Bcom 3rd Year Corporate Accounting notes
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अंशों का निर्गमन, हरण एवं पुनर्निर्गमन
(Issue, Forfeiture and Re-issue of Shares)
कम्पनी का आशय (Meaning of Company)
कम्पनी विधान द्वारा निर्मित एक कृत्रिम व्यक्ति है। वह एक पृथक् वैधानिक अस्तित्व रखती है। इसे अविच्छिन्न उत्तराधिकार प्राप्त है और इसकी एक सार्वमुद्रा होती है। कम्पनी के सदस्यों का दायित्व सीमित होता है। कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 2(20) के अनुसार, “कम्पनी उसे कहते हैं जिसका समामेलन इस अधिनियम के अधीन अथवा इसके पूर्व के किसी कम्पनी अधिनियम के अधीन हुआ है।”
Bcom 3rd Year Corporate Accounting notes
निजी/प्राइवेट कम्पनी (Private Company)-
कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 2(68) के अनुसार “प्राइवेट कम्पनी का आशय एक ऐसी कम्पनी से है जो अपने अन्तर्नियमों द्वारा (अ) अपने अंशों के (यदि कोई हों) हस्तान्तरण पर प्रतिबन्ध लगाती है। (ब) अपने सदस्यों की संख्या को 200 (इससे पूर्व यह संख्या 50 थी) तक सीमित रखती है और (स) कम्पनी के अंशों और ऋणपत्रों के लिए जनता को निमन्त्रण नहीं देती है।’ निजी कम्पनी की स्थापना केवल दो सदस्यों से हो सकती है। कम्पनी अधिनियम, 2013 के । अनुसार निजी कम्पनी ‘एक व्यक्ति कम्पनी’ (One Person Company) के रूप में भी … समामेलित करायी जा सकती है।
सार्वजनिक कम्पनी (Public Company)-
कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 2(71) के अनुसार, पब्लिक कम्पनी से आशय एक ऐसी कम्पनी से है, जो एक प्राइवेट कम्पनी नहीं है तथा जिसकी न्यूनतम चुकता पूँजी 5 लाख ₹ या ऐसी अधिक राशि है, जो निर्धारित की जाये। सार्वजनिक कम्पनी में कम-से-कम 7 सदस्यों का होना अनिवार्य है।
अंश पूंजी (Share Capital)
पूँजी का विवरण–प्रत्येक कम्पनी के पार्षद सीमानियम में उसकी पूँजी लिखी जाती है। उसमें यह भी दिखाया जाता है कि पूँजी कितने अंशों में बँटी हुई है और अंश का कितना मूल्य है।
कम्पनी की अंश पूँजी के प्रकार-कम्पनी की अंश पूँजी विभिन्न प्रकार की होती है । जिसे नीचे समझाया गया है
(1) अधिकृत, अंकित (नाममात्र) या पँजीकृत पूँजी (Authorized, Nominal or Registered Capital)—
जिस पूँजी से किसी कम्पनी की रजिस्ट्री की जाती है उसे ‘अधिकृत पूँजी’ कहते हैं। इसका उल्लेख पार्षद सीमानियम में किया जाता है। दूसरे शब्दों में, यह वह पूँजी होती है जो एक कम्पनी अपने पूरे जीवनकाल में अधिक से अधिक एकत्रित कर सकती
(2) निर्गमित पूँजी (Issued Capital)—
यह अधिकृत पूँजी का वह भाग है, जो जनता के लेने के लिए निर्गमित किया जाता है।
(3) प्रार्थित या अभिदत्त पूँजी (Subscribed Capital)—
यह निर्गमित पूँजी का वह भाग है जिसे लेने के लिए जनता से आवेदन-पत्र/प्रार्थना-पत्र प्राप्त हुए हों।
(4) मांगी हुई या याचित पूँजी (Called-up Capital)
कम्पनी द्वारा आवंटित और के सम्बन्ध में जितनी राशि मांग ली जाती है, उसे ‘माँगी हुई पूँजी’ कहा जाता है।
(5) म मांगी गई या अयाधित पंजी (Uncalled Cupital)
प्रार्थित पंजी के किन भाग के लिए कम्पनी द्वारा माँग नही की जाती है, उसे ‘न मांगी हुई पूँजी’ कहा जाता है।
(6) चुकता पूंजी (Paid-up Capital)
‘मांगी हुई जी’ का वह भाग जो अंशधारित द्वारा भुगतान कर दिया जाता है, ‘चुकता पूंजी’ कालाता है।
(7) संचित पूंजी (Reserve Capital)
