Bcom 3rd Year Meaning of Marketing Notes in hindi
विपणन का अर्थ
वर्तमान वाणिज्यिक तथा औद्योगिक युग में विपणन कोई नया शब्द नहीं है। विभिन्न व्यक्ति विपणन शब्द को विभिन्न अर्थों में प्रयोग करते हैं। कुछ व्यक्तियों के लिये विपणन का अर्थ केवल वस्तुओं के क्रय एवं विक्रय से है जबकि कुछ अन्य व्यक्ति इसमें और भी अनेक क्रियाओं को सम्मिलित करते हैं, जैसे—विक्रय उपरान्त सेवा, वितरण तथा विज्ञापन आदि। वास्तव में विपणन क्रय, विक्रय, उत्पाद नियोजन, विज्ञापन आदि तक सीमितं न रहकर एक विस्तृत अर्थीय शब्द है जिसमें वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन से पूर्व की जाने वाली क्रियाओं से लेकर इनके वितरण एवं आवश्यक विक्रयोपरान्त सेवाओं तक को शामिल किया जाता है। इस प्रकार विपणन का कोई सर्वमान्य अर्थ या परिभाषा नहीं है। अध्ययन की सुविधा के लिए विपणन के अर्थ की व्याख्या करने वाली विचारधाराओं को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है-
I. पुरानी या संकीर्ण विचारधारा,
II. नयी या आधुनिक विचारधारा।
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I. पुरानी, संकीर्ण या उत्पाद अभिमुखी विचारधारा
Old, Narrow or Product-oriented Concept
यह विपणन की अत्यन्त प्राचीन अथवा संकीर्ण विचारधारा है, जिसमें विभिन्न वस्तुओं का उत्पादन करने के लिये क्रय एवं इन वस्तुओं को ग्राहकों तक पहुँचाने के लिये विक्रय आदि क्रियाओं को विपणन में सम्मिलित किया जाता है। इसके अनुसार किसी भी व्यवसाय का मूलभूत उद्देश्य अधिकतम लाभ कमाना है। विपणन का मूलभूत कार्य वस्तुओं का उत्पादक अथवा निर्माता से उपभोक्ताओं तक पहुँचाना है। बीसवीं शताब्दी के पाँचवे दशक के आसपास तक व्यावसायियों/ प्रबन्धकों/अर्थशास्त्रियों ने विपणन की इसी प्रकार की परिभाषाएँ दी हैं। विपणन की सूक्ष्म अथवा संकीर्ण अर्थ वाली प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-
(1) प्रो० पाइले के अनुसार, “विपणन में क्रय और विक्रय दोनों ही क्रियाएँ सम्मिलित होती हैं।”
(2) क्लार्क एवं क्लार्क के अनुसार, “विपणन में वे सभी प्रयत्न सम्मिलित हैं जो वस्तुओ एवं सेवाओं के स्वामित्व हस्तान्तरण एवं उनके (वस्तुओं एवं सेवाओं के) भौतिक वितरण में सहायता प्रदान करते हैं।’
(3) कन्वर्स, ह्यूजी एवं मिचेल के अनुसार, “विपणन में वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन से उपभोग तक के प्रवाह की क्रियाएँ सम्मिलित होती हैं।”
(4) अमेरिकन मार्केटिंग एसोसियेशन के अनुसार, “विपणन से तात्पर्य उन व्यावसायिक क्रियाओं के निष्पादन से है जो उत्पादक ये उपभोक्ता या प्रयोगकर्ता तक वस्तुओं और सेवाओं के प्रवाह को नियन्त्रित करत है,
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विपणन की परम्परागत विचारधारा की प्रमुख विशेषताओं को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-
1. परम्परागत विचारधारा के अनुसार संस्था का समस्त ध्यान उत्पादन पर होता है।
2. परम्परागत विचारधारा का लक्ष्य अधिकतम विक्रय द्वारा अधिकतम लाम कमाना है।
3. इस विचारधारा में उपभोक्ता की संतुष्टि एवं कल्याण पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता है।
