Monday, December 30, 2024
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Audit report meaning notes

Audit report meaning notes

अंकेक्षण रिपोर्ट (Audit report)

किसी भी संस्था के खातों का अंकेक्षण कार्य समाप्त करने के पश्चात् अंकेक्षक जाँच कार्य के परिणामों और अपने निष्कर्षों का सारांश रूप में एक विवरण देता है जिस पर उसके हस्ताक्षर होते हैं, इसी विवरण को अंकेक्षक का प्रतिवेदन या रिपोर्ट कहते हैं। इस प्रकार अंकेक्षण रिपोर्ट अंकेक्षण कार्य की अन्तिम उपलब्धि होती है। यह वह माध्यम है जिसके आधार पर अंकेक्षक वित्तीय खातों एवं विवरणों के सम्बन्ध में अपने विचार व्यक्त करता है। . .          

जोसेफे लंकास्टर के अनुसार, “एक रिपोर्ट एकत्रित एवं विचार किए हुए तथ्यों की एक ऐसी सूची है जो उन व्यक्तियों को स्पष्ट एवं संक्षिप्त सूचना देने के लिए बनाई जाती है, जिन्हें प्रतिवेदन की विषय सामग्री से सम्बन्धित पूर्ण तथ्यों की जानकारी नहीं होती है।”

कम्पनी अधिनियम की धारा 227 (2) के अनुसार, “अंकेक्षक को स्वयं द्वारा जाँचे गये हिसाब-किताब और प्रत्येक चिट्टे, लाभ हानि खाता एवं उसके साथ संलग्न किए गए प्रलेखों के सम्बन्ध में जो कम्पनी की साधारण सभा में प्रस्तुत किए जाते हैं अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होती है।”

उपरोक्त परिभाषाओं से अंकेक्षक-प्रतिवेदन की निम्नांकित विशेषतायें सामने आती है-

1. प्रतिवेदन अंकेक्षक द्वारा किये गये जाँच-कार्यों का संक्षिप्त विवरण | (Summary) है।

2. प्रतिवेदन, अंकेक्षक के उन निष्कर्षों को भी स्पष्ट करता है जिन पर जाँच-कार्य के उपरान्त अंकेक्षक पहुँचता है।

3. प्रतिवेदन में तथ्यों के साथ-साथ अंकेक्षक अपना सुझाव भी देता है, यदि माँगा गया हो।

4. प्रतिवेदन पर अंकेक्षक के हस्ताक्षर होना आवश्यक है।

5. प्रतिवेदन से ठोस एवं संक्षिप्त सूचनाएँ प्राप्त होती हैं

सामान्यतः अंकेक्षक अपना प्रतिवेदन कम्पनी के सचिव को देता है और फिर उसकी प्रतिलिपि सभी सदस्यों को साधारण सभा की तिथि से 21 दिन पूर्व भेज दी जाती है प्रतिवेदन पर अंकेक्षक स्वयं या साझेदारी फर्म का कोई भी सदस्य जो भारत में कार्य करता हो, हस्ताक्षर कर सकता है। ।

रिपोर्ट की मुख्य बातें

(Contents of the Report)

धारा 227 (3) के अनुसार अंकेक्षक की रिपोर्ट में नीचे लिखी हुई पाँच बातें होनी चाहिए-

(1) “उसकी सम्मति में उसको प्राप्त सूचना व स्पष्टीकरण के अनुसार कम्पनी के खाते कम्पनी अधिनियम, 1956 के द्वारा वांछित सूचना देते हैं, तथा (क) कम्पनी का चिट्ठा उसके वित्तीय वर्ष (Financial year) के अन्त की आर्थिक स्थिति का, एवं

(ख) लाभ-हानि खागा, वित्तीय वर्ष के लाभ और हानि का ‘सच्चा और उचित’ (true and fair) चित्र प्रस्तुत करता है, अथवा नहीं ।”

