(1) समता अंशों की वापसी खरीद (Buy-Back of Equity Shares)
अंशों की वापसी खरीद का आशय है कि कम्पनी द्वारा अपने ही अंशों का अधिग्रहण करना। कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 68 के अनुसार भारत में कम्पनियों को अपने ही अंशों को खरीदने की स्वीकृति प्रदान की गई है, बशर्ते निम्नलिखित शर्ते पूरी हो रही हों स्वाति रिफ्रेशा आपसी खरीद का माह के अन्दर है तो वह कम्पनी पत्र जमा करेगी
(i) वापसी खरीद अन्तर्नियमों द्वारा अधिकृत हो।
(ii) कम्पनी की साधारण सभा में विशेष प्रस्ताव पारित करके वापसी आधकार प्राप्त कर लिया गया हो और इस प्रकार के प्रस्ताव की तिथि से बारह मात प्रत्येक वापसी खरीद को पूरा कर लिया गया हो।
(iii) यदि कम्पनी ने वापसी खरीद का विशेष प्रस्ताव पारित कर दिया है. तो रजिस्ट्रार तथा सेबी (SEBI) के पास शोधन क्षमता का घोषणा-पत्र जमा गैर-सूचीबद्ध कम्पनी यह घोषणा-पत्र सेबी के पास जमा नहीं करेगी।
(iv) वापसी खरीद कम्पनी की चुकता अंश पूँजी एवं मुक्त संचय के 250% नहीं हो। फिर भी किसी वित्तीय वर्ष में सम अंशों की वापसी खरीद उस वित्तीय वर्ष के पूँजी के 25% से अधिक नहीं होनी चाहिए।
(v) वापसी खरीद के बाद ऋण इक्विटी अनुपात 2 : 1 से अधिक नहीं होना चाहि लेकिन केन्द्रीय सरकार किसी श्रेणी या श्रेणियों की कम्पनियों के लिए ऋण समता अनपान गुने से अधिक निर्दिष्ट कर सकती है।
(vi) केवल पूर्ण चुकता अंश ही वापसी खरीद के लिए उपलब्ध हो सकते हैं।
(vii) इस सम्बन्ध में सेबी (SEBI) द्वारा निर्गमित निर्देशों का पालन किया गया है।
(viii) वापिस खरीदे गए अंशों को खरीद वापसी की तिथि के सात दिन के भीतर भौतिक रूप से नष्ट या समाप्त कर दिया जाएगा।
(ix) अपने ही अंशों की वापसी खरीद के बाद कम्पनी उसी प्रकार के अंशों का आगामी दो वर्ष तक निर्गमन नहीं करेगी। परन्तु बोनस अंश, व स्वेद सम अंश का निर्गमन, अधिपत्रों, ऋणपत्रों आदि का अंशों में परिवर्तन प्रतिबन्धित नहीं है।
(x) एक कम्पनी अपने अंशों की वापसी खरीद मुक्त संचय, प्रतिभूति प्रीमियम खाता, किन्हीं अंशों या विशिष्ट प्रतिभूतियों के अर्थागम (प्राप्त राशि) (Proceeds) में से कर सकती |
(xi) अपने ही अंशों की वापसी खरीद निम्न रूप में निषेध है (अ) किसी सहायक कम्पनी के माध्यम से, (ब) किसी विनियोग कम्पनी के माध्यम से, (स) किसी ऐसी कम्पनी द्वारा जो भुगतान के लिए होती है।
नोट-जब कम्पनी मुक्त संचय में से अपने अंशों को वापस खरीदती है, तो ऐसे अशा के अंकित मूल्य के बराबर की राशि पूँजी शोधन संचय खाते में स्थानान्तरित की जाएगी। इस प्रकार का स्थानान्तरण Capital Buy-back Reserve में भी किया जा सकता है।
प्रवर्तकों को अंशों का निर्गमन (Issue of Shares to Promoters)
कम्पनी के समामेलन के दौरान प्रवर्तकों द्वारा प्रदत्त सेवाओं के बदले में कभी-क अंश निर्गमित किए जाते हैं। इन अंशों के निर्गमन मूल्य से ‘ख्याति’ खाता डेबिट किया जाता अर्थात्
स्वैट समता अंशों का निर्गमन (Issue of Sweat Equity Shares)
स्वेट समता अंशों का आशय उन समता अंशों से होता है, जो कम्पनी अपने कर्मचारियों को या संचालकों को बट्टे या नकदी के अतिरिक्त प्रतिफल । जैसे, तकनीकी ज्ञान (Know-how) के बदले में या बौद्विक सम्पत्ति का अधिकार उपलब्ध कराने के बदले में) हेतु निर्गमित करती है। कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 54 के अनुसार निम्नलिखित शर्तों के पूरा होने पर ही स्वैट समता अंश निर्गमित किये जा सकते हैं-
(i) कम्पनी द्वारा विशेष प्रस्ताव पारित कर स्वैट समता अंश निर्गमित करने का अधिकार प्राप्त कर लिया गया हो।
(ii) प्रस्ताव में अंशों की संख्या, वर्तमान बाजार मूल्य, प्रतिफल यदि कोई है और जिन संचालकों या कर्मचारियों को इन अंशों का निर्गमन किया जाना है उनकी श्रेणी या श्रेणियों का स्पष्ट उल्लेख हो।
(iii) कम्पनी को व्यापार प्रारम्भ करने का अधिकार प्राप्त किए हुए एक वर्ष पूरा हो . चुका हो।
(iv) स्वैट समता अंशों को SEBI के नियमों के अनुसार निर्गमित किया जा रहा हो।
स्कन्ध (Stock) : स्कन्ध अनेक पूर्ण प्रदत्त अंशों का समेकित (Consolidated) रूप है। अत: स्कन्ध का आशय पूर्ण प्रदत्त अंशों की एकत्रित रकम से है जिसे बाद में किसी भी रकम के छोटे-छोटे टुकड़ों में बाँटा जा सकता है तथा प्रत्येक टुकड़े को स्वतन्त्रतापूर्वक हस्तान्तरित भी किया जा सकता है।
स्कन्ध की विशेषताएँ (Characteristics of Stock)-
(1) कोई कम्पनी प्रारम्भ में स्कन्ध का निर्गमन नहीं कर सकती है।
(2) केवल पूर्णदत्त अंशों को ही स्कन्ध में बदला जा सकता है। आंशिक दत्त अंशों का स्कन्ध में परिवर्तन व्यर्थ (Void) माना जाता है।
(3) ऐसे परिवर्तन के लिए अन्तर्नियमों द्वारा अधिकार प्राप्त हो।
(4) इस पर क्रम संख्या डालने की आवश्यकता नहीं होती है।
(5) इसे समान भागों में विभाजित करने की आवश्यकता नहीं होती बल्कि इसे किसी भी राशि के टुकड़ों में विभक्त किया जा सकता है।
पूर्वाधिकार अंशों का शोधन
पर्वाधिकार अंशों के शोषन से आशय प्राधिकारी अशधारियों को उनकी पूँजी का भुगतान करने से है।
अंशों के शोधन से सम्बन्धित मुख्य प्रावधान (Main Provisions Related to Redemption of Preference Shares)
(कम्पनी अधिनियम, 1956 की धारा 80) के अनुसार पूर्वाधिकार 2018 155(का संशो के शोधन के सम्बन्ध में मुख्य प्रावधान निम्नलिखित है…….