कम्पनी अधिनियम, 1956 की धारा अनुसार एक सीमित दायित्व वाली कम्पनी एक विशेष प्रस्ताव द्वारा यह निश्चित कर सकती कि इसको ‘न माँगी हुई पूँजी’ (Uncalled Capital) का कुछ भाग तब तक अंशधारियों में नहीं माँगा जायेगा जब तक कि कम्पनी में विघटन का समय न आ जाये। इस भाग को संचित पूँजी कहा जाता है। इस पूँजी को आर्थिक चिट्टे में प्रदर्शित नहीं किया जाता है।
अंश (Shares)
एक अंश पूँजी वाली कम्पनी की पूँजी को एक निश्चित राशि के जिन हिस्सों में विभाजित किया जाता है, उन्हें ‘अंश’ कहते हैं; जैसे यदि एक कम्पनी की पूँजी 10,000 रुपये है और इसे दस-दस रुपये के 1,000 हिस्सों में बाँटा गया है, तो दस रुपये के इस प्रत्येक हिस्से को ‘अंश’ कहा जायेगा।।
अंशों के भेद (Kinds of Shares)
(1) पूर्वाधिकार अंश (Preference Shares)
कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 43 के अनुसार, “अंशों द्वारा सीमित किसी कम्पनी की दशा में पूर्वाधिकारी अंश पूँजी कम्पनी द्वारा निर्गमित अंश पूँजी का वह भाग है जिस पर (अ) लाभांश के भुगतान में या/तथा (ब) कम्पनी के समापन पर पूँजी के भुगतान में पूर्वाधिकार होता है।” लाभांश सम्बन्धी पूर्वाधिकार का आशय यह है कि जब किसी कम्पनी का लाभ अंशधारियों में बाँटा जाता है तो इस श्रेणी के अंशधारियों को सर्वप्रथम एक निश्चित दर से लाभांश पाने का अधिकार होता है।
जो के पुनर्भुगतान के सम्बन्ध में पूर्वाधिकार का आशय यह है कि जब कम्पनी का विघटन होता है उस समय कम्पनी द्वारा विभिन्न लेनदारों को तथा अन्य बाहरी व्यक्तियों को (जिन्हें कि कम्पनी का भुगतान करना था) भुगतान करने के बाद यदि कोई गशि शेष बचती है, तो अन्य अंशधारियों की तुलना में सर्वप्रथम इन अंशधारियों की पूँजी को लौट या जायेगा। इनके भुगतान के बाद बची हुई रकम में से ही अन्य प्रकार के अंशधारियों का भुगतान किया जायेगा। पूर्वाधिकार अंशाधारियों को कम्पनी के प्रबन्ध संचालन में भाग लेने का अधिकार नहीं होता है एवं केवल विशेष स्थिति में मत देने का अधिकार है।
पूर्वाधिकार अंशों का निर्गमन
(ISSUE OF PREFERENCE SHARES)
कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 55 के अनुसार,
(1) इस अधिनियम के लाग होने के पश्चात् अंशों द्वारा सीमित कोई कम्पनी ऐसे पूर्वाधिकार अंशों का निर्गमन नहीं कर सकती जो अशोध्य हो अर्थात् अब केवल शोध्य पूर्वाधिकार अंश ही निमित किए जा सकते हैं।
(2) अंशों द्वारा सीमित कम्पनी, यदि इसका पार्षद अन्तर्नियम अधिकृत करता है. ऐसे पूर्वाधिकार अंश निर्गत कर सकती है जो निर्गमन की तिथि से आधिकतम 20 वर्ष की अवधि के अन्तर्गत शोध्य हो।
आधारभूत अवसंरचना परियोजनाओं की दशा में कम्पनी 20 वर्ष से अधिक अवधि में शोध्य पूर्वाधिकार अंश निर्गमित कर सकती है, परन्तु यह अवधि 30 वर्ष से अधिक नहीं हो सकती। इसमें भी 20 वर्ष के पश्चात् अर्थात् 21 वें वर्ष से प्रतिवर्ष ऐसे अंशों के कम-से-कम 10% का पूर्वाधिकार अंशधारियों के विकल्प पर आनुपातिक आधार पर शोधन किया जायेगा। Taffetat simt as a
पूर्वाधिकार अंशों (types of Preterence Shares)
(i) असंचयी पूर्वाधिकार अंश-
इन अंशों पर अन्य अंशों की अपेक्षा सर्वप्रथम एक निर्धारित दर से लाभांश दिया जाता है, परन्तु यह लाभांश उसी वर्ष दिया जायेगा जिस वर्ष कम्पनी को पर्याप्त लाभ होगा। जिस वर्ष कम्पनी को लाभ नहीं होगा उस वर्ष उन्हें कोई लाभांश नहीं दिया जायेगा।
(ii) संचयी पूर्वाधिकार अंश-
इन्हें यह अधिकार है कि यदि कम्पनी को किसी वर्ष लाभ न हो तो वे उस वर्ष वाले बकाया लाभ को अगले वर्ष वाले लाभांश में से प्राप्त कर सकते हैं। जब तक कम्पनी के अन्तर्नियमों में अन्यथा न कहा गया हो पूर्वाधिकार अंशों को संचयी पूर्वाधिकार अंश हो माना जाता है।
(iii) परिवर्तनीय पूर्वाधिकार अंश-
