Saturday, November 30, 2024
HomeBcom 2nd Year notesbcom 2nd year corporate law notes in India

bcom 2nd year corporate law notes in India

bcom 2nd year corporate law notes in India

Welcome to dreamlife24.com. we are presented to you bcom 2nd year corporate law notes in hindi for commerce students in this article you find all company law notes and best way how to prepare your exam and you communication skills. This course is specially for Bcom. Please share this article to your best friend and other for helps to other person….and when leave his page comment pls

Topics

  1. Meaning and Kinds of company
  2. Private Company
  3. Public Company
  4. Corporate Veil
  5. Incorporation of Company and Promotion
  6. Company Promotor 
  7. Legal Position of Promoter
  8. Meaning of Incorporation of Company
  9. Memorandum of association & Articles of Association (memorandum of association)
  10. Alteration in the Memorandum of Association
  11. Articles of Association
  12. Powers of Directors
  13. Vacation of Directors
  14. Company’s Meeting and Resolution
  15. Winding up Of Company
  16. The Indian Factories Act 1948
  17. Industrial Disputes Act 1947
  18. Workmen’s Compensation, Act 1923
bcom 2nd year corporate law notes in hindi
bcom 2nd year corporate law notes in hindi

Bcom 2nd year company meaning of definition

कम्पनी का अर्थ 

औद्योगिक क्रान्ति के बाद बड़े पैमाने पर उत्पादन शुरु हुआ। बड़े पैमाने के उद्योगों को संचालित करने के लिये कुशल प्रवन्ध व बड़ी मात्रा में पूँजी की जरुरत महसूस की गई जिसकी पूर्ति न तो एकाकी व्यापारी द्वारा ही सम्भव थी और न ही साझेदारी संस्था द्वारा। अतएव इस स्थिति में व्यवसाय के जिस स्वरूप ने जन्म लिया उसे कम्पनी कहा जाता है। 

कम्पनी का अर्थ एवं प्रकार 

Meaning and Kinds of Company

कम्पनी का अर्थ 

औद्योगिक क्रान्ति के बाद बड़े पैमाने पर उत्पादन शुरु हुआ। बड़े पैमाने के उद्योगों को संचालित करने के लिये कुशल प्रवन्ध व बड़ी मात्रा में पूँजी की जरुरत महसूस की गई जिसकी पूर्ति न तो एकाकी व्यापारी द्वारा ही सम्भव थी और न ही साझेदारी संस्था द्वारा। अतएव इस स्थिति में व्यवसाय के जिस स्वरूप ने जन्म लिया उसे कम्पनी कहा जाता है। 

bcom 2nd year corporate law notes in India

सरल शब्दों में किसी सामान्य उद्देश्य की पूर्ति के लिये बनाये गये व्यक्तियों के संघ को कम्पनी कहते हैं। जब यह संघ कम्पनी अधिनियम के अन्तर्गत पंजीकृत (रजिर्टड) हो जाता है तो यह अविछिन्न (शाश्वत) उत्तराधिकार व सार्वमुद्रा के साथ विधान द्वारा निर्मित कृत्रिम व्यक्ति बन जाता है। 

कम्पनी की परिभाषा 

Definition of Company

परिभाषा- अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से कम्पनी की परिभाषाओं को हम तीन भागों में बाँट सकते हैं। 

(A) वैधानिक परिभाषायें 

(B) न्यायिक परिभाषायें 

(C) सैद्धान्तिक

वैधानिक परिभाषायें

कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 2 (20) के अनुसार-“कम्पनी का आशय” इस अधिनियम के अधीन निर्मित एवं पंजीकृत कम्पनी से या एक विद्यमान कम्पनी से है। एक विद्यमान कम्पनी वो है “जिसका निर्माण व पंजीयन इस अधिनियम के पूर्व किसी कम्पनी अधिनियम के अधीन हुआ है।” न्यायिक परिभाषायें 

न्यायाधीश जेम्स-“सामान्य उद्देश्य के लिये संगठित व्यक्तियों का संघ कम्पनी है।” 

अमेरिका के प्रमुख न्यायाधीश मार्शल के अनुसार-निगम (संयुक्त पूंजी वाली कम्पनी) एक अदृश्य और अमूर्त कृत्रिम व्यक्ति है जिसका केवल कानून की निगाहों में ही अस्तित्व है।” सैद्धान्तिक परिभाषायें . एल० एच० हैने–“कम्पनी विधान द्वारा निर्मित एक कृत्रिम व्यक्ति है जिसका पृथक् एवं स्थायी अस्तित्व होता है तथा जिसकी एक सार्वमुद्रा होती है।”