(1) कम्पनी के पार्षद अन्तर्नियम द्वारा अधिकृत होने पर केवल पूर्णदत्त (Full Pain गोर्वाधिकार अंशों का ही शोधन किया जा सकता है, आंशिक दत्त (Partly Paid) संगों का नहीं। अतः यदि प्रश्न में अंशत: दत्त पूर्वाधिकार अंश दिये हुए हैं और उनके शोधन के लिए कहा गया हैं तो यह माना जायेगा कि शोधन से पूर्व कम्पनी ने उस बकाया राशि प्राप्त कर ली है। इसके अतिरिक्त यदि प्रश्न में पूर्णदत्त एवं अंशत: दत्त होती प्रकार के पूर्वाधिकार अंश दिये हुए हैं तो किसी अन्य निर्देश के अभाव में केवल पा” पूर्वाधिकार अंशों का ही शोधन किया जायेगा।
(2) ऐसे अंशों का शोधन (i) कम्पनी के विभाजन योग्य लाभों (Profits available for dividend) से हो सकता है अर्थात् ऐसे लाभ से हो सकता है जो लाभांश वितरण के लिा उपलब्ध है, अथवा (ii) ऐसे नये अंशों के निर्गमन की प्राप्त राशि से किया जा सकता है जिनका निर्गमन ऐसे शोधन के उद्देश्य से ही किया गया है।
(3) विभाजन योग्य लाभों से शोधन करने के सम्बन्ध में यह ध्यान रखें कि निम्नलिखित लाभों का प्रयोग लाभांश वितरण के लिए किया जा सकता है-
(i) लाभ-हानि खाता/विवरण (Profit & Loss Acoount/Statement)
(ii)सामान्य संचय (General Reserve)
(iii) संचित कोष (Reserve Fund)
(iv) बीमा कोष (Insurance Fund),
(v) लाभांश समानीकरण कोष (Dividend Equalisation Fund) (vi) कर्मचारी-क्षतिपूर्ति कोष (Employees Compensation Fund) तथा
(vii) कर्मचारी दुर्घटना कोष (Worker’s Accidents Fund).
कुछ कोषों का पूर्वाधिकार अंशों के शोधन के लिए उपलब्ध न होना-निम्नलिखित लाभों/कोषों का उपयोग शोध्य पूर्वाधिकार अंशों के भुगतान के लिए नहीं किया जा सकता है, क्योंकि ये लाभ पूँजीगत प्रकृति के होते हैं-
(i) प्रतिभूति प्रीमियम खाता (Security Premium A/c),
(ii) अंश हरण खाता (Share Forfeited A/c),
(iii) कम्पनी के समामेलन के पूर्व के लोभ (Profits Prior to Incorporation of Company),
(iv) पूँजी संचय खाता (Capital Reserve),
(v) विकास छूट संचिति (Development Rebate Reserve), एवं
(vi) विनियोग भत्ता संचय (Investment Allowance Reserve) ।
यदि ऐसे अंशों का शोधन उपरोक्त वर्णित विभाजन योग्य लागों में से किया जाना हो तो शोधन किये जाने वाले अंशो के अंकित मूल्य (Ince Value) की राशि के बराबर धनराशि लाभांश के लिए उपलब्य लाभो में से हस्तान्तरित करके ‘पंजी शोधन संचय खाते’ (Capital Redcmption Reserve A/c) में क्रेडिर करनी होगी। पंजी शोधन संचय खाते का प्रयोग केवल कम्पनी के अंशधारियों को पूर्णदत्त बोनस अंश निर्गमित करने के लिये किया जा सकता है, अन्य किसी उद्देश्य के लिए नहीं। पूर्वाधिकार अंशों के शोधन के लिये सामान्य संचय एवं अन्य कोषो का उपयोग तब तक वांछनीय नहीं होगा जब तक कि लाभ-हानि खाते में शेष उपलब्ध है। इसका अर्थ यह हुआ कि पहले लाभ-हानि खाते में उपलब्ध राशि का उपयोग किया जाता है एवं लाभ-हानि खाते का शेष समाप्त होने पर अन्य कोषों का उपयोग किया जाता है।
(3) शोधन के लिए निर्गमित किये जाने वाले नये अंश पूर्वाधिकारी (अधिमान) हो सकते हैं अथवा समता। नये अंशों का निर्गमन सममूल्य, प्रीमियम अथवा कटौती पर किया जा सकता है। इस सम्बन्ध में निम्नलिखित बिन्दु ध्यान रखने योग्य हैं
(i) यदि नये अंशों का निर्गमन सम-मूल्य अथवा प्रीमियम पर किया गया है तो निर्गमित अंशों के अंकित मूल्य (Face Value) के बराबर की राशि को अंशों के शोधन के लिये प्रयोग किया जायेगा। प्रोमियम की राशि का प्रयोग शोधन के लिए नहीं हो सकता है।
(ii) यदि नये अंशों का निर्गमन कटौती पर किया गया है तो नये अंशों के निर्गमन से प्राप्त शुद्ध राशि अर्थात् अंकित मूल्य में से कटौती घटाकर बची शेष राशि को ही अंशो के शोधन के लिये प्रयोग किया जायेगा।
(4) लाभ में से तथा नए अंशों को निर्गमित करके पूर्वाधिकार अंशों का भुगतान करना-कम्पनी अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार शोधनीय पूर्वाधिकार अंशों का भुगतान
आंशिक रूप से नए अंशों को निर्गमित करके किया जा सकता है। इस प्रकार, शोधनीय पूर्वाधिकार अंश पूँजी का शोधन कम्पनी के लाभों में से (अर्थात पूँजी शोध्य संचय खाते से) और नए अंशो को निर्गमित करके किया जाता है।
(5) यदि पूर्वाधिकार अंशों का शोधन प्रीमियम पर किया जाना है तो अंशों के शोधन से पूर्व प्रीमियम की व्यवस्था कम्पनी के लाभों, आयगत संचितियों अथवा प्रतिभूति प्रीमियम खाते से की जा सकती है। यदि प्रश्न में पुराने या नये अंशों के निर्गमन पर प्राप्त प्रीमियम का शेष दिया हुआ हो तो पूर्वाधिकार अंशों के शोधन पर देय प्रीमियम की व्यवस्था के लिये लाभों व अन्य संचितियों की अपेक्षा प्रीमियम खाते को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