जिन पूर्वाधिकार अंशधारियों को यह अधिकार दिया जाता है कि वे (यदि चाहें) अपने अंशों को एक निश्चित समय के अन्दर या एक निश्चित तारीख तक समता अंशों में बदल सकते हैं, उन्हें ‘परिवर्तनीय पूर्वाधिकार अंश’ कहा जाता है।
(iv) अपरिवर्तनीय पूर्वाधिकार अंश-
जिन पूर्वाधिकार अंशधारियों को यह अधिकार नहीं दिया जाता है कि वे अपने अंशों को समता अंशों में बदल लें, उन्हें ‘अपरिवर्तनीय पूर्वाधिकार अंश’ कहा जाता है।
(v) विमोचनशील या शोध्य पूर्वाधिकार अंश-
एक अंश सीमित कम्पनी (यदि अन्तनियमो से अधिकृत हो) ऐसे पूर्वाधिकार अंश निर्गमित कर सकती है जिसका धन कुछ शतों के अनुसार लौटाया जा सके।
(vi) अविमोचनशील या अशोध्य पूर्वाधिकार अंश-
कम्पनी के वे अंश जिनका विमोचन नहीं किया जाता है, ‘अविमोचनशील पूर्वाधिकार अंश’ कहे जाते हैं।
(vii) भागयुक्त पूर्वाधिकार अंश—
इन अंशों को निर्धारित दर से लाभांश मिलने के बाद कम्पनी को अतिरिक्त लाभ (यदि हो) में से हिस्सा बाँटने का अधिकार होता है।
(viii) अभागयुक्त पूर्वाधिकार अंश-
इन अंशधारियों को केवल निश्चित दर पर ही कम्पनी के विभाजन योग्य लाभ में से लाभांश मिलता है। कम्पनी के अतिरिक्त लाभ में इन्हें कोई भाग नहीं मिलता है।
समता अंश (Equity Shares)—
सम्ता अंश का आशय कम्पनी के उन अंशों से है जो पूर्वाधिकार अंश नहीं हैं। इन्हें लाभांश कम्पनी के विभाजन योग्य लाभ में से पूर्वाधिकार अंशधारियों को लाभांश बाँटने के बाद ही मिलता है और यदि पूर्वाधिकार अंशधारियों को लाभांश बाँटने के बाद कोई लाभ नहीं बचता है तो इन्हें कुछ भी लाभांश के रूप में नहीं मिलता। इन्हें किस दर पर लाभांश देना चाहिए, यह संचालकों द्वारा तय किया जाता है। कम्पनी के विघटन पर पूर्वाधिकार अंशधारियों की पूँजी वापस करने के बाद यदि राशि बचे तभी इन अंशधारियों की पूँजी लौटायी जायेगी। समता अंशधारी कम्पनी के प्रबन्ध में सक्रिय भाग लेते हैं, मताधिकार के द्वारा संचालक मण्डल चुनते हैं और वार्षिक सामान्य सभा के द्वारा कम्पनी पर नियन्त्रण रखते हैं। वस्तुतः समता अंशधारी कम्पनी के वास्तविक स्वामी होते हैं।
अंशों का आबंटन (Allotment of Shares)
जनता से अंशों को लेने के लिए आवेदन-पत्र प्राप्त हो जाने के बाद संचालक अंशों का आबंटन करते हैं। एक निजी कम्पनी के लिए अंशों के आबंटन से सम्बन्धित कोई प्रतिब नहीं है जबकि प्रत्येक सार्वजनिक कम्पनी को अंशों के आबंटन के पूर्व प्रविवरण में उल्लेखित न्यूनतम अभिदान (Minimum Subscription) राशि अवश्य प्राप्त कर लेनी चाहिए। कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 39 के अनुसार प्रत्येक अंश के प्रार्थना-पत्र/आवेदन पर देश राशि अंश के अंकित मूल्य के 5% से कम नहीं होनी चाहिए, परन्तु सेबी (SEBI) के 6.3.1995 के निर्देशों के अनुसार यह राशि अंश के निर्गमित मूल्य के 25% से कम नहीं हो सकती है।
सेबी मार्गदर्शन, 2000 (SEBIGuidelines, 2000) के अनुसार, “निर्गमित राशि के 90% से कम न्यूनतम अभिदान पूँजी नहीं हो सकती है। यदि निर्गमन के बन्द होने की तिथि से 60 दिनों के अन्दर निर्गमित राशि का 90% न्यूनतम अभिदान प्राप्त नहीं होता है तो कम्पनी को 78 दिनों के अन्दर अभिदान की पूरी राशि बिना ब्याज के वापस कर देनी होगी एवं निर्गमन के बन्द होने के 78 दिनों के बाद देरी की अवधि के लिए 15% वार्षिक ब्याज सहित राशि वापस करनी होगी।”
याचनाएँ (Calls)-