(2) उसने वे सभी सूचनायें और स्पष्टीकरण प्राप्त कर लिए हैं या नहीं जो उसकी जानकारी एवं विश्वास के लिए अंकेक्षण कार्य में आवश्यक हैं।

(3) कम्पनी ने कम्पनी अधिनियम के अनुसार उचित पुस्तकें रखी हैं या नहीं और कम्पनी की जिन शाखाओं का उसने निरीक्षण नहीं किया है, उनसे उसे उचित विवरण प्राप्त हो गये हैं या नहीं।

(4) शाखा के हिसाब-किताब सम्बन्धी रिपोर्ट जिसे धारा 288 के अनुसार कम्पनी अंकेक्षक के अतिरिक्त किसी अन्य अंकेक्षक द्वारा अंकेक्षित किया गया है तथा उससे जो सूचनायें प्राप्त हुई हैं, अथवा नहीं उनका अंकेक्षक ने अपनी रिपोर्ट तैयार करते समय पूरा ध्यान रखा है।

(5) कम्पनी का चिट्ठा तथा लाभ-हानि खाता उसकी पुस्तकों, खातों एवं विवरणों के अनुरूप हैं या नहीं।

अंकेक्षक प्रतिवेदन का महत्व

(Importance of Auditor’s Report)

अंकेक्षक प्रतिवेदन संस्था से सम्बन्धित सभी व्यक्तियों व पक्षों के लिए महत्वपूर्ण होता है। अंकेक्षक प्रतिवेदन संस्था की सही स्थिति का चित्र प्रस्तुत करता है। अंकेक्षक प्रतिवेदन से लाभान्वित होने वाले मुख्य पक्ष निम्नांकित हैं-

1. अंशधारी (Shareholders)- किसी भी कम्पनी के वास्तविक स्वामी (Owner) उसके अंशधारी होते हैं किन्तु उनकी संख्या अत्यधिक होने के कारण वे संस्था के प्रबन्ध में प्रत्यक्ष रूप से भाग नहीं ले सकते। अतः संस्था का संचालन अंशधारियों द्वारा चुने गये प्रतिनिधियों (संचालक मण्डल) द्वारा किया जाता है। कहने का अर्थ यह है कि एक कम्पनी की स्थिति में स्वामित्व तथा प्रबन्ध में अलगाव पाया जाता है। अत: अंशधारियों मेंयह जानने की उत्सुकता होना स्वाभाविक है कि उनके द्वारा लगायी गयी पूँजी का सही प्रयोग किया जा रहा है या नहीं। इस महत्वपूर्ण बात की जानकारी उन्हें अंकेक्षक प्रतिवेदन से ही मिल पाती है। अंकेक्षक प्रतिवेदन अंशधारियों को कम्पनी में रखे गये बही-खातों की पूर्णता, नियमानुकूलता एवं शुद्धता के सम्बन्ध में जानकारी देता है। साथ ही, अंकेक्षक प्रतिवेदन कम्पनी की वित्तीय स्थिति एवं लाभप्रदता के सम्बन्ध में ‘सही एवं उचित’ चित्र प्रस्तुत करता है। फलतः इससे अंशधारियों को संचालकों की योग्यता, ईमानदारी तथा कर्तव्यनिष्ठा का भो ज्ञान होता है।

2. लेनदार (Creditors)– संस्था के सभी लेनदारों को यह जानने की उत्सुकता रहती है कि कम्पनी (संस्था) को स्थिति कैसी है ? कहीं उनका धन असुरक्षित तो नहीं है ? अंकेक्षक-प्रतिवेदन से उन्हें इस बात की जानकारी हो जाती है कि उनका विनियोजित धन सुरक्षित है या नहीं । कम्पनी उनके धन को वापस करने की स्थिति में है या नहीं।