फील्ड हाऊस “संयुक्त पूंजी कम्पनी किसी व्यवसाय या उपक्रम करने के हेतु निर्मित की गई व्यक्तियों की एक समिति है।” किम्बाल एवं किम्बाल-“निगम या कम्पनी प्रकृति से एक कृत्रिमव्यक्ति है जिसे किसी विशिष्ट उद्देश्य के लिये विधान द्वारा बनाया गया है या अधिकृत किया गया है।” उपर्युक्त परिभाषाओं का विश्लेषण करने के पश्चात् संक्षेप में हम कह सकते हैं कि

“कम्पनी कानून द्वारा एक निर्मित व्यक्ति है जिसका पृथक् अस्तित्व; सतत उत्तराधिकार तथा सार्वमद्रा होती है। जिसका निर्माण किसी विशेष उद्देश्य से होता है । तथा जिसके सदस्यों का दायित्व सामान्यतया सीमित है। 

bcom 2nd year corporate law notes in India

कम्पनी की प्रकृति एवं विशेषताएँ (लक्षण) 

Nature and Characteristics of a Company

कृत्रिम व्यक्ति (Artifical Man)

कम्पनी अधिनियम 2013 के अनुसार कम्पनी कानन द्वारा निर्मित एक कृत्रिम व्यक्ति है परन्तु इसके कार्य अधिकतर एक प्राकृतिक मनुष्य के समान ही होते हैं । कम्पनी में एक वास्तविक व्यक्ति की भाँति हाड-माँस नहीं होता है। अतः इसलिये इसे कृषि व्यक्ति की संज्ञा प्रदान की गई है। 

पाश्वत या अविछिन्न या स्थायी अस्तित्व (Prepetual Existence)

कम्पनी का अस्तित्व है। अत: अंशधारियों के मर जाने अथवा व्यक्तिगत रूप से दिवालिया कम्पनी का अर्थ एवं प्रकार/3 हो जाने या कम्पनी से अलग होने का कम्पनी के अस्तित्व पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। 

पृथक् वैधानिक अस्तित्व (Separate Legal Entity)-

कम्पनी का अस्तित्व अपने सदस्यों से अलग होता है। अतः कम्पनी अपने अंशधारियों से किसी भी प्रकार का अनुबन्ध कर सकती है । एक कम्पनी अपने अशंधारियों के प्रति तथा अंशधारी कम्पनी के प्रति वाद प्रस्तुत कर सकते हैं। इस प्रकार कोई भी अंशधारी कम्पनी के कार्यों के लिये उत्तरदायी नहीं होता, भले ही उसने उस कम्पनी के सभी अंश क्यों न ले रखे हों। 

सीमित दायित्व (Limited Liability)-

संयुक्त स्कन्ध कम्पनी के सदस्यों का सीमित दायित्व होता है अर्थात् प्रत्येक अंशधारी का दायित्व उसके द्वारा क्रय किये गये अंशों के मूल्य तक ही सीमित होता है। 

bcom 2nd year corporate law notes in India

अभियोग चलाने का अधिकार (Right to Sue)-

कम्पनी को विधान के अनुसार अपने नाम से दूसरों पर वाद प्रस्तुत करने का अधिकार है । 

सार्वमुद्रा (Common Seal)

कम्पनी एक कृत्रिम व्यक्ति होने के कारण हस्ताक्षर नहीं कर सकती, वरन् कम्पनी द्वारा निर्गमित प्रत्येक प्रलेख पर इसकी सार्वमुद्रा को लगाया जाता है । इसीलिये इसका रूप संयुक्त होता है।

संयुक्त पूँजी (Joint Capital)

कम्पनी के अन्तर्गत अंशधारियों द्वारा प्राप्त पूँजी को संयुक्त रूप से लगाया जाता है। इसीलिये इसका रूप संयुक्त होता है। 

क्रियाओं का सीमित क्षेत्र (Limited Scope of Activities)

कम्पनी के उद्देश्य पार्षद सीमानियम (Memorandum of Association) में दिये होते हैं तथा उद्देश्य

पूर्ति तथा कार्य संचालन सम्बन्धी नियम कम्पनी के पार्षद अन्तर्नियमों (Articles of Association) में दिये होते हैं। अतः कम्पनी अपने पार्षद अन्तर्नियमों की सीमा के अन्दर ही कार्य करती है, इनसे परे कोई कार्य नहीं कर सकती।

अंशों का हस्तान्तरण (Transfer of Shares)-

साधारणतया कोई भी अंशधारी अपने अंशों का हस्तान्तरण स्वेच्छा से किसी भी समय कर सकता है, उसे ऐसा करने के लिये कम्पनी की आज्ञा लेने की जरूरत नहीं होती। 

