Thursday, November 21, 2024
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Meaning of Poverty Notes in hindi

Meaning of Poverty Notes

गरीबी या निर्धनता से आशय 

निर्धनता का अर्थ उस सामाजिक प्रक्रिया से लगाया जाता है जिसमें समाज का एक बहुत बड़ा भाग अपन जावन का मूलभूत आवश्यकताओं को भी परा नहीं कर पाता। जब समाज का एक बहुत बड़ा भाग न्यूनतम जीवन-स्तर से वंचित रहता है और केवल निर्वाह-स्तर पर ही अपना जीवन निर्वाह करता है, तो यह समझा जाता है कि समाज में व्यापक निर्धनता विद्यमान है। तीसरी दुनिया के देशों में व्यापक निर्धनता पायी जाती है। यूरोप और अमेरिका के कुछ भागों में भी निर्धनता विद्यमान है। अधिकांश अर्थशास्त्री यह मानते हैं कि वह व्यक्ति गरीब है जो गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन कर रहा है। सर्वप्रथम संयुक्त राष्ट्र संघ के खाद्य एवं कृषि संगठन (F.A.O.) के प्रथम निदेशक लॉर्ड बायड ओर ने सन् 1945 ई० में गरीबी रेखा’ (Poverty Line) की संकल्पना प्रस्तुत की थी। इस रेखा के अनुसार जिन व्यक्तियों को 2,300 कैलोरी का भोजन नहीं मिल पाता है उनको गरीबी रेखा (Poverty line) के नीचे माना जाना चाहिए। निर्धन व्यक्तियों का कुल जनसंख्या से अनुपात ‘निर्धनता अनुपात’ (Poverty Ratio) कहलाता है। सूत्रानुसार, 

निर्धनता अनुपात (Poverty Ratio) =गरीबों की कुल संख्या (Total Number of Poor People) /देश की कुल जनसंख्या (Total Population of a Country) 

Meaning of Poverty Notes

निर्धनता की परिभाषा 

(Definitions of Poverty).

जे०एल० हेन्सन के अनुसार, “न्यूनतम जीवन-स्तर को बनाए रखने के लिए जितनी आय की आवश्यकता होती है, उससे कम आय होने पर व्यक्ति को निर्धन माना जाएगा।’ 

‘विश्व बैंक’ के अनुसार, “यदि कोई व्यक्ति प्रतिदिन एक डॉलर की औसत की आजत करने में असमर्थ है तो यह माना जाएगा कि वह निर्धनता रेखा से नीचे जीवन बस रहा है।”

‘योजना आयोग’ के अनुसार, “उन व्यक्तियों को निर्धन माना जाता है जो ग्रामीण और में प्रतिदिन 2,400 कैलोरी तथा शहरी क्षेत्रों में 2,100 कैलोरी से कम उपभोग करते हैं।” गरीबी शब्द का प्रयोग तो प्राय: सभी करते हैं किन्तु इस शब्द का सही अर्थ दो रूपों में व्यक्त किया जा सकता है 

  1. सापेक्ष गरीबी (Relative Poverty),
  2. निरपेक्ष गरीबी (Absolute Poverty)। .
  3. सापेक्ष गरीबी (Relative Poverty)-

सापेक्ष गरीबी से आशय आय की विषमताओं से है। जब हम दो देशों की प्रति व्यक्ति आय की तुलना करते हैं तो उनमें भारी अन्तर पाया जाता है। इस अन्तर के आधार पर हम कह सकते हैं कि एक देश दूसरे देश के सापेक्ष गरीब है। यह गरीबी सापेक्ष गरीबी कहलाती है। 