3. विनियोगकर्ता-प्रत्येक व्यक्ति अपना धन कहा लगाता है जहाँ आय अधिक हो और उसका धन भी सुरक्षित रहै। अंकेक्षण रिपोर्ट विनियोगकर्ताओं में विश्वास उत्पन्न Investor करती है और विनियोगकर्ता कम्पनी की अंकेक्षण रिपोर्ट के आधार पर ही संस्था में विनियोग करने के लिए तैयार होता है ।

4. संचालक (Directors)– संचालकों के लिए यह सम्भव नहीं होता है कि वे समस्त कार्य का सम्पादन स्वयं करें। उनका मुख्य कार्य संस्था की नीति का निर्धारण करना होता है जिसके आधार पर कर्मचारियों द्वारा कार्य किये जाते हैं। ऐसी स्थिति में संचालक भी यह जानना चाहते हैं कि कर्मचारियों ने किस सीमा तक नियमानुसार, ईमानदारी तथा कत्र्तव्यनिष्ठा के साथ कार्य पूरा किया है। इस प्रश्न का जवाब उन्हें अंकेक्षक-प्रतिवेदन से ही मिलता है।

5. सरकार (Government)- कम्पनी की आर्थिक स्थिति से सरकार का सीधा सम्बन्ध होता है। प्रजातान्त्रिक व्यवस्था में जनता ही सरकार है। अत: जनता की क्षति या उन्नति सरकार की क्षति या उन्नति होती है। देश में पूँजी का ह्रास, पूँजी का क्षरण, विनियोग का हतोत्साहित होना कुछ ऐसे तथ्य हैं जिसमें सरकारी हस्तक्षेप आवश्यक होता है। यदि कम्पनी द्वारा अंशधारियों को किसी प्रकार की हानि पहुँचायी जाती है तो इसकी । सूचना सरकार को होनी चाहिए।

6. कर अधिकारी-विभिन्न कर अधिकारी जैसे आयकर अधिकारी, बिक्री-कर अधिकारी, उत्पादन कर अधिकारी भी अंकेक्षित खातों पर अधिक विश्वास करते हैं और बिना जाँच किये रिपोर्ट के आधार पर ही अपना निर्णय ले लेते हैं। इससे कर निर्धारण में सुविधा रहती है। कर सरकार की आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। अतः सरकार के लिये भी अंकेक्षण रिपोर्ट का बहुत महत्व होता है।

अंकेक्षण रिपोर्ट को निम्नलिखित दो आधारों पर वर्गीकृत किया जा सकता है-

I. कार्य-क्षेत्र के आधार पर

1. अंतिम रिपोर्ट (Final Report)- अंतिम प्रतिवेदन का आशय उस रिपोर्ट से है जो अंकेक्षक द्वारा अंकेक्षण का पूरा कार्य समाप्त करने के बाद दिया जाता है। यह एक महत्वपूर्ण रिपोर्ट होती है, अतः इसे सावधानी से तैयार किया जाना चाहिए।

2. मध्यांश रिपोर्ट (Interim Report)- वह प्रतिवेदन जो अंकेक्षण-कार्य समाप्त होने के पूर्व ही वर्ष के बीच में ही दिया जाता है, मध्यांश रिपोर्ट कहा जाता है। अधिनियम की धारा 241 के अनुसार, अनुसंधानकर्ता के द्वारा अनुसंधान करते समय वर्ष के मध्य में सरकार को दी जाने वाली रिपोर्ट मध्यांश प्रतिवेदन का उदाहरण है, बशर्ते केन्द्रीय सरकार ऐसी रिपोर्ट देने की स्वीकृति प्रदान कर दे ।

3. आंशिक रिपोर्ट (Partial Report)- अंशतः प्रतिवेदन का आशय उस रिपोर्ट से है जो लेखा पुस्तक के किसी एक भाग के आधार पर दिया जाता है। इसे कभी भी पूर्ण प्रतिवेदन नहीं समझना चाहिए। अत: इस सम्बन्ध में अंकेक्षक द्वारा आगाह कर दिया जाना चाहिए अन्यथा अंकेक्षक दोषी ठहराया जायेगा।