वर्तमान काल में कम्पनियाँ अपनी पूँजी की सारी रकम साधारणतया एक साथ प्राप्त नहीं करती हैं, वरन् कुछ रकम आवेदन-पत्र के साथ, कुछ आबंटन के समय और शेष रकम आवश्यकता पड़ने पर माँगती रहती हैं। आबंटन के बाद पूँजी की जो रकम अंशधारियों से माँगी जाती है, उसे याचना (Call) करना कहते हैं। यदि पार्षद अन्तर्नियमों में प्रतिबन्ध न हो तो कम्पनी के संचालक पूँजी की सम्पूर्ण राशि अंशधारियों से एक साथ वसूल कर सकते हैं। याचनाएँ करते समय कम्पनी के अन्तर्नियमों (Articles of Association) का पालन अवश्य ही करना चाहिये। अन्तर्नियमों के अभाव में कम्पनी अधिनियम में दी गई TableA के प्रावधान लागू हो जाएँगे जो निम्नलिखित हैं :
1. यदि अंशों का कुल निर्गमन 250 करोड़ ₹ से अधिक का है तो आवेदन पर अथवा आबंटन पर अथवा किसी भी एक याचना पर माँगी गई राशि कुल निर्गमन मूल्य के 25% से अधिक नहीं होगी। इसका अर्थ यह हुआ कि 250 ₹ करोड़ तक के निर्गमनों के लिए कम्पनी पूरी राशि आवेदन पर ही माँग सकती है।
2. अंशों पर सभी राशियाँ आबंटन की तिथि के 12 महीने के अन्दर ही माँग लेनी चाहिये। परन्तु यह दिशा-निर्देश 500 करोड़ अथवा इससे अधिक के लिए लागू नहीं होगा।
3. प्रत्येक याचना के मध्य कम से कम एक माह का अन्तर अवश्य होना चाहिए।
4. अंशधारी को याचना चुकाने के लिए कम से कम 14 दिन का नोटिस अवश्य दिया जाना चाहिए।
5. एक ही वर्ग के सभी अंशों पर समान रूप से याचना की जानी चाहिए।
6. अंशधारी का याचना चुकाने के लिए दिए गए नोटिस में याचना की राशि, भुगतान का विधि याचना राशि भजन का पता और याचना भेजने की अन्तिम तिथि स्पष्ट रूप से दी होना चाहिए।
अंशों का निर्गमन (Issue of Shares)
अंशों के निर्गमन और आबंटन के सम्बन्ध में निम्नांकित लेखे किये जाते हैं
(I) आवेदन-पत्र की राशि प्राप्त होने
Bank A/c
Share Application A/c …Dr.
To Share Application Alc
(ii) आवेदन-पत्र की राशि पूँजी पर खाते में हस्तान्तरित करनेपर
Share Application A/c ….Dr
To Share Capoital A/C
(iii) आबंटन राशि की याचना करने पर
Share Allotment A/c …Dr.
To Share Capital A/c
(iv) आबंटन की राशि प्राप्त होने पर
Bank A/c ….Dr
To Share Allotment A/c
(v) प्रथम याचना पर
Share First Call a/c ….Dr
To Share Capital a/c
(vi) प्रथम याचना की राशि प्राप्त होने
Bank a/c ….Dr
To Share first Call a/c
(vii) द्वितीय एवं अन्तिम याचना करने
Share IInd & Final Call a/c ….dr
To share Capital a/c
(viii) द्वितीय एवं अन्तिम याचना की राशि प्राप्त होने पर
Bank a/c …..dr
Share Ilnd & Final Call A/C
अंशों का निर्गमन-अंशों का निर्गमन निम्नांकित प्रकर से हो सकता है
(1) सम-मूल्य पर निर्गमन (Issue at Par) एक अंश का इसके अंकित मूल्य पर निर्गमन; जैसे—-100 रुपये के अंश का 10 रुपये पर निर्गमना
(2) अंशों का प्रीमियम पर निर्गमन (Issue of Shares at a Premium)-जब अंश इसके अंकित मूल्य से अधिक पर निर्गमित किये जाते हैं तो इस आधिक्य की राशि को प्रीमियम कहा जाता है। जैसे, 10 रुपये के अंश को 12 रुपये पर निर्गमित करना है तो 2 रुपये प्रीमियम है। कम्पनी अधिनियम, 2013 की अनुसूची III के अनुसार प्रीमियम को प्रतिभूति प्रीमियम संचय (Securitics Premium Reserve) खाते में क्रेडिट किया जायेगा। यह नाममात्र का खाता है।
प्रीमियम की राशि आयगत प्राप्ति (Revenue receipt) नहीं है। इसे लाभांश की तरह नहीं बाँटा जा सकता है। इसे लाभ-हानि खाते में क्रेडिट नहीं किया जाता है। यह राशि कम्पनी अधिनियम, 1956 की धारा 78 एवं कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 52 के अनुसार निम्नलिखित कार्यों के लिए ही प्रयोग की जा सकती है-
(i) कम्पनी के अनिर्गमित अंशों को कम्पनी के सदस्यों में चुकता बोनस अंशों के रूप में निर्गमित करने के लिए।
(ii) कम्पनी के प्रारम्भिक व्ययों को अपलिखित करने के लिए।