नोट-यदि प्रश्न में शोधन हेतु नए अंशों के निर्गमन की राशि दी है, तो शोधन हेतु शेष राशि की व्यवस्था कम्पनी के विभाजन योग्य लाभों से की जाएगी। यदि प्रश्न में कम्पनी के विभाजन योग्य लाभों की राशि दी गई है, तो शेष राशि की व्यवस्था नए अंशों के निर्गमन से की जाएगी। यदि प्रश्न में पूर्वाधिकार अंशों का शोधन नए अंशों के निर्गमन के बिना ही किया गया है तो यह माना जाएगा कि कम्पनी के पास शोधन हेतु विभाजन योग्य लाभों की पर्याप्त/वांछित राशि उपलब्ध है।
ऋणपत्रों का निर्गमन एवं शोधन
ऋणपत्र का अर्थ (Meaning of Dehenture)-कम्पनी जब प्राण लेती है और इस ऋण की स्वीकृति के लिए एक प्रमाण-पत्र देती है तो इसे ऋणपत्र कहा जाता है। चूंकि कम्पनी एक कृत्रिम व्यक्ति है अत: वह अपनी स्वीकृति इस पर अपनी सार्वमुद्रा लगाकर देती है। इनके आधार पर ऋण दीर्घकाल के लिए लिये जाते हैं। इन ऋणपत्रों पर एक निश्चित दर से ब्याज दिया जाता है और यह ब्याज की दर ऋणपत्र के नाम से जुड़ी रहती है; जैसे, 8% ऋणपत्र का आशय है कि इन ऋणपत्रों पर 8% प्रति वर्ष की दर से ब्याज दिया जायेगा।
कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 2(30) के अनुसार, “ऋण पत्र में ऋण को प्रकट करने वालो ऋणपत्र स्टॉक, बॉण्ड और कम्पनी की अन्य प्रतिभूतियाँ सम्मिलित है चाहे वे कम्पनी को सम्पत्तियों पर प्रभार रखती हों या नहीं‘
ऋणपत्र की विशेषताएँ
1. ऋणपत्र कम्पनी के द्वारा निर्गमित, लिखित और सार्वमुद्रा में स्वीकृत प्रलेख है।
2. यह कम्पनी के द्वारा ऋण लेने का प्रमाण–पत्र है।
3. इस पर व्याज की दर, अवधि, शोधन विधि, आदि पूर्व निश्चित होतो है। .
4. इसके ब्याज का भुगतान सामयिक (छ: महीना) होता है।
5. साधारणतया ऋणपत्र सुरक्षित होते है।
6. ऋणपत्र को सममूल्य, अधिमूल्य या छूट पर जारी किया जा सकता है।
7. ऋणपत्र का हरण नहीं होता है।
8. ऋणपत्र का शोधन नकद भुगतान के द्वारा या अंशों में परिवर्तित करके किया जाता
9.ऋणपत्र कम्पनी को ऋणदाता प्रतिभूति होने के कारण इसे कम्पनी के आर्थिक चिट्ठे में ‘समता और दायि.व‘ शीर्षक के अन्तर्गत ‘गैर–चालू दायित्वों‘ में दिखाया जाता है।
10. कम्पनी अपने ऋणपत्र को निवेश के रूप में खरीद सकती है। .. 11. ऋणपत्र पर ब्याज देय होता है, चाहे कम्पनी को लाभ हो या हानि।
12.ऋणपत्र के धारक को मत देने और कम्पनी के प्रबन्ध में भाग लेने का अधिकार . नहीं होता है।
ऋणपत्रों के प्रकार (Kinds of Debentures)
1.रजिस्टर्ड ऋणपत्र (Registered Debenturesजो ऋणपत्र कम्पनी के रजिस्टर म लिखे जाते हैं और जिनके मूल तथा ब्याज का भुगतान रजिस्टर्ड धारकों को ही देय होता है, जिस्टर्ड ऋणपत्र कहे जाते हैं।
2. वाहक ऋणपत्र (Bearer Debentures)-जिन ऋणपत्रों का हस्तान्तरण सुपर्दगी से होता है, वाहक त्राणपत्र कहे जाते हैं। इनका ब्याज एवं इनकी मूल राशि का म इनके वाहकों को किया जाता है। इनके हस्तान्तरण पर न तो कोई वैधानिक विधि अपना जाती है और न स्टाम्प शुल्क ही देना पड़ता है। इन ऋणपत्रों का वाहक एक साधारण ही देकर अपना नाम जब चाहे तब कम्पनी के रजिस्टर में लिखा सकता है।
3. रक्षित या बन्धक ऋणपत्र (Secured or Mortgaged Debentures) जिन ऋणपत्रों के लिए कम्पनी की सम्पत्तियों पर भार या बन्धक किया जाता है, रक्षित या बन्धक ऋणपत्र कहे जाते हैं। भारत में निर्गमित सभी ऋणपत्रों का रक्षित होना अनिवार्य है।
कम्पनी अधिनियम, 2013 के नियम 4.16 के अनुसार सुरक्षित ऋणपत्रों के निर्गमन की दशा में इनके शोधन की अवधि निर्गमन की तिथि से 10 वर्ष से अधिक नहीं होगी, परन्त अवसंरचना में संलग्न कम्पनियों की दशा में यह अवधि 10 वर्ष से अधिक हो सकती है लेकिन 30 वर्ष से अधिक नहीं।
4. साधारण या नग्न या अरक्षित ऋणपत्र (Simple, Naked or Unsecured Debentures)—इन ऋणपत्रधारियों को कम्पनी कोई भी प्रतिभूति (Security) ऋण व ब्याज के भुगतान के लिए नहीं देती है। कम्पनी समापन के समय ये साधारण लेनदार की तरह माने जाते हैं। ये ऋणपत्र केवल इस बात का प्रमाण हैं कि कम्पनी इनमें अंकित ऋण की देनदार है।
5. शोध्य ऋणपत्र (Redeemable Debentures)—ऐसे ऋणपत्र, जिनका भुगतान एक निश्चित अवधि के बाद कम्पनी द्वारा किया जाता है, शोध्य ऋणपत्र कहे जाते हैं।
6. अशोध्य ऋणपत्र (Irredeemable Debentures)—जिन ऋणपत्रों की राशि कम्पनी के समापन पर भुगतान की जाती है। कम्पनी के जीवन में भुगतान नहीं की जाती है, उन्हें अशोध्य ऋणपत्र कहा जाता है। यद्यपि इनका भुगतान कम्पनी के समापन पर कर दिया जाता है, परन्तु इन पर ब्याज बराबर दिया जाता है, यदि ब्याज के देने में त्रुटि हो जाती है, तो इनका भुगतान कम्पनी के जीवन में भी कराया जा सकता है।