II. प्रकृति के आधार पर

1. स्वच्छ रिपोर्ट (Clean Report)– यदि अंकेक्षक यह समझता है कि कम्पनी के खाते व विवरण अधिनियम की धारा 227 (3) के अनुसार बनाये गये हैं अर्थात् लाभ-हानि खाता व चिट्ठा संस्था के सही चित्र को प्रदर्शित करते हैं तथा अंकेक्षक को किसी प्रकार की शिकायत नहीं है तो ऐसी स्थिति में दिये जाने वाले प्रतिवेदन को स्वच्छ प्रतिवेदन कहा जाता है। स्वच्छ प्रतिवेदन को अमर्यादित प्रतिवेदन (Unqualified) भी कहते हैं। दूसरे शब्दों में, ऐसा प्रतिवेदन जिसमें अंकेक्षक किसी अनियमितता, अशुद्धि, कमी या अन्य प्रकार की शिकायत नहीं करता, स्वच्छ प्रतिवेदन कहलाता है।

2. मर्यादित रिपोर्ट (Qualified Report) – यदि अंकेक्षक अंकेक्षण-कार्य के दौरान लेखा पुस्तकों में कुछ अशुद्धियाँ, अनियमिततायें अथवा अन्य प्रकार की कमी पाता है तो उसे चाहिए कि इसका उल्लेख वह अपनी रिपोर्ट में कर दे। ऐसी अशुद्धि, अनियमितता, कमी या शिकायतों का उल्लेख करने वालो रिपोर्ट मर्यादित रिपोर्ट कहलाती है। इसे विशेष रिपोर्ट भी कहते हैं।

1 अप्रैल, 1984 के बाद प्रत्येक अंकेक्षक को मर्यादित रिपोर्ट में निम्नांकित सूचनायें देना अनिवार्य है-

(i) सभी मर्यादाओं को रिपोर्ट में एक साथ दिया जाना।

(ii) इन मर्यादाओं का वित्तीय विवरण पर पड़ने वाले प्रभावों का उल्लेख ।

स्वच्छ रिपोर्ट एवं मर्यादित रिपोर्ट में अन्तर (Difference between Clean and Qualified Report)

1. स्वच्छ रिपोर्ट यह प्रदर्शित करती है कि पुस्तकों में कोई त्रुटि या छल-कपट नहीं है जबकि मर्यादित रिपोर्ट द्वारा यह पता चलता है कि पुस्तकों में त्रुटियाँ और छल-कपट विद्यमान हैं।

2. स्वच्छ रिपोर्ट द्वारा यह पता चलता है कि चिट्ठा एवं लाभ-हानि खाता व्यापार की ‘सच्ची एवं उचित’ स्थिति प्रकट करते हैं, परन्तु मर्यादित रिपोर्ट यह दर्शाती है कि ‘चिट्ठा’ एवं ‘लाभ-हानि खाता’ व्यापार को ‘सच्ची एवं उचित’ स्थिति प्रकट नहीं करते।

3. स्वच्छ रिपोर्ट में किसी भी प्रकार की मर्यादा का उल्लेख नहीं किया जाता जबकि मर्यादित रिपोर्ट में मर्यादा/मर्यादाओं का उल्लेख किया जाता है ।

4. स्वच्छ रिपोर्ट से ज्ञात होता है कि अंकेक्षक जाँची गई पुस्तकों की शुद्धता से सन्तुष्ट है परन्तु मर्यादित रिपोर्ट में वह जाँचे गए हिसाब-किताब से सन्तुष्ट नहीं होता।

5. स्वच्छ रिपोर्ट व्यापार की ख्याति को बढ़ाती है और मर्यादित रिपोर्ट व्यापार की ख्याति को कम करती है


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