  • निरपेक्ष गरीबी (Absolute Poverty)-

निरपेक्ष गरीबी का अर्थ उस न्यूनतम आय से है जिसकी एक परिवार के लिए आधारभूत न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु आवश्यकता होती है, परन्तु जिसे वह परिवार जुटा पाने में सर्वथा असमर्थ होता है। दूसरे शब्दों में, किसी व्यक्ति की ‘निरपेक्ष गरीबी’ से आशय यह है कि उसकी आय या उपभोग इतना कम है कि वह न्यूनतम भरण-पोषण स्तर से भी निम्न-स्तर पर जीवनयापन कर रहा है। अन्य शब्दों में, मानव की मूलभूत आवश्यकताओं जैसे रोटी, कपड़ा, मकान, स्वास्थ्य तथा चिकित्सा सेवा आदि की पूर्ति का भली-भाँति न हो पाना ही निरपेक्ष गरीबी कहलाता है। 

भारत में निर्धनता के कारण 

Causes of Poverty in India

भारत में गरीबी के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं 

  1. निर्धनता का दुश्चक्र (Vicious Circle of Poverty)-

भारत में गरीबी का प्रमुख कारण ‘गरीबी’ ही है, अर्थात् ‘गरीबी’ ही गरीबी का कारण तथा परिणाम दोनों है। एक व्यक्ति गरीब है, इसलिए निश्चित रूप से उसकी आय, उपभोग स्तर, कार्यक्षमता एवं बचत कम होती है, अत: वह सदैव गरीब ही बना रहता है। भारतीय अर्थव्यवस्था गरीबी के कुचक्र में फंसी हुई है, इसलिए यहाँ गरीबी सदैव से ही विद्यमान है। इस गरीबी के दुश्चक्र को तोड़कर ही देश से गरीबी को दूर किया जा सकता है। 

2. उत्पादक सम्पत्ति (Productive Assets) तथा दक्षता (Skill) का न होना

भारत में गरीबी का प्रमुख कारण व्यक्तियों पर उत्पादक सम्पत्तियों का अभाव है या फिर निसके पास कोई हुनर अथवा दक्षता नही है वह भी गरीबी का जीवन व्यतीत कर रहा है। प्रायः पिनो के पास आय तथा सम्पत्ति की कमी होती है। गाँवों में व्यक्ति की सामाजिक प्रतिरा उसके पास उपलब्ध भूमि से ही आँको जाती है। यदि गाँव में किसी व्यक्ति के पास भूमि नहीं है तो वह व्यकिा निर्धन माना जाता है। भारत में निर्धनता का प्रमुख कारण खेती की भूमि का उपलल न होना है। यदि किसी निर्धन के पास कुछ भूमि होती भी है तो वह बहुत कम मात्रा में होने के कारण अनुत्पादक होती है तथा धन के अभाव के कारण उसके लिए भूमि में सुधार कर पाना भी कठिन होता है और उसे साख भी प्राप्त नहीं हो पाती। 

3. मजदूरी पर आश्रित होना (Depend upon Wages)-

भारत की जनसंख्या का एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है जिसके पास भूमि का न तो स्वामित्व है और न ही उसे भूमि अध-बटाई पर प्राप्त होती है। इसलिए वह मजदूरी पर ही आश्रित रहता है, और मजदूरी भी उसे सदैव नहीं मिल पाती जिससे वह सदैव निर्धन ही बना रहता है। 

4. ,मौसमी कार्य का मिलना (Seasonal Work)-

कृषि से बाहर निर्धनों को कुटीर उद्योगों, सेवा तथा व्यापार में काम मिलता भी है तो वह कार्य मौसमी स्वभाव का होता है। कम पूंजी व कम दक्षता होने के कारण इन कार्यों में उत्पादकता भी कम होती है तथा इनसे कारीगरों को भी आय कम होती है। 

5. भूमि पर स्वामित्व न होना (No Ownership on Land)—

निर्धनता का एक . प्रमुख आर्थिक कारण अधिकांश निर्धनों के पास अपनी भूमि न होना है। उन्हें जो भूमि काश्तकारी (Tenaney) या अध-बँटाई (Half-sharing) के रूप में मिली होती है उससे उन्हें आधी या इससे कम फसल ही प्राप्त हो पाती है। कभी-कभी तो निर्धनों के पास मात्र वह जमीन ही होती है जो कि वास्तव में समाज की होती है, किन्तु जनसंख्या में वृद्धि के कारण यह सामाजिक व्यवस्था भी समाप्त होती जा रही है। 

