Divisible Profits and Dividends

0
0
(0)

विभाजन योग्य लाभ एवं लाभांश (Divisible Profits and Dividends)

विभाजन योग्य लाभ का अर्थ

(Meaning of Divisible Profit)

विभाजन योग्य लाभ से तात्पर्य उस शुद्ध लाभ से होता है जो संचालकों की दृष्टि से, संचय कोष, ह्रास आदि की व्यवस्था करने के पश्चात् लाभांश के रूप में अंशधारियों में बाँटा जा सकता है। इस प्रकार कम्पनी के ‘कुल लाभ’, ‘विभाजन लाभ’ नहीं होते बल्कि केवल वही लाभ ‘विभाज्य लाभ’ कहलाते हैं जो वैधानिक रूप से अंशधारियों के मध्य बाँटे जा सकते हैं। विभाजन योग्य लाभ की स्पष्ट परिभाषा देना तो कठिन कार्य है, परन्तु फिर भी कुछ मान्य न्यायाधीशों द्वारा इसे निम्न प्रकार परिभाषित किया गया है-

(1) इन री ब्यूनस आयर्स ग्रेट सदर्न कम्पनी लिमिटेड (In re Buenous Aires Great Southern Company Ltd.) के निर्णय के अनुसार, “लाभांश के लिए उपलब्ध लाभों का आशय उन लाभों से है, जो कि संचितों (Reserves) या संचालकों की इच्छानुसार आवश्यक प्रबन्ध करने के बाद लाभांश के रूप में बाँटने के लिए बचे।”

(2) स्टीवर्ट बनाम शशालाइट लि0, 1936 (Stewart Vs. Sashilite Ltd. 1936) के निर्णय के अनुसार, लाभ और विभाजन योग्य लाभ में अन्तर भली-भाँति समझ लेना चाहिए । “सभी लाभ विभाजन योग्य लाभ नहीं होते। केवल वही लाभ जो अंशधारियों में कानूनी तौर पर बाँटे जा सकते हैं, विभाजन योग्य लाभ कहे जाते हैं।”

उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि विभाजन योग्य लाभ वह लाभ हैं जो अंशधारियों में वितरित किया जाता है। विभाजन योग्य लाभ का निर्धारण करते समय लेखांकन के सिद्धान्तों, वैधानिक व्यवस्थाओं, पार्षद सीमा नियम व अन्तर्नियमों तथा न्यायालयों के निर्णय और सम्बन्धित परिस्थितियों को ध्यान में रखना अत्यन्त आवश्यक है। . .   

Divisible Profits and Dividends

       

(Legal Provisions Related to Divisible Profit

कानूनी प्रावधान विभाजन योग्य लाभ से सम्बन्धित कानूनी प्रावधानों को अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से निम्नलिखित भागों में बाँटा जा सकता है-

I. कम्पनी अधिनियम की धारा 205 (1) के अनुसार-कम्पनी अधिनियम के अनुसार विभाजन योग्य लाभ के सम्बन्ध में निम्नलिखित नियम हैं-

(1) कम्पनी के लाभों में से लाभाश बाँटना-कम्पनी किसी भी वित्तीय वर्ष के लिए उन्हीं लाभों में से लाभांश घोषित या भुगतान कर सकती है जो धारा 205 (2) के अनुसार हास का आयोजन करने के पश्चात् बचते हैं। यदि गतवर्ष या गतवर्षों के अविभाज्य लाभ हैं तो इन लाभों में से इसी प्रकार ह्रास का आयोजन करने के पश्चात् बचे हुए लाभों में से लाभांश घोषित या भुगतान किया जा सकता है। या उस धन से जो केन्द्रीय या राज्य सरकार ने अपने द्वारा दी गई गारन्टी के अनुसार लाभांश बाँटने के लिए दिया हो, लाभांश