4. इसमें वस्तु के उत्पादन के पूर्व एवं वस्तु के विक्रय के बाद की क्रियाओं को शामिल नहीं किया जाता है।
5. यह विचारधारा इस दर्शन पर आधारित है कि उत्पादक या विक्रेता यह भली-भाँति जानता है कि उपभोक्ता के लिये क्या अच्छा है और उसे किस वस्तु की आवश्यकता है।
6. परम्परागत विचारधारा के अन्तर्गत कम्पनी के विभिन्न विभागों में पारस्परिक सम्बन्ध नहीं होते हैं। Bcom 3rd Year Meaning of Marketing Notes in hindi
II. नयी, विस्तृत, आधुनिक या ग्राहक-अभिमुखी विचारधारा
(New, Modern or Customer-oriented Concept)
आधुनिक विचारधारा वस्तु के स्थान पर ग्राहकों को अधिक महत्व देती है, इसलिये इसे ग्राहक-अभिमुखी विचारधारा कहते हैं। इस विचारधारा के अनुसार ऐसी वस्तुओं का ही निर्माण किया जाता है जो कि अधिकांश ग्राहकों की विभिन्न आवश्यकताओं, अभिरुचियों आदि के अनुरूप हों। इसके पश्चात वस्तुओं का विक्रय भी ग्राहक की सुविधा को ध्यान में रखकर किया जाता है और यदि आवश्यकता हो तो विक्रयोपरान्त सेवा (After Sales Service) की व्यवस्था भी की जाती है।
इस विचारधारा के अनुसार विपणन को निम्न प्रकार परिभाषित किया गया है-
(1) पॉल मजूर के अनुसार-“विपणन का अर्थ समाज को जीवन स्तरMप्रदान करना है।”
(2) विलियम जे० स्टेण्टन के अनुसार, “विपणन का अर्थ उन पारस्परिक व्यावसायिक क्रियाओं की सम्पूर्ण प्रणाली से है जो कि वर्तन व सम्भावित ग्राहकों को उनकी आवश्यकता संतुष्टि की वस्तुओं और सेवाओं के बारे में योजना बनाने, मूल्य निर्धारित करने, संवर्धन करने और वितरण के लिये की जाती हैं।”
(3) प्रो० एच० एल० हेन्सन के अनुसार, “विपणन उपभोक्ताओं की इच्छा को ज्ञात करने, उन्हें विशिष्ट वस्तुओं एवं उत्पादों में परिवर्तित करने और तदुपरान्त उन वस्तुओं एवं सेवाओं के जरिए अधिकाधिक उपभोक्ताओं के उपयोग को सम्भव बनाने की प्रक्रिया है।”
विपणन की आधुनिक विचारधारा की विशेषताओं को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-
1. इस विचारधारा में उपभोक्ता की सन्तुष्टि पर विशेष ध्यान दिया जाता है अर्थात् उपभोक्ता को सर्वेसर्वा माना जाता है।
2. इस विचारधारा के अन्तर्गत प्रबन्धकों को यह आभास होता है कि ग्राहक की आवश्यकताएँ महत्वपूर्ण है न कि उत्पादन।
3. आधुनिक विचारधारा के अनुसार समाज के रहन-सहन के स्तर को ऊँचा उठाने का दायित्व विपणन का है।
4. इस विचारधारा के अन्तर्गत विपणन के द्वारा नये-नये उत्पादन आरम्भ करने का अवसर प्राप्त होता है।
5. इस विचारधारा के अनुसार उत्पत्ति के सभी साधनों का प्रभावी उपयोग सम्भव होता है।
विकासोन्मुख अर्थव्यवस्था में विपणन का महत्व
(Importance of Marketing in the Emerging Economy of India)
(1) प्राकृतिक संसाधनों का अधिकतम उपयोग-आधुनिक सुदृढ़ विपणन व्यवस्था प्राकृतिक संसाधनों का देश के हित में विदोहन तथा अधिकतम उपयोग करने में सक्रिय सहयोग प्रदान करती है जिसकी कि विकासशील देशों में अत्यन्त आवश्यकता होती है।
(2) अर्थव्यवस्था को मन्दी से बचाना-आधुनिक विपणन अवधारणा विकासशील देश की अर्थव्यवस्था को मन्दी से बचाने में सक्रिय योगदान प्रदान करती है। यदि विपणन न हो तो विक्रय कम मात्रा में होगा जिसके कारण सारा देश मन्दी के चंगुल में फंस जायेगा।