6. दुर्बल आर्थिक संगठन (Weak Economic Organization)-

भारत में आर्थिक संगठन निर्बल स्थिति में है। यहाँ कृषि तथा उद्योगों को विभिन्न प्रकार की सुविधाएँ उपलब्ध कराने के लिए ग्रामीण तथा पिछड़े क्षेत्रों में अभी भी बैंकरों से काफी महँगी दर पर ऋण लिया जाता है। इसी कारण निर्धनता बढ़ती चली जा रही है।

7. औद्योगिक विकास की निम्न दर (Low Rate of Industrial Development)-

योजनाकाल में यद्यपि औद्योगिक विकास की ओर पर्याप्त ध्यान दिया जाता है, लेकिन आज भी देश में औद्योगिक विकास की दर काफी नीची है। औद्योगिक क्षेत्र में उपभोक्ता एवं उत्पादक उद्योगों में असन्तुलन के साथ-साथ क्षेत्रीय विषमता विद्यमान है। उत्पादन का पैमाना छोटा होने के कारण श्रम विभाजन सम्भव नहीं है और पूँजी की कमी के कारण उद्योगों का आधुनिकीकरण तथा विकास भी सम्भव नहीं है। अत: निर्धनता की समस्या पूरी तरह से यथावत् बनी रहती है। 

8. अशिक्षा, अज्ञानता तथा रूढ़िवादिता (Illiteracy, Ignorance and Orthodoxy)-

अधिकांश भारतीय जन्म से लेकर मृत्यु तक अशिक्षा, अज्ञानता, रूढियाला एवं अन्धविश्वास के कारण अनेक संस्कारों पर अनुत्पादक व्यय करते हैं। निर्धन व्यक्ति को ही सामाजिक परम्पराओं का निर्वाह आवश्यक रूप से करना पड़ता है। इसके लिए विवश होकर उसे ऋण लेना पड़ता है, जिससे वह कर्जदार हो जाता है तथा गरीबी के मकड़जाल में फं जाता है। इसका असर पीढ़ी-दर-पीढ़ी पड़ता रहता है। 

9. अधिक बच्चों का होना (To have More Children)-

जल्दी-जल्दी व अधिक बच्चे होने के कारण माता (स्त्री) तथा बच्चे कुपोषण का शिकार हो जाते हैं और वे अनेक प्रकार की बीमारियों से ग्रसित हो जाते हैं। अत: वे देश की मुख्य धारा से नहीं जुड़ पाते तथा गरीबी उन पर मँडराती रहती है। 

10. जाति प्रथा तथा संयुक्त परिवार प्रणाली (Castism and Joint Family System)-

भारत में बढ़ता हुआ जातिवाद, संयुक्त परिवार प्रणाली तथा उत्तराधिकार के नियम भी गरीबी कायम करने में अपना अंशदान कर रहे हैं। जाति प्रथा के चलते जिस जाति-विशेष को लाभ मिल पाता है, वह जाति-विशेष ही अपना विकास कर पाती है, जबकि अन्य जातियाँ पिछड़ जाती हैं जिससे उनकी निर्धनता बनी रहती है। संयुक्त परिवार प्रथा में कार्य करने वाले व्यक्ति कम होते हैं, जबकि आश्रित व्यक्तियों की संख्या अधिक होती है। इससे प्रति व्यक्ति आय घट जाती है, फलस्वरूप निर्धनता की स्थिति आ जाती है। संयुक्त परिवार के कारण कुछ लोग काफी आलसी हो जाते हैं, जो अकर्मण्य रहकर गरीबी को आमन्त्रित करते हैं। 

11. भ्रष्टाचार (Corruption)-

वर्तमान समय में भ्रष्टाचार देश की गम्भीर समस्या है। प्रशासनिक व्यवस्था में नीचे से ऊपर तक सभी स्तरों पर भ्रष्टाचार दिखाई देता है। विकास योजनाएँ ठीक प्रकार से क्रियान्वित नहीं हो पा रही हैं। जो धन गरीबी के निराकरण में लगना चाहिए, वही धन गैर विकास के कार्यों में व्यय हो रहा है, परिणामस्वरूप गरीबों व अमीरों के बीच की खाई और चौड़ी होती जा रही है। इस प्रकार के हालात में देश की गरीबी हटाने की कल्पना, मात्र कल्पना ही बनी रहेगी। 

गरीबी निवारण हेतु सुझाव 

(Suggestions to Eliminate Poverty)

यदि गरीबी की समस्या का निराकरण नहीं किया गया तो गरीबों का रोष विद्रोह के रूप में प्रस्फुटित होगा जो देश की अर्थव्यवस्था को झकझोर कर रख सकता है। इस विद्रोह का निशाना अमीर व्यक्ति ही होंगे। गरीबी से तंग आकर गरीब लोग हथियार उठा लेंगे और आतंकी गतिविधियों द्वारा खूनखराबा करके अमीर व्यक्तियों का जीना दूभर कर सकते हैं। अतः इस खतरनाक स्थिति के उत्पन्न होने से पहले ही गरीबी निवारण हेतु समुचित कदम उठाने की आवश्यकता है। भारत में गरीबी को दूर करने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं 

जनसंख्या वृद्धि पर नियन्त्रण (Control on Population Growth)

भारत में भी अब चीन की जनसंख्या नीति को अपनाने का समय आ गया है, अर्थात् हमें एक बच्चा नीति 

1.One Child Norm को अपनाना होगा। जब तक यह नीति नहीं अपनायी जाएगी तब तक गरीबी का निराकरण सम्भव नहीं है, लेकिन यह कार्य तभी सम्भव है जब व्यक्ति अधिक शिक्षित होगा, अत: आम जनता में शिक्षा का प्रचार-प्रसार तथा विस्तार करने की महती आवश्यकता है। 

2. मजबूत इच्छा-शक्ति (Strong Will-power)-

अधिकतर राजनीतिक पार्टियाँ ‘गरीबी हटाओ’ का नारा देती हैं, किन्तु यह नारा मात्र चुनावी नारा बनकर रह जाता है। वास्तव में देखा जाए तो सरकार, प्रशासन और सम्पन्न वर्ग ने गरीबी हटाने का सच्चे मन से प्रयास नहीं किया है। यदि सरकार दृढ़ इच्छा-शक्ति से गरीबी हटाने का प्रयास करे तो निश्चित रूप से गरीबी दूर हो सकती है। 

3. सदृढ सरकारी नीतियाँ एवं कुशल संचालन (Strong Government Policies and Efficient Implementation)—

गरीबी को दूर करने हेतु जो भी नीतियाँ बनाई जाएँ, वे व्यवस्थित तथा सुदृढ़ होनी चाहिए। इसके अतिरिक्त उनका संचालन भी कुशलतापूर्वक होना चाहिए। साथ ही मध्यस्थों पर कड़ी नजर रखनी होगी तथा धन का दुरुपयोग रोकने लिए कड़े नियम लागू करने होंगे। 

4. सामाजिक चेतना (Social Awareness)-

अशिक्षा के कारण हमारे देश का आम नागरिक अपने अधिकार तथा दायित्वों के प्रति समुचित जानकारी नहीं रखता तथा वह पुराने ढर्रे पर ही जिन्दगी गुजारना चाहता है। उसे सरकार द्वारा चलाए जा रहे किसी भी कार्यक्रम की जानकारी तक नहीं हो पाती है। लेकिन सामाजिक चेतना के माध्यम से इस कमी को दूर किया जा सकता है। ऐसा होने से उसके अधिकारों का कोई हनन नहीं कर पाएगा। 

5. जनसहयोग (Public Co-operation)- 

हमारा यह सोचना कि गरीबी की समस्या केवल सरकार के प्रयासों द्वारा ही दूर होगी तो यह मात्र एक भ्रम ही होगा। गरीबी की समस्या के निराकरण के लिए आम जनता को भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेकर अपना अमूल्य सहयोग देना होगा, तभी गरीबी का निराकरण होना सम्भव है। 