7. परिवर्तनीय ऋणपत्र (Convertible Debentures)-ये वे ऋणपत्र होते हैं जिनके धारकों को एक निश्चित अवधि में अथवा निश्चित अवधि के बाद पूर्व निर्धारित शर्तो के अधीन अपने सम्पूर्ण ऋणपत्रों अथवा उनके किसी भाग को अंशों अथवा दसरे प्रकार के ऋणपत्रों में बदलने का अधिकार होता है। इस प्रकार ये ऋणपत्र पूर्ण परिवर्तनशील ऋणपत्र (Fullv Convertible Debentures) अथवा आंशिक परिवर्तनशील ऋणपत्र (Partly Convertible Debentures) हो सकते हैं।
8. अपरिवर्तनीय ऋणपत्र (Non-Convertible Debentures)-ऐसे ऋणपत्रों के धारकों को अपने ऋणपत्रों को अंशों अथवा अन्य दूसरे प्रकार के ऋणपत्रों में बदलने का अधिकार नहीं होता है।
9. प्रथम ऋणपत्र (First Debentures)-ऐसे ऋणपत्रधारियों का कम्पनी की सम्पत्तियों पर प्रथम अधिकार होता है। ऐसे ऋणपत्रों के मूलधन तथा ब्याज का भगता अन्य ऋणपत्रों से पहले किया जाता है।
10. द्वितीय ऋणपत्र (Second Debentures)-ऐसे ऋणपत्रधारियों की ब्याज तथा मलधन की राशि का भुगतान प्रथम ऋणपत्रों का भुगतान करने के बाद किया जाता है।
ऋणपत्र सहायक प्रतिभूति के रूप में
(Debentures as Collateral Security) जब कम्पनी किसी ऋण को लेने के लिए अपने ऋणपत्रों को प्रतिभूतिया का तरह १ ‘ ह तो इसका यह आशय होता है कि यदि निश्चित समय पर ऋणदाता को कम्पना द्वारा उसका । राशि नहीं लौटायी जायेगी तो इन ऋणपत्रों की राशि लेने का अधिकार ऋणदाता का हा इसके विपरीत, यदि निश्चित समय पर उनके द्वारा दिये हए ऋण का भुगतान कम्पना द्वारा कर दिया जाता है. तो ऋणपत्र कम्पनी को वापस मिल जायेंगे। इस प्रकार के ऋण पत्रों का खातम दो प्रकार से दिखाया जा सकता है।
(1) ऐसे ऋणपत्रों के लिए खातों में कोई प्रविष्टि नहीं की जाती है तथा चिठ्ठ में दायित्व पक्ष की ओर ली हुई ऋण की राशि को दिखाने के बाद इन ऋणपत्रों को आन्तरिक खाते में टिप्पणी की तरह दिखाया जाता है।
(2) यदि इनका लेखा बहियों में करना हो, तो इस प्रकार करना चाहिए
Debentures Suspense A/c … … …Dr.
To Debentures Alc
Debenture Suspense Account की बाकी चिट्ठे में सम्पत्ति पक्ष की ओर दिखायी जाती है। जब ऋण का भुगतान कर दिया जाता है तो ऋणपत्र खाता डेबिट और ऋणपत्र संदिग्ध खाता क्रेडिट किया जाता है।
ऋणपत्रों पर ब्याज और इस पर आय–कर (Interest on Debentures and Income tax Thereon) अंश की तुलना में ऋणपत्र का सबसे बड़ा लाभ यह है कि कम्पनी को लाभ हो या न हो, इन पर ब्याज अवश्य मिलता है। प्रत्येक कम्पनी के लिए आय–कर अधिनियम के अनुसार यह आवश्यक है कि वह ऋणपत्रधारियों को ऋणपत्रों पर ब्याज देने के पहले इसमें से आय कर की राशि काट ले और इसे सरकारी खजाने में जमा कर दे। सरकारी खजाने में जमा की गयी आय कर की राशि का प्रमाण–पत्र ऋणपत्रधारियों के पास भेजा जाता है। इसके लिए कम्पनी की पुस्तकों में निम्नांकित लेखे किये जाते हैं।
(1) ऋणपत्रों पर ब्याज खाता कुल ब्याज की राशि से डेबिट किया जाता है तथा ऋणपत्रधारियों का खाता उस ब्याज की राशि से क्रेडिट किया जाता है जो उन्हें वास्तव में देय होता है और आय कर खाता इस ब्याज पर आय कर के लिए काटी हुई राशि से क्रेडिट किया जाता है।
(2) जब इस ब्याज का भुगतान किया जाता है तो निम्नलिखित लेखा किया जाता है।
(3) वर्ष के अन्त में ऋणपत्रों का ब्याज खाता बन्द करने के लिए इस खाते की बाकी को लाभ–हानि खाते/विवरण में हस्तान्तरित कर दिया जाता है।
ऋणपत्रों के भुगतान की विधियाँ
(Methods of Redemption of Debentures) ऋणपत्रों के भुगतान की विधियों का वर्णन इन्हें निर्गमित करने वाली शर्तों में किया जाता है। निम्नांकित विधियाँ साधारणतया इनके भुगतान के लिए प्रयोग की जाती हैं
ऋणपत्र भुगतान की विधियां
परिवर्तन (Conversion)
(i) कुछ कम्पनियाँ अपने ऋणपत्रधारियों को यह सुविधा देती हैं कि वे जब चाहें अपने को अंशधारियों में बदल सकते हैं। ऐसा उसी कम्पनी में सम्भव हो सकता है जो कि परिवर्तनशील ऋणपत्रों का निर्गमन करती है। इसके लिए निम्नांकित लेखा किया जाता है
कम्पनी द्वारा नये अंश सममूल्य पर, प्रीमियम पर अथवा कटौती पर निर्गमित किये जा सकते हैं। यदि नये अंश प्रीमियम पर दिये जा रहे हों तो Security Premium A/c को क्रेडिट किया जाता है। इसके विपरीत यदि नये अंश छूट पर दिये जा रहे हों तो Share Discount A/c को डेबिट किया जाता है।
परिवर्तन की प्रक्रिया में कम्पनी अधिनियम, 1956 की धारा 79 का विशेष ध्यान रखना होगा। धारा 79 के अनुसार परिवर्तनशील ऋणपत्रों के बदले निर्गमित किये जाने वाले अंशों की संख्या ज्ञात करने हेतु उक्त ऋणपत्रों के अंकित मूल्य के स्थान पर इनके निर्गमन पर प्राप्त वास्तविक राशि पर ही ध्यान देंगे अर्थात्, अंशों का निर्गमन मूल्य उक्त ऋणपत्रों के निर्गमन पर प्राप्त वास्तविक राशि के बराबर होना चाहिए। यदि अंशों का निर्गमन ऋणपत्रों के अंकित मूल्य के आधार पर कर देते हैं तो यह धारा 79 का उल्लंघन माना जाता है। ऐसे — ऋणपत्रों के सम्बन्ध में परिवर्तन की प्रविष्टि करते समय उक्त ऋणपत्रों पर दी गयी कटौती की राशि से ‘Discount on Issue of Debenture A/c’ को क्रेडिट कर देंगे।