(3) रहन-सहन का स्तर ऊँचा उठाना-आधुनिक विपणन अवधारणा जन-साधारण को उपभोग के लिए बड़े पैमाने पर नई-नई वस्तुओं की जानकारी देकर एवं उपलब्ध कराकर रहन-सहन के स्तर को ऊँचा उठाने में सक्रिय सहयोग प्रदान करती है।
(4) राष्ट्रीय आय में वृद्धि-जब आधुनिक विपणन सुविधाओं के कारण विभिन्न प्रकार के ग्राहकों की आवश्यकतानुसार वस्तुओं का उत्पादन एवं निर्माण किया जाता है तो देश की कुल वस्तुओं और सेवाओं में वृद्धि होती है जिसके परिणामस्वरूप देश की कुल राष्ट्रीय आय तथा प्रति व्यक्ति आय दोनों में वृद्धि होती है।
(5) रोजगार की सुविधा-आधुनिक विपणन अवधारणा रोजगार के अवसरों में वृद्धि करके बेरोजगारी एवं अर्द्ध-बेरोजगारी के उन्मूलन में सक्रिय सहयोग प्रदान करती है। आज विपणन क्षेत्र भारत में रोजगार प्रदान करने का प्रमुख स्रोत माना जाता है।
(6) औद्योगीकरण को प्रोत्साहन-आज जिन देशों में आधुनिक विपणन व्यवस्था है, वे देश औद्योगिक क्षेत्र में शिखर पर हैं। इस प्रकार विपणन व्यवस्था अच्छी होने से औद्योगीकरण को प्रोत्साहन मिलता है जिसकी भारत जैसे विकासशील देशों को अत्यन्त आवश्यकता है।
(7) नियति में वृद्धि-आधुनिक सुदृढ़ विपणन, व्यवस्था के कारण जो देश औद्योगीकरण के शिखर पर हैं, वे निर्यात अधिक करते हैं और आयात क भारत जैसे विकासशील देश को आज निर्यात में वृद्धि की सबसे अधिक आवश्यकता है और इसी कारण विकासशील देशों (भारत सहित) में आधुनिक विपणन का महत्व है।
(8) बाजार के विकास में सहायक-विपणन का स्थानीय, राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय तीन स्तरों पर महत्व है। आधुनिक सुदृढ़ विपणन व्यवस्था स्थानीय बाजार को राष्ट्रीय बाजार तथा राष्ट्रीय बाजार को अन्तर्राष्ट्रीय बाजार का रूप प्रदान करती है। Bcom 3rd Year Meaning of Marketing Notes in hindi
(9) वस्तुओं के मूल्यों में कमी-एक सुव्यवस्थित एवं प्रभावी आधुनिक विपणन व्यवस्था के होने से जहाँ एक ओर अधिक माँग होने पर उत्पादन की मात्रा बढ़ जाती है जिसके परिणामस्वरूप उत्पादन लागत कम हो जाती है और दूसरी ओर वितरण लागतों में और वस्तुओं के मूल्यों में पर्याप्त कमी आती है। फलतः उपभोक्ता अधिक मात्रा में वस्तुओं का उपभोग करना प्रारम्भ कर देते हैं।
कण्डिफ एवं स्टिल के अनुसार विपणन के अन्तर्गत निम्नलिखित क्रियाएँ सम्मिलित की जाती है-
विपणन कार्य
(1) वाणिज्ययन कार्य- | (II) भौतिक वितरण कार्य- | (III) सहायक कार्य- |
1: उत्पाद नियोजन एवं विकास | 1. भण्डारण | 1. विपणन वित्त व्यवस्था |
2. प्रमापीकरण एवं श्रेणीयन | 2. परिवहन | 2. जोखिम वहन करना |
3. क्रय | 3. बाजार सूचना | |
4. विक्रयण |
विपणन की भूमिका अथवा महत्त्व
(Role or Importance of Marketing)
आधुनिक अर्थव्यवस्था में उपभोक्ता व्यावसायिक जगत का केन्द्र-बिन्दु बन गया है। सभी व्यावसायिक क्रियाएँ उपभोक्ता के चारों ओर चक्कर लगाती हैं। उपभोक्ता अवधारणा को अधिकाधिक मान्यता दिये जाने के कारण आर्थिक अवधारणा में परिवर्तन आ रहे हैं। फलस्वरूप विपणन का महत्व भी दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है।
पीटर एफ ड्रकर (Peter F. Drucker) के अनुसार, “एक व्यावसायिक उपक्रम के दो आधारभूत कार्य हैं-प्रथम, विपणन (Marketing) एवं द्वितीय, नवाचार (Innovation)।”
