Monopoly and Monopolistic meaning in Hindi
विभेदकारी एकाधिकार के अन्तर्गत कीमत का निर्धारण (Price Determination Under Discriminating Monopoly)
विभेदकारी एकाधिकार के अन्तर्गत कीमत का निर्धारण करते समय एकाधिकारी का एक ही लक्ष्य होता है-लाभ को अधिकतम करना।
इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए दो शर्तों का पूरा होना आवश्यक है-
(1) विभिन्न बाजारों में सीमान्त आगम (MR) समान होना चाहिए।
(2) सीमान्त आगम (MR) सीमान्त लागत (MC) के भी बराबर होना चाहिए।
इस प्रकार मूल्य विभेद के अन्तर्गत मूल्य ठीक उसी प्रकार निर्धारित होता है जैसा कि साधारण एकाधिकार के अन्तर्गत होता है अर्थात् एकाधिकारी प्रत्येक बाजार में वस्तु कीमत निर्धारित करेगा, जिस कीमत पर सीमान्त आगम सीमान्त लागत के बराबर हो। अन्य शब्दों में, विभिन्न कीमतों को निश्चित करने से पूर्व एकाधिकारी वस्तु के विभिन्न बाजारों की मूल्य सापेक्षता (माँग की लोच) पर दृष्टिपात करेगा। श्रीमती जोन रोबिन्सन के शब्दों में, “यदि एकाधिकारी के लिए अपनी वस्तु को विभिन्न बाजारों में बेचना सम्भव हो तो उसके लिए यही लाभप्रद होगा कि वह विभिन्न बाजारों में माँग की लोच की भिन्नता के अनुसार अलग-अलग कीमत निर्धारित करे।” की वह विभिन्न बाजारों की माँग की लोच पर दृष्टि डालकर एकाधिकारी को वहाँ अधिक कीमत निर्धारित करनी चाहिए, जहाँ माँग कम मूल्य सापेक्ष (बेलोचदार माँग) है। जिस बाजार में माँग अधिक मूल्य सापेक्ष हो वहाँ उसे कम कीमत निर्धारित करनी चाहिए ताकि दोनों बाजारों से अधिकतम आगम प्राप्त हो सके।
मूल्य निर्धारण की प्रक्रिया को रेखाचित्रों के माध्यम से स्पष्ट किया जा सकता हैमाना कि एकाधिकारी अपनी वस्तु को X और Y दो बाजारों में बेचता है, जैसा कि रेखाचित्र-43 में प्रदर्शित किया गया है। बाजार की औसत (माँग) रेखा ARx तथा सीमान्त आगम रेखा MRX है। इस बाजार में वस्तु की माँग बेलोचदार है। यह बात माँग रेखा ARx से भी स्पष्ट है। Y बाजार की माँग अधिक लोचदार है, अत: उसकी माँग रेखा ARy का ढाल अपेक्षाकृत कम है। इस बाजार का सीमान्त आय वक्र MRF है। माँग की लोच को ध्यान में रखकर एकाधिकारी X बाजार में ऊँची तथा Y बाजार में नीची कीमत निर्धारित करेगा। रेखाचित्र-43 (C) में सम्पूर्ण बाजार की स्थिति दिखाई गई है। इस बाजार की सीमान्त आगम रेखा और सीमान्त लागत रेखा एक-दूसरे को P बिन्दु पर काट रही हैं। अत: P बिन्दु ही सन्तुलन बिन्दु हुआ। इस प्रकार एकाधिकारी कुल उत्पादन OM को दोनों बाजारों में इस प्रकार बाँटेगा कि वह प्रत्येक में सीमान्त लागत के बराबर हो एवं दोनों बाजारों की सीमान्त आय आपस में भी बराबर हो।Monopoly and Monopolistic Competition meaning in Hindi
रेखाचित्र-43 रेखाचित्र-43 पर दृष्टि डालने से यह पूर्णतः स्पष्ट हो जाता है कि वह X बाजार में OMx तथा Y बाजार में OMy मात्रा बेचेगा जबकि X बाजार में PxMx तथा Y बाजार में PyMy कीमत लेगा।
अल्पकाल में अपूर्ण (एकाधिकृत) प्रतियोगिता के अन्तर्गत मूल्य निर्धारण [Price determination under Imperfect (Monopolistic) Competition under Short-period]
अल्पकाल के अन्तर्गत एक फर्म लाभ, हानि तथा सामान्य लाभ तीनों में से किसी भी दशा में हो सकती है। सामान्यत: लाभ, हानि तथा सामान्य लाभ की स्थिति इस बात पर निर्भर करेगी कि फर्म द्वारा उत्पादित वस्तु की माँग कैसी है? यदि वस्तु की माँग अत्यन्त प्रबल है, तो लाभ की सम्भावना अधिक होगी। यदि माँग सामान्य है तो सामान्य या शून्य लाभ की प्राप्ति होगी और यदि माँग बहुत कम है तो हानि की भी सम्भावना हो सकती है। Monopoly and Monopolistic Competition meaning in Hindi