6. प्रशासनिक सुधार (Administrative Reforms)-

भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था सुस्त, अकुशल, भ्रष्ट एवं निर्णय लेने में अक्षम है। वास्तविकता तो यह है कि हमारा प्रशासन जनता की रक्षा करने में सर्वथा अक्षम है, लेकिन गुण्डों एवं बदमाशों को संरक्षण देने में निपुण है। अत: आवश्यकता इस बात की है कि प्रशासनिक अधिकारियों को इस तरह की ट्रेनिंग दी जानी चाहिए कि वे दिलोजान से गरीबों की मदद करें तथा भ्रष्ट मानसिकता से सर्वथा दूर रहें। ईमानदार प्रशासनिक अधिकारियों का मनोबल बढ़ाने के लिए उन्हें प्रशस्ति तथा पदोन्नति .. मिलनी चाहिए। 

7. शहरी विकास कार्यक्रम लागू करना (Implementation of the Programme for Urban Development)-

गरीबी दूर करने के लिए शहरों में विशेष कार्यक्रमों को बनाकर उन्हें क्रियान्वित किए जाने की महती आवश्यकता है। इससे रोजगार मिलने में शहरी गरीबों को सहायता प्राप्त होगी। 

8. कृषि विकास (Agricultural Development)-

यह सर्वविदित है कि भारतीय ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकांश व्यक्ति कृषि पर आश्रित हैं। अतः ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी का अनुपात से किया जाए तो गरीबी 

करने के लिए भूमि शहर की अपेक्षा काफी अधिक है। यदि कृषि का विकास उचित ढंग से किया जा का उन्मूलन आसानी से किया जा सकता है। कृषि क्षेत्र में आय में वृद्धि करने के नि सधारों को प्रभावी ढंग से लाग करना चाहिए तथा किसानों को उच्च गुणवत्ता वाले काम खाद को सस्ती दरों पर उपलब्ध कराना चाहिए। इसके अतिरिक्त फसल बीमा – व्यवस्था, संस्थागत वित्त व्यवस्था, भूमि सुधार, किसानों की सुरक्षा, आधुनिकीकरण तथा गुणवत्ता वाली छिड़काव की दवाएँ (Pesticides) उपलब्ध करानी होगी, तभी कृषि विकास सम्भव हो पाएगा और गरीबी का उन्मूलन होगा। 

9. ग्रामीण विकास की विशेष योजनाएँ (Special Schemes for RS Development)-

शहर की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी का प्रतिशत अधिक है. अ. ग्रामीण क्षेत्रों के लिए विशेष योजनाओं को क्रियान्वित करने की महती आवश्यकता है. जिते मुख्यमंत्रियों द्वारा कार्य-स्थल पर जा-जाकर परखना होगा कि वास्तव में वे योजनाएँ लाग की भी जा रही हैं अथवा कागजी घोड़े ही दौड़ाए जा रहे हैं। 

10. गैर-कृषि रोजगार में वृद्धि (Increase in Non-agricultural Employ. ment)-

भूमि के अभाव तथा जनसंख्या वृद्धि ने कृषि पर जनसंख्या का भार बढ़ा दिया है अतः इस भार को कम करने के लिए गैर-कृषि रोजगार में वृद्धि करने की आवश्यकता है। इसके लिए ग्रामीण व कुटीर उद्योग, कताई-बुनाई, दस्तकारी, रँगाई-छपाई, खिलौने, मिट्टी के पात्र तथा मूर्तियाँ बनाने के कार्यों को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। 

11. औद्योगिक विकास (Industrial Development)-

कृषि पर जनसंख्या का भार कम करने के लिए यह आवश्यक है कि उद्योगों के विकास पर पूर्ण ध्यान दिया जाए। इसके लिए निजीकरण, आधारभूत उद्योगों की स्थापना, पूँजी की उचित व्यवस्था, उदार औद्योगिक नीति तथा अनुसन्धान एवं विकास कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। ऐसा होने से रोजगार के अवसरों में वृद्धि होगी। 


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