विपणन के महत्व का अध्ययन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है :
निर्माता के लिये विपणन का महत्त्व
(Importance of Marketing for Manufacturer)
(1) उत्पादन सम्बन्धी निर्णयों में सहायक (Helpful in Production decision)-वर्तमान समय में व्यवसाय की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि उपभोक्ताओं की इच्छाओं एवं आवश्यकताओं के अनुरूप वस्तुओं का उत्पादन किया जाये। अत: वस्तुओं की मात्रा, कीमत निर्धारण की व्यवस्था, विज्ञापन के साधन आदि के सम्बन्ध में सही निर्णय लेने के लिये विपणन बहुत उपयोगी होता है।
(2) आय वृद्धि में सहायक (Helpful in Increasing Income)—प्रत्येक फर्म का प्रमुख उद्देश्य लाभ कमाना होता है। विपणन एक ओर तो विभिन्न विपणन लागतों में कमी करके वस्तुओं व सेवाओं की कीमतों में कमी करता है और दूसरी ओर विपणन के आधुनिक तरीकों जैसे-विज्ञापन, विक्रय सम्वर्द्धन आदि के द्वारा वस्तुओं व सेवाओं की माँग में वृद्धि करता है परिणामतः वस्तुओं की लागतों में कमी और माँग में वृद्धि होने के कारण कुल बिक्री में वृद्धि होती है जिससे फर्म के लाभों में वृद्धि होती है।
(3) सूचनाओं के आदान-प्रदान में सहायक (Helpful in exchanging information)—विपणन की सहायता से व्यवसाय और समाज के बीच सूचनाओं का आदान-प्रदान होता है। विपणन की सहायता से समय-समय पर समाज में होने वाले परिवर्तनों, जैसे—आवश्यकताओं व रुचियों में परिवर्तन, फैशन में परिवर्तन आदि के सम्बन्ध में उच्च प्रबन्ध को जानकारी रहती है। आज की बढ़ती हुई पारस्परिक प्रतिस्पर्धा में इन सूचनाओं का और भी अधिक महत्व बढ़ गया है।
(4) वितरण में सहायक (Helpful in distribution)—विपणन का अध्ययन एक निर्माता को यह बताता है कि उसको वस्तु कम-से-कम लागत पर अधिक-से-अधिक सुविधाजनक केन्द्रों पर उपभोक्ता को किस प्रकार प्रदान करनी चाहिए। आज इस प्रतियोगी युग में वही निर्माता सफल हो सकता है जिसकी विपणन लागत न्यूनतम होती है।
समाज के लिये विपणन का महत्त्व
(Importance of Marketing to Society)
(1) रोजगार के अवसरों में वृद्धि–विपणन ने रोजगार के अवसरों की वृद्धि में पर्याप्त सहयोग दिया है। वास्तव में, उत्पादन की तुलना में विपणन में रोजगार अवसरों में थोड़ी ही अवधि में चार गुनी वृद्धि हुई है।
(2) रहन-सहन का स्तर प्रदान करना-समाज में विभिन्न वस्तुओं की माँग उत्पन्न करने, माँग में वृद्धि करने का श्रेय विपणन को ही है।
पॉल मजूर के अनुसार, “विपणन समाज को जीवन स्तर प्रदान करता है।”
(3) व्यापारिक मन्दी से सुरक्षा-बाजार में वस्तुओं की माँग घटने पर विपणन उत्पादित वस्तु के लिये नये-नये बाजारों की खोज करके, वस्तु की किस्म में सुधार करके, वस्तु के विभिन्न वैकल्पिक प्रयोग उत्पन्न करके, वितरण लागत को कम करके, विक्रय की मात्रा में कमी आने से रोकता है। इस प्रकार विपणन व्यापारिक मन्दी से सुरक्षा प्रदान करता है।
(4) राष्ट्रीय आय में वृद्धि-जब विभिन्न प्रकार के ग्राहकों की आवश्यकताओं के अनुसार वस्तुओं का निर्माण किया जाता है तो देश की कुल वस्तुओं और सेवाओं में वृद्धि होती है जिसके परिणामस्वरूप राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है।