यदि परिवर्तनशील ऋणपत्रों का निर्गमन प्रीमियम पर किया गया हो तो ऐसी दशा में परिवर्तन किये जाने वाले ऋणपत्रों के बदले में निर्गमित किये जाने वाले अंशों की संख्या उक्त ऋणपत्रों के अंकित मूल्य पर ही ज्ञात की जायेगी।
(1) ऋणपत्रों का भुगतान पराने प्रणपत्रों के बदले में गये ऋणपत्र देकर भी किया जा इस दशा में पराने पाणपत्रों का खाता डेबिट और नये ऋणपत्रों का खाता क्रांडट किया जाता है
एक निर्धारित अवधि के बाद भुगतान (Payment after a Fixed Period)-जिन ऋणपत्रों का भुगतान एक निर्धारित अवधि के बाद करना होता है, उनका भुगतान या तो सिकिंग फण्ड द्वारा या सिंकिंग फण्ड बीमा पॉलिसी या ऋणपत्र भुगतान कोष द्वारा किया जाता
(अ) ऋणपत्र शोधन संचय (Debenture Redemption Reserve)/मिकिग फण्ड (Sinking Fund)—ऋणपत्रों का भुगतान करने के लिए साधारणतया एक कोष खोला जाता है, जिसे ऋणपत्र शोधन संचय या सिंकिंग फण्ड (Sinking Fund) कहा जाता है। यह कोष प्रति वर्ष कम्पनी को होने वाले लाभ में से बनाया जाता है और इसे या तो विनियोग किया जाता है या इसके द्वारा एक बीमा पॉलिसी ले ली जाती है। ऋणपत्रों के भुगतान की तिथि पर इस कोष के विनियोगों से प्राप्त राशि द्वारा ऋणपत्रों का भुगतान कर दिया जाता ऋणपत्र शोधन संचय/सिंकिंग फण्ड में ले जायी जाने वाली राशि ऐसी होनी चाहिए ताकि इसे निर्धारित चक्रवृद्धि ब्याज की दर से विनियोग किये जाने पर यह राशि ऋण को अवधि समाप्त होने पर उस राशि के बराबर हो जाये जो ऋणपत्रों के लिए भुगतान की जानी है। ऋण की राशि, भुगतान की अवधि और ब्याज की दर ज्ञात होने पर यह राशि वार्षिकी सारणी (Annuity Table) द्वारा ज्ञात की जा सकती है। अन्त में इस खाते की बाकी को सामान्य संचय (General Reserve) खाते में हस्तान्तरित किया जाता है। कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 71(4) के अनुसार जब भी कोई कम्पनी इस धारा के अन्तर्गत ऋणपत्र निर्गमित करती है तो उसे लाभांश के भुगतान के लिए उपलब्ध लाभों में से ऋणपत्र शोधन संचय का सृजन करना होगा और इस संचय में जमा राशि का प्रयोग ऋणपत्रों के शोधन के अतिरिक्त अन्य किसी कार्य में नहीं होगा। परन्तु निम्नलिखित दशाओं में कम्पनी को ऋणपत्र शोधन संचय बनाने की आवश्यकता नहीं है –
1.जिन ऋणपत्रों की परिपक्वता अवधि (Maturity period) 18 माह या इससे कम है या ऋणपत्र परिवर्तनीय है उनके लिए ऋणपत्र शोधन संचय बनाना आवश्यक नहीं है।
2. मलभूत सुविधाओं के विकास, रख–रखाव तथा संचालन में संलग्न कम्पनियों (Infrastructure companies) को ऋणपत्र शोधन संचय बनाना आवश्यक नहीं है।
3. भारतीय वित्तीय संस्थाओं, रिजर्व बैंक एवं अन्य बैंकों द्वारा निर्गमित ऋणपत्रों के लिए ऋणपत्र शोधन संचय (DRR) बनाना आवश्यक नहीं है।
ऋणपत्र शोधन संचय पद्धति द्वारा ऋणपत्रों के शोधन/भुगतान के सम्बन्ध में किये जाने वाले लेखे
(2) जब ऋणपत्र शोधन संचय की राशि को विनियोगकिया जाता है (3) जब इन विनियोगों पर ब्याज प्राप्त होता है तो इस राशि को ऋणपत्र शोधन संचय खाता (Debenture Redemption Reserve A/c) में क्रेडिट किया जाता है। इसके लिए निम्नांकित लेखा किया जाता है
इस ब्याज को राशि को तुरन्त उन्हीं प्रतिभूतियों में विनियोग कर दिया जाता है जिनमें कि । मुल राशि लगी हुई है। इस ब्याज के विनियोग के लिए निम्नांकित लेखा किया जाता है
(4) यही लेखे प्रति वर्ष किये जाते हैं जब तक कि ऋणपत्रों के भुगतान की अवधि पूरी न हो जाये। अवधि पूरी होने के बाद विनियोगों की राशि प्राप्त हो जाती है और यदि इस बिक्री से लाभ या हानि होती है तो लाभ या हानि को ऋणपत्र शोधन संचय खाते (Debenture Redemption Reserve A/c) में हस्तान्तरित कर दिया जाता है।
(5) ऋणपत्र शोधन संचय खाते (Debenture Redemption Reserve A/C) की बाकी सामान्य संचय में हस्तान्तरित कर दी जाती है
(6) जब विनियोगों पर इनकी अवधि के बाद या इसके पूर्व इनकी बिक्री से आय प्राप्त होती है तब बैंक खाता डेबिट तथा ऋणपत्र शोधन संचय विनियोग खाता/सिंकिंग फण्ड, विनियोग खाता क्रेडिट किया जाता है। इस वर्ष इस खाते के लाभ या हानि को सिंकिंग फण्ड (Sinking Fund) खाते में हस्तान्तरित किया जाता है।
(7) जब ऋणपत्रों का भुगतान किया जाता है, तब निम्नांकित लेखा किया जाता है
नोट–जिस वर्ष ऋणपत्रों का शोधन (भुगतान) करना होता है, उस वर्ष ऋण–पत्र शोधन कोष/सिकिंग फण्ड में हस्तान्तरित (Transfer) की गई रकम को विनियोजित नहीं किया जाता है।
(ब) सिंकिंग फण्ड बीमा पॉलिसी (Sinking Fund Insurance Policy)
ऋणपत्रों के भुगतान के लिए एक बीमा पॉलिसी भी ली जा सकती है। यह पॉलिसी उस राशि के लिए ली जाती है जो ऋणपत्रों के भुगतान पर कम्पनी को देनी पड़ेगी। इस पॉलिसी का प्रीमियम सिंकिंग फण्ड से भुगतान किया जाता है।