(iii) कम्पनी के अंशों या ऋणपत्रों के निर्गमन पर किये हुए व्ययों, कमीशन या छूट को अपलिखित करने के लिए।
(iv) कम्पनी के विमोचनशील पूर्वाधिकार अंशों या ऋणपत्रों के शोधन पर दिये जाने वाले प्रीमियम का प्रबन्ध करने के लिए।
(v) अपने स्वयं के अंशों या प्रतिभूतियों को क्रय करने के लिए।
अंशों का प्रीमियम पर निर्गमन नकदी के लिए या अन्य प्रतिफल के रूप में भी हो सकता सेबी के दिशा-निर्देश के अन्तर्गत अनुमत कम्पनियाँ ही अपने अंश प्रीमियम पर निर्गमित कर सकती हैं। अंश प्रीमियम की राशि का निर्धारण अंश निर्गमित करने वाली कम्पनी के द्वारा ही किया जाता है, इस सम्बन्ध में कोई वैधानिक प्रतिबन्ध नहीं है। ‘प्रतिभूति प्रीमियम खाते’ की राशि कम्पनी के चिठे में दायित्व पक्ष की ओर’ संचय एवं आधिक्य’ (Reserve and Surplus) शीर्षक के अन्तर्गत दिखलाते हैं।
अंश प्रीमियम की राशि का लेखा-अंश प्रीमियम की राशि के लेखा के लिए आवंटन खाता या याचना खाता (यदि प्रीमियम याचना के साथ लिया जाता है।) डेबिट किया जाता है। और प्रतिभूति प्रीमियम संचय खाता क्रेडिट किया जायेगा।
अंशों का कटौती पर निर्गमन (Issue of Shares at a Discount)
यदि अंश को उसके अंकित मूल्य से कम पर निर्गमित किया जाता है तो उसे अंशों का कटौती पर निर्गमन कहते हैं, जैसे 10 रू० के अंश का 8 रु० पर निर्गमन। यहाँ 2 रु० कटौती है।
धारा 79 में अंशों को कटौती पर निर्गमन के सम्बन्ध में कुछ शर्ते दी गयी हैं। अंशों का कटौती पर निर्गमन केवल इन्हीं दशाओं में हो सकता है। ये दशाएँ निम्नलिखित हैं-
(1) कम्पनी को साधारण सभा में अंशों को कटौती पर निर्गमन करने का प्रस्ताव पास करना चाहिए और इस पर कम्पनी लॉ बोर्ड की स्वीकृति होनी चाहिए।
(2) प्रस्ताव में कटौती की अधिकतम दर का उल्लेख होना चाहिए परन्तु यह दर 10% या उस प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए जिसके लिए कम्पनी लॉ बोर्ड कुछ विशेष दशाओं में अनुमति दे दे।
(3) कम्पनी को व्यापार प्रारम्भ करने का अधिकार प्राप्त करने की तारीख से कम-से-कम एक साल बाद ही अंश कटौती पर निर्गमित किये जा सकते हैं।
(4) कटौती में दिये जाने वाले अंशों का निर्गमन कम्पनी लॉ बोर्ड की अनुमति प्राप्त करने के दो माह के अन्दर कर देना चाहिए। यह दो माह का समय कम्पनी लॉ बोर्ड द्वारा बढ़ाया भी जा सकता है।
(5) एक कम्पनी किसी भी वर्ग के अंशों का कटौती पर निर्गमन नहीं कर सकती है, जिन अंशों का निर्गमन पहले हो चुका है, उसी वर्ग के अंशों को बाद में कटौती पर निर्गमित किया जाता है।
कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 53 के अनुसार स्वैट समता अंशों (Sweat equity shares) के अतिरिक्त कम्पनी कटौती पर अंशों का निर्गमन नहीं करेगी। स्पष्ट है कि अब सामान्यतः कटौती पर अंशों का निर्गमन नहीं किया जा सकता।
अंशों की कटौती के सम्बन्ध में लेखा-अंश कटौती खाता डेबिट और अंश पूजा खात क्रेडिट किया जाता है। यह लेखा अधिकतर आबंटन (Allotment) के साथ होता है।
अंश पर कटौती पूँजी हानि है, जब तक कि भिन्न सूचना न दी हो। इसकी राशि का धीर-धीरे अपलिखित किया जाता है।
अवशिष्ट याचना (Calls in Arrears)-
जब कुछ अंशधारी याचना किया हुआ प अपनी को नहीं देते हैं तो जो रकम उनके द्वारा भुगतान होने से रह जाती है उसे अवाश
निगमीय लेखांकन याचना कहा जाता है। इस खाते की बाकी चिट्ठे में दायित्व की ओर पूँजी में से घटाकर दिखायी जाती है।
अवशिष्ट याचना की राशि पर ब्याज (Interest on the Amount of Calls in Arrears)