अपूर्ण/एकाधिकृत प्रतियोगिता के अन्तर्गत मूल्य और उत्पाद के निर्णय [Determination of Price and Product under Imperfect (Monopolistic) Competition]
इन तीनों सम्भावित दशाओं का विवरण निम्न प्रकार है-
रेखाचित्र-44 में AR औसत आगम वक्र है। MC अल्पकालीन सीमान्त लागत वक्र तथा AC अल्पकालीन औसत लागत वक्र है।
उत्पादक निश्चय ही उस मात्रा तक उत्पादन बढ़ाएगा, जहाँ तक कि उसे अधिकतम लाभ प्राप्त होगा और अधिकतम लाभ निश्चय ही उस बिन्दु पर होगा जहाँ MR तथा MC एक-दूसरे के बराबर होंगे। रेखाचित्र में MR और MC एक-दूसरे को B बिन्दु पर काट रहे हैं (अर्थात् B बिन्दु पर MR, MC के बराबर है)। अत: OM मात्रा में वस्तु का उत्पादन होगा। MC रेखा MR को B बिन्दु पर स्पर्श करती है, फलत: EM अथवा OP मूल्य निर्धारित होगा। यही EM या OP सन्तुलन मूल्य है।
अब जहाँ तक लाभ/हानि का प्रश्न है, इसके लिए हमें औसत लागत रेखा पर दृष्टिपात होगा। चूँकि औसत लागत FM है, जो मूल्य (कीमत) EM से कम है अत: EF (प्रति इकाई) लाभ की मात्रा हुई। इस प्रकार कुल मिलाकर OM उत्पादन पर SPEF लाभ की मात्रा होगी।
रेखाचित्र-45 में फर्म बिन्दु E पर अपना साम्य स्थापित करती है जहाँ MR = MC है। फर्म की कुल औसत लागत वस्तु की कीमत के बराबर है, अत: फर्म को न लाभ होता है और न हानि। फर्म को केवल सामान्य लाभ ही प्राप्त होता है। Monopoly and Monopolistic Competition meaning in Hindi
रेखाचित्र-46 में फर्म बिन्दु E पर अपना साम्य स्थापित करती है। साम्य कीमत PQ है तथा उत्पादन की मात्रा OQ है। फर्म की कुल औसत लागत CQ है, जो कि कीमत PQ से अधिक है। अत: फर्म को कुल ABPC हानि होती है।
दीर्घकाल में अपूर्ण (एकाधिकृत) प्रतियोगिता के अन्तर्गत कीमत निर्धारण
[Price determination under Imperfect (Monopolistic) Competition in Long
दीर्घकाल के अन्तर्गत फर्मे केवल सामान्य लाभ ही अर्जित कर पाती हैं। अतिरिक्त लाभ या हानि की प्राप्ति दीर्घकाल में सम्भव नहीं है क्योंकि यदि लाभ की स्थिति होगी तो अतिरिक्त लाभ से आकर्षित होकर नई फमें उत्पादन के क्षेत्र में आ जाएँगी,
जिससे प्रतियोगिता में वृद्धि होगी और अन्ततः अतिरिक्त लाभ की स्थिति समाप्त होकर सामान्य लाभ की स्थिति रह जाएगी। इसके विपरीत, यदि हानि की स्थिति है तो यह दशा भी अधिक समय तक स्थायी नहीं रह सकती, क्योंकि उत्पादक दीर्घकाल तक हानि उत्पादन की मात्रा नहीं सह सकते। अत: कुछ उत्पादक अवश्य ही उत्पादन रेखाचित्र-47 कार्य को बन्द कर देंगे। उनके उत्पादन बन्द करने से पूर्ति में कमी होगी, जिससे अन्ततः मूल्यों में वृद्धि होकर सामान्य लाभ की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी।
रेखाचित्र-47 में AR औसत आगम वक्र तथा MR सीमान्त आगम रेखाएँ है। LAC दीर्घकालीन औसत लागत वक्र तथा LMC दीर्घकालीन सीमान्त लागत वक्र है। रेखाचित्र में MR तथा LMC एक-दूसरे को B बिन्दु पर काट रहे हैं जिसमें B बिन्दु से OX पर डाला गया लम्ब उत्पादन की मात्रा OM को निर्धारित करता है। LAC तथा AR परस्पर सन्तुलन बिन्दु A पर एक-दूसरे को स्पर्श कर रहे हैं जिससे स्पष्ट है कि OM सन्तुलन मात्रा तथा OP सन्तुलन मूल्य पर केवल सामान्य लाभ की ही प्राप्ति हो रही है। इस प्रकार स्पष्ट है कि दीर्घकाल में केवल सामान्य लाभ की ही प्राप्ति होगी।
Monopoly and Monopolistic Competition meaning in Hindi
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