ऋणपत्रों का भुगतान वार्षिक किस्तों द्वारा किया जाना
(Payment of Debentures by Annual Drawings)
जब कम्पनी को प्रति वर्ष ऋणपत्रों का एक निश्चित भाग भुगतान करना होता है तो वह ऋणपत्रों की लॉटरी निकालती है और इनके धारकों को सूचना देकर भुगतान करती है। यह भुगतान लाभ में से या पूँजी में से किया जाता है। जब ऋणपत्रों का भुगतान वार्षिक आहरण द्वारा किया जाता है तो ऋणपत्र खाता डेबिट और बैंक खाता क्रेडिट किया जाता है।
इस दशा में ऋणपत्रों का भुगतान प्रीमियम पर या कटौती पर या सममूल्य पर किया जा सकता है। इसका विवरण ऋणपत्र निर्गमन की शर्तों पर निर्भर है। यदि इनके भुगतान पर कोई लाभ होता है तो लाभ की राशि से ऋणपत्र खाता डेबिट और ऋणपत्रों के भुगतान पर लाभ —खाता क्रेडिट किया जाता है
ऋणपत्रों को खुले बाजार में क्रय करना।
(Purchase of Debentures in the Open Market)
कम्पनी को अपने ऋणपत्रों के क्रय करने पर कम्पनी अधिनियम में कोई प्रतिबन्ध नहीं है, परन्तु यदि ऋणपत्रों के निर्गमन की शर्तों में एक शर्त यह है कि कम्पनी अपने ऋणपत्रों को क्रय नहीं करेगी तब कम्पनी ऐसा नहीं कर सकती है। जब ऋणपत्रों के निर्गमन में यह शर्त रहती है कि कम्पनी खुले बाजार में इनका क्रय कर सकती है तो जब कम्पनी यह देखती है कि स्कन्ध विनिमय (Stock Exchange) बाजार में इन ऋणपत्रों का मूल्य इनके अंकित मूल्य से कम है तो बाजार में इन्हें क्रय कर लेती है और इस प्रकार उनका भुगतान हो जाता है।
संयुक्त पंजी कम्पनियों के अन्तिम खात
(Final Accounts of Joint Stock Companies)
अन्य भारत सरकार की तरह प्रत्येक वर्ष के अन्त में कहानी द्वारा अन्तिम शार यार किये जारहे हैं जिन्हे हम आर्थिक खाले कहते हैं। रणार्थिक खातों के अन्तर्गत निहलालाखत कपने नियम 1956 की धारा 210 के अनुसार प्रत्येक कम्पनी के लिये अन्तिम कमी को दशमें खाने का रखना तथा वार्षिक खातों के प्रकाशन से सम्बन्धित महत्वपूर्ण नियस कम्पनी अधिनियम, 1956 की धारा 209 से 223 के अन्तर्गत व्यवस्थित हैं जिनक सहर विवरण निम्नलिखित है- .
1.स्पनी द्वारा रखी जाने वाली लेखा पुस्तकें (Books of Accounts to be Kept by company) धारा 200 के अनुसार प्रत्येक कम्पनी को अपने पंजीकृत कार्यालय में आवश्यक लेड गुस्तके रखनी होगी।
2-बार्षिक खातों की तैयारी (Preparation of Annual Accounts)-प्रत्येक कमनी अपने आर्थिक वर्षक चित्रा (Balance Sheet) अधिनियम की धारा 211 तथा अनुसूची Vाके भाग के प्रावधानों के अनुसार तथा लाभ-हानि विवरण धारा 211 तथा अनुसूची के भाग के प्रावधानों के अनुसार तैयार करेगी जो कम्पनी की स्थिति तथा आर्थिक वर्ष के लाभ-हानि का सच्चा एवं उचित’ (True and Fair) चित्र प्रस्तुत करेंगे।
कम्पनी का चिट्ठा तथा लाभ-हानि का विवरण तैयार करने के लिए संशोधित अनुसूची तैयार की गई है जो 1.4.2011 को अथवा उसके पश्चात् प्रारम्भ होने वाले वित्तीय वर्ष (Financial Year) से लागू कर दी गई है। संशोधित अनुसूची Vा के अन्तर्गत चिट्टेका लम्बवत् (शीर्ष ) प्रारूप (Vertical Form) संशोधित अनुसूची के पहले भाग में दिया गया है। उक्त अनुसूची को कम्पनी अधिनियम, 2013 में अनुसूची । कर दिया गया है और इसे 1.4.2014 से लागू किया गया है।
3. वार्षिक साधारण सभा के सम्मुख खातों को प्रस्तुत करना (Laying Accounts before Annual General Meeting)-धारा 210 के अनुसार कम्पनी को प्रत्येक वार्षिक साधारण सभा (जो धारा 166 के अन्तर्गत बुलाई गई है) में संचालक मण्डल को कम्पनी का आर्थिक चिट्ठा तथा लाभ-हानि विवरण प्रस्तुत करना आवश्यक है तथा गैर-व्यापारिक कम्पनियों की दशा में लाभ-हानि विवरण के स्थान पर आय-व्यय खाता (Income and Expenditure Account) प्रस्तुत करना होगा। कम्पनी का वित्तीय वर्ष 12 माह की अवधि से कम या अधिक का हो सकता है। यह अवधि 15 माह से अधिक नहीं हो सकती है, परन्तु रजिस्ट्रार की अनुमति से 18 माह तक हो सकती है।
4. सहायक कम्पनियों में हित का स्पष्टीकरण (Disclosure of Interest in Subsidiary Company) यदि कम्पनी एक सूत्रधारी (Holding) कम्पनी है तो धारा 212 के अनुसार, उसके चिठे के साथ सहायक कम्पनी से सम्बन्धित प्रपत्र संलग्न किये जायेंगे।
5- खातों का प्रमाणिकीकरण (Authentication of Accounts).धारा 215 के यो का प्रत्येक चिट्ठा तथा लाभ-हानि विवरण संचालक मण्डल की ओर से होना चाहिए। अन्तिम खाते इस प्रकार हस्ताक्षरित होने तथा अंकेक्षकों के समक्ष प्रतिवेदन हेतु प्रस्तुत किये जाने से पहले संचालक मण्डल द्वारा स्वीकार किये जायेंगे।