यदि पार्षद अन्तर्नियमों में अवशिष्ट याचना की राशि पर व्याज के लेखे के सम्बन्ध में कोई वर्णन नहीं है तो तालिका ‘अ’ (‘Table A) का प्रयोग किया जा सकता है। Table A : 16(1) के अनुसार अवशिष्ट याचना की राशि पर पाँच प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से ब्याज उस अवधि के लिए लगाया जा सकता है जिसमें भुगतान की त्रुटि रही हो। कम्पनी अधिनियम 2013 की Tablet के अनुसार ब्याज की दर 10% वार्षिक या संचालक मण्डल द्वारा निर्धारित इससे कम दर होगी। यह ब्याज याचना की देयतिथि से वास्तविक भुगतान तिथि तक लिया जाता है।
अवशिष्ट याचना की राशि पर ब्याज आयगत लाभ है अतः इसे लाभ-हानि खाते में हस्तान्तरित किया जाता है।
अग्रिम याचना की भुगतान राशि पर ब्याज (Interest on Calls paid in advance)-
कम्पनी अंशधारियों से याचना की राशि अग्रिम (Advance) के रूप में प्राप्त कर सकती है, यदि पार्षद अन्तर्नियम इसका उल्लंघन न करते हों। याचना की अग्रिम प्राप्त राशि पर प्राप्ति की तिथि से याचना के माँगे जाने की तिथि तक का अधिकतम 6% प्रतिवर्ष की दर से ब्याज दिया जा सकता है। कम्पनी अधिनियम, 2013 के अनुसार अग्रिम याचना की भुगतान राशि पर ब्याज की दर 12% से अधिक नहीं हो सकती है।
अंशों का हरण या जब्तीकरण (Forfeiture of shares)-
अंशों के हरण का आशय अंशधारियों के द्वारा अंशों के आबंटन एवं याचनाओं पर माँगी गई राशियों को समय पर भुगतान नहीं किये जाने पर आवश्यक औपचारिकताओं को पूरा करने के बाद सदस्यों के रजिस्टर से सम्बन्धित अंशधारियों का नाम हटा/काट देने से है अर्थात् अंशों के आबंटन को रद्द कर देने से है। हरण किये गये अंशों के सम्बन्ध में सम्बन्धित अंशधारियों के द्वारा भुगतान की . जा चुकी राशि कम्पनी द्वारा जब्त कर ली जाती है।
अंशों के हरण के सम्बन्ध में कम्पनी अधिनियम, 2013 की Table F के 28 से 34 तक के प्रावधानों के अनुसार निम्नलिखित व्यवस्थाएं हैं –
1. यदि कोई सदस्य अंशों पर किसी निर्धारित तिथि पर किसी याचना या याचना की किस्त का भुगतान करने में असफल रहता है तो उसके पश्चात् संचालक मण्डल उसे एक नोटिस दे सकता है, जिसमें न चुकायों गई याचना के भुगतान करने के लिए कहा जाता है तथा इस पर अर्जित ब्याज के भुगतान को भी जोड़ा जाता है।
2. नोटिस में एक तिथि दी जाती है (जो नोटिस तामील होने के 14 दिन की समाप्ति से पहले नहीं हो सकती) और यह कहा जाता है कि इस तिथि तक भुगतान न होने पर सम्बन्धित अंशों का हरण किया जा सकता है।
3. इस नोटिस का अनुपालन न होने पर संचालक मण्डल के प्रस्ताव द्वारा अंशों का हरण किया जाएगा।
4. हरण किए गए अंशों को संचालक मण्डल द्वारा समझी जाने वाली उपयुक्त शर्तों के आधार पर बेचा या निपटारा किया जा सकता है। विक्रय से पूर्व संचालक मण्डल उन शर्तों पर हरण को निरस्त कर सकता है, जिन्हें वह उपयुक्त समझे।
5. उस व्यक्ति, जिसके अंश हरण किए जाते हैं, की हरण किए गए अंशों के पास कम्पनी की सदस्यता समाप्त हो जाती है, लेकिन हरण किए गए अंशों पर बकाया सम्बन्ध में उसका दायित्व उस समय तक बना रहता है, जब तक कम्पनी को वह राशि हो जाए। –
अंशों के हरण पर लेखांकन व्यवहार
(Accounting Treatment on Forfeiture of Shares) –
अशों को जब्ती के कारण अंश पूँजी कम हो जाती है, इसलिए अंश पंजी खाता रकम से डेबिट किया जाता है जितनी कि जब्त किये जाने वाले अंशों की रकम पंजीयन क्रेडिट की जा चुकी है और उन याचनाओं के खाते को क्रेडिट किया जाता है जिन पर प्राप्त नहीं हो पायी है। साथ ही जो राशि प्राप्त हो चुकी है, उसे ‘जब्त अंश खाते’ (Forfly Shares Ac) या ‘अंश अपहारित खाते’ (Shares Forfeited Account) में क्रेडिट का दिया जाता है।
1. सम मूल्य पर निर्गमित अंशों के हरण करने का लेखा –
Share Capital A/c (जब्त अंश x माँगी गयी राशि प्रति अंश) Dr.