कम्पनी का समापन (Winding-up of a Company)-

जिस प्रकार कम्पनी का जन्म अधिनियम में वर्णित समामेलन के द्वारा होता है उसी प्रकार उसका अन्त भी अधिनियम में वर्णित समापन की विधियों के द्वारा ही किया जा सकता है। 

अंशधारी एजेन्ट नहीं (Shareholders are not Agents)-

कम्पनी का अंशधारी कम्पनी के एजेन्ट के रूप में कार्य नहीं कर सकता। 

सदस्यों की संख्या (Number. of Members)-

एक सार्वजनिक कम्पनी में सदस्यों की न्यूनतम संख्या सात और अधिकतम संख्या निर्गमित अंशों की संख्या से अधिक नहीं हो सकती । जबकि एक निजी कम्पनी में सदस्यों की न्यूनतम संख्या दो और सदस्यों की अधिकतम संख्या 200 होती है। 

कम्पनी नागरिक नहीं- भारतीय विधान की धारा 19 के अनुसार कम्पनी एक नागरिक नहीं है। इसे नागरिक की भाँति मौलिक अधिकार भी प्राप्त नहीं हैं। अतः कम्पनी अपने मौलिक अधिकारों के लिए वाद प्रस्तुत नहीं कर सकती। 

bcom 2nd year corporate law notes in India

निजी कम्पनी से आशय

Meaning of Private Company

भारतीय कम्पनी अधिनियम 2013 की धारा 2 (68) के अनुसार, एक निजी कम्पनी से आशय ऐसी कम्पनी से है जो अपने अन्तर्निमयों द्वारा 

(i)अपने अंशों के हस्तान्तरण के अधिकार पर प्रतिबन्ध लगाती है।

(ii) अपने सदस्यों की संख्या 200 तक सीमित करती है।

(iii) कम्पनी के अंशों अथवा ऋणपत्रों को जनता द्वारा क्रय करने के लिये निमन्त्रण देने पर रोक लगाती है।निजी कम्पनी के निर्माण के लिये कम से कम दो सदस्यों काहोना अनिवार्य है और अपने नाम के अन्त में Private Limited शब्द लिखना अनिवार्य है। निजी कम्पनी को प्राप्त विशेषाधिकार एवं छूटें (Privileges and Exemptions of Private Co.)-कम्पनी अधिनियम 2013, में एक निजी कम्पनी को विशेष दशाओं में एक सार्वजनिक कम्पनी की अपेक्षा कुछ छूटे प्राप्त हैं जिनको निजी कम्पनी के विशेषाधिकार कहा जाता है। इन विशेषाधिकारों को हम दो भागों में बाँट सकते हैं 

read more

CHAPTER 2

Bcom 2nd Year Incorporation of Company Notes

कम्पनी का प्रवर्तन एवं समामेलन (पंजीयन) 

कम्पनी का निर्माण ” (Formation of Company) . कम्पनी कानून द्वारा निर्मित कृत्रिम व्यक्ति होती है। अत: इसके निर्माण हेतु अनेक कानूनी औपचारिकताओं का पूरा करना पड़ता है । कम्पनी की स्थापना के विचार से लेकर कम्पनी द्वारा व्यापार शुरू करने के बीच की जाने वाली क्रियाओं को निम्न चार, भागों, अवस्थाओं या चरणों में बांटा जा सकता है 

(A) कम्पनी के प्रवर्तन की अवस्था

(B) समामेलन या पंजीयन की अवस्था

(C) समामेलन का प्रमाण पत्र प्राप्त करने की अवस्था

(D) व्यापार शुरू करने का प्रमाण पत्र प्राप्त करने की अवस्था। 

read more

CHAPTER 2

Memorandum of Association & Articles of Association

पार्षद सीमा नियम का अर्थ एवं परिभाषा

यह कमनी का वैधानिक एवं महत्वपूर्ण प्रलेख है जिसमें कम्पनी के उद्देश्य, कार्य क्षेत्र, अधिकारों व सीमाओं का उल्लेख होता है। इसे कम्पनी का संविधान या कम्पनी निर्माण की आधारशिला भी कहते हैं। यह कम्पनी का चार्टर होता है। प्रत्येक कम्पनी को इसे अनिवार्य रूप से तैयार तथा रजिस्ट्रार के पास फाइल करना पड़ता है।

भारतीय कम्पनी अधिनियम 2013 की धारा 2 (56) के अनुसार–“पार्षद सीमानियम से आशय किसी कम्पनी के ऐसे पार्षद सीमानियम से है जो कि किसी पूर्व कम्पनी सन्नियम या वर्तमान अधिनियम के अनुसार मूलतः बनाया गया है या समय-समय पर परिवर्तित किया गया हो। 