6- अतिम खातों का प्रकाशन (Publication of Final Accounts)- कम्पनी के अतिय खातो में चिट्ठा, लाभ-हानि, विवरण, अंकेक्षकों का प्रतिवेदन, संचालकों का प्रतिवेदन तथा वे सभी प्रपत्र शामिल होते हैं, जो इनके साथ संलग्न किये जाते हैं। इन सभी एपको को सामान्यतः एक लघु पुस्तिका के रूप में छपवाकर, वार्षिक साधारण सभा की तिथि दिन पूर्व निम्नलिखित व्यक्तियों को भेजना होता है (अ) कम्पनी के प्रत्येक सदस्य को, (ब) प्रत्येक पंजीकृत ऋणपत्रधारी को, तथा (स) अन्य अधिकारी व्यक्तियों को। (धारा 218 तथा 219)
7. धारा 220 के अनुसार चिट्ठा तथा लाभ-हानि विवरण को वार्षिक सभा में रखे जाने के बाद 30 दिन के अन्दर, उनको तीन प्रतियाँ रजिस्ट्रार के पास प्रस्तुत की जाती हैं।
8. अन्तिम खातों के उद्देश्य (Objectives of Final Accounts) अन्तिम खातों के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं
(अ) विवेको तथा युक्तिमूलक (Rational) विनियोग हेतु विनियोक्ताओं को वित्तीय सूचना प्रदान करना।
(ब) व्यवसाय को सम्पत्तियों, दायित्वों तथा स्वामी कोष (Shareholders fund) की जानकारी प्रदान करना।
(स) वित्तीय सूचनाओं को प्रयोग करने वाले बाह्य व्यक्तियों तथा स्वयं कम्पनी को उसको भावी तरल स्थिति एवं रोकड़ बहाव (Cash flow) के सम्बन्ध में जानकारी प्रदान करना।
ख्याति की परिभाषाएँ
संस्था द्वारा अधिक लाभ कमाने की क्षमता ख्याति कहलाती है। ध्यान परिभाषाएँ दी गयी है। इनमें से निम्नांकित प्रमुख हैं
डिक्सी के अनुसार, जब एक व्यक्ति ख्याति के लिए कल शिक्षा इसलिए देता है कि ऐसा करने से वह इतनी अधिक आय प्राप्त करेगा जितनी किया इसके प्राप्त नहीं कर सकता।”
मोरिसे के अनुसार, ख्याति एक फर्म के अनुमानित अधिक उपार्जन का वर्तमान मूल्य है
आर० विक्सन के अनुसार, “ख्याति एक व्यावसायिक उपक्रम से सम्बन्धित सभी अनुकूल गुणों का मूल्य है।” bcom 3rd year valuation of goodwill notes
ख्याति के लक्षण
(1) ख्याति अदृश्य सम्पत्ति है,
(2) स्थापित व्यवसाय को बेचने पर हो ख्याति का बाजार मूल्य प्राप्त होता है।,
(3) ख्याति को सही लागत ज्ञात करना कठिन है,
(4) ख्याति का निष्पक्ष मूल्यांकन सम्भव नहीं है,
(5) व्यवसाय में ख्याति क्रय की गई हो सकती है,
(6) अधिलाभ की मात्रा ख्याति के मूल्य को प्रभावित करती है।
ख्याति के उपार्जन के कारण-
(1) व्यापार-गृह को लाभदायक स्थिति,
(2) ग्राहकों की मनोवैज्ञानिक अभिरुचि,
(3) स्वामी का अच्छा व्यक्तित्व,
(4) माल की गुणवत्ता,
(5) एकाधिकार की स्थिति,
(6) राजनैतिक स्थिति।
ख्याति की अवधारणाएँ–
(1) लेखांकन अवधारणा,
(2) आर्थिक अवधारणा,
(3) कानूनी अवधारणा।
ख्याति का स्वभाव अथवा प्रकृति-
(1) बिल्ली के स्वभाव को,
(2) कुत्ते के स्वभाव की,
(3) चूहे के स्वभाव की,
(4) खरगोश के स्वभाव को।
ख्याति के मूल्य को प्रभावित करने वाले घटक
(अ) व्यापारिक घटक-
(1) व्यवसाय के भवन का स्थान,
(2) व्यवसाय को अवधि,
(3) जोखिम,
(4) उत्पाद की गुणवत्ता,
(5) लाभार्जन क्षमता,
(6) अनुकूल प्रसविदे,
(7) उचित मूल्य,
(8) ग्राहकों से अच्छे सम्बन्धा
(ब) प्रबन्धकीय घटक-
(1) प्रबन्धकों की व्यक्तिगत छाव,
(2) श्रष्ठ विक्रय प्रबन्धन,
(3) संसाधनों की निरन्तर खोज।
(स) औद्योगिक घटक-
(1) औद्योगिक शान्ति,
(2) उत्पादन का वैकल्पिक उपयोग,
(3) व्यवसायिक प्रतिस्पर्धा।
(द) वित्तीय घटक–
(1) पूँजी की मात्रा,
(2) वित्तीय संस्थाओं का रुख,
(3) विनियोक्ताओ का रुख,
(4) मुद्रा बाजार का अनुकूल रुख।।
(य) राजनैतिक घटक-
(1) राजनैतिक दलों का रुख,
(2) आयात-निर्यात नीति,
(3) कर नीति,
(4) सरकारी संरक्षण,
(5) राजनैतिक स्थिरता।
(र) सामाजिक घटक–
(1) उत्पाद के प्रति जनता का लगाव,
(2) सामाजिक तथा आर्थिक कार्य।
ख्याति के मूल्यांकन की आवश्यकता अथवा मूल्यांकन की दशाएँ
(अ) एकल व्यापार की दशा में
(1) व्यवसाय को बेचने पर,
(2) साझेदारी फर्म में बदलने पर,
(3) अनिवार्य अधिग्रहण की दशा में।
(ब) साझेदारी फर्म की दशा में—
(1) नये साझेदार के प्रवेश पर,
(2) साझेदार के अवकाश ग्रहण तथा मृत्यु की दशा में,
(3) फर्म को कम्पनी में बदलने पर,
(4) एकीकरण की दशा में,
(5) साझेदारों के लाभ-हानि अनुपात में परिवर्तन होने पर,
(6) साझेदारी व्यवसाय की बिक्री पर।
(स) कम्पनी की दशा में-
(1) एकीकरण की दशा में,
(2) कम्पनी पर नियन्त्रण करने के लिए उसके अधिक अंश क्रय करने पर,
(3) अंशों के मूल्यांकन की दशा में।
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ख्याति के सम्बन्ध में लेखांकन मानकों के सम्बन्धित प्रावधान (Relevant Provisions of the Accounting Standards on Goodwill)
1. लेखांकन मानक-10(AS-10) के अनुसार ख्याति का लेखांकन लेखा पुस्तकों में नहीं होता है। इस लेखा मानक के अनुसार ख्याति को लेखा पुस्तकों में उसी स्थिति में प्रदर्शित करना चाहिए जब उसके लिए भुगतान किया गया हो।
2. लेखांकन मानक-14(AS-14) के अनुसार क्रय पद्धति के आधार पर एकीकरण (Amalgamation) की दशा में हस्तान्तरी कम्पनी द्वारा हस्तान्तरक कम्पनी की क्रय की गई शुद्ध सम्पत्तियों के मूल्य से अधिक प्रतिफल होने पर आधिक्य को हस्तान्तरी कम्पनी के वित्तीय विवरणों में एकीकरण से उत्पन्न ख्याति के रूप में दर्शाना चाहिए। इस लेखा मानक के अनुसार ख्याति की राशि को अधिकतम 5 वर्षों में अपलिखित किया जाना चाहिए, जब तक कि इससे अधिक लम्बी अवधि को उपयुक्त न ठहराया जाये।
3. लेखांकन मानक-21(AS-21) के अनुसार सूत्रधारी कम्पनी की दशा में यदि विनियोग की तिथि पर सहायक कम्पनी में सूत्रधारो कम्पनी के विनियोग की लागत सहायक कम्पनी में सूत्रधारी कम्पनी के समता के भाग से अधिक होती हैं तो इस आधिक्य को ख्याति कहा जाता है और समेकित वित्तीय विवरण में इसे एक सम्पत्ति के रूप में दर्शाया जाता है, परन्तु आन्तरिक सृजित ख्याति को एक सम्पत्ति के रूप में मान्य नहीं किया जायेगा।
4. लेखांकन मानक-26(AS-26) के अनुसार क्रय की गई ख्याति को लेखा पुस्तकों में सम्पत्ति के रूप में मान्यता दी जाती है।
अंशों के मूल्यांकन का आशय
(Meaning of Valuation of Shares)
अंशो के मूल्यांकन का आशय इनके ऐसे मूल्यांकन से है जिस पर इनका क्रय, विक्रय, हस्तान्तरण या कर निर्धारण किया जाता है या जिसके अधिार पर अंशधारियों या अन्य किसी को अंश पूँजी की स्थिति का सही ज्ञान प्राप्त होता है। ‘अंशों का मूल्यांकन’ शब्द का प्रयोग प्राय: समता अंश के लिए किया जाता है।
अंशों के मूल्य निर्धारण करने की आवश्यकता
(1) एकीकरण पर (On Amalgamation)—जब दो या दो से अधिक कम्पनियों का एकीकरण होता है, तब कम्पनियों के अंशों के मूल्यांकन की आवश्यकता पड़ती है।
(2) अंशों के परिवर्तन पर (On Conversion of Shares)—कभी-कभी ऐसी भी परिस्थितियाँ आ जाती हैं, जबकि एक प्रकार के अंशों का परिवर्तन दूसरे प्रकार के अंशों में किया जाता है। ऐसी दशा में अंशों के मूल्यांकन की आवश्यकता पड़ती है।
(3) कम्पनी के संविलयन पर (On Absorption of a Company)—जब एक कम्पनी का संविलयन दूसरी कम्पनी में होता है उस समय अंशों के मूल्यांकन की आवश्यकता होती है।
(4) किसी ऐसी कम्पनी के अंश क्रय करने के लिए मूल्यांकन, जिस पर नियन्त्रण करना
(5) राष्ट्रीयकरण की दशा में सरकार द्वारा अंशों की क्षतिपूर्ति के लिए मूल्य निर्धारण। ” ऐसे अंशों की बिक्री होने पर जिनका मूल्य प्रकाशित नहीं किया जाता है।
(7) कम्पनी के पुनर्निमाण पर (On the Reconstruction of the Company) कम्पनी अधिनियम के अनुसार कम्पनी का पुनर्निर्माण होता है और इसको सहमति कुछ अंशधारी नहीं देते हैं तो इनके अंशों का मूल्यांकन कर इन्हें भुगतान कर दिया जाता है।
(8) एक प्राइवेट कम्पनी के अंशों के मूल्यांकन की आवश्यकता इस कम्पनी को बिक्री के समय या इसकी सही वित्तीय स्थिति का ज्ञान प्राप्त करने के समय पड़ती है।
(9) सम्पत्ति कर एवं उपहार कर निर्धारण करने पर यदि सम्बन्धित सम्पत्ति में अंश हैं।
(10) प्रन्यास और वित्तीय कम्पनियों के चिट्ठे की सम्पत्तियों का मूल्यांकन करने के लिए।
(11) जब बैक अंशों की प्रतिभूति पर ऋण देते हैं तो अंशों के मूल्यांकन की आवश्यकता पड़ती है।
(12) कुछ विशेष दशाओ में ऋण व दायित्वों का भुगतान करने के लिए।
(13) खान की सम्पत्तियों के विघटन होने पर, अवशिष्ट मूल्य का ज्ञान प्राप्त करने के लिए।
(14) अन्य किसी दशा में, जबकि ऐसा करने से विशेष ज्ञान प्राप्त होने की सम्भावना हो।
अंशों के मूल्य के प्रकार (Types of Value of Shares)
अंशो का मूल्य निम्नलिखित प्रकार का हो सकता है
(1) सम मूल्य (Par Value) कम्पनी के पार्षद सीमानियम में कम्पनी की पूँजी के प्रत्येक अंश का जो मूल्य अंकित रहता है उसे ही सम मूल्य कहा जाता है।
(2) पुस्तकीय मूल्य (Book Value)—अंश के पुस्तकीय मूल्य का आशय कम्पनी की पुस्तकीय पूँजी में अंशों की संख्या का भाग देने से आने वाले मूल्य से है। पुस्तकीय पूँजी का आशय अंश पूँजी + संचय एवं आधिक्य की राशि से है। इसी पुस्तकीय मूल्य को अंशधारियों की समता (Shareholders’ Equity) या स्वामियों की समता (Owners’ Equity) कहा जाता है।
(3) बाजार मूल्य (Market Value)—अंश के बाजार मूल्य का आशय उस मूल्य से है जिस पर अंश का क्रय-विक्रय अंश बाजार (Share market) में होता है।
(4) लागत मूल्य (Cost Value)—अंश के लागत मूल्य का आशय उस मूल्य से है जो एक अंशधारी को एक अंश का धारक बनने के लिए व्यय करना पड़ता है। इसमें अंश का बाजार मूल्य और दलाली, आदि के व्यय भी शामिल रहते हैं।
(5) पूँजीकृत मूल्य (Capitalised Value) कम्पनी की उपार्जन क्षमता का पूँजीकरण विनियोगों पर आय की सामान्य दर के आधार पर किया जाता है। इस पंजीकृत मूल्य में अंशों की संख्या का भाग देकर एक अंश का मूल्य निकाला जाता है।
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