To Share Allotment A/c (आबंटन पर बकाया राशि)
To Share First Call A/c (प्रथम याचना पर बकाया राशि)
To Share Final Call A/c (अन्तिम याचना पर बकाया राशि)
To Forfeited Shares A/c हरण किये गये अंशों पर अब तक प्राप्त राशि)
नोट-(i) यदि अंश की पूरी राशि मांगी जा चुकी हो तो अंश पूँजी खाता (Shares Capital A/c) की पूरी राशि (Shares Forfeited x Rate per Share) से डेबिट करेंगे। अगर पूरी राशि न माँगी गयी हो तो जब्त अंशों की संख्या x प्रति अंश याचित रकम (Shares Forfeited x Amounts called per share) की राशि से डेबिट करेंगे।
(ii) Forfeited Shares A/c को चिट्ठे के दायित्व पक्ष में दिखायेंगे।
2. प्रीमियम पर निर्गमित अंशों को हरण करने का लेखा
(A) यदि हरण किये जाने वाले अंशों पर प्रीमियम की राशि प्राप्त हो गयी हो तो हरण करते समय प्रीमियम की कोई प्रविष्टि नहीं होगी। उपर्युक्त प्रविष्टि (1) ही की जायेगी। अन्तर्नियमों में जब्ती के बारे में कोई नियम न दिये हों तो तालिका ‘अ’ के नियम लागू होते हैं।
(B) यदि हरण ( जब्त) किये जाने वाले अंशों पर प्रीमियम की राशि बकाया या अदत्त हो—ऐसी स्थिति में अवशिष्ट या बकाया प्रीमियम खाता (Unpaid Premium A/c) डेबिट तथा आवंटन खाता क्रेडिट किया जायेगा और चिठे में प्रीमियम की राशि घटाकर दिखायी जाती है।
जर्नल प्रविष्टि –
Share Capital A/C Dr.
Security Premium Reserve A/c (माँगी गयी प्रीमियम की राशि) Dr.
To Forfeited Shares Alc
To Share Allotment A/c )
To Share First Call A/c बकाया राशि
To Share Final Call A/C
(C) कटौती पर निर्गमित अंशों की जब्ती के लेखे-यदि जब्त किये गये अंशों को पहले कटौती पर जारी किया गया था तो जन्ती की प्रविष्टि करते समय Discount on Issue of Shares A/c को क्रेडिट किया जायेगा। Share Capital A/C To Forfeited Shares A/C To Discount on issue of Shares N/c To Share first Call A/c |बकाया राशि To Share Final Call Me हरण किये हुए अंशों का
पुनर्निर्गमन (Reissue of Forfeited Shares)
हरण किये हुए अंशों को संचालक मण्डल द्वारा पुनः बिक्री की जा सकती है या उन्हें निरस्त किया जा सकता है।
हरण किये गये अंशों को उस रकम से कम पर पुन: नहीं बेचा जा सकता है जो उन पर बकाया थी अर्थात् कम्पनी द्वारा जितनी राशि का हरण किया गया है अधिक-से-अधिक उतनी ही राशि पुनर्निर्गमन पर कटौती के रूप में दी जा सकती है।
हरण किये हुए अंशों के पुनर्निर्गमन पर निम्नलिखित लेखा प्रविष्टि की जाती है-
हरण खाते की बाकी का पूँजी संचय में हस्तान्तरण (Transfer of Forfeiture Balance to Capital Reserve)-
हरण वाले अंशों के पुनर्निर्गमन के बाद जो बाकी हरण खाते में बचती है उसे पूँजी संचय खाते में हस्तान्तरित किया जाता है, पर हरण किये हुए जिन अंशों का पुनर्निर्गमन नहीं किया जाता है उनसे सम्बन्धित हरण की बाकी को पूँजी संचय खाते में हस्तान्तरित नहीं किया जाता है।
अंशों का समर्पण (Surrender of Shares)—
जब कोई अंशधारी स्वेच्छा से कम्पनी को अपने अंश-समर्पित करता है अर्थात् अपने सभी अधिकारों को त्यागकर अंशों को कम्पनी के सुपुर्द कर देता है, तो इसे ‘अंशों का समर्पण’ कहा जाता है।
(1) समता अंशों की वापसी खरीद (Buy-Back of Equity Shares)
अंशों की वापसी खरीद का आशय है कि कम्पनी द्वारा अपने ही अंशों का अधिग्रहण करना। कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 68 के अनुसार भारत में कम्पनियों को अपने ही अंशों को खरीदने की स्वीकृति प्रदान की गई है, बशर्ते निम्नलिखित शर्ते पूरी हो रही हों स्वाति रिफ्रेशा आपसी खरीद का माह के अन्दर है तो वह कम्पनी पत्र जमा करेगी
(i) वापसी खरीद अन्तर्नियमों द्वारा अधिकृत हो।
(ii) कम्पनी की साधारण सभा में विशेष प्रस्ताव पारित करके वापसी आधकार प्राप्त कर लिया गया हो और इस प्रकार के प्रस्ताव की तिथि से बारह मात प्रत्येक वापसी खरीद को पूरा कर लिया गया हो।
(iii) यदि कम्पनी ने वापसी खरीद का विशेष प्रस्ताव पारित कर दिया है. तो रजिस्ट्रार तथा सेबी (SEBI) के पास शोधन क्षमता का घोषणा-पत्र जमा गैर-सूचीबद्ध कम्पनी यह घोषणा-पत्र सेबी के पास जमा नहीं करेगी।
