Bcom Company Audit Notes
कम्पनी अंकेक्षण
अंकेक्षक को कम्पनी का अंकेक्षण कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिये-
1. नियुक्ति की वैधता की जाँच-अंकेक्षण कार्य प्रारम्भ करने के पूर्व अंकेक्षक को इस बात की जाँच कर लेनी चाहिये कि उसकी नियुक्ति कम्पनी अधिनियम की धारा 224 या 225 के प्रावधानों के अनुसार की गयी है या नहीं। यदि उसकी नियुक्ति विधिवत् की गई है तो उसे अपनी नियुक्ति की सूचना नियुक्ति की तिथि से एक माह के अन्दर कम्पनी रजिस्ट्रार को लिखित रूप में दे देनी चाहिए। यदि अंकेक्षक की नियुक्ति किसी दूसरे अंकेक्षक के स्थान पर हुई है तो उसे अपनी नियुक्ति की सूचना पूर्व अंकेक्षक को भी देनी चाहिए। यदि वह ऐसा नहीं करता तो वह व्यावसायिक दुराचरण का दोषी माना जायेगा।
2. व्यवसाय की प्रकृति-अंकेक्षण प्रारम्भ करने से पूर्व अंकेक्षक को व्यवसाय की प्रकृति व अन्य बातों से भली-भाँति परिचित होना चाहिए जैसे किस वस्तु का व्यापार होता ? वस्तु का क्रय-विक्रय कहाँ से होता है ? व्यवसाय की सम्पत्तियों का क्या स्वभाव है ? व्यवसाय की आय-व्यय की मदें क्या हैं तथा व्यवसाय की अन्य तकनीकी बातों का ज्ञान।
3. वैधानिक प्रलेखों का निरीक्षण-अंकेक्षक को अपना कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व कम्पनी के समस्त महत्वपूर्व प्रलेख जैसे पार्षद सीमानियम, पार्षद अन्तर्नियम तथा प्रविवरण आदि का अध्ययन कर लेना चाहिए। Company Audit Notes
प्रविवरण से आशय उस प्रलेख से होता है, जिसके द्वारा जनता को कम्पनी द्वारा निर्गमित अंशों तथा ऋणपत्रों को क्रय करने के लिए आमन्त्रित किया जाता है। यह बहुत महत्वपूर्ण प्रपत्र होता है, क्योंकि जनता इसके आधार पर ही अंश खरीदती है, अत: अंकेक्षक को इसे सावधानी से अध्ययन करके उसमे निम्नलिखित बातें नोट करनी चाहिए-
(i) अभिदान (Subscription) के लिए अर्पित पूंजी की राशि, विभिन्न प्रकार के अंश और उनके अधिकार।
(ii) निर्गमन की शर्ते, प्रार्थना और आबन्टन पर देय राशियाँ और भविष्य की याचनाओं (Calls) पर दी जाने वाली राशि।
(iii) न्यूनतम अभिदान (Minimum Subscription) की धनराशि ।
(iv) विक्रेताओं (Vendors) के साथ प्रविष्ट होते हुए किसी अनुबन्ध के विवरण ।
(v) अंशों पर कमीशन के लिए देय धनराशि ।
(vi) प्रारम्भिक व्ययों (Preliminary Expenses) की राशि या अनुमानित राशि।
(vii) संचालकों की योग्यता, पारिश्रमिक तथा कर्त्तव्य
(viii) सैक्रेटीज एवं ट्रेजरार्स की नियुक्ति एंव पारिश्रमिक ।
(ix) कम्पनी द्वारा किसी विशेष अनुबन्ध (Material Contract) के विवरण ।
(4) लेखा-पुस्तकों एवं वैधानिक रजिस्टरों का निरीक्षण कम्पनी अंकेक्षक को कम्पनी द्वारा रखी जाने वाली समस्त लेखा-पुस्तकों एंव वैधानिक रजिस्टरों की सूची प्राप्त कर लेनी चाहिए।
अधिनियम की धारा 209 (1) के अनुसार कम्पनी के पंजीकृत कार्यालय में निम्न तथ्यों से सम्बन्धित लेखे रखे जाने चाहिए
- कम्पनी की प्राप्तियाँ एवं भुगतान तथा ऐसे तथ्य जिनके सम्बन्ध में भुगतान पाना है या देना है
- कम्पनी के समस्त क्रय-विक्रय ।
- कम्पनी की समस्त सम्पत्तियाँ एवं दायित्व
(iv) सामग्री, मजदूरी या अन्य लागत के लेखे जो उत्पादन, निर्माण या खनन कार्य में लगी हुई हों।
अंकेक्षक को इन कार्यों के लिए कम्पनी द्वारा रखी गई पुस्तकों की सूची प्राप्त कर लेनी चाहिए। वैधानिक पुस्तकों से आशय ऐसी पुस्तकों से है जिन्हें वैधानिक रूप से रखना आवश्यक होता है।
(5) महत्वपूर्ण अनुबन्धों का निरीक्षण-अंकेक्षक को उन समस्त अनुबन्धों का भी निरीक्षण करना चाहिए जो कम्पनी एवं व्यक्तियों या संस्थाओं के मध्य किए गए हों। अंकेक्षक का यह कर्त्तव्य है कि वह सम्पत्तियों के क्रय के सम्बन्ध में विक्रेताओं से किए गए समस्त अनुबन्धों की जाँच करें। कमीशन के भुगतान अथवा प्रारम्भिक व्ययों को सत्यापित कर यह देखना होगा कि वे प्रविवरण में उचित रूप से प्रकट किए गए हैं। यदि वैधानिक रिपोर्ट है तो प्रस्तावित अनुबंधों में संशोधनों के लिए उससे सन्दर्भ लिया जा सकता है। Company Audit Notes
(6) पिछले वर्ष के स्थिति विवरण व अंकेक्षक रिपोर्ट का निरीक्षण करना–
(i) पिछले वर्ष के स्थिति विवरण का निरीक्षण करके अंकेक्षक को यह देखना चाहिए कि सभी शेष ठीक प्रकार से चालू वर्ष की पुस्तकों में लाए गए हैं या नहीं।
(ii) पिछले वर्ष की अंकेक्षक रिपोर्ट का निरीक्षण करके यह देखना चाहिए कि रिपोर्ट में उल्लिखित संस्तुतियों (Recommendations) का पालन किया गया है या नहीं।
(iii) इसी प्रकार पिछले वर्ष की संचालक रिपोर्ट के निरीक्षण से यह देखना चाहिए कि लाभ का आयोजन किस प्रकार किया गया था।
(7) अधिकारियों एवं पुस्तकों की सूची प्राप्त करना-अंकेक्षण के दौरान इस सूची के आधार पर अधिकारियों से आवश्यक जानकारी/स्पष्टीकरण प्राप्त किए जा सकते हैं।
(8) आन्तरिक जाँच विषयक विवरण–
(i) अंकेक्षक को प्रचलित आन्तरिक जाँच प्रणाली, आन्तरिक अंकेक्षण प्रणाली, लेखा-विधि, आदि के संबंध में कम्पनी के प्रबंध संचालक/संचालकों से एक लिखित विवरण प्राप्त कर लेना चाहिए जिससे वह उनकी विश्वसनीयता का अनुमान लगा सके।
(ii) अंकेक्षक को कम्पनी के प्रमुख अधिकारियों के हस्ताक्षर के नमूने भी प्राप्त कर लेना चाहिए। इससे उसे कार्य में उत्पन्न बाधाओं में निवारणार्थ अधिक परेशान नहीं होना पड़ेगा, वरन् सम्बन्धित अधिकारी को बुलाकर आवश्यक सूचना या स्पष्टीकरण प्राप्त कर सकता है ।
(9) व्यापार को प्रारम्भ करने तथा समामेलन के प्रमाण-पत्र का निरीक्षण-इनके निरीक्षण से अंकेक्षक को यह ज्ञान हो जायेगा कि संस्था ने समामेलन प्रमाण-पत्र तथा व्यवसाय प्रारम्भ करने के प्रमाण-पत्र को प्राप्त करने के बाद ही व्यवसाय शुरू किया। हाँ, प्राइवेट कम्पनी समामेलन प्रमाण-पत्र प्राप्त करने के बाद ही कारोबार शुरू कर सकती है । Company Audit Notes
अंशों का हस्तान्तरण
कम्पनी की अंश-पूँजी विभिन्न हिस्सों में बंटी हुई होती है जिन्हें अंश कहा जाता है कम्पनी के अंश चलसम्पत्ति होते हैं और इनका हस्तान्तरण अन्तर्नियम के प्रावधानों के अनुसार किया जाता है। हस्तान्तरण का अधिकार अंशधारियों को धारा 82 के अन्तर्गत दिया गया है जो इस प्रकार है-“कम्पनी में किसी भी सदस्य के अंश अथवा अन्य हित (जैसे लाभांश) चल सम्पत्ति होंगे, जिनका हस्तान्तरण कम्पनी के अन्तर्नियम के अधीन होगा। सार्वजनिक कम्पनी का अन्तर्नियम हस्तान्तरण पर प्रतिबन्ध तो लगा सकता है परन्तु इस अधिकार को पूर्णतया समाप्त नहीं कर सकता जबकि निजी लम्पनियों में अंशों के हस्तान्तरण पर पूर्णतः प्रतिबन्ध लगाना आवश्यक है।”
हस्तान्तरण सम्बन्धी वैधानिक प्रावधान
(Statutory provisions regarding transfer of Share)
अंशों के हस्तान्तरण के सम्बन्ध में प्रावधानों की व्याख्या धारा 108 से धारा 112 में गई है जो निम्नलिखित हैं-
(i) कम्पनी अंशों का हस्तान्तरण उसी समय रजिस्टर करती है जब हस्तान्तरण-पत्र अंश प्रमाण-पत्र के साथ ही कम्पनी को भेज दिया गया हो। धारा 108 के अनुसार यदि हस्तान्तरण-पत्र खो गया हो, तो यदि संचालक मण्डल सन्तुष्ट हो जाए तो वह हस्तान्तरण को रजिस्टर कर सकता है ।
(ii) धारा 109 के अनुसार यदि मृत सदस्य का वैधानिक उत्तराधिकारी कम्पनी को प्रार्थना-पत्र प्रस्तुत करे तभी मृत सदस्य के अंश हस्तान्तरित किए जा सकते हैं।
(iii) धारा 110 के अनुसार हस्तान्तरण-पत्र, हस्तान्तरणकर्ता या हस्तान्तरिती, दोनों में से किसी के द्वारा भी प्रस्तुत किया जा सकता है, परन्तु जब हस्तान्तरणकर्ता अंशों का आंशिक हस्तान्तरण करना चाहता है तो कम्पनी को दोनों पक्षों को उचित नोटिस देना पड़ता है। यदि दोनों पक्षों में से कोई भी इसका विरोध नहीं करता तो कम्पनी इस हस्तान्तरण को रजिस्टर कर सकती है ।
वैधानिक दृष्टि से साधारण अंशों के हस्तान्तरण का अंकेक्षण अनिवार्य नहीं है। परन्तु कभी-कभी अंकेक्षक को विशेष रूप से पारिश्रमिक देकर इस हस्तान्तरण का अंकेक्षण कराया जा सकता है । यह अंकेक्षण दो उद्देश्यों की दृष्टि से कराया जाता है-
1. क्लर्कों की अशुद्धियों पर रोक लगाना ।
2. दोहरे अंश प्रमाण-पत्र या प्रमाणित हस्तान्तरण (Duplicate Share Certificates or Certified Transfers) के अनुचित निर्गमन को रोकना ।
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