(5) ग्राहकों के ज्ञान में वृद्धि-विपणन ग्राहकों को उनकी छिपी हुई आवश्यकताओं का ज्ञान कराता है और उन आवश्यकताओं के अनुसार उत्पादन व सेवाओं का निर्माण करके ग्राहकों की आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करता है।
(6) वितरण लागतों में कमी-एक अच्छी वितरण व्यवस्था वस्तु की वितरण लागतों में कमी करती है जिसके परिणामस्वरूप वस्तु के मूल्यों में कमी कर दी जाती है जिससे समाज लाभान्वित होता है। Bcom 3rd Year Meaning of Marketing Notes in hindi
आर्थिक विकास के दृष्टिकोण से विपणन का महत्त्व
(Importance of Marketing in View of Economic Development)
राष्ट्र के आर्थिक विकास एंव विपणन में प्रत्यक्ष एवं सीधा सम्बन्ध होता है। पीटर एफ० ड्रकर के अनुसार, “विपणन किसी भी राष्ट्र की अर्थव्यवस्था को चाहे वह विकासशील हो अथवा अर्द्धविकसित या विकसित, सुदृढ़ता प्रदान करता है और उसे गतिशील बनाने में अनुपम योगदान देता है।” इस विचारधारा ने इस भ्रामक विचारधारा को दूर करने में सहयोग दिया है कि विपणन एवं उसकी गतिविधियाँ केवल विकसित राष्ट्रों के लिये ही उपयोगी प्रमाणित हो सकती हैं, अविकसित एवं विकासशील राष्टों के लिये नहीं।
विक्रेता बाजार में विपणन का महत्त्व
(Importance of Marketing in a Seller’s Market)
विक्रेता बाजार से आशय ऐसे बाजार से है, जिसमें वस्तुओं और सेवाओं की माँग तो अधिक होती है किन्तु पूर्ति कम होती है। ऐसी स्थिति में उत्पादन क्षेत्र में एकाधिकारी की प्रवृत्ति पायी जाती है। अत: ऐसे बाजार में उत्पादक अपनी वस्तुओं और सेवाओं की बिक्री आसानी से कर सकते हैं अत: प्रश्न यह उठता है कि ऐसी स्थिति में विपणन की क्या आवश्यकता है ? इसके उत्तर में कहा जा सकता है कि विक्रेता बाजार में भी विपणन की आवश्यकता होती है क्योंकि बाजार परिवर्तनशील होता है। आज जिन वस्तुओं का विक्रेता बाजार है कल उन्हीं वस्तुओं का क्रेता बाजार हो सकता है।
क्रेता बाजार में विपणन का महत्त्व
(Importance of Marketing in a Purchaser’s Market)
क्रेता बाजार से आशय ऐसे बाजार से है जिसमें वस्तुओं की माँग की अपेक्षा पूर्ति अधिक होती है। ऐसी स्थिति में प्रत्येक संस्था अपना अधिक-से-अधिक माल बेचना चाहती है। इसके लिए प्रत्येक संस्था को आधुनिक तरीके अपनाने चाहिये। क्रेता बाजार में वे संस्थायें ही अधिक सफल हो पाती हैं जो अपनी वस्तुओं के प्रति ग्राहकों की इच्छाओं, आवश्यकताओं एवं अभिरुचियों के अनुसार आवश्यक परिवर्तन करती रहती हैं तथा विक्रय संवर्द्धन के विभिन्न तरीके प्रयोग करती हैं। अतः चाहे विक्रेता बाजार हो या क्रेता बाजार विपणन दोनों ही स्थिति में महत्त्वपूर्ण है।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि वर्तमान भारतीय दशाओं में विपणन न केवल उत्पादन क्षमता के वितरण में सहायक है अपितु भारत में विपणन की आवश्यकता नयी-नयी वस्तुओं का आविष्कार और उनका विकास करके उपभोक्ताओं को प्रदान करने, रोजगार के विभिन्न अवसर उपलब्ध कराने, निर्यातों को प्रोत्साहित और राष्ट्रीय आय में वृद्धि करने के लिये भी है।
Principal of Business Management
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