(iv) वापसी खरीद कम्पनी की चुकता अंश पूँजी एवं मुक्त संचय के 250% नहीं हो। फिर भी किसी वित्तीय वर्ष में सम अंशों की वापसी खरीद उस वित्तीय वर्ष के पूँजी के 25% से अधिक नहीं होनी चाहिए।
(v) वापसी खरीद के बाद ऋण इक्विटी अनुपात 2 : 1 से अधिक नहीं होना चाहि लेकिन केन्द्रीय सरकार किसी श्रेणी या श्रेणियों की कम्पनियों के लिए ऋण समता अनपान गुने से अधिक निर्दिष्ट कर सकती है।
(vi) केवल पूर्ण चुकता अंश ही वापसी खरीद के लिए उपलब्ध हो सकते हैं।
(vii) इस सम्बन्ध में सेबी (SEBI) द्वारा निर्गमित निर्देशों का पालन किया गया है।
(viii) वापिस खरीदे गए अंशों को खरीद वापसी की तिथि के सात दिन के भीतर भौतिक रूप से नष्ट या समाप्त कर दिया जाएगा।
(ix) अपने ही अंशों की वापसी खरीद के बाद कम्पनी उसी प्रकार के अंशों का आगामी दो वर्ष तक निर्गमन नहीं करेगी। परन्तु बोनस अंश, व स्वेद सम अंश का निर्गमन, अधिपत्रों, ऋणपत्रों आदि का अंशों में परिवर्तन प्रतिबन्धित नहीं है।
(x) एक कम्पनी अपने अंशों की वापसी खरीद मुक्त संचय, प्रतिभूति प्रीमियम खाता, किन्हीं अंशों या विशिष्ट प्रतिभूतियों के अर्थागम (प्राप्त राशि) (Proceeds) में से कर सकती |
(xi) अपने ही अंशों की वापसी खरीद निम्न रूप में निषेध है (अ) किसी सहायक कम्पनी के माध्यम से, (ब) किसी विनियोग कम्पनी के माध्यम से, (स) किसी ऐसी कम्पनी द्वारा जो भुगतान के लिए होती है।
नोट-जब कम्पनी मुक्त संचय में से अपने अंशों को वापस खरीदती है, तो ऐसे अशा के अंकित मूल्य के बराबर की राशि पूँजी शोधन संचय खाते में स्थानान्तरित की जाएगी। इस प्रकार का स्थानान्तरण Capital Buy-back Reserve में भी किया जा सकता है।
प्रवर्तकों को अंशों का निर्गमन (Issue of Shares to Promoters)
कम्पनी के समामेलन के दौरान प्रवर्तकों द्वारा प्रदत्त सेवाओं के बदले में कभी-क अंश निर्गमित किए जाते हैं। इन अंशों के निर्गमन मूल्य से ‘ख्याति’ खाता डेबिट किया जाता अर्थात्
स्वैट समता अंशों का निर्गमन (Issue of Sweat Equity Shares)
स्वेट समता अंशों का आशय उन समता अंशों से होता है, जो कम्पनी अपने कर्मचारियों को या संचालकों को बट्टे या नकदी के अतिरिक्त प्रतिफल । जैसे, तकनीकी ज्ञान (Know-how) के बदले में या बौद्विक सम्पत्ति का अधिकार उपलब्ध कराने के बदले में) हेतु निर्गमित करती है। कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 54 के अनुसार निम्नलिखित शर्तों के पूरा होने पर ही स्वैट समता अंश निर्गमित किये जा सकते हैं-
(i) कम्पनी द्वारा विशेष प्रस्ताव पारित कर स्वैट समता अंश निर्गमित करने का अधिकार प्राप्त कर लिया गया हो।
(ii) प्रस्ताव में अंशों की संख्या, वर्तमान बाजार मूल्य, प्रतिफल यदि कोई है और जिन संचालकों या कर्मचारियों को इन अंशों का निर्गमन किया जाना है उनकी श्रेणी या श्रेणियों का स्पष्ट उल्लेख हो।
(iii) कम्पनी को व्यापार प्रारम्भ करने का अधिकार प्राप्त किए हुए एक वर्ष पूरा हो . चुका हो।
(iv) स्वैट समता अंशों को SEBI के नियमों के अनुसार निर्गमित किया जा रहा हो।
स्कन्ध (Stock) : स्कन्ध अनेक पूर्ण प्रदत्त अंशों का समेकित (Consolidated) रूप है। अत: स्कन्ध का आशय पूर्ण प्रदत्त अंशों की एकत्रित रकम से है जिसे बाद में किसी भी रकम के छोटे-छोटे टुकड़ों में बाँटा जा सकता है तथा प्रत्येक टुकड़े को स्वतन्त्रतापूर्वक हस्तान्तरित भी किया जा सकता है।
स्कन्ध की विशेषताएँ (Characteristics of Stock)-
(1) कोई कम्पनी प्रारम्भ में स्कन्ध का निर्गमन नहीं कर सकती है।
(2) केवल पूर्णदत्त अंशों को ही स्कन्ध में बदला जा सकता है। आंशिक दत्त अंशों का स्कन्ध में परिवर्तन व्यर्थ (Void) माना जाता है।
(3) ऐसे परिवर्तन के लिए अन्तर्नियमों द्वारा अधिकार प्राप्त हो।
(4) इस पर क्रम संख्या डालने की आवश्यकता नहीं होती है।
(5) इसे समान भागों में विभाजित करने की आवश्यकता नहीं होती बल्कि इसे किसी भी राशि के टुकड़ों में विभक्त किया जा सकता है।
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