घोषित या भुगतान किया जा सकता है। जब केन्द्रीय सरकार यह महसूस करती है कि ह्रास का प्रबन्ध किये बिना लाभांश बाँटना जनता के हित में है तो वह ऐसा करने की आज्ञा दे सकती है।

(2) अधिक से अधिक दस प्रतिशत संचय में हस्तान्तरित करना–कम्पनी (संशोधित) अधिनियम 1974 के पश्चात् हास का प्रावधान करने के बाद एक निश्चित राशि जो 10% से अधिक नहीं हो सकती संचय में हस्तान्तरित करने के बाद शेष लाभ को ही अंशधारियों में बाँटा जा सकता है।

(3) लाभांश का भुगतान केवल नकदी में होना–कम्पनी लाभांश का भुगतान केवल नकद में ही करती है। परन्तु पूर्णदत्त अधिलाभाश अंशों के निर्गमन के लिए तथा कम्पनी के सदस्यों द्वारा लिए हुए अंशों की अदत्त राशि के भुगतान के लिए कम्पनी के लाभों या संचयों का पंजीकरण किया जा सकता है ।

(4) लाभांश केवल पूँजीगत अंशधारियों को ही देना-कम्पनी द्वारा लाभांश केवल पूँजीगत अंशधारियों या उनके द्वारा निर्धारित व्यक्तियों को अथवा उनके बैंकर्स को ही दिया जाएगा। यदि धारा 144 के अनुसार अंशों के लिए अंश अधिपत्र निर्गमित किए गए हैं, तो लाभांश ऐसे अधिपत्र वाहकों को व उनके बैंकर्स को ही दिया जाएगा, अन्य किसी व्यक्ति को नहीं।

(5) लाभांश का भुगतान 30 दिन के अन्दर करना-लाभांश का भुगतान लाभांश घोषित होने के 30 दिन के अन्दर अंशधारियों को कर दिया जाना चाहिए या उन्हें लाभांश अधिपत्र भेज देने चाहिए अन्यथा प्रत्येक दोषी अधिकारी को अधिकतम 3 वर्ष की सजा या आर्थिक दण्ड भी लगाया जा सकता है।

(6) अदत्त लाभांश को विशेष लाभांश खाते में हस्तान्तरित करना-कम्पनी को अदत्त लाभांश की राशि को 30 दिन समाप्त होने के बाद सात दिन के अन्दर एक पृथक खाते में हस्तान्तरित कर देना चाहिए जिसे अदत्त लाभांश खाता कहा जाता है। यदि कम्पनी इस अदत्त लाभांश की राशि को इस खाते में हस्तान्तरित नहीं करती तो उसे त्रुटि की तिथि से 18% वार्षिक ब्याज देना होगा।

(7) भुगतान की हुई राशि के अनुपात में लाभांश देना-धारा 93 के अनुसार यदि कम्पनी को उसके अन्तनियम आज्ञा दें तो वह उन अंशों पर जिनके सम्बन्ध में अन्य अंशों की अपेक्षा अधिक राशि भुगतान कर दी गई है, भुगतान की हुई राशि के अनुपात में अधिक लाभांश दे सकती है।

II. तालिका ‘ए’ के अनुसार-लाभांश वितरण के सम्बन्ध में कुछ नियमों का उल्लेख तालिका ‘ए’ में भी दिया गया है, जो निम्नलिखित है

(1) पूँजी में से लाभांश न बाँटना-किसी भी दशा में पूँजी में से लाभांश नहीं वितरित करना चाहिए क्योंकि पूँजी में से लाभांश देने का स्पष्ट अर्थ है कि कम्पनी द्वारा प्राप्त की गई पूँजी को लाभांश के रूप में वितरित किया गया है।

(2) लाभांश की दर संचालकों द्वारा निश्चित होना-लाभांश किस दर पर दिया जाएगा, इसका निश्चय संचालक मण्डल द्वारा किया जाता है।

(3) लाभांश साधारण सभा में घोषित होना-कम्पनी अपनी साधारण सभा में लाभांश की घोषणा करती है। यह घोषणा संचालकों द्वारा की गई सिफारिशों पर आधारित होनी चाहिए।

(4) अन्तरिम लाभांश घोषित होना-कम्पनी का संचालक मण्डल यदि उचित समझे तो अन्तरिम लाभांश की घोषणा कर सकता है ।

(5) प्रदत्त पूँजी के अनुपात में लाभांश दिया जाना-लाभांश का भुगतान अंशों पर भुगतान की गई राशि के अनुपात में किया जाता है किन्तु अंशों पर यदि कोई अग्रिम रकम प्राप्त हो गई है, तो उस पर ध्यान नहीं दिया जाता।

(6) लाभांश की राशि से अदत्त याचना समायोजित करना-संचालकों को यह अधिकार है कि वे अंशधारियों को देय लाभांश में से उस रकम को काट सकते हैं जो अंशधारियों से लेनी है।

(7) लाभांश घोषित किए जाने की सूचना देना- अधिनियम में दी गई वांछित विधि के अनुसार अंशधारियों को लाभांश भुगतान की सूचना दी जाती है।

(8) लाभांश की बकाया राशि पर कोई ब्याज नहीं-यदि लाभांश की कोई बकाया राशि है तो कम्पनी उस पर कोई ब्याज नहीं देगी।

III. पार्षद सीमा-नियम व अन्तर्नियमों का पालन किया जाना आवश्यक-यद्यपि सीमा नियम व अन्तर्नियमों में ‘विभाजन योग्य लाभ’ के सम्बन्ध में विशेष नियम लिखना आवश्यक नहीं है, फिर भी इनमें संचालकों के लिए कुछ आदेश होते हैं, जिनका उन्हें अक्षरशः पालन करना चाहिए। न्यायालयों के निर्णयों में भी बार-बार इसी बात पर जोर दिया गया है कि संचालकों को इन प्रपत्रों का उल्लंघन नहीं करना चाहिए। प्रत्येक न्यायालय ने अन्तर्नियमों को आदर देते हुए उनके विरुद्ध किए कार्य को पूर्णरूपेण अवैधानिक ठहराया है। अतः यह स्पष्ट है कि ‘विभाजन योग्य लाभ’ की गणना कम्पनी अन्तर्नियमों के आधार पर होनी चाहिए।

IV. लेखांकन सिद्धान्तों का पालन-लेखाकर्म के सिद्धान्तों के अनुसार पूँजी को लाभांश के रूप में बाँटना उचित नहीं माना जा सकता है और न यही ठीक माना जाता है कि इस वर्ष के लाभ में से पिछले वर्षों की हानि की व्यवस्था किये बिना लाभांश बाँट दिये जायें। सिद्धान्त यह भी कहते हैं कि लाभांश के रूप में लाभ बाँटने से पूर्व भविष्य की आकस्मिक घटनाओं के लिए संचय बनाना अत्यन्त ही आवश्यक है।

विभाजन योग्य लाभ के सम्बन्ध में अंकेक्षक के कर्त्तव्य

विभाजन योग्य लाभ के सम्बन्ध में अंकेक्षक को निम्नलिखित बातों पर विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए

(1) अधिनियम की धाराओं का पालन हुआ है या नहीं-अंकेक्षक को यह देखना चाहिए कि लाभांश वितरण सम्बन्धी सभी नियमों का भली प्रकार से पालन किया गया है अथवा नहीं।

(2) कम्पनी के पार्षद सीमानियम व अन्तर्नियमों की जाँच-अंकेक्षक को कम्पनी के पार्षद सीमानियम और अन्तर्नियमों का गहन अध्ययन करना चाहिए और देखना चाहिए कि

विभाजन योग्य लाभ के बारे में क्या-क्या व्यवस्था दे रखी है और उनका पालन हो रहा है या नहीं।

(3) पूँजीगत हानियों का अपलेखन-लाभों के वितरण से पूर्व पूँजीगत हानियों को अपलिखित किया जाना चाहिए. यद्यपि यह वैधानिक आवश्यकता नहीं, किन्तु बैंकिंग कम्पनी ऐक्ट की धारा 15 के अनुसार बैंकिंग कम्पनी में ऐसा आवश्यक है। यदि किसी कम्पनी में पूँजीगत लाभों में से लाभांश वितरित किया जा रहा हो. तो अंकेक्षक को यह अवश्य देखना चाहिए कि पूंजीगत हानि अपलिखित कर दी गई है।

(4) लाभों का अर्जित होना-अंकेक्षक को देखना चाहिए कि जो भी लाभ घोषित किये जा रहे हैं क्या वे वास्तव में कम्पनी ने अर्जित कर लिए हैं। ऐसा तो नहीं कि भावी लाभ को आशा में लाभांश घोषित किये जा रहे हों।

(5) कम्पनी की सामर्थ्यता की जाँच-अंकेक्षक को इस बात की जाँच भी करनी चाहिए कि लाभांशों को घोषित करने एवं देने के पश्चात् क्या कम्पनी के पास इतनी राशि बची रहेगी कि वह अपने समस्त दायित्वों का भुगतान कर सके।

(6) कार्यवाही विवरण पुस्तक का अध्ययन-अंकेक्षक को, घोषित लाभांश दर और उसको रकम की जाँच के लिए संचालकों तथा अंशधारियों की कार्यवाही विवरण पुस्तिका को अच्छी तरह जाँच कर लेनी चाहिए। उसे यह पता लगाना चाहिए कि जो लाभांश की दर घोषित की गई है वह ठीक है।

(7) तालिका ‘अ’ के नियमों का पालन हुआ है या नहीं-लाभांश के सम्बन्ध में तालिका ‘अ’ के नियमों का पालन किया गया है या नहीं।

इस प्रकार एक अंकेक्षक को विभाज्य लाभ के सम्बन्ध में जाँच करते समय उपरोक्त प्रमुख तथ्यों को ध्यान में रखना चाहिए। उसे लाभांश की राशि की मात्रा के सम्बन्ध में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है क्योंकि यह केवल संचालकों के अधिकार-क्षेत्र की बात है, किन्तु यदि अंकेक्षक उचित समझे तो इस सम्बन्ध में अपनी सलाह दे सकता है। यदि अंकेक्षक को जरा भी सन्देह हो कि विभाजन योग्य लाभों के सम्बन्ध में अन्तर्नियमों, अधिनियमों अथवा अन्य वैधानिक आवश्यकताओं का पालन नहीं किया गया है तो इस तथ्य का उल्लेख उसे अपनी रिपोर्ट में अवश्य कर देना चाहिए।

पूँजी लाभ का अर्थ

व्यवसाय की सामान्य प्रक्रिया से उपार्जित होने वाले लाभ आयगत लाभ तथा असामान्य प्रक्रिया से उपार्जित होने वाले लाभ पूँजीगत लाभ कहलाते हैं। अर्थात् गैर-व्यापारिक क्रियाओं जैसे अंशों व ऋणपत्रों के निर्गमन पर प्राप्त प्रीमियम, हरण किये गए अंशों के दुबारा निर्गमन पर लाभ, स्थायी सम्पत्तियों के विक्रय पर लाभ आदि पूँजीगत लाभ के प्रमुख उदाहरण हैं। सामान्य तौर पर तो पूँजी लाभ को लाभांश रूप में नहीं बाँटा जा सकता है, परन्तु निम्नलिखित दशाओं में पूँजीगत लाभ को लाभांश के रूप में बाँटा जा सकता है-

1. पूँजी लाभ में से बोनस अंशों का निर्गमन-पूँजी लाभ में से बोनस अंश निर्गमित किये जा सकते हैं क्योंकि ऐसा करने से सम्पत्तियों में कमी नहीं आती है किन्तु यह नियम केवल अंशों के प्रीमियम तथा पूँजी भुगतान संचित कोष के ही सम्बन्ध में है।

2. पूँजी लाभ से नकद लाभांश देने की शर्ते-यदि कोई कम्पनी पूँजीगत लाभों का वितरण नकद में करना चाहती है तो इस सम्बन्ध में निम्नलिखित शर्ते पूरी होनी चाहिये-

(i) यदि कम्पनी के अन्तर्नियमों में पूँजीगत लाभों को लाभांश के रूप में बाँटे जाने पर कोई प्रतिबन्ध न लगाया गया हो ।

(ii) यदि पूँजी लाभ की वसूली कर ली गयी हो ।

(iii) यदि पूँजीगत लाभ में से पूँजीगत हानियाँ अपलिखित कर ली गयी हों, साथ ही स्थायी सम्पत्तियों पर ह्रास का प्रबन्ध कर लिया गया हो।

(iv) यदि लाभांश भुगतान के बाद भी कम्पनी ऋणों के भुगतान की स्थिति में हो।

(v) यदि सम्पत्तियों व दायित्वों के पुनर्मूल्यांकन से हुई क्षति के समायोजन के बाद भी पूँजी लाभ का शेष हो।

(vi) यदि पूँजी लाभ को पूँजी संचय (Capital, Reserve) में हस्तान्तरित नहीं किया गया हो।

कम्पनी अधिनियम (संशोधित), 1960 की धारा 205 पूँजी लाभों से लाभांश बाँटने की अनुमति प्रदान करती है।

पूँजी लाभ और न्यायाधीशों के निर्णय

1. फोस्टर बनाम न्यू ट्रिनीडाड लेक अस्फाल्ट क० लि० (1901)- इस मुकदमे के निर्णयानुसार कोई भी कम्पनी किसी सम्पत्ति पर अर्जित लाभ को उस समय तक लाभांश के रूप में नहीं बाँट सकती जब तक कि कम्पनी की सम्पूर्ण सम्पत्तियों का पुनर्मूल्यन न हो जाये -तथा अदि उस पर हानि हो तो उसका अपलेखन नहीं हो जाये।

2. लुम्बक बनाम ब्रिटिश बैंक ऑफ साउथ अमेरिका (1892)- इस मुकदमे के निर्णयानुसार यदि कम्पनी के पार्षद सीमानियम व अन्तर्नियम में ऐसा प्रावधान हो तो इस प्रकार का लाभाँश बाँटा जा सकता है।

पूँजीगत लाभ जिनका लाभांश के रूप में वितरण नहीं किया जा सकता निम्नलिखित पूँजीगत लाभों को लाभांश के रूप में किसी भी दशा में नहीं बाँटा जा सकता है।

1. अंशों के निर्गमन पर प्राप्त प्रीमियम–कम्पनी विधान की धारा 78 के अनुसार अंशों के निर्गमन पर प्राप्त प्रीमियम को लाभांश के रूप में वितरित नहीं किया जा सकता। ऐसी राशि का प्रयोग केवल पूँजीगत हानियों को अपलिखित करने या बोनस अंशों के निर्गमन के लिए किया जा सकता है।

2. अंशों के हरण से प्राप्त पूँजीगत लाभ-हरण किये गए अंशों को पुनः निर्गमन के पश्चात् यदि हरण खाते में कोई शेष है तो उसे वैधानिक रूप से नहीं बाँटा जा सकता।

3. समामेलन से पूर्व कम्पनी द्वारा अर्जित लाभ-समामेलन से पूर्व का लाभ पूँजीगत लाभ माना जाता है इसका प्रयोग कम्पनी ख्याति को अपलिखित करने, विक्रेताओं को दिए जाने वाले ब्याज के रूप में या अन्य पूँजीगत खर्चों को अपलिखित करने में कर सकती है। इसे किसी भी दशा में लाभांश के रूप में वितरित नहीं किया जा सकता।

पूँजीगत लाभ और अंकेक्षक

पूँजीगत लाभों का लाभांश के रूप में वितरण किस सीमा तक हुआ है इस सम्बन्ध में अंकेक्षक को निम्न बातों पर ध्यान देना चाहिए

1. अंकेक्षक को इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि अंशों के निर्गमन पर प्राप्त प्रीमियम को लाभांश के रूप में तो वितरित नहीं किया गया है। प्रीमियम की राशि से बट्टे की हानि अथवा ख्याति व अन्य पूँजीगत हानियों को ही अपलिखित किया जा सकता है। इसे अन्य किसी खाते में हस्तान्तरित नहीं किया जा सकता है।

2. अंकेक्षक को यह देखना चाहिए कि हरण किए गए अंशों को पुनः निर्गमित करने के बाद हरण खाते के शेष में बची राशि को पूँजी संचय खाते में हस्तान्तरित किया गया है या नहीं।

3. अंकेक्षक को यह जाँच करनी चाहिए कि जिस आधार पर समामेलन से पूर्व व पश्चात् के लाभ का विभाजन हुआ है वह ठीक है या नहीं। इसके लिए उसे लाभ-हानि खाते की प्रत्येक मद के विभाजन के आधार की जाँच करनी चाहिए।

4. अंकेक्षक को यह देखना चाहिए कि समामेलन से पूर्व के लाभ को लाभांश के रूप में तो वितरित नहीं कर दिया गया है।

5. अंकेक्षक को इस बात पर विशेष ध्यान देना चाहिए कि समामेलन से पूर्व के लाभ को कहीं आयगत लाभ तो नहीं मान लिया गया है क्योंकि यह लाभ पूँजीगत होता है।

6. अंकेक्षक को यह देखना चाहिए कि जिस पूँजीगत लाभ को लाभांश के रूप में वितरित किया जा रहा है उसकी गणना ठीक प्रकार से की गई है या नहीं। 7. कम्पनी के अन्तर्नियम को देखकर अंकेक्षक को यह देखना चाहिए कि पूँजीगत लाभों को लाभांश के रूप में किस सीमा तक बाँटा जा सकता है।

8. यदि पूँजीगत लाभों को लाभ-हानि खाते के जमा पक्ष में दिखाया गया है तो अंकेक्षक को यह देखना चाहिए कि उन्हें खातों में स्पष्ट रूप से दिखाया गया है या नहीं।

9. अंकेक्षक को यह जाँच करनी चाहिए कि पूँजीगत लाभों के वितरण के सम्बन्ध में न्यायालय द्वारा दिये गए निर्णयों का पालन किया गया है अथवा नहीं।

10. जब कम्पनी द्वारा पूँजीगत लाभों को लाभांश के रूप में वितरित किया जाता है तो अंकेक्षक को इसका उल्लेख अपनी रिपोर्ट में कर देना चाहिए।

पूँजी में से लाभांश बाँटना (Distribution of Dividend out of Capital)

बहुधा यह प्रश्न उठता है कि क्या पूँजी में से लाभांश का वितरण किया जा सकता है? इसका स्पष्ट जवाब है नहीं।

पूँजी में से लाभांश बाँटने का तात्पर्य अंशधारियों द्वारा दी गयी पूँजी की राशि को वापिस करना है। अत: पूँजी में से लाभांश नहीं बाँटे जा सकते हैं। ऐसा प्रतिबन्ध लगाने के प्रमुख कारण अग्रलिखित हैं-

(1) अंशधारियों की पूँजी पर लेनदारों का अधिकार होना-जो पूँजी अंशधारियों द्वारा दी जाती है उसका प्रयोग कम्पनी के समापन के समय लेनदारों को भुगतान करने के लिए किया जाता है। अत: यह स्पष्ट है कि अंशधारियों द्वारा दी हुई पूँजी पर लेनदारों का अधिकार है, न कि अंशधारियों का।

गिनीज बनाम लैण्ड कॉरपोरेशन ऑफ आयरलैण्ड के मामले में न्यायाधीशों ने यह निर्णय दिया था कि “पार्षद सीमानियम में वर्णित कम्पनी की पूँजी एक ऐसा कोष है, जो कि कम्पनी की समाप्ति पर लेनदारों को देना है। इससे यह सिद्ध होता है कि जो पूँजी अंशधारियों ने कम्पनी को दी है, उसे लौटाया नहीं जा सकता, क्योंकि इसमें से लेनदारों को भुगतान किया जाता है।”

(2) न्यायालय की आज्ञा के बिना पूँजी कम करना अवैध है-पूँजी में से यदि लाभांश बाँटा जाता है, तो इससे पूँजी कम हो जायेगी। संशोधित कम्पनी अधिनियम की धारा 100 के अनुसार कोई भी कम्पनी न्यायालय की अनुमति के बिना अपनी पूँजी को कम नहीं कर सकती है। अतः पूँजी में से लाभाश देना वैध नहीं है । यदि अन्तर्नियम एवं स्मारक पत्र भी पूँजी में से लाभांश बाँटने की अनुमति दें तो भी इस प्रकार लाभांश बाँटना वैध नहीं होगा।

(3) पूँजी में से लाभाश बाँटने वाले संचालकों का दायित्व-जो संचालक प्रतिबन्धों के रहते हुए भी पूँजी में से लाभांश का वितरण करते हैं, उन्हें पूरी राशि (5% ब्याज के साथ) कम्पनी में जमा करनी पड़ती है। इसके विपरीत, जो संचालक ईमानदारी से कार्य करते रहते हैं तथा जो लाभांश बाँटने के पक्ष में नहीं रहते हैं, उन्हें किसी प्रकार की कोई सजा नहीं दी जाती है।

(4) पूँजी में से जान-बूझकर लाभांश लेने वाले अंशधारियों की स्थिति-यदि कम्पनी के सदस्य जान-बूझकर कम्पनी की पूँजी में से लाभाँश की राशि लेते हैं, तो उनसे पूरी राशि वापिस ली जा सकती है। ऐसे सदस्य संचालकों को इस बात के लिए बाध्य नहीं कर सकते कि वे वितरित हुए लाभाँश का भाग स्वयं कम्पनी को दें।

पूँजी में से लाभाँश बाँटा हुआ समझा जाना

(Dividend assumed to be Distributed out of Capital

निम्नलिखित परिस्थितियों में पूँजी में से लाभाँश बाँटा हुआ समझा जायेगा-

(i) स्थायी सम्पत्ति की बिक्री की राशि को लाभाँश के रूप में बाँटना।

(ii) यदि आयगत खर्चे पूँजीगत माने गये हैं और इस प्रकार बढ़े हुए लाभ को बाँटा गया है।

(iii) पिछले वर्ष कम्पनी को हानि हुई हो और उसे बिना अपलिखित किये हुए लाभाँश बाँटा जाना। (iv) जब कम्पनी के दायित्वों को छिपाया जाए और लाभाँश का वितरण किया जाए


Related Post

  1. Auditing: Meaning, Objectives and Importance
  2. Classification of Audit
  3. Audit Process
  4. Internal Check
  5. Audit Procedure: Vouching
  6. Verification & Valuation of Assets & Liabilities
  7. Depreciation and reserve
  8. Company Audit
  9. Appointment, Remuneration, Rights and Duties of an Auditor
  10. Liabilities of an Auditor
  11. Divisible Profits and Dividends
  12. Audit report
  13. Special Audit
  14. Investigation
  15. Cost Audit
  16. Management Audit

How useful was this post?

Click on a star to rate it!

Average rating 0 / 5. Vote count: 0

No votes so far! Be the first to rate this post.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here