न्यायधीश चार्ल्सवर्थ के अनुसार, “पार्षद सीमानियम कम्पनी का चार्टर (अधिकार पत्र) है जो उसके अधिकारों की सीमाओं को परिभाषित करता है।” 

read more

CHAPTER 4

Company’s Meetings and Resolution

कम्पनी की सभाएँ 

(Company’s Meetings)

साधारणतया सभा का आशय दो अथवा दो से अधिक व्यक्तियों का पूर्व सूचना या पारस्परिक व्यवस्था द्वारा किसी कार्य के सम्बन्ध में परामर्श करने अथवा कार्य का निष्पादन करने के लिए एक साथ मिलना या एकत्रित होना है। प्रसिद्ध विद्वान एम. ए. शार्लेकर के अनुसार, “दो या दो से अधिक व्यक्तियों का कानूनी उद्देश्य से एक साथ एकत्रित होना सभा कहलाता है।” इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि किसी भी सभा के लिए निम्न बातें होना आवश्यक है (अ) सभा का पूर्व संयोजित होना, (ब) न्यून कार्यवाहक संख्या (कोरम) का उपस्थित होना, (स) सभा विधिवत विद्वान के नियमों के अनुसार बुलायी गयी हो, (द) सभा की कार्यवाही एवं समापन विधानानुकूल किया गया हो। 

read more

CHAPTER 6

Winding up of Company

कम्पनी का समापन (Winding up of Company) 

कम्पनी में अन्याय एवं कुप्रबन्ध से आशय (Meaning of Oppression and Mismanagement in a Company) 

अन्याय-अन्याय से आशय ऐसे सभी कार्यों से है जो प्रमुख रूप से सदस्यों के हितों के साथ कुठाराघात करने वाले हों, कष्ट पहुँचाने वाले हों व अन्यायपूर्ण हों। 

कम्पनी के अर्थ में अन्याय से आशय निम्न कार्यों से है-

  • किसी को अनुचित रूप से दबाना।
  • जनहित के विरुद्ध कार्य करना।
  • अनुचित रूप से अधिकारों में बाधा डालना।  
  • (iv) अल्पमत अंशधारियों के साथ अन्याय करने वाले दायित्व व जोखिम में वृद्धि करने वाले कार्य।
  • ऐसे कार्य जिन्हें केन्द्रीय सरकार व कम्पनी विधान मण्डल अन्याय माने।

read more

CHAPTER 7

The Indian Factoryes Act 1948

भारतीय कारखाना अधिनियम 1948 

स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद भारत में राज्यों के कल्याण तथा श्रमिकों की दशा में सुधारने व लघु औद्योगिक संस्थाओं को आवश्यक कानूनी संरक्षण देने के लिये नवम्बर सन् 1547 में कारखाना (संशोधन) अधिनियम बिल विधान सभा में प्रस्तुत किया गया, जो 28 अगस्त 1948 का पारित हुआ तथा 23 दिसम्बर को गर्वनर जनरल की स्वीकृति प्राप्त होने पर इसे 1 अप्रैल 1948 से लागू कर दिया

read more

CHAPTER 8

Industrial dispute act 1947

औघोगिक संघर्ष अधिनियम, 1947 

औद्योगिक विवाद से आशय उद्योग सम्बन्धी विवादों से है। जब नियोक्ताओं तथा श्रमिकों के बीच अथवा नियोक्ताओं तथा नियोक्ताओं के बीच अथवा श्रमिकों एवं श्रमिका के बीच कोई झगडा या मतभेद उठ खडा होता है तो यह औद्योगिक विवाद का रूप धारण कर लेता है। यह आधुनिक मशीनों व तकनीकों के प्रयोग द्वारा अत्याधिक पैमाने पर हो रहे उत्पादन की ही देन है। औद्योगिक विवाद अधिनियम,1947 की धारा 2 (K) के अनुसार, औद्योगिक विवाद से आशय नियोक्ताओं एवं नियोक्ताओं के बीच अथवा नियोक्तओं एवं श्रमिकों के बीच अथवा श्रमिकों एवं श्रमिकों के बीच हुए किसी विवाद अथवा मतभेद से है जो किसी व्यक्ति की नियुक्ति अथवा सेवा-मुक्ति अथवा रोजगार की शर्तो या श्रम की दशाओं से सम्बन्धित हो।” 

read more

bcom 2nd year memorandum of association

bcom 2nd year company meeting notes in hindi

Bcom 2nd Year Winding up of Company

bcom 2nd year corporate law notes in India

Admin
Adminhttps://dreamlife24.com
Karan Saini Content Writer & SEO AnalystI am a skilled content writer and SEO analyst with a passion for crafting engaging, high-quality content that drives organic traffic. With expertise in SEO strategies and data-driven analysis, I ensure content performs optimally in search rankings, helping businesses grow their